मंगलवार, 30 जुलाई 2024

अखबारों में छपे लेख


नवोदय टाइम्स, 20 जुलाई,2024 को छपा लेख



दैनिक जागरण में छपा लेख
 

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मीडिया के उलझे रिश्ते

-प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी



“माननीय प्रधानमंत्री जी हम आभारी हैं कि आप हमारे बीच आए। मेरी ऑन दी जॉब लर्निंग अब शुरू हो गई है और 2024 तक मैं देश की सबसे अच्छी जर्नलिस्ट होने की कोशिश करूंगी। उम्मीद करती हूं कि तब आपसे एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करने का मौका मुझे मिलेगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।” ये शब्द हैं भारत की पहली एआई बॉट एंकर सना के। आर्टिफिशनल इंटेलिजेंस के मीडिया जगत में बढ़ते इस्तेमाल की कई संभावनाएं हैं। इसी में से एक है कि आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री एक एआई एंकर से देश के भविष्य और योजनाओं के बारे में चर्चा करते दिखें।

दरअसल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के 'टेक्स्ट टू स्पीच' फीचर की बदौलत अब भारतीय न्यूजरूम में मशीन को इंसानी चेहरे में ढालकर खबरें पेश की जा रही हैं। पिछले साल अप्रैल के महीने में इंडिया टुडे ग्रुप ने एआई एंकर से समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया था। लॉन्च कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में एंकर का परिचय देते हुए कहा गया था कि वह ब्राइट है, सुंदर है, उम्र का उन पर कोई असर नहीं होता है और न ही कोई थकान होती है, वो बहुत सारी भाषाओं में बात कर सकती हैं। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी दुनिया को फिर से परिभाषित करने, मानवीय क्षमता की सीमाओं को पार करने और अभूतपूर्व पैमाने पर उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार देने के लिए तैयार है। मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में, एआई का आगमन कंटेंट क्रिएटर्स को सामग्री निर्माण के लिए शक्तिशाली उपकरणों से सशक्त बना रहा है, नए अनुभवों को अनलॉक कर रहा है और कलात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का उपभोग करने, बनाने और उनसे जुड़ने के तरीके को हमेशा के लिए बदल रहा है।

हाल के कुछ समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत चर्चा का विषय बना हुआ है और पत्रकारिता का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह रहा है। मौजूदा समय में भारत की मेनस्ट्रीम मीडिया का बड़ा हिस्सा विज्ञापन पर निर्भर होकर काम कर रहा है। ऐसे में तकनीक के जरिये डेटा के आधार पर समाचार बुलेटिन प्रस्तुत करना और अन्य काम भी इंसान की जगह मशीन की बदौलत होने ने मीडिया इंडस्ट्री के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पत्रकारिता के भविष्य से लेकर पत्रकारिता करने वालों के भविष्य को लेकर भी संकट खड़ा होने की बात कही जा रही है। लेकिन एआई पत्रकारिता वास्तव में क्या है? क्या यह चिंता का एक विषय है या फिर सूचना जगत में एक ऐसी नई क्रांति है, जो पत्रकारिता के सही आयाम स्थापित करने में कामयाब हो पाएगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पत्रकारिता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन के लगभग सभी पहलूओं समेत पत्रकारिता में भी शामिल हो गई है। डिजिटल मीडिया की वजह से जाने-अनजाने में ही एआई तकनीक पर आधारित कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे वह यू-ट्यूब के एल्गोदिरम की वजह से आपको दिखते वीडियो हों या वेबसाइट पर दिखने वाले विज्ञापन। सभी का एक कारण एआई तकनीक ही है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से एआई पत्रकारिता में बड़ी भूमिका निभा रहा है। मीडिया कंपनियां अपने कंटेंट को अधिक बूस्ट करने के लिए एआई की मदद ले रही हैं। लेख लिखने से लेकर बुलेटिन प्रसारित करने तक में एआई का सहारा लिया जा रहा है। दुनिया भर के बड़े-बड़े मीडिया हाउस एआई द्वारा लिखे लेख को प्रकाशित कर रहे हैं। एक तरफ तो यह काम को आसान और तेजी से कर रहा है, दूसरी ओर यह कई सवाल भी खड़े करता है जिसमें विश्वसनीयता और अखंडता सबसे पहले है। साथ ही क्या सजृनशीलता पर आधारित क्षेत्र में एआई से डेटा आधारित बातचीत और जानकारी, पत्रकारिता के धरातल पर काम कर पाएगी? पत्रकारिता के सबसे मजबूत और शुरुआती मूल्य 'ग्राउंड रिपोर्टिंग' का भविष्य इससे बच पाएगा?

खतरे में पत्रकारों की नौकरियां

इंसान की जगह मशीन के इस्तेमाल होने का पहला खतरा इंसानों पर ही पड़ता है। 'न्यूज़जीपीटी', दुनिया का पहला समाचार चैनल है, जिसका पूरा कंटेंट आर्टिफिशल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार किया जा रहा है। चैनल के प्रमुख एलन लैवी ने इसे खबरों की दुनिया का गेम चेंजर कहा था, क्योंकि ना इसमें कोई रिपोर्टर है और ना ही यह किसी से प्रभावित है। यहां यही बात मीडिया जगत में काम करने वाले लोगों के लिए बड़ा खतरा है। जैसे-जैसे मीडिया के क्षेत्र में एआई का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वहां मौजूदा लोगों की नौकरियों पर तकनीक का कब्जा होने की संभावना ज्यादा नजर आ रही है। लेखन, संपादन, एंकरिंग, प्रस्तुतीकरण तक के सारे कामों में एआई का सहारा लिया जा रहा है। 

बीबीसी द्वारा प्रकाशित एक समाचार के अनुसार साल 2020 में माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ी संख्या मे 'एमएसएन' वेबसाइट के लिए लेखों के चयन, क्यूरेटिंग, हेडलाइन तय करने और एडिटिंग करने वाले पत्रकारों की जगह स्वचलित सिस्टम को अपनाने की योजना बनाई। खबर के अनुसार कंपनी ने एआई तकनीक के सहारे खबरों के प्रोडक्शन के कामों को पूरा करना तय किया। माइक्रोसॉफ्ट जैसी अन्य टेक कंपनियां मीडिया संस्थानों को उनका कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए भुगतान करती हैं। इन सब कामों के लिए पेशेवर पत्रकारों की मदद ली जाती आई है, जो कहानियां तय करने, उनका प्रकाशन कैसे होना है, हेडलाइन तय करने जैसे काम करते हैं। लेकिन माइक्रोसॉफ्ट के एआई तकनीक के इस्तेमाल के बाद से लगभग 50 न्यूज प्रोड्यूसर्स को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। 

ठीक इसी तरह साल 2022 के अंत में अमेरिकी टेक्नोलॉजी न्यूज वेबसाइट 'सीएनईटी' एआई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चीजें अलग ही स्तर पर ले गई। कंपनी ने एआई प्रोग्राम के तहत लिखे गए दर्जनों फीचर लेख चुपचाप तरीके से प्रकाशित किए। जनवरी 2023 तक कंपनी ने इन सब अटकलों की पुष्टि नहीं की थी, जिसे केवल एक प्रयोग बताया जा रहा था। इतना ही नहीं एसोसिएटेड प्रेस ने भी अपनी कहानियों के लिए एआई का इस्तेमाल किया। ये सब बातें बताती हैं कि कैसे समाचारों को चुनने, उनको व्यवस्थित करने के लिए काम करने वाले मीडिया के पेशेवरों की नौकरियां एआई ले रहा है। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन अभी से न्यूजरूम के भीतर उसकी मौजूदगी से मीडिया पेशवरों की नौकरियों पर संकट बनना शुरू हो चुका है। डायच वेले के अनुसार हाल ही में यूरोप के सबसे बड़े पब्लिकेशन हाउस 'एक्सल स्प्रिंगर' ने कई संपादकीय नौकरियों को एआई में बदल दिया है। स्प्रिंगर में नौकरियों की कटौती से मीडिया उद्योग के रोबोट पर निर्भरता की आशंकाओं में तेजी ला दी है। 

न्यूजरूम में एआई एंकर

भारत समेत कई अन्‍य देशों में न्यूज एंकर के तौर पर कम्प्यूटर जनित मॉडल यानी एआई एंकर समाचार पढ़ते नज़र आ रहे हैं। बहुत हद तक इंसानी तौर पर दिखने वाले ये न्यूज एंकर कॉर्पोरेट मीडिया हाउस के मुनाफे वाले दृष्टिकोण से हितैषी हैं, क्योंकि इन्हें न कोई सैलरी की आवश्यकता है, ना छुट्टी की। ये 24 घंटे और सातों दिन डेटा के आधार पर काम कर सकते हैं। भारत की पहली एआई न्यूज एंकर सना के लॉन्च के समय इसी तरह के शब्द कहे गए थे कि वह बिना थके लंबे समय तक काम कर सकती है।

