बुधवार, 29 अप्रैल 2020

करोना से गंभीर लड़ाई लड़ रहा है मध्यप्रदेश


संवेदना, सक्रियता और साहस के तीन मंत्रों से जीती जाएगी यह जंग
-प्रो.संजय द्विवेदी


   मध्यप्रदेश उन राज्यों में है जहां करोना का संकट कम नहीं है। खासकर भोपाल, इंदौर जैसे शहर करोना के हाटस्पाट के रुप में मीडिया में अपनी जगह बनाए हुए हैं, वहीं 2168 मरीजों के साथ देश के राज्यों में पांचवें नंबर पर उसकी मौजूदगी बनी हुई है। ऐसे कठिन समय में संवेदनशील नेतृत्व, सही दिशा और स्पष्ट नीति के साथ आगे बढ़ना जरूरी था। विगत 23 मार्च,2020 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शिवराज सिंह चौहान के सामने यह चुनौती थी कि वे राज्य को करोना के कारण उत्पन्न संकटों से न सिर्फ उबारें बल्कि जनता के मन में अवसाद और निराशा की भावना पैदा न होने दें। क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ मैदानी नहीं है, आर्थिक नहीं है, बल्कि मनोवैज्ञानिक भी है। ऐसे समय में राज्य शासन और उसके मुखिया की संवेदना अपेक्षित ही नहीं,अनिवार्य है। उन्होंने सत्ता संभालते ही अपने चिकित्सा अमले को आईआईटीटी(IITT) यानि आइडेंटिटीफिकेशन,आइसोलेशन, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट का मंत्र दिया। सेंपल एकत्रीकरण टेस्टिंग की क्षमता में वृद्धि को बढ़ाने की दिशा में तेजी से प्रयास हुए।
सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्थाएं-
     यह जानना जरुरी है कि अपने विशाल भौगोलिक वृत्त में मध्यप्रदेश किस तरह चुनौतियों का सामना कर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। इसके लिए मध्यप्रदेश ने एक साथ कई मोर्चों पर काम प्रारंभ किया और सबमें सफलता पाई। मात्र दो दिन में 450 कर्मचारियों का प्रशिक्षण कर उसने राज्य स्तरीय कोरोना नियंत्रण कक्ष की स्थापना की। इस नियंत्रण कक्ष के माध्यम से नागरिकों की समस्याओं का पंजीयन, राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों का प्रादेशिक अधिकारियों, जिला मजिस्ट्रेटों और आवासीय आयुक्तों से प्रभावी संपर्क सुनिश्चित किया गया। इसके साथ ही सीएम हेल्पलाइन और वाट्सअप नंबर का प्रचार प्रसार, भोजन, राशन, चिकित्सा, आवास जैसी व्यवस्थाएं दृढ़ता से लागू की गईं। सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था इसका एक और आयाम था जिसके तहत राज्य स्तर पर अधिकारियों की व विशेषज्ञों की कोर टीम तैयार हुई। सभी स्तर के अधिकारियों की द्वितीय पंक्ति को तैयार कर मैदान में उतार दिया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं अग्रणी रहते हुए मैदान में उतरे। भोपाल में सड़कों पर उतरकर, अस्पतालों में जाकर उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि सरकार उनके साथ खड़ी है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री प्रतिदिन मैदानी अधिकारियों से वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से उन्हें प्रेरित करते दिखे।
    लाकडाउन के दौरान आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए प्रभावी संपर्क और समन्वय बनाना एक ऐसा काम था जिससे स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखना संभव हुआ। डेटा आधारित रणनीति बनाना किसी भी संकट से निजात दिलाने की पहली शर्त है। कोविड पोर्टल में प्रदेश का महामारी डाटाइस संग्रहित हो रहा है।इस पोर्टल के माध्यम से कोरोना से युद्ध की नीतियां तैयार हो रही हैं तथा संदिग्ध और पाजिटिव मामलों पर नजर रखी जा रही है। कोरोना वारियर्स,सार्थक एप के माध्यम से घर-घर जाकर सर्वेक्षण, सैंपलिंग, फालोअप,पाजिटिव केस पंजीयन का काम कर रहे हैं। उपकरण और अधोसंरचना के क्षेत्र में प्रदेश में पीपीई किट्स का निर्माण प्रारंभ हुआ। अब डाक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिसवालों तथा अन्य कर्मियों के लिए पर्याप्त मात्रा में पीपीई किट्स की उपलब्धता कराते हुए उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की गयी। लोगों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेद, होम्योपैथ और यूनानी रोग प्रतिरोधक दवाओं तथा त्रिकुट काढ़ा चूर्ण का वितरण भी किया गया। इस अभियान से लगभग एक करोड़ लोग लाभान्वित हुए।
कोरोना योद्धाओं को संरक्षण-
