मेरे आलेख पर प्रतिक्रिया-12
भाषा के नाम पर राजनीति न करें
डॉ. सोमनाथ यादव
संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो पूरे देश की बोली-भाषाओं को संस्कार देती रही है। यही कारण है कि संस्कृत से संस्कृति बनी है। अंग्रेज खेती की ओर प्रमुखता देते हैं इसलिए एग्रीकल्चर से 'कल्चर नि:सृत है जबकि विचार प्रेषण के कारण और विश्व-वंदया होने के कारण हमारा देश भाषा की दृष्टि से संपन्न रहा है। संस्कृत को देवभाषा व लिपि को देवनागरी लिपि से संबोधित करने हमने इसे पावन और अलौकिक स्थान दिया है। यह वैज्ञानिक दृष्टि से संपन्न भाषा है जिसमें लेखन और उच्चारण में समानता है। इसने सभी देश की बोलियों और भाषाओं को पुत्रवत पोषण किया है। यह सभी भाषाओं की जननी है। नई पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी को पिछड़ा कह सकती है, बेटी मां की उपेक्षा कर सकती है लेकिन इससे न मां का महत्व कम होता और न पुरानी पीढ़ी की चमक कम होती। थोड़ा सा भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति इस तथ्य से सुपरिचित है लेकिन छत्तीसगढ़ी राजभाषा के प्रयोग के परिप्रेक्ष्य में कोई संस्कृत को तिरस्कृत करने का वक्तव्य दे तो उसे किस आक्रोश से चिन्हित करेंगे, यह आप खुद समझें।
राजभाषा के रूप में छत्तीसगढ़ी को सम्मान सरकार दे रही है लेकिन बिना तैयारी के हम छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई-लिखाई के लिए वक्तव्य दें और संस्कृत का अध्यापन बंदकर छत्तीसगढ़ी में प्रारंभ करने की बात कहें तो हास्यास्पद स्थिति हमें मूर्ख ही तो प्रमाणित करेगी। कोई एक व्यक्ति जो न तो कोई साहित्यकार है, न ही भाषाविद् अत: त्रिभाषा फार्मूला से अनजान होकर वे जो वक्तव्य दे रहे हैं तथा छत्तीसगढ़ी बोलने और पढ़ने-पढ़ाने के लिए जिस तरह बयानबाजी कर रहे है, उसमें अधिकांश लोगों को राज ठाकरे की आत्मा दिखाई देने लगी है। क्या इस प्रदेश से हिंदी, अंग्रेजी को न पढ़कर छत्तीसगढ़ में रहने वाले छत्तीसगढ़ी ही पढ़ेंगे क्या यह राष्ट्र हित में है? यहां हिंदी ने 90 प्रतिशत लगभग प्राप्त कर लिया है और शिक्षा व कार्यालयों में अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है। व्यावसायिक दृष्टि से जब तक अंग्रेजी आजीविका का साधन रहेगी, इसे ज्ञान और औपचारिकता के लिए अपनाने में क्या हर्ज है? इसकी उपेक्षा करके छत्तीसगढ़ पिछड़ा नहीं कहलाएगा? क्या यहां के बच्चों को संस्कृत और अंग्रेजी के ज्ञान से उपेक्षित कर दें। उन्हें केवल छत्तीसगढ़ी पढ़ाएं। इससे क्या होगा और यह कैसे संभव होगा। क्या वे लोग बताएंगे कि उनके घर के बच्चो सरकारी स्कूलों में पढ़ने की जगह अंग्रेजी माध्यम जैसी निजी स्कूलों में क्यों पढ़ते हैं? क्या वे यह भी बताएंगे कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों के साथ ही भेदभाव क्यों? सक्षम एवं धनाढय लोगों के बच्चों को ही सिर्फ अधिकार है अंग्रेजी पढ़ने का? कुछ लोग बयानबाजी कर और कुछ न समङा लोगों को जोड़कर या कहे अंधे में काना राजा बनकर आत्ममुग्ध जीवन जीना चाहते हैं। ऐसे लोगों का समूह बनाकर कुछ लोग भाषायी कटुता रखकर और कट्टरता दिखाकर भूमि पुत्र बनने का नाटक कर रहे हैं। जिस छत्तीसगढ़ी को संस्कृत का संस्कार है, उसे भी विलोपित करने की बात करके उन्होंने सुर्खियों में बने रहने का सफल नाटक किया है या कहें छत्तीसगढ़ी भाषाविद् बनने के फेर में और राजभाषा के अगुवा बनने की तिकड़म में आवेशवश और अज्ञानतावश ऐसा वक्तव्य देकर छीछा लेदर करा रहे हैं। छत्तीसगढ़ी-हिंदी की ही तरह (वैसे भी पूर्वी हिंदी की एक शैली है) संस्कृतनिष्ठ भाषा है। तत्सम के प्रचुर शब्द हिंदी और छत्तीसगढ़ी में मिलते हैं। अत: बेटी द्वारा मां की उपेक्षा का आरोप लगाना संभव ही नहीं है।
(लेखक छत्तीसगढ़ी राजभाषा परिषद् के प्रांतीय महासचिव एवं राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य हैं)
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