द गार्डियन के अनुसार साल 2018 में चीन की न्यूज एजेंसी 'शिन्हुआ' पहला एआई न्यूज एंकर दुनिया के सामने लाई। इस एजेंसी के किउ हाओ पहले एआई एंकर हैं, जिसने डिजिटल वर्जन पर समाचार प्रस्तुत किया। शिन्हुआ और चीनी सर्च इंजन सोगो द्वारा यह एआई एंकर विकसित किया गया है। प्रकाशकों ने चीन के वार्षिक वर्ल्ड इंटरनेट कॉन्फ्रेंस के क्रार्यक्रम के दौरान इसकी घोषणा की थी। इसी से जुड़ी दूसरी के अनुसार पिछले वर्ष चीन ने एआई महिला न्यूज़ एंकर रेन जियाओरॉन्ग को लॉन्च किया। चीन सरकार केंद्रित पीपल्स डेली अखबार ने दावा किया है कि इस एआई न्यूज एंकर ने हजारों न्यूज एंकर्स से स्किल सीखे हैं और वह 365 दिन 24 घंटे लगातार खबरें बता सकती है। चीन के अलावा कुवैत भी अपना एआई न्यूज एंकर लॉन्च कर चुका है। हाल ही में 'न्यूज 18' के पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रीय चैनल की तरफ से भी एआई एंकर के बारे में बात की गई। इस एंकर का नाम एआई कौर है। हाल ही में रूस के स्वोए टीवी ने स्नेज़ना तुमानोवा को पहले वर्चुअल मौसम की खबर प्रस्तुत करने वाले के रूप में पेश किया। 

इस तरह से दुनिया के अलग-अलग मीडिया संस्थानों की ओर से एआई तकनीक के न्यूज एंकर को लॉन्च किया जा रहा है। एक के बाद एक एआई न्यूज एंकर के लॉन्च को मीडिया की नई क्रांति और बदलाव बताया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि सूचना के क्षेत्र में एआई समावेशिता, विश्वसनीयता स्थापित कर पाती है या नहीं। क्योंकि अगर अब तक लॉन्च एआई एंकर्स के रूप-आकार को लेकर बात करे तो उससे पूरी तरह समावेशिता गायब है। लॉन्च एंकर का आकार यूरो सैंट्रिक ब्यूटी स्टैंडर्ड को ध्यान में रखकर गढ़ा गया है जैसे गोरा रंग, एक ख़ास तय किस्म की बॉडी आदि। सूचना के क्षेत्र में प्रस्तुतिकरण में इस तरह से पूर्वाग्रहों को और स्थापित करने का काम किया जा रहा है।  

एआई की दुनिया और विश्वसनीयता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अभी अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन यह देखना वास्तव में बहुत दिलचस्प होगा कि यह पत्रकारिता को किस तरह से बदलेगा। क्योंकि आज क्लिकबेट पत्रकारिता, फेक न्यूज और प्राइम टाइम में चिल्लाने वाली पत्रकारिता का दौर है। ऐसे में क्या रोबोट, इंसानी रवैये के इतर विवेक के साथ पत्रकारिता करेंगे? प्रसिद्ध मीडिया स्तंभकार पामेल फिलिपोज ने कहा है कि एआई और उसके इस्तेमाल से पैदा खतरे वास्तविक हैं। एआई अधिक बहुस्तरीय समस्या को पैदा कर सकता है, जैसे एआई दुष्प्रचार अधिक फैला सकता है। 

फिलिपोज ने आगे कहा है कि फेक न्यूज अब व्हाट्सएप टेक्स्ट और तस्वीरों के माध्यम से प्रसारित की जाती हैं और एआई की पूरी क्षमता रॉ डेटा को पुर्नजीवित करना है। इस तरह बहुत से पत्रकार और मीडिया पेशवरों का मानना है कि एल्गोदिरम और ऑटोमेशन पर बढ़ती निर्भरता से पत्रकारिता की विश्वसनीयता कम होने का खतरा है।

एआई न्यूज एंकर या पत्रिकारिता में एआई की निर्भरता सूचना क्षेत्र के भविष्य के लिए दोधारी तलवार है। एक तरफ इससे मीडिया के नयेपन और संचार के क्षेत्र की अपार संभावनों पर ध्यान दिया जा रहा है। वहीं इसे नैतिक और जिम्मेदारी तय करने के लिए रेग्यूलेशन और निरीक्षण की आवश्यकता भी है। ऐसे दौर में जहां मीडिया में पहले से ही ग्राउंड रिपोर्ट, खोजी पत्रकारिता और जनपक्ष की कमी है, उस समय में एआई तकनीक का बढ़ता प्रभाव सूचनाओं से मानवीय पक्ष को खत्म करने वाला ज्यादा नजर आ रहा है।



नरेंद्र मोदी से इतनी नफरत क्यों करता है पश्चिमी मीडिया

-  प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने दोनों कार्यकालों में पश्चिमी नेताओं के साथ अब तक के सबसे अच्छे संबंध रहे हैं। लेकिन पश्चिमी मीडिया के साथ ऐसा नहीं है, जिसने उन्हें 'ताकतवर' से लेकर 'तानाशाह' तक, कई तरह के शब्दों से संबोधित किया है। अब जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों के अंतिम परिणाम आ चुके हैं और नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, तब पश्चिमी मीडिया द्वारा फैलाए गए भारत-विरोधी और मोदी-विरोधी एजेंडे का त्वरित मूल्यांकन करना जरूरी हो जाता है।

भारत ने लोकसभा चुनावों के दौरान विदेशी पर्यवेक्षकों को भारतीय चुनावी प्रक्रिया देखने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन पश्चिमी मीडिया ने मोदी सरकार पर अल्पसंख्यकों के प्रति “घृणा” से भरे “हिंदुत्व” के एजेंडे को आगे बढ़ाने का अपना सामान्य बयान जारी रखा। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश पश्चिमी मीडिया रिपोर्ट्स में मोदी सरकार की विभिन्न मामलों में कड़ी आलोचना की गई है और विपक्ष को पीड़ित के रूप में पेश किया गया है।

पत्रकारिता का नियम है कि संतुलित रिपोर्टिंग में सभी पक्षों के तथ्य और सभी पक्षों के बयानों को समान रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। लेकिन चाहे वह दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी का मुद्दा हो या प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार भाषण का मुद्दा, जिसमें उन्होंने विपक्षी कांग्रेस पर भारत के नागरिकों के अधिकारों को छीनने का आरोप लगाया था, पश्चिमी मीडिया कवरेज ने पूरे परिदृश्य को विकृत किया और बिना किसी पर्याप्त संदर्भ और दूसरे पक्ष के किसी भी दृष्टिकोण को शामिल किए पक्षपातपूर्ण और एकतरफा बयान जारी किये।

पूर्वाग्रह से ग्रसित पत्रकारिता

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ब्रिटिश दैनिक समाचार पत्र 'द गार्जियन' की 2024 के लोकसभा चुनाव कवरेज की कुछ सुर्खियां, जिसमें उन्होंने भारतीय चुनावों को कवर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से रिपोर्ट प्रकाशित की। आइये 'द गार्जियन' में प्रकाशित लेखों के कुछ शीर्षकों पर नजर डालते हैं- “भारत में चुनाव पूरे जोरों पर हैं, नरेंद्र मोदी हताश-और खतरनाक होते जा रहे हैं”, “पीएम नरेंद्र मोदी का दावा है कि उन्हें भगवान ने चुना है”, भारतीय चुनाव पर द गार्जियन का दृष्टिकोण: नरेंद्र मोदी बने नफरत के सौदागर”, “चुनावी कानूनों की धज्जियां उड़ाई गईं, विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया – मोदी की भाजपा के खिलाफ खड़े होने का परिणाम”, “‘मोदी राजमार्ग बनाते हैं लेकिन नौकरियां कहां हैं?’: भारत के चुनाव पर बढ़ती असमानता”।

इनमें से कुछ हेडलाइनें ‘द गार्जियन’ जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन से नहीं, बल्कि एक सस्ते टैब्लॉयड से सीधे निकली हुई लगती हैं। अत्यधिक पूर्वाग्रह से ग्रसित ये हेडलाइनें शायद किसी सनसनीखेज थ्रिलर के कवर पर या किसी मेलोड्रामैटिक सोप ओपेरा के पंचलाइन के रूप में अधिक उपयुक्त लगेंगी। आप पहला लेख देखें, “भारत में चुनाव पूरे जोरों पर हैं, नरेंद्र मोदी हताश-और खतरनाक होते जा रहे हैं”। यह लेख सलिल त्रिपाठी द्वारा लिखा गया है, जिनका गलत सूचना फैलाने और भारत विरोधी प्रचार करने का इतिहास रहा है। वे PEN इंटरनेशनल राइटर्स इन प्रिज़न कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। उनका यह लेख 2002 के गोधरा दंगों के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को दोषी ठहराने की सामान्य कथा से शुरू होता है और उन्हें अपराधी के रूप में चित्रित करता है। त्रिपाठी अपनी सुविधा के अनुसार इस प्रमुख कथा से चिपके रहते हैं और सफेद झूठ का प्रचार करते हैं। वह यह उल्लेख करने की भी परवाह नहीं करते कि भारतीय प्रधानमंत्री को 2002 के गोधरा नरसंहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी आरोपों से बहुत पहले ही बरी कर दिया गया है। जाहिर है, लेखक यह सब नहीं बताएगा क्योंकि यह उसकी शातिर कथा के अनुकूल नहीं है। लेख का बाकी हिस्सा हमेशा की तरह मोदी की “हिंदुत्व” वाली राजनीति के बारे में  ही चर्चा करता है। लेखक के अनुसार, मोदी की राजनीति खतरनाक और स्पष्ट रूप से विभाजनकारी है। मोदी के भाषण की तीव्रता से पता चलता है कि सत्ता में 10 साल रहने के बाद, उनकी सरकार के पास कोई तरकीब नहीं बची है और वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि भाजपा के मुख्य मतदाता उनका साथ न छोड़ें।