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 50 लाख तक का बीमा घोषित किया है। इसी को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने करोना संकट से लड़ने वाले सभी विभागों के कर्मियों के लिए मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना घोषित की है। इसमें सेवा के दौरान मृत्यु पर कर्मियों के आश्रितों को 50 लाख रुपए की मदद का प्रावधान है। जिला खनिज निधि का कोरोना से लड़ाई में उपयोग हो सकते इसकी स्वीकृति भी सरकार ने दी है। इसके तहत प्रदेश के 11 जिले 811 लाख रुपए की निधि का उपयोग करने की स्वीकृति मुख्यमंत्री से ले कर राहत के कामों में जुट गए हैं। इससे संबंधित जिलों में मेडिकल उपकरणों की खरीदी, नए आईसीयू बेड की स्थापना,पीपीई किट आदि की व्यवस्थाएं संभव हो सकी हैं। अपनी जान को जोखिम में डालकर सेवा करने वाले डाक्टर्स, नर्स,वार्ड ब्याव आदि करोना योद्धाओं को उनके समर्पण और संकल्प के लिए दस हजार रुपए प्रतिमाह की सेवा निधि की व्यवस्था की गई है।इसके साथ ही पुलिस कर्मियों को कर्मवीर पदक और अन्य विभागों के कर्मियों को कर्मवीर सम्मान देने की बात है।
    इस संदर्भ में मुख्यमंत्री भी लोगों में साहस भरते हुए नजर आते हैं। वे साफ कहते हैं कि कोरोना ऐसी बीमारी नहीं है जो ठीक न हो सके। यदि लक्षण दिखने पर उसका इलाज करा लिया जाए, तो यह बीमारी ठीक हो जाती है। उन्होंने आर्थिक चिंताओं पर यह कह संबल दिया कि जान है तो जहान है। आर्थिक मामले तो ठीक कर लिए जाएंगें, किंतु हम ही न रहे तो सारी प्रगति के मायने क्या हैं।यानि मुख्यमंत्री अपेक्षित संवेदनशीलता के साथ लोंगो को साहस और ताकत देते नजर आते हैं। जिसमें उनकी नजर में जनता का स्वास्थ्य पहली प्राथमिकता है।
सामान्य जनों को मदद का भरोसा-   
  राज्य के गरीब परिवारों को एक माह का निःशुल्क राशन देने की व्यवस्था ने तमाम परिवारों को मुस्कराने का मौका दिया। अनूसूचित जाति-जनजाति विभाग द्वारा अतिथि शिक्षकों का अप्रैल माह तक का अग्रिम भुगतान, आहार अनुदान योजना में अति पिछड़ी जनजाति की महिलाओं के खाते में एक हजार रूपए के मान से दो महीने का अग्रिम भुगतान किया गया। मध्यप्रदेश सरकार की चिंताओं में मजदूर वर्ग भी था। इसके तहत 22 राज्यों में फंसे 7 हजार प्रवासी मजदूरों के खाते में 70लाख रुपए की सहायता राशि भेजी गई। यही नहीं दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों और विद्यार्थियों को प्रदेश में लाने का बड़ा अभियान भी चलाया गया। पहले ही दिन 80 हजार से अधिक मजदूर अपने घर पहुंचे। बैंकों के सहयोग से सरकार की विभिन्न योजनाओं के 17 सौ करोड़ रुपए जरुरतमंदों के खाते में जमा किए गए। सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के तहत 46 लाख हितग्राहियों को के खातों में दो महीने की पेंशन की राशि अग्रिम के तौर पर जमा करने का निर्णय भी साधारण नहीं था। प्रदेश के सभी जिलों में संबल योजना का क्रियान्वयन प्रारंभ कर सभी हितग्राहियों को राहत दी गई। किसानों को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की संवेदना बहुज्ञात है। फसल बीमा सहित मंडियों को प्रारंभ कराना और फसल ऋण में राहत ऐसे कदम से थे, जिससे किसानों को सीधी राहत मिली।  
जनसंगठनों की मदद से राहत अभियान को गति-
कोरोना संकट में राहत कार्यों में योगदान के लिए 33 हजार लोंगो का पंजीयन कराकर विभिन्न सेवा के कामों में उनकी सहायता ली गयी। जन अभियान परिषद के नेटवर्क से जुड़े 11,826 स्वैच्छिक संगठनों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक सप्ताह के भीतर प्रदेश के हजारों गांवों में दीवाल लेखन के माध्यम से जागरूकता पैदा की। इसके साथ ही कोरोना संबंधी कामों में जनअभियान परिषद के 55 से 60 हजार कार्यकर्ता सतत रूप से लगे हुए हैं।
    इसी दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विशेषज्ञों से संवाद तो कर ही रहे हैं। इसके अलावा आध्यात्मिक नेताओं से भी वे संवाद के माध्यम से राह दिखाने की अपील कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने कोविड 19 की चुनौतियां और एकात्म बोध विषय पर देश के प्रख्यात आध्यात्मिक नेताओं व चिंतकों से उनकी राय जानी। इसके पूर्व उनके विशेषज्ञ समूह में शामिल नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी,  पूर्व मुख्यसचिव निर्मला बुच और अन्य सामाजिक चिंतकों से वे संवाद कर चुके हैं। हम देखते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदना, सक्रियता, साहस और बेहतर सोच ने मध्यप्रदेश को इस संकट में संभलने का अवसर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शीध्र ही मध्यप्रदेश और देश करोना के संकट के मुक्त होकर सर्वांगीण विकास के पथ पर एक  नई यात्रा पर निकलेगा।


  
   

रविवार, 26 अप्रैल 2020

करोना संकट को अवसर बनाकर आगे बढ़ने का समय


डा. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में दिखाई नई राहें


-प्रो.संजय द्विवेदी



  करोना संकट से विश्व मानवता के सामने उपस्थित गंभीर चुनौतियों को लेकर दुनिया भर के विचारक जहां अपनी राय रख रहे हैं, वहीं दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत के संवाद ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। कहने को तो डा. भागवत अपने संगठन के स्वयंसेवकों से संवाद कर रहे थे लेकिन इस संवाद के निहितार्थ बहुत विलक्षण हैं। उनके संवाद में देशभक्ति, मानवता और भारतवासियों के प्रति प्रेम के साथ वैश्विक आह्वान भी था कि अब विश्व मानवता के लिए भारत अपने वैकल्पिक दर्शन के साथ खड़ा हो। उन्होंने साफ कहा कि हमें संकटों को अवसर में बदलने की कला सीखनी होगी।
एक राष्ट्र-एक जन-
   सेवा के कामों में जुटे अपने स्वयंसेवकों से उन्होंने साफ कहा कि उनके लिए कोई पराया नहीं है। एक अरब तीस करोड़ भारतवासी उनका परिवार हैं। भाई-बंधु हैं। इसलिए सेवा की जरूरत जिन्हें सबसे ज्यादा उन तक मदद किसी भेदभाव के बिना सबसे पहले पहुंचनी चाहिए। उनकी इस राय के खास मायने हैं। उनका साफ कहना था भय और क्रोध से अतिवाद पैदा होता है। हमें हर तरह के अतिवाद से बचना है और भारत की सामूहिक शक्ति को प्रकट करना है। उनके संवाद में देश के सामने उपस्थित चुनौतियों का सामना करने और उससे आगे निकलने की सीख नजर आई। उनके समूचे भाषण में भय और क्रोध शब्द का उन्होंने कई बार इस्तेमाल किया और इन दो शब्दों के आधार होने वाली प्रतिक्रिया से सर्तक रहने को कहा। उनका कहना था कि समाज के अग्रणी जनों को ऐसे अवसरों पर अपने लोगों को संभालना चाहिए ताकि प्रतिक्रिया के अतिवादी रूप सामने न आएं।  
नर सेवा-नारायण सेवा-
सेवा संघ के मुख्य कामों में एक है। देश के हर संकट, दैवी आपदाओं और दुर्घटनाओं में संघ के स्वयंसेवक बिना प्रचार की आस किए सेवा के लिए आगे आते हैं। उसके सेवा भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन प्रत्यक्ष सेवा के काम से जुड़े हैं। इसके अलावा संघ के प्रत्येक आनुषांगिक संगठन के अपने-अपने सेवा के काम हैं। उन्होंने सेवा के काम में प्रत्यक्ष लगे कार्यकर्ताओं के लिए कहा कि वे सावधानी के साथ अपना काम करें ताकि काम के लिए वे बचे रहें। कोई छूट न जाए और  अपनत्व की भावना का प्रसार हो। उन्होंने कहा कि हम उपकार नहीं सेवा कर रहे हैं इसलिए इसे गुणवत्तापूर्ण ही होना होगा। प्रेम,स्नेह, श्रेष्ठता और अपनत्व की भावना से ही सेवा स्वीकार होती है। हमें अच्छाई का प्रसार करना है और भारतीयता के मूल्यों को स्थापित करना है। समाज के संरक्षण और उसकी सतत उन्नति ही हमारे लक्ष्य हैं।