चुनाव आयोग पर प्रहार

'द गार्जियन' के अलावा जर्मन ब्रॉडकास्टर 'डॉयचे वेले' भी अपने इसी एजेंडे में लगा हुआ है। 'डॉयचे वेले' ने हाल ही में एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था, “क्या भारत का चुनाव आयोग मोदी के खिलाफ शक्तिहीन है?” यह लेख भी प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी भाषण पर केंद्रित है। लेख में उनके भाषण को सनसनीखेज बनाने की कोशिश की गई है, जिसमें कहा गया है कि उनके शब्द इस्लामोफोबिया में डूबे हुए थे। लेकिन जाने अनजाने में लेखक ने इस लेख में ऐसे तथ्य भी प्रस्तुत कर दिये, जो दिखाते हैं कि मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए सबसे अधिक योजनाएँ चलाई हैं। लेख में सुविधाजनक रूप से उस संदर्भ को भी छोड़ दिया गया है, जिसमें मोदी ने टिप्पणी की थी कि धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान करना भारतीय संविधान की भावना और प्रावधानों के विरुद्ध है। लेख में इस बात पर बहस की जा सकती थी कि क्या धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान करना वास्तव में भारतीय संविधान की मूल बातों के विरुद्ध है, या इसके लिए कोई जगह है? लेकिन इस तरह के काम के लिए गहन शोध की आवश्यकता होती है और कम से कम यहाँ 'डॉयचे वेले' का इरादा निष्पक्ष समाचार रिपोर्टों के बजाय पक्षपाती और इमोशनल क्लिकबेट कहानियों को जगह देना था। लेख में भारत के चुनाव आयोग को एक “निष्क्रिय दर्शक” भी कहा गया है और किसी तरह यह स्थापित करने के लिए अज्ञात स्रोतों का हवाला दिया गया है कि चुनाव आयोग “एक पार्टी” के प्रति पक्षपाती है। देश के चुनाव आयोग के खिलाफ चुनावों के बीच में बिना किसी सबूत के और अज्ञात स्रोतों द्वारा दिए गए सामान्यीकृत बयानों के आधार पर आकस्मिक आरोप लगाना क्या वाकई में पत्रकारिता है। हालाँकि, ऐसा लगता है कि यह मतदाताओं को प्रभावित करने और भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का एक बहुत ही सूक्ष्म प्रयास है।

नैरेटिव के अनुकूल खबरें

इसी तरह 'सीएनएन' भी मोदीफोबिया के रथ पर सवार होकर यह लेख लिखता है कि "भारत का चुनाव अभियान नकारात्मक हो गया है क्योंकि मोदी और सत्तारूढ़ पार्टी इस्लामोफोबिया की बयानबाजी को अपना रहे हैं"। लेकिन, इनमें से एक भी मीडिया आउटलेट महिलाओं के खिलाफ भयानक संदेशखली हिंसा, या टीएमसी के लोगों द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या, या भाजपा की नूपुर शर्मा की टिप्पणियों का समर्थन करने के लिए कन्हैया कुमार की बेरहमी से हत्या जैसे मुद्दों पर बात नहीं करता। 'द गार्जियन', 'डॉयचे वेले', 'सीएनएन' आदि जैसे मीडिया आउटलेट इन मुद्दों को कवर नहीं करते, क्योंकि ये उनके नैरेटिव के अनुकूल नहीं हैं, लेकिन कुछ मुद्दों पर पक्षपातपूर्ण कवरेज करके भारत विरोधी प्रचार जरूर करते हैं।

इसी कड़ी में फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, ‘लोकतंत्र की जननी की हालत अच्छी नहीं है।’ न्यूयॉर्क टाइम्स ने तो ‘मोदी का झूठ का मंदिर’ बताया, जबकि फ्रांस के प्रमुख अखबार ले मॉन्द ने लिखा, ‘भारत में केवल नाम का लोकतंत्र है।’ अमेरिकी न्यूज चैनल 'फॉक्स' ने 20 मई को लिखा, ‘अयोध्या में अल्पसंख्यकों को लगातार डराया जा रहा है।‘ 'सीएनबीसी' ने चुनाव को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है, वहीं 'सीबीएस' टेलीविजन नेटवर्क ने मोदी के चुनाव प्रचार को अल्पसंख्यक विरोधी बताया है।

भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास

जब लगभग सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन भारत की आलोचना कर रहे थे, तो नई दिल्ली स्थित विदेशी संवाददाता भी उसमें शामिल हो गए। आस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख अवनी डायस ने यह दावा करते हुए भारत छोड़ दिया कि उन्हें वीजा नहीं मिला और चुनाव कवरेज का मौका नहीं दिया गया। हालांकि ऐसा नहीं था, उनकी वीजा अवधि 18 अप्रैल, 2024 को समाप्त हो गई थी। वीजा बढ़ाने के लिए उन्होंने न तो फीस भरी थी और न अन्य औपचारिकताएं ही पूरी की थीं। बावजूद इसके अवनी ने भ्रामक बयान दिया। इसके बाद वह वापस लौटी तो 'द आस्ट्रेलिया टुडे' ने एक रिपोर्ट में लिखा कि अवनी ने अपनी नई नौकरी और शादी के लिए भारत छोड़ा था।

जाहिर है अवनी झूठ बोल रही थी। उनका मकसद रिर्पोटिंग करना नहीं, बल्कि सरकार की छवि को बिगाड़ना था। इस घटना के तत्काल बाद 30 विदेशी पत्रकारों ने संयुक्त बयान जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि, ‘‘भारत में विदेशी पत्रकार, विदेशी नागरिक का दर्जा रखने वाले वीजा और पत्रकारिता परमिट पर बढ़ते प्रतिबंधों से जूझ रहे हैं।’’ दरअसल पश्चिमी मीडिया की ज्यादातर कोशिश यही रहती है कि वह भारत के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप पर फर्जी खबरें तैयार भारत की छवि को धूमिल कर सकें।

पश्चिमी मीडिया का मोदीफोबिया अंतहीन है। वह लगातार भारत के खिलाफ नकारात्मक एजेंडा चलाता रहता है। दरअसल पश्चिम की यह लॉबी अभी भी भारत की आर्थिक प्रगति को स्वीकार नहीं कर पा रही है। इसलिए हर स्तर पर देश को अस्थिर करने के प्रयास किए जाते हैं। इस बार के चुनावों में भी योजनाबद्ध तरीके से ऐसा ही किया गया, लेकिन देश के लोगों ने भाजपा और राजग पर भरोसा दिखाया और इस साजिश को सफल नहीं होने दिया।

'सरस्वती प्रज्ञा सम्मान' से अलंकृत किए गए प्रो.संजय द्विवेदी



भोपाल। प्रख्यात मीडिया शिक्षक और लेखक प्रो.संजय द्विवेदी को 'सरस्वती प्रज्ञा सम्मान -2024' से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह सम्मान भोपाल स्थित गांधी भवन में निर्दलीय प्रकाशन,जन संगठन दृष्टि की ओर से आयोजित समारोह में पद्मश्री से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार श्री विजयदत्त श्रीधर ने प्रदान किया। इस अवसर पर नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के प्रो.विजय कुमार कर्ण, गांधी भवन न्यास के सचिव दयाराम नामदेव, पत्रकार कैलाश आदमी, गांधीवादी विचारक आर के पालीवाल, प्रिंस अभिषेक अज्ञानी विशेष रूप से उपस्थित थे।

  प्रो.संजय द्विवेदी भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक हैं। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रभारी कुलपति भी रह चुके हैं। उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में संपादक के रूप में काम किया है। मीडिया और राजनीतिक संदर्भों पर उनकी 35 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सक्रिय पत्रकार,लेखक और संपादक के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है।

  इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रो.द्विवेदी ने कहा हमारा मीडिया पश्चिमी मानकों पर खड़ा है, उसे भारतीय मूल्यों पर आधारित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि समाज के सब क्षेत्रों की तरह मीडिया भी औपनिवेशिक विचारों से मुक्त नहीं हो सका है। हमें संचार, संवाद की भारतीय अवधारणा पर काम करते हुए लोक-मंगल को केंद्र में रखना होगा और संचार के भारतीय माडल बनाने होंगे। इसके लिए समाधानपरक पत्रकारिता का विचार प्रासंगिक हो सकता है। कार्यक्रम का संचालन विमल भंडारी ने किया।

जिम्मेदारियों को बढ़ाता है सम्मान : प्रो. संजय द्विवेदी


 -खुशी फॉउण्डेशन एवं दिशा एजुकेशनल सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में सेवा शिखर सम्मान समारोह आयोजित

- विभिन्न क्षेत्रों की महान विभूतियों को सम्मान से नवाजा गया 



लखनऊ 27 जुलाई  - खुशी फॉउण्डेशन और दिशा एजुकेशनल सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को बौद्ध शोध संस्थान, गोमतीनगर के सभागार में सेवा शिखर सम्मान समारोह-2024 आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता  भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक प्रो(डॉ ) संजय द्विवेदी ने की। 

प्रो. संजय द्विवेदी ने  कहा कि प्रतिभाओं के सम्मान से समाज में सकारात्मक चेतना पैदा होती है और लोग अच्छे कामों को करने हेतु प्रेरित होते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय परिवारों की शक्ति उनकी मूल्यनिष्ठा ही है। संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की रक्षा से ही भारत श्रेष्ठ बनेगा। खुशी समय जैसी संस्थाएं देश को जीवंत बनाए रखने में सहयोगी हैं। प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि सेवा के बदले में मिलने वाले सम्मान की ख़ुशी ही कुछ अलग होती है। यह सम्मान समाज के अन्य लोगों में सेवा भाव को जगाने का पुनीत कार्य करता है। प्रो. द्विवेदी ने इस भव्य आयोजन के लिए ख़ुशी फाउंडेशन और दिशा एजुकेशनल सोसायटी के प्रतिनिधियों का आभार जताया। इसके साथ ही समाज के कमजोर वर्ग के हित में किये जा रहे उनके कार्यों को सराहा। 

इस मौके पर बौद्ध शोध संश्तान के अध्यक्ष हरगोविंद बौद्ध ने कहा कि सम्मान से नवाजी गयीं विभिन्न क्षेत्रों की महान विभूतियों के चेहरों पर ख़ुशी की झलक साफ़ देखी जा सकती थी। संस्था द्वारा सम्मानित लोगों की जिम्मेदारी अब और बढ़ जाती है कि वह और मनोयोग से अपने-अपने क्षेत्र में कार्य कर दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें। कार्यक्रम को पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुकेश कुमार शर्मा ने सम्बोधित किया और कार्यक्रम की भरपूर सराहना की ।  धन्यवाद ज्ञापन दिशा एजुकेशनल एवं वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष प्रभात पांडेय ने किया। 

इनको मिला सम्मान : संतोष गुप्ता (सीइओ - इंडियन सोशल रेस्पोंसबिल्टी नेटवर्क), श्री बलबीर सिंह मान(सचिव - उम्मीद), श्री महेंद्र दीक्षित(प्रबंध निदेशक - सिग्मा ट्रेड विंग्स) , सचिन गुप्ता - निदेशक -ओलिवहेल्थ, डॉ आर पी सिंह (निदेशक - खेल, उत्तर प्रदेश), श्रीमती सुमोना एस पांडेय(आकाशवाणी) , मेदांता, लखनऊ,  दीपेश सिंह( ऑर्गॅनिक्स4यू), श्री नरेंद्र कुमार मौर्या (मैनेजिंग डायरेक्टर- रोहित ग्रुप), अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान , श्रीमती ममता शर्मा, श्रीमती रश्मि मिश्रा के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वालों को सेवा गौरव सम्मान से नवाजा गया।  

बच्चों की भाव भंगिमाओं ने लोगों के मन को मोहा : सम्मान समारोह की शुरुआत में पीहू द्विवेदी द्वारा गणेश वंदना एवं सरस्वती के साथ की गयी।  इसके बाद लखनऊ कनेक्शन वर्ल्ड वाइड द्वारा गीत गायन प्रस्तुत किया गया। गार्गी द्विवेदी द्वारा सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा दीपा अवस्थी एवं निखिल कसुधान द्वारा भी शिव जी को समर्पित नृत्य प्रस्तुत किया गया। वहीं विद्याभूषण सोनी के भी मोहक नृत्य प्रस्तुति ने भी खूब तालियाँ बटोरी ।  प्रतुत और गार्गी द्विवेदी के नृत्य ने लोगों को नृत्यांगना डांस इंस्टीट्युट इंदिरानगर की डायरेक्टर और कोरियोग्राफर अनुपमा श्रीवास्तव की देखरेख में भानवी श्रीवास्तव ने गणेश वंदना प्रस्तुत कर लोगों को मन्त्रमुग्ध कर दिया।



प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत

                                                                     -प्रो.संजय द्विवेदी 


   यह नवें दशक के बेहद चमकीले दिन थे। उदारीकरण और भूमंडलीकरण जिंदगी में प्रवेश कर रहे थे। दुनिया और राजनीति तेजी से बदल रहे थी। उन्हीं दिनों मैं छात्र आंदोलनों से होते हुए दुनिया बदलने की तलब से भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आया था। एक दिन श्री प्रभात झा जी अचानक सामने थे, बताया गया कि वे पत्रकार रहे हैं और भाजपा का मीडिया देखते हैं। इस तरह एक शानदार इंसान, दोस्तबाज,तेज हंसी हंसने वाले, बेहद खुले दिलवाले झा साहब हमारी जिंदगी में आ गए। मेरे जैसे नये-नवेले पत्रकार के लिए यह बड़ी बात थी कि जब उन्होंने कहा कि" तुम स्वदेश में हो, मैं भी स्वदेश में रह चुका हूं।" सच एक पत्रकार और संवाददाता के रूप में ग्वालियर में उन्होंने जो पारी खेली वह आज भी लोगों के जेहन में हैं। एक संवाददाता कैसे जनप्रिय हो सकता है, वे इसके उदाहरण हैं। रचना,सृजन, संघर्ष और लोकसंग्रह से उन्होंने जो महापरिवार बनाया मैं भी उसका एक सदस्य था।

      उत्साह, ऊर्जा और युवा पत्रकारों को प्रोत्साहित कर दुनिया के सामने ला खड़े करने वाला प्रभात जी का स्वभाव उन्हें खास बनाता था। अब उनका पर्याय नहीं है। वे अपने ढंग के अकेले राजनेता थे,जिनका पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों से लेकर पार्टी के साधारण कार्यकर्ताओं तक आत्मीय संपर्क था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। फिर उसकी विचारधारा से जुड़े अखबार में रहे और बाद में भाजपा को समर्पित हो गये। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक उनकी यात्रा उनका एकांगी परिचय है। वे विलक्षण संगठनकर्ता, अप्रतिम वक्ता और इन सबसे बढ़कर बेहद उदार व्यक्ति थे। उनके जीवन में कहीं जड़ता और कट्टरता नहीं थी। वे समावेशी उदार हिंदू मन का ही प्रतीक थे। उनका न होना मेरी व्यक्तिगत क्षति है। वे मेरे संरक्षक, मार्गदर्शक और सलाहकार बने रहे। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन ने मेरे जैसे न जाने कितने युवाओं को प्रेरित किया।

  उनके निधन से समाज जीवन में जो रिक्तता बनी है, उसे भर पाना कठिन है। छात्र जीवन से ही उनका मेरे कंधे पर जो हाथ था,वह कभी हटा नहीं। भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई मेरी पत्रकारीय यात्रा के पड़ाव रहे,प्रभात जी हर जगह मेरे साथ रहे। वे आते और उससे पहले उनका फोन आता। उनमें दुर्लभ गुरूत्वाकर्षण था। उनके पास बैठना और उन्हें सुनने का सुख भी विरल था। किस्सों की वे खान थे। भाजपा की राजनीति और उसकी भावधारा को मैं जितना समझ पाया उसमें श्री प्रभात झा और स्व.लखीराम अग्रवाल का बड़ा योगदान है। भाजपा की अंर्तकथाएं सुनाते फिर हिदायत भी देते, ये छापने के लिए नहीं, तुम्हारी जानकारी और समझ के लिए है।

   मुझे नहीं पता कि प्रभात जी पत्रकारिता में ही रहते तो क्या होते। किंतु भाजपा में रहकर उन्होंने 'विचार' के लिए जगह बनाकर प्रकाशन, लेखन और मीडिया के पक्ष को बहुत मजबूत किया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन पर भाजपा के विचार को मीडिया और बौद्धिक वर्ग में उन्होंने लोकस्वीकृति दिलाई। वे 'कमल संदेश' जैसे भाजपा के राष्ट्रीय मुखपत्र के वर्षों संपादक रहे। राज्यों में भाजपा की पत्रिकाएं और प्रकाशन ठीक निकलें , ये उनकी चिंता के मुख्य विषय थे। आमतौर पर राजनेता जिन बौद्धिक विषयों को अलक्षित रखते थे, प्रभात जी उन विषयों पर सजग रहते। वे उन कुछ लोगों में थे जिनका हर दल और विचारधारा से जुड़े लोगों से संवाद था। एक बार उन्होंने मुझसे कहा था "अपने कार्यक्रमों में सभी को बुलाएं, तभी आनंद आता है। एक ही विचार के वक्ताओं के बीच एकालाप ही होता है, संवाद संभव नहीं।" उन्होंने मेरी किताब 'मीडिया नया दौर नयी चुनौतियां' का लोकार्पण एक भव्य समारोह में किया। जिसमें माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो.बीके कुठियाला, टीवी पत्रकार और संपादक रविकांत मित्तल भी उपस्थित थे। दिल्ली के अनेक मंचों पर मुझे उनका सान्निध्य मिला। उनका साथ एक ऐसी छाया रहा, जिससे वंचित होकर उसका अहसास अब बहुत गहरा हो गया है। वे हमारे जैसे तमाम युवाओं की जिंदगी में सपने जगाने वाले नायक थे। हम छोटे शहरों, गांवों से आए लोगों को वे बड़ा आसमान दिखाकर उड़ान के लिए छोड़ देते थे। 