स्वावलंबी भारत-सशक्त भारत-
अपने संबोधन में डा. भागवत ने स्वदेशी और स्वालंबन की आज फिर बात की। उनका कहना था कि जो कुछ हमारे पास उसे अन्य से लेने की आवश्यक्ता क्या है। इसके लिए हमें स्वदेशी का आचरण करते हुए स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। जिसके बिना हमारा काम चल सकता है उसे विदेशों से लेने की आवश्यक्ता क्या है। विदेशों पर निर्भरता को कम करने और समाज का स्वालंबन बढ़ाने पर उनका खासा जोर था। वे यहीं रुके उन्होंने रासायनिक खेती के खतरों की तरफ इशारा करते हुए जैविक खेती और गो-पालन पर भी जोर दिया। संघ लंबे समय से स्वदेशी की बात करता आ रहा है किंतु सत्ता की राजनीति मजबूरियों और राजनीति के खेल में उसकी आवाज अनसुनी की जाती रही है। कभी नीतियों के स्तर पर तो कभी विश्व बाजार के दबावों में। करोना संकट के बहाने एक बार फिर संघचालक ने स्वदेशी के आह्वान को मुखर किया है तो इसके विशेष अर्थ हैं।
संतों की हत्या पर जताया दुख-
अपने संवाद में डा. भागवत पालघर में दो संतों की हत्या पर दुखी नजर आए। उन्होंने कहा कि हमें ऐसी घटनाओं के परिप्रेक्ष्य को समझकर इसकी पुनरावृत्ति रोकनी चाहिए। क्योंकि संत तो सब कुछ छोड़कर समाज के लिए निकले थे उनकी हत्या का कोई कारण नहीं है। नागरिक अनुशासन ही देशभक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक है। राजनीति को स्वार्थ से अलग कर उसे समाज केंद्रित बनाने पर जोर देते हुए उनका कहना था कि आज हमें पर्यावरण, जीवन और मानवता तीनों के बारे में सोचने की जरूरत है। डा. भागवत के व्याख्यान की मुख्य बातें सही मायने में एक जीवंत समाज बनाने की भावना से भरी-पूरी हैं। उनकी सोच का भारत ही अरविंद, विवेकानंद और महात्मा गांधी के सपनों का भारत है।
        कोरोना संकट में हुए इस व्याख्यान के बहाने डा. भागवत ने संघ की सामाजिक, सांस्कृतिक भूमिका का खाका खींच दिया है। स्वयंसेवकों के सामाजिक उत्तरदायित्व और देश तोड़क शक्तियों के मंसूबों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने भय  और क्रोध के आधार पर सृजित होने वाले अतिवाद को बड़ी चिंता से प्रकट किया। उनके संबोधन से साफ है कि संघ समाज में अपनी भूमिका को ज्यादा व्यापक करते हुए अपने सरोकारों को समाज के साथ जोड़ना चाहता। इस बार गर्मियों में संघ के प्रशिक्षण शिविर भी स्थगित हैं इसलिए स्वयंसेवकों के सामने इस संदेश पाथेय से करने के लिए काफी कुछ होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि संघ अपने विविध संगठनों के माध्यम से सेवा और देश के सशक्तिकरण के प्रयासों को व्यापक बनाने में सफल रहेगा। साथ ही उसके संकल्पों और कार्यों को सही संदर्भों में समझा जाएगा।