उन्होंने तमाम ऐसी प्रतिभाओं को खोजा, उन्हें संगठन में प्रवक्ता, संपादक , मंत्री, सांसद, विधायक और तमाम सांगठनिक पदों तक पहुंचने में मदद की। एक समय भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के नाते वे बहुत ताकतवर थे। अध्यक्ष राजनाथ सिंह (अब रक्षा मंत्री) उन पर बहुत भरोसा करते थे। प्रभात जी ने इस समय का उपयोग युवाओं को जोड़ने में किया। मैं नाम गिनाकर न लेख को बोझिल बनाना चाहता हूं, न उन व्यक्तियों को धर्म संकट में डालना चाहता हूं, जो आज बहुत बड़े हो चुके हैं। भाजपा का आज स्वर्ण युग है, संसाधन, कार्यकर्ता आधार बहुत विस्तृत हो गया है। किंतु प्रभात जी बीजेपी के 'ओल्ड स्कूल' में ही बने रहे। जहां पार्टी परिवार की तरह चलती थी और व्यक्ति से व्यक्तिगत संपर्क को महत्व दिया जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अनेक राज्यों के कार्यकर्ता, पत्रकार,समाज के विविध क्षेत्रों में सक्रिय लोग उनसे बेहिचक मिलते थे। इस सबके बीच उन्होंने अपने स्वास्थ्य का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा। मैंने उन्हें दीनदयाल परिसर के एक छोटे कक्ष में रहते देखा है। परिवार ग्वालियर में ,खुद भोपाल में एकाकी जीवन जीते हुए। यहां भी दरवाजे सबके लिए हर समय खुले थे, जब अध्यक्ष बने तब भी। दिनचर्या पर उनका नियंत्रण नहीं था, क्योंकि पत्रकारिता में भी कोई दिनचर्या नहीं होती। मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने जिस तरह तूफानी प्रवास किया, उसने कार्यकर्ताओं को भले खुश किया। राजपुत्रों को उनकी सक्रियता अच्छी नहीं लगी। वे षड्यंत्र के शिकार तो हुए ही, अपना स्वास्थ्य और बिगाड़ बैठे। उनका पिंड 'पत्रकार' का था, किंतु वे 'जननेता' दिखना चाहते थे। इससे उन्होंने खुद का तो नुकसान किया ही, दल में भी विरोधी खड़े किये। बावजूद इसके वे मैदान छोड़कर भागने वालों में नहीं थे। डटे रहे और अखबारों में अपनी टिप्पणियों से रौशनी बिखेरते रहे। आज जब परिवार जैसी पार्टी को कंपनी की तरह चलाने की कोशिशें हो रही हैं, तब प्रभात झा जैसे व्यक्ति की याद बहुत स्वाभाविक और मार्मिक हो उठती है।

 उनकी पावन स्मृति को शत्-शत् नमन। भावभीनी श्रद्धांजलि।



गुरुवार, 4 जुलाई 2024

नफरतों, कड़वाहटों और संवादहीनता का समय!


-सार्थक संवाद की दृष्टि से निराशाजनक रहा लोकसभा का पहला सत्र 

-प्रो.संजय द्विवेदी 



   भारतीय संसद अपनी गौरवशाली परंपराओं, विमर्शों और संवाद के लिए जानी जाती है। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतांत्रिक बहसों को प्रोत्साहित किया और अपने प्रतिपक्ष के नेताओं डा.राममनोहर लोहिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी,अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर पीलू मोदी तक को मुग्ध भाव से सुना। राष्ट्र प्रेम ऐसा कि चीन युद्ध के बाद गणतंत्र दिवस की परेड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को आमंत्रित कर उनकी राष्ट्रभक्ति को सराहा। किंतु लोकसभा के प्रथम सत्र में जो कुछ हुआ,वह संवाद की धारा को रोकने वाला है। इससे संसद विमर्श और संवाद का केंद्र नहीं अखाड़ा बन गयी। 

  राष्ट्रपति के भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में जब नेता सदन और प्रधानमंत्री बोल रहे थे, उनके लगभग दो घंटे के भाषण में विपक्षी सदस्यों ने आसमान सिर पर उठा रखा था। लगातार नारेबाजी से उनका भाषण सुनना मुश्किल था। इसके विपरीत जब पहले दिन नेता प्रतिपक्ष बोल रहे थे,तो उनके भाषण में सत्तारूढ़ दल के प्रधानमंत्री सहित तीन मंत्रियों ने हस्तक्षेप किया। नेता प्रतिपक्ष को बताया गया कि वे सदन के पटल पर गलत तथ्य न रखें। यह दोनों स्थितियां भारतीय राजनीति में बढ़ते अतिवाद को स्पष्ट करती हैं, जहां संवाद संभव नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष पर नेता प्रतिपक्ष द्वारा की गई अनावश्यक टीका-टिप्पणी को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

  नेता प्रतिपक्ष की गलत बयानी के लिए बाद में सत्तारूढ़ दल के वक्ता अपने भाषणों में उनके भाषण की चीरफाड़ कर सकते थे। किंतु शीर्ष स्तर से लगातार हस्तक्षेप ने नेता प्रतिपक्ष का मनोबल बढ़ा दिया। वे सत्ता पक्ष को उत्तेजित करने में सफल रहे और पहले दिन के मीडिया विमर्श में उन्हें 'सक्रिय नेता प्रतिपक्ष' घोषित कर दिया गया। सेकुलर मीडिया के सेनानियों ने उन्हें 'मैन आफ द मैच' घोषित कर दिया। ज़ाहिर है लंबे समय से गंभीर राजनेता की छवि बनाने के लिए आतुर राहुल गांधी के लिए यह अप्रतिम समय था। किंतु पहले दिन की वाहवाही अगले दिन ही धराशाई हो गई जब प्रधानमंत्री के भाषण में दो घंटे तक नारेबाजी चलती रही। देश की जनता दोनों तरह की अतियों के विरुद्ध है। सदन की गरिमा को बचाने के लिए राजनीतिक दलों को कुछ ज्यादा उदार होना चाहिए। 

  लोकसभा के प्रथम सत्र से निकली छवियां बता रही हैं कि आगे भी सब कुछ सामान्य नहीं रहने वाला है। किंतु संसद को अखाड़ा, चौराहे की चर्चा के स्तर पर ले जाने के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? यह ठीक बात है कि सदन चलाना सरकार की जिम्मेदारी है, किंतु सदन में सार्थक और प्रभावी विमर्श खड़ा करना विपक्षी दलों की भी जिम्मेदारी है। अब जबकि विपक्ष अपनी बढ़ी संख्या पर मुग्ध है तो क्या उसे संसदीय मर्यादाओं को छोड़कर अराजकता का आचरण करना चाहिए? सच तो यह है कि सदन के इस तरह चलने से सत्तारूढ़ दल का ही लाभ है।  बिना बहस और चर्चा के कानून इसीलिए पास होते हैं क्योंकि संसद का ज्यादातर समय हम विवादों में खर्च कर देते हैं। संसदीय परंपरा रही है कि हर नयी सरकार को प्रतिपक्ष कम से कम छः माह का समय देता है। उसके कार्यक्रम और योजनाएं का मूल्यांकन करता है। पहले दिन से ही सदन को अराजकता की ओर ढकेलना उचित नहीं कहा जा सकता। अपनी लंबी संसदीय प्रणाली में भारत ने अनेक संकटों का समाधान किया है। हमारे संसदीय परंपरा का मूलमंत्र है संवाद से संकटों और समस्याओं का समाधान खोजना। संसद इसी का सर्वोच्च मंच है। यह प्रक्रिया नीचे पंचायत तक जाती है। इससे सहभागिता सुनिश्चित होती है, सुशासन का मार्ग प्रशस्त होता है। संसद से नीचे के सदनों विधानसभा सभाओं,विधान परिषदों, नगरपालिका, नगर निगमों और पंचायतों को भी सांसदों का आचरण ही रास्ता दिखाता है। लोकसभा के पहले सत्र का लाइव प्रसारण देखते हुए हर संवेदनशील भारतीय जन को ये दृश्य अच्छे नहीं लगे हैं। संसदीय मर्यादाओं और परंपराओं की रक्षा हमारे सांसद गण नहीं करेंगे तो कौन करेगा? संसदीय राजनीति के शिखर पर बैठे दायित्ववान सांसदों की यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अपने आचरण से इस महान संस्था का गौरव बढ़ाने में सहयोगी बनें। नफरतों, कड़वाहटों और संवादहीनता से 'राजनीति' तो संभव है पर 'राष्ट्रनीति' हम न कर पाएंगे।

बुधवार, 26 जून 2024

सोने जैसे दिल वाला सामाजिक कार्यकर्ता कैसे बना राष्ट्रीय राजनीति का सितारा

 

ओम बिरला होने का मतलब

-प्रो.संजय द्विवेदी


 

  ओम बिरला में ऐसा क्या है जो उन्हें लगातार दूसरी बार लोकसभा के अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी पर पहुंचाता है। अपने कोटा शहर में जरूरतमंद लोगों को कपड़े, दवाएं, भोजन पहुंचाते-पहुंचाते बिरला कब राष्ट्रीय राजनीति के सितारे बन गए, यह एक अद्भुत कहानी है। उनकी सरलता,सहजता और सदन चलाने की उनकी क्षमताएं प्रमाणित हैं। अब जब वे ध्वनिमत से लोकसभा के अध्यक्ष चुने जा चुके हैं, तब उन पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है। यह भी शुभ रहा कि कांग्रेस ने प्रारंभिक चर्चाओं के बाद भी मत विभाजन की मांग नहीं की और उनका चयन सर्वसम्मत से हुआ। इससे संसद की गरिमा बनी और परंपराओं का पालन हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए आने वाले समय में लोकसभा ज्यादा बेहतर तरीके से अपने कामों को अंजाम दे सकेगी।

      श्री बलराम जाखड़ के बाद वे दूसरे ऐसे सांसद हैं, जिन्होंने यह गरिमामय पद दुबारा संभाला है। इस बात को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि नए सांसदों को बिरला से सीखना चाहिए। मोदी ने कहा कि संसद 140 करोड़ देशवासियों की आशा का केंद्र है। सदन में आचरण और नियमों का पालन जरूरी है। सदन की गरिमा और परंपराओं का पालन अध्यक्ष की बहुत महती जिम्मेदारी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में बिरला जी का यह कार्यकाल उदाहरण बनेगा। जहां गंभीर बहसें होंगी और शासकीय काम के साथ विमर्शों का नया आकाश खुलेगा।
     राजस्थान के कोटा जिले में 23 नवंबर,1962 को जन्में ओम बिरला का समूचा राजनीतिक और सावर्जनिक जीवन सेवा, समर्पण और उससे उपजी सफलताओं से बना है। भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष के रूप में काम प्रारंभ कर वे राजस्थान में युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 2003, 2008 और 2013 में तीन बार राजस्थान विधानसभा में विधायक निर्वाचित किए गए। 2014 से वे लगातार तीसरी बार लोकसभा पहुंचे हैं। इस तरह वे एक सफल जनप्रतिनिधि के रूप में कोटा के लोगों का दिल जीतते रहे हैं। 17 वीं लोकसभा में अध्यक्ष चुने जाते ही वे राष्ट्रीय फलक पर छा गए। अपने तमाम फैसलों की तरह उस समय नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक विश्वेषकों को चौंकाते हुए बिरला के नाम का प्रस्ताव रखा था। किंतु अपनी सौजन्यता, कुशल सदन संचालन और लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव न होने के बाद भी अकेले वरिष्ठ सांसदों के पैनल के आधार उन्होंने सदन चलाया । उनका सहज अंदाज और हल्की मुस्कान,मीठी डांट से सदन को चलाने का तरीका उन्हें इस बार इस पद का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बना चुका था। अब कोटा की स्थानीय राजनीति से राष्ट्रीय फलक पर आए बिरला सदन की उपलब्धि बन चुके हैं।