करोना, संवेदना और शिवराज


राजसत्ता को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की हो रही पहल
-    प्रो.संजय द्विवेदी


     मनुष्यों की तरह सरकारों का भी भाग्य होता है। कई बार सरकारें आती हैं और सुगमता से किसी बड़ी चुनौती और संकट का सामना किए बिना अपना कार्यकाल पूरा करती हैं। कई बार ऐसा होता है कि उनके हिस्से तमाम दैवी आपदाएं, प्राकृतिक झंझावात और संकट होते हैं। इस बार सत्तारुढ़ होते ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे ही संकटों से दो-चार हैं। सत्ता ग्रहण करते ही वैश्विक करोना संकट ने उनके सामने हर मोर्चे पर चुनौतियों का अंबार ला खड़ा किया। यहीं पर अनुभव, राज्य की शक्ति और सीमाओं की समझ तथा समाज की चिंताओं का अध्ययन काम आता है। मध्यप्रदेश जैसे भौगोलिक तौर पर विस्तृत राज्य की चुनौतियां बहुत विलक्षण हैं। चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि उसके दोनों बड़े शहरों इंदौर और भोपाल में करोना का संक्रमण विकराल दिखता है।  
     करोना का संकट एक ऐसी चुनौती है जिससे उबरना आसान नहीं है। सच तो यह है कि इस संकट के सामने दुनिया की हर सरकार खुद को विवश पा रही है। शपथ लेते ही जिस तरह खुद को झोंककर मप्र के मुख्यमंत्री ने अपनी दक्षता दिखाई वह सीखने की चीज है। शिवराज सिंह की खूबी यह है कि वे अप्रतिम वक्ता और संवादकला के महारथी हैं। उनकी वाणी और कर्म में जो साम्य है, वह उन्हें हमारे समय के राजनेताओं में एक अलग ऊंचाई देता है। उनकी खूबी यह भी है कि वे सिर्फ कहते नहीं हैं, खुद को उस अभियान में झोंक देते हैं। ऐसे में जनता, शासन-प्रशासन और सामाजिक संगठन उनके साथ होते हैं। करोना युद्ध में भी उन्होंने पहले तो लोगों को आश्वस्त किया कि वे लौट आए हैं। उनकी पुराना ट्रैक भी एक भरोसा जगाता है, जिसमें हर वर्ग की परवाह है, उनसे संवाद है और योजनाओं का सार्थक क्रियान्वयन है।
करोना योद्धाओं को भरोसा दिलाया-
       सरकार संभालते ही उन्होंने पहले तो करोना योद्धाओं को भरोसा दिया कि वे निर्भय होकर काम करें और उनकी चिंता सरकार पर छोड़ दें। यही कारण है कि डाक्टरों और पुलिस हमले और असहयोग करने वालों को उन्होंने जेल की सीखचों को भीतर डालकर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे कड़े कदम उठाए। इसके बाद मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना की शुरुआत की है जिसमें करोना की बीमारी में सेवा दे रहे कर्मियों के कल्याण की बात की गई। हर स्तर की  चिकित्सा सेवाओं से जुड़े कर्मी, गृह विभाग, नगरीय निकाय के हर स्तर के कर्मी, निजी संगठनों के लोग व कोविड -19 से संबंधित सेवाओं में जुड़े हर पात्र कर्मी को इससे जोड़ा गया है। अपनी जान पर खेल लोगों की जान बचाने वाले लोगों के कर्तव्यबोध को जगाने का यह अप्रतिम प्रयास है। इसके तहत सेवा के दौरान प्रभावित होने और जान जाने पर 50 लाख तक के मुआवजे का उनके आश्रितों को प्रावधान है।
किसानों और श्रमिकों को प्रति संवेदना-