      बिरला राजनीति में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। उनके मन में समाजसेवा की भावना इसी संगठन से उपजी और वे विविध प्रकल्पों के माध्यम से इसी काम में रम गए। उन्होंने अपने क्षेत्र में 2012 में परिधान नाम कल्याणकारी कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसके तहत समाज के कमजोर वर्गों को किताबें और कपड़े वितरित किए जाते थे। इसके साथ ही रक्तदान और मुफ्त दवा वितरण के आयोजनों से वे लोगों के दिलों में उतरते चले गए। फिर उन्होंने मुफ्त भोजन कार्यक्रम भी चलाया। उनका संकल्प था उनके लोग भूखे न सोएं। इस तरह वे बहुत संवेदनशील और बड़े दिलवाले सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता की तरह सामने आते हैं। यह उन हाशिए के लोगों की दुआएं ही थीं कि बिरला आज सत्ता राजनीति के शिखर पर हैं।

   
     भाजपा को एक दल के रूप में इस बार लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है और उसकी निर्भरता राजग के सहयोगियों पर बढ़ी है। इसी तरह सदन में प्रतिपक्ष ज्यादा ताकतवर हुआ है। तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी की सरकार के सामने अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी मौजूद होंगे। मोदी की तीसरी सरकार में नेता प्रतिपक्ष का पद मिलना भी एक बड़ी सूचना है। पिछले दो सदनों में कांग्रेस के इतने सदस्य नहीं थे कि वह नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल कर सके। इससे नेता प्रतिपक्ष अब लोकलेखा समिति के अध्यक्ष भी होंगे और सरकारी खर्चों पर टिप्पणी कर सकेंगें। इस बदले हुए परिदृश्य में सदन में प्रतिपक्ष की आवाज भी प्रखर होगी। राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने अध्यक्ष को धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए सत्ता पक्ष पर अंकुश और प्रतिपक्ष को संरक्षण देने की अपील की। उम्मीद की जानी कि ओम बिरला अपने बड़े दिल से सदन की गरिमा को नई ऊंचाई प्रदान करेंगें। फिलहाल तो उन्हें शुभकामनाएं ही दी जा सकती हैं।

शनिवार, 15 जून 2024

'इंडिया' की आंखों से भारत को मत देखिए!

-भारतीयता को नए संदर्भों  में व्याख्यायित करना जरूरी 

-प्रो. संजय द्विवेदी



    आजकल राष्ट्रीयता,भारतीयता, राष्ट्रत्व और राष्ट्रवाद जैसे शब्द चर्चा और बहस के केंद्र में है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम भारतीयता पर एक नई दृष्टि से सोचें और जानें कि आखिर यह क्या है? ‘राष्ट्र’ सामान्य तौर पर सिर्फ भौगोलिक नहीं बल्कि ‘भूगोल-संस्कृति-लोग’ के तीन तत्वों से बनने वाली इकाई है। इन तीन तत्वों से बने राष्ट्र में आखिर सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है? जाहिर तौर पर वह ‘लोग’ ही होगें। इसलिए लोगों की बेहतरी,भलाई, मानवता का स्पंदन ही किसी राष्ट्रीयता का सबसे प्रमुख तत्व होना चाहिए।

        जब हम लोगों की बात करते हैं तो भौगोलिक इकाईयां टूटती हैं। अध्यात्म के नजरिए से पूरी दुनिया के मनुष्य एक हैं। सभी संत, आध्यात्मिक नेता और मनोवैज्ञानिक भी यह मानने हैं कि पूरी दुनिया पर मनुष्यता एक खास भावबोध से बंधी हुयी है। यही वैश्विक अचेतन (कलेक्टिव अनकांशेसनेस) हम-सबके एक होने का कारण है। स्वामी विवेकानंद इसी बात को कहते थे कि इस अर्थ में भारत एक जड़ भौगोलिक इकाई नहीं है। बल्कि वह एक चेतन भौगोलिक इकाई है, जो सीमाओं और सैन्य बलों पर ही केंद्रित नहीं है। भारतीय राष्ट्रवाद मनुष्य के विस्तार व विकास पर केंद्रित है। जिसे भारत ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ कहकर संबोधित किया। यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ राजनीतिक सत्ता का उच्चार नहीं है। उपनिषद् का उच्चार है। सारी दुनिया के लोग एक परिवार, एक कुटुम्ब के हैं, इसे समझना ही दरअसल भारतबोध को समझना है। यह भाव ही मनुष्य की सांस्कृतिक एकता के विस्तार का प्रतीक है। हमारे सांस्कृतिक मूल्य, मानवतावादी सांस्कृतिक मूल्यों पर केंद्रित हैं। हमारी भारतीय अवधारणा में राज्य निर्मित भौगोलिक-प्रशासनिक इकाईयां प्रमुख स्थान नहीं रखतीं बल्कि हमारी चेतना, संस्कृति, मूल्य आधारित जीवन और परंपराएं ही यहां हमें राष्ट्र बनाती हैं। हमारे सांस्कृतिक इतिहास की ओर देखें तो आर्यावर्त की सीमाएं कहां से कहां तक विस्तृत हैं, जबकि सच यह है कि इस पूरे भूगोल पर राज्य बहुत से थे, राजा अनेक थे- किंतु हमारा सांस्कृतिक अवचेतन हमें एक राष्ट्र का अनुभव करता था। एक ऐतिहासिक सत्य यह  भी यह है  कि हमारा राष्ट्रीयता दरअसल राज्य संचालित नहीं था, वह समाज और बौद्धिक चेतना से संपन्न संतों, ऋषियों द्वारा संचालित थी। एक विद्वान कहते हैं राजा राज्य बनाते हैं, राष्ट्र ऋषि बनाते हैं। वही भारतबोध इस व्यापक भूगोल की चेतना में समाया हुआ था। यहां का ज्ञान विस्तार जिस तरह चारों दिशाओं में हुआ,वह बात हैरत में डालती है।

    आप देखें तो भगवान बुद्ध पूरी दुनिया में अपने संदेश को यूं ही नहीं फैला पाए, बल्कि उस ज्ञान में एक ऐसा नवाचार,नवचेतन था, जिसे दुनिया ने स्वतः आगे बढ़कर ग्रहण किया। भारत कई मायनों में अध्यात्म और चेतना की भूमि है। सच कहें तो दुनिया की तमाम स्थितियों से भारत एक अलग स्थिति इसलिए पाता है, क्योंकि यह भूमि संतों के लिए, ज्ञानियों के लिए उर्वर भूमि है। दुनिया के तमाम विचारों की सांस्कृतिक चेतना जड़वादी है, जबकि भारत की चेतना जैविक है। इसलिए भारत मरता नहीं है, क्योंकि वह जड़वादी और हठवादी नहीं है। यहां का मनुष्य सांस्कृतिक एकता के लिए तो खड़ा होता है पर विचारों में जड़ता आते ही उससे अलग हो जाता है। हमारा ईश्वर आंतरिक उन्नयन और पाप क्षय के लिए काम करता है। हमारे संत भी आध्यात्मिक उन्नयन और पापों के क्षय के लिए काम करते हैं। मनुष्य की चेतना का आत्मिक विस्तार ही हमारी राष्ट्रीयता का लक्ष्य है। इसलिए यह सिर्फ एक खास भूगोल, एक खास विचारधारा और पूजा पध्दति में बंधे लोगों के उद्धार के लिए नहीं, बल्कि समूची मानवता की मुक्ति के काम करने वाला विचार है। यहां मानव की मुक्ति ही उसका लक्ष्य है। यह राष्ट्रीयता सैन्यबल और व्यापार बल से चालित नहीं है, बल्कि यह चेतना के विस्तार, उसके व्यापक भावबोध और मनुष्य मात्र की मुक्ति के विचार से अनुप्राणित है।