  किसानों पर अपने अनुराग के लिए शिवराज जाने ही जाते हैं। उन्हें किसानों के आंसू पोंछने और राज्य को कृषि क्षेत्र में ऊंचाईयों पर ले जाने का श्रेय है। किसानों को कष्ट न हो इसके लिए उनकी सरकार हर उपाय करती ही है। इसके साथ ही श्रमिकों के साथ उनकी संवेदना बहुज्ञात है। दूसरे राज्यों में फंसे श्रमिकों को वापस लाने, कोटा में फंसे विद्यार्थियों को वापस लाने की पहल को इसी नजर से देखा जाना चाहिए। सामान्य योजनाओं से समझा जा सकता है कि वे लोगों को कष्ट को समझते हैं तो सामाजिक सहभागिता के अवसर भी जुटाते हैं। महिलाओं से मास्क बनाने का आह्वान उनकी इसी सोच का परिचायक है जिसमें प्रति मास्क 11 रुपए दिए जाने का योजना है। इसे उन्होंने जीवनशक्ति योजना का नाम दिया है। किसानों के कल्याण और उन्हें सही मूल्य मिले इसके लिए सरकार शीध्र ही मंडी एक्ट में संशोधन के लिए भी तैयार है। राज्य में किसान उत्पादक संगठन(एफपीओ) को स्व-सहायता समूहों की तरह सशक्त बनाने की भी तैयारी है।
       करोना को लेकर उनकी पूरी टीम पूरी सक्रियता से मैदान में है। वे ही हैं जो सरकार, संगठन, सामाजिक संगठनों, धार्मिक नेताओं, आम लोगों और समाज के हर वर्ग से संवाद करते हुए संकटों का हल निकाल रहे हैं। संवाद में उनका भरोसा है इसलिए वे राज्य स्तरीय समिति में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच, जबलपुर के लोकप्रिय चिकित्सक डा. जितेंद्र जामदार आदि के साथ चर्चा कर राहें निकाल रहे हैं। शिवराज जी की खूबी है कि वे अपनी सहजता, सरलता और भोलेपन से लोगों के दिलों में जगह बनाते हैं तो वहीं जब दृढ़ता प्रदर्शन करना होता है, तो वे कड़े फैसले लेने में संकोच नहीं करते। इस बार सत्ता में आते ही उन्होंने जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले लिए उसने यह साबित किया कि वे शांतिकाल के नायक तो हैं ही, संकटकाल में भी अपना धैर्य नहीं खोते। असली राजनेता की यही पहचान है। राज्य की आर्थिक चिंताओं से बड़ी इस राज्य के लोंगो की जिंदगी है। तभी कोराना संकट से मुकाबले के प्रारंभ में ही मुख्यमंत्री ने कहा जान है तो जहान है। आर्थिक प्रगति तो हम कभी भी कर लेंगें पर  जीवन न रहा तो उसका क्या मतलब। यह साधारण वक्तव्य नहीं है। यह एक तपे हुए राजनेता का बयान है, जिसके लिए अपने राज्य के लोग ही सब कुछ हैं। इसीलिए अब वे हैप्पीनेस फार्मूले की बात कर रहे हैं। उनके सपनों का आनंद मंत्रालय फिर से पुर्नर्जीवित होने जा रहा है। इसके तहत आनंद की गतिविधियों तो पूर्ववत चलेंगी ही,वर्तमान करोना संकट में इसके शिकार मरीजों को खुश रखने के भी प्रयास होगें। उम्मीद की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश और देश करोना संकट से जीत पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण बनेगा। उसके द्वारा स्थापित व्यवस्थाएं एक उदाहरण बनेंगी। जिसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता, आनंद और सामाजिक सुरक्षा के भाव मिले जुले होंगे। राजसत्ता को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने में मध्यप्रदेश सरकार के प्रयास एक उदाहरण बनेगें इसमें दो राय नहीं है।