   भारतीय संदर्भ में भारतबोध को समझना वास्तव में मानवतावाद के व्यापक परिप्रेक्ष्य को समझना है। यह विचार कहता है- “ संतों को सीकरी से क्या काम” और फिर कहता है ‘’कोई नृप होय हमें क्या हानि”। इस मायने में हम राज या राज्य पर निर्भर रहने वाले समाज नहीं थे। राजा या राज्य एक व्यवस्था थी, किंतु जीवन मुक्त था-मूल्यों पर आधारित था। पूरी सांस्कृतिक परंपरा में समाज ज्यादा ताकतवर था और स्वाभिमान के साथ उदार मानवतावाद और एकात्म मानवदर्शन पर आधारित जीवन जीता था। वह चीजों को खंड-खंड करके देखने का अभ्यासी नहीं था। इसलिए इस राष्ट्रीयता में जो समाज बना, वह राजा केंद्रित नहीं, संस्कृति केंद्रित समाज था। जिसे अपने होने-जीने की शर्तें पता थीं, उसे उसके कर्तव्य ज्ञात थे। उसे राज्य की सीमाएं भी पता थीं और अपनी मुक्ति के मार्ग भी पता थे। इस समाज में गुणता की स्पर्धा थी- इसलिए वह एक सुखी और संपन्न समाज था। इस समाज में भी बाजार था, किंतु समाज- बाजार के मूल्यों पर आधारित नहीं था। आनंद की सरिता पूरे समाज में बहती थी और आध्यात्मिकता के मूल्य जीवन में रसपगे थे। भारतीय समाज जीवन अपनी सहिष्णुता के नाते समरसता के मूल्यों का पोषक है। इसीलिए तमाम धाराएं,विचार,वाद और पंथ इस देश की हवा-मिट्टी में आए और अपना पुर्नअविष्कार किया, नया रूप लिया और एकमेक हो गए। भारतीयता हमारे राष्ट्र का अनिवार्य तत्व है। भारतीयता के माने ही है स्वीकार। दूसरों को स्वीकार करना और उन्हें अपनों सा प्यार देना। यह राष्ट्रवाद विविधता को साधने वाला, बहुलता को आदर देने वाला और समाज को सुख देने वाला है। इसी नाते भारत का विचार आक्रामकता का, आक्रमण का, हिंसा या अधिनायकवाद का विचार नहीं है। यह श्रेष्ठता को आदर देने वाली,विद्वानों और त्यागी जनों को पूजने वाली संस्कृति है। अपने लोक तत्वों को आदर देना ही यहां भारतबोध है। इसलिए यहां भूगोल का विस्तार नहीं, मनों और दिलों को जीतने की संस्कृति जगह पाती है।

   यहां शांति है, सुख है, आनंद है और वैभव है। यह देकर, छोड़कर और त्याग कर मुक्त होती है। समेटना यहां ज्ञान को है। संपत्ति, जमीन और वैभव को नहीं। इसलिए फकीरी यहां आदर पाती है और सत्ताएं लांछन पाती हैं। इसलिए यहां लोकसत्ता का भी मानवतावादी होना जरूरी है। यहां सत्ता विचारों से, कार्यों से और आचरण से लोकमानस का विचार करती है तो ही सम्मानित होती है। वैसे भी भारतीय समाज एक सत्ता निरपेक्ष समाज है। वह सत्ताओं की परवाह न करने वाला स्वाभिमानी समाज है। इसलिए उसने जीवन की एक अलग शैली विकसित की है, जो उसके भारतबोध ने उसे दी है। यही स्वाभिमान एक नागरिक का भी है और राष्ट्र का भी। इसलिए वह अपने अध्यात्म के पास जाता है, अपने लोक के पास जाता है और सत्ता या राज्य के चमकीले स्वप्न उसे रास नहीं आते। इसी राष्ट्र तत्व को खोजते हुए राजपुत्र सत्ता को छोड़कर वनों, जंगलों में जाते रहे हैं, ज्ञान की खोज में,सत्य की खोज में, लोक के साथ सातत्य और संवाद के लिए। राम हों, कृष्ण हों, शिव हों, बुद्ध हों, महावीर हों- सब राजपुत्र हैं, संप्रुभ हैं और सब राज के साथ समाज को भी साधते हैं और अपनी सार्थकता साबित करते हैं। इसलिए हमारी राष्ट्रीयता की अलग कथा है, उसे पश्चिमी पैमानों से नापना गलत होगा। आज इस वक्त जब भारतीयता की अनाप-शनाप व्याख्या हो रही है, हमें ठहरकर सोचना होगा कि क्या सच में हममें अपने राष्ट्र की थोड़ी भी समझ बची है? 'भारत' को 'इंडिया' की आंखों से देखने से हमें वही दिखाई देगा ,जो सत्य से बहुत दूर होगा। आइए हम भारत की आंखों से ही भारत को देखने का अभ्यास करें।  

(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान,(IIMC) नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं)

अबू धाबी के विद्यार्थियों से बोले प्रो. द्विवेदी - यह क्रियेटिविटी और आईडियाज का समय

 

-भारतीय विद्या भवन , अबू धाबी का आयोजन

-कम्युनिकेशन से ही होगा दुनिया के संकटों का समाधान




भोपाल। किसी भी इंसान को छोटी-छोटी समस्याओं पर नजर रखनी चाहिए। उनका हल सोचना चाहिए। बड़े और सफल आइडियाज इन्हीं से निकलते हैं।" यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी)के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने अबू धाबी के भारतीय विद्या भवन द्वारा संचालित इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित आनलाईन संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किए। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि यह समय क्रियेटिविटी और आईडियाज का है। दुनिया का हर संकट संवाद और संचार से हल किया जा सकता है। उन्होंने कहा संचार और संवाद की दुनिया में वही लोग स्थापित हो सकते हैं, जिनके पास नए विचार, नई भाषा और कहानी कहने की कला है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राइवेट इंटरनेशनल स्कूल, आबूधाबी की प्राचार्या वनिता वाल्टर ने की। इस अवसर पर प्रधानाचार्य सुरेश बालकृष्णन, उप-प्रधानाचार्या श्रीमती मिनी रमेश, हिंदी विभाग प्रमुख रवि शुक्ल भी उपस्थित रहे।

    विद्याथियों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने जहां मीडिया की दुनिया में अवसरों के बारे में  बताया, वहीं जीवन में भाषा की महत्ता पर भी बात की। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि अकसर कुछ नया देखते ही हम उसके उपभोग के बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन उसे बेहतर बनाने की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। हर प्रोडक्ट या सर्विस अलग-अलग जगहों पर सफल नहीं हो सकती, लेकिन तुलना करने पर हम हर जगह के बारे में बेहतर जान सकते हैं। फिर पहले से मौजूद आइडिया में जरूरी बदलाव कर कुछ नया सोच सकते हैं। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि अपनी रुचि की चीजों के बारे में खूब पढ़िए। कुछ नया सीखने को मिले, तो इसके बारे में लोगों से बातें कीजिए। वे क्या सोचते हैं, यह जानने की कोशिश कीजिए। मन में जो भी विचार आते हैं, उन्हें अमलीजामा पहनाने की कोशिश कीजिए। इनके नतीजे अच्छे न निकलें, तो घबराइए मत, क्योंकि इसके बाद ही अच्छे आइडिया भी आएंगे। बस आपको अपनी क्रिएटिव सोच बनाए रखनी है। 

कार्यक्रम का संचालन विद्यालय की छात्राओं सुश्री अक्षया अनिल कुमार, नंदिनी त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम में 

सहभागी विद्यार्थी में कीर्तना नायर, प्रज्वल राव, अफ़शीन शेक, आकाश, साईं सिद्धार्थ प्रमुख रहे। कार्यक्रम में 

विद्यालय के भिन्न कक्षाओं  विद्यार्थियों ने सहभाग किया।

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मीडिया : नई तकनीक के साथ नई जिम्मेदारियां भी

- प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली



“माननीय प्रधानमंत्री जी हम आभारी हैं कि आप हमारे बीच आए। मेरी ऑन दी जॉब लर्निंग अब शुरू हो गई है और 2024 तक मैं देश की सबसे अच्छी जर्नलिस्ट होने की कोशिश करूंगी। उम्मीद करती हूं कि तब आपसे एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करने का मौका मुझे मिलेगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।” ये शब्द हैं भारत की पहली एआई बॉट एंकर सना के। आर्टिफिशनल इंटेलिजेंस के मीडिया जगत में बढ़ते इस्तेमाल की कई संभावनाएं हैं। इसी में से एक है कि आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री एक एआई एंकर से देश के भविष्य और योजनाओं के बारे में चर्चा करते दिखें।

दरअसल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के 'टेक्स्ट टू स्पीच' फीचर की बदौलत अब भारतीय न्यूजरूम में मशीन को इंसानी चेहरे में ढालकर खबरें पेश की जा रही हैं। पिछले साल अप्रैल के महीने में इंडिया टुडे ग्रुप ने एआई एंकर से समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया था। लॉन्च कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में एंकर का परिचय देते हुए कहा गया था कि वह ब्राइट है, सुंदर है, उम्र का उन पर कोई असर नहीं होता है और न ही कोई थकान होती है, वो बहुत सारी भाषाओं में बात कर सकती हैं। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी दुनिया को फिर से परिभाषित करने, मानवीय क्षमता की सीमाओं को पार करने और अभूतपूर्व पैमाने पर उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार देने के लिए तैयार है। मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में, एआई का आगमन कंटेंट क्रिएटर्स को सामग्री निर्माण के लिए शक्तिशाली उपकरणों से सशक्त बना रहा है, नए अनुभवों को अनलॉक कर रहा है और कलात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का उपभोग करने, बनाने और उनसे जुड़ने के तरीके को हमेशा के लिए बदल रहा है।

हाल के कुछ समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत चर्चा का विषय बना हुआ है और पत्रकारिता का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह रहा है। मौजूदा समय में भारत की मेनस्ट्रीम मीडिया का बड़ा हिस्सा विज्ञापन पर निर्भर होकर काम कर रहा है। ऐसे में तकनीक के जरिये डेटा के आधार पर समाचार बुलेटिन प्रस्तुत करना और अन्य काम भी इंसान की जगह मशीन की बदौलत होने ने मीडिया इंडस्ट्री के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पत्रकारिता के भविष्य से लेकर पत्रकारिता करने वालों के भविष्य को लेकर भी संकट खड़ा होने की बात कही जा रही है। लेकिन एआई पत्रकारिता वास्तव में क्या है? क्या यह चिंता का एक विषय है या फिर सूचना जगत में एक ऐसी नई क्रांति है, जो पत्रकारिता के सही आयाम स्थापित करने में कामयाब हो पाएगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पत्रकारिता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन के लगभग सभी पहलूओं समेत पत्रकारिता में भी शामिल हो गई है। डिजिटल मीडिया की वजह से जाने-अनजाने में ही एआई तकनीक पर आधारित कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे वह यू-ट्यूब के एल्गोदिरम की वजह से आपको दिखते वीडियो हों या वेबसाइट पर दिखने वाले विज्ञापन। सभी का एक कारण एआई तकनीक ही है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से एआई पत्रकारिता में बड़ी भूमिका निभा रहा है। मीडिया कंपनियां अपने कंटेंट को अधिक बूस्ट करने के लिए एआई की मदद ले रही हैं। लेख लिखने से लेकर बुलेटिन प्रसारित करने तक में एआई का सहारा लिया जा रहा है। दुनिया भर के बड़े-बड़े मीडिया हाउस एआई द्वारा लिखे लेख को प्रकाशित कर रहे हैं। एक तरफ तो यह काम को आसान और तेजी से कर रहा है, दूसरी ओर यह कई सवाल भी खड़े करता है जिसमें विश्वसनीयता और अखंडता सबसे पहले है। साथ ही क्या सजृनशीलता पर आधारित क्षेत्र में एआई से डेटा आधारित बातचीत और जानकारी, पत्रकारिता के धरातल पर काम कर पाएगी? पत्रकारिता के सबसे मजबूत और शुरुआती मूल्य 'ग्राउंड रिपोर्टिंग' का भविष्य इससे बच पाएगा?

खतरे में पत्रकारों की नौकरियां

इंसान की जगह मशीन के इस्तेमाल होने का पहला खतरा इंसानों पर ही पड़ता है। 'न्यूज़जीपीटी', दुनिया का पहला समाचार चैनल है, जिसका पूरा कंटेंट आर्टिफिशल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार किया जा रहा है। चैनल के प्रमुख एलन लैवी ने इसे खबरों की दुनिया का गेम चेंजर कहा था, क्योंकि ना इसमें कोई रिपोर्टर है और ना ही यह किसी से प्रभावित है। यहां यही बात मीडिया जगत में काम करने वाले लोगों के लिए बड़ा खतरा है। जैसे-जैसे मीडिया के क्षेत्र में एआई का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वहां मौजूदा लोगों की नौकरियों पर तकनीक का कब्जा होने की संभावना ज्यादा नजर आ रही है। लेखन, संपादन, एंकरिंग, प्रस्तुतीकरण तक के सारे कामों में एआई का सहारा लिया जा रहा है। 

बीबीसी द्वारा प्रकाशित एक समाचार के अनुसार साल 2020 में माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ी संख्या मे 'एमएसएन' वेबसाइट के लिए लेखों के चयन, क्यूरेटिंग, हेडलाइन तय करने और एडिटिंग करने वाले पत्रकारों की जगह स्वचलित सिस्टम को अपनाने की योजना बनाई। खबर के अनुसार कंपनी ने एआई तकनीक के सहारे खबरों के प्रोडक्शन के कामों को पूरा करना तय किया। माइक्रोसॉफ्ट जैसी अन्य टेक कंपनियां मीडिया संस्थानों को उनका कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए भुगतान करती हैं। इन सब कामों के लिए पेशेवर पत्रकारों की मदद ली जाती आई है, जो कहानियां तय करने, उनका प्रकाशन कैसे होना है, हेडलाइन तय करने जैसे काम करते हैं। लेकिन माइक्रोसॉफ्ट के एआई तकनीक के इस्तेमाल के बाद से लगभग 50 न्यूज प्रोड्यूसर्स को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। 

ठीक इसी तरह साल 2022 के अंत में अमेरिकी टेक्नोलॉजी न्यूज वेबसाइट 'सीएनईटी' एआई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चीजें अलग ही स्तर पर ले गई। कंपनी ने एआई प्रोग्राम के तहत लिखे गए दर्जनों फीचर लेख चुपचाप तरीके से प्रकाशित किए। जनवरी 2023 तक कंपनी ने इन सब अटकलों की पुष्टि नहीं की थी, जिसे केवल एक प्रयोग बताया जा रहा था। इतना ही नहीं एसोसिएटेड प्रेस ने भी अपनी कहानियों के लिए एआई का इस्तेमाल किया। ये सब बातें बताती हैं कि कैसे समाचारों को चुनने, उनको व्यवस्थित करने के लिए काम करने वाले मीडिया के पेशेवरों की नौकरियां एआई ले रहा है। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन अभी से न्यूजरूम के भीतर उसकी मौजूदगी से मीडिया पेशवरों की नौकरियों पर संकट बनना शुरू हो चुका है। डायच वेले के अनुसार हाल ही में यूरोप के सबसे बड़े पब्लिकेशन हाउस 'एक्सल स्प्रिंगर' ने कई संपादकीय नौकरियों को एआई में बदल दिया है। स्प्रिंगर में नौकरियों की कटौती से मीडिया उद्योग के रोबोट पर निर्भरता की आशंकाओं में तेजी ला दी है। 

न्यूजरूम में एआई एंकर

भारत समेत कई अन्‍य देशों में न्यूज एंकर के तौर पर कम्प्यूटर जनित मॉडल यानी एआई एंकर समाचार पढ़ते नज़र आ रहे हैं। बहुत हद तक इंसानी तौर पर दिखने वाले ये न्यूज एंकर कॉर्पोरेट मीडिया हाउस के मुनाफे वाले दृष्टिकोण से हितैषी हैं, क्योंकि इन्हें न कोई सैलरी की आवश्यकता है, ना छुट्टी की। ये 24 घंटे और सातों दिन डेटा के आधार पर काम कर सकते हैं। भारत की पहली एआई न्यूज एंकर सना के लॉन्च के समय इसी तरह के शब्द कहे गए थे कि वह बिना थके लंबे समय तक काम कर सकती है।

द गार्डियन के अनुसार साल 2018 में चीन की न्यूज एजेंसी 'शिन्हुआ' पहला एआई न्यूज एंकर दुनिया के सामने लाई। इस एजेंसी के किउ हाओ पहले एआई एंकर हैं, जिसने डिजिटल वर्जन पर समाचार प्रस्तुत किया। शिन्हुआ और चीनी सर्च इंजन सोगो द्वारा यह एआई एंकर विकसित किया गया है। प्रकाशकों ने चीन के वार्षिक वर्ल्ड इंटरनेट कॉन्फ्रेंस के क्रार्यक्रम के दौरान इसकी घोषणा की थी। इसी से जुड़ी दूसरी के अनुसार पिछले वर्ष चीन ने एआई महिला न्यूज़ एंकर रेन जियाओरॉन्ग को लॉन्च किया। चीन सरकार केंद्रित पीपल्स डेली अखबार ने दावा किया है कि इस एआई न्यूज एंकर ने हजारों न्यूज एंकर्स से स्किल सीखे हैं और वह 365 दिन 24 घंटे लगातार खबरें बता सकती है। चीन के अलावा कुवैत भी अपना एआई न्यूज एंकर लॉन्च कर चुका है। हाल ही में 'न्यूज 18' के पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रीय चैनल की तरफ से भी एआई एंकर के बारे में बात की गई। इस एंकर का नाम एआई कौर है। हाल ही में रूस के स्वोए टीवी ने स्नेज़ना तुमानोवा को पहले वर्चुअल मौसम की खबर प्रस्तुत करने वाले के रूप में पेश किया। 

इस तरह से दुनिया के अलग-अलग मीडिया संस्थानों की ओर से एआई तकनीक के न्यूज एंकर को लॉन्च किया जा रहा है। एक के बाद एक एआई न्यूज एंकर के लॉन्च को मीडिया की नई क्रांति और बदलाव बताया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि सूचना के क्षेत्र में एआई समावेशिता, विश्वसनीयता स्थापित कर पाती है या नहीं। क्योंकि अगर अब तक लॉन्च एआई एंकर्स के रूप-आकार को लेकर बात करे तो उससे पूरी तरह समावेशिता गायब है। लॉन्च एंकर का आकार यूरो सैंट्रिक ब्यूटी स्टैंडर्ड को ध्यान में रखकर गढ़ा गया है जैसे गोरा रंग, एक ख़ास तय किस्म की बॉडी आदि। सूचना के क्षेत्र में प्रस्तुतिकरण में इस तरह से पूर्वाग्रहों को और स्थापित करने का काम किया जा रहा है।  

एआई की दुनिया और विश्वसनीयता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अभी अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन यह देखना वास्तव में बहुत दिलचस्प होगा कि यह पत्रकारिता को किस तरह से बदलेगा। क्योंकि आज क्लिकबेट पत्रकारिता, फेक न्यूज और प्राइम टाइम में चिल्लाने वाली पत्रकारिता का दौर है। ऐसे में क्या रोबोट, इंसानी रवैये के इतर विवेक के साथ पत्रकारिता करेंगे? प्रसिद्ध मीडिया स्तंभकार पामेल फिलिपोज ने कहा है कि एआई और उसके इस्तेमाल से पैदा खतरे वास्तविक हैं। एआई अधिक बहुस्तरीय समस्या को पैदा कर सकता है, जैसे एआई दुष्प्रचार अधिक फैला सकता है। 

फिलिपोज ने आगे कहा है कि फेक न्यूज अब व्हाट्सएप टेक्स्ट और तस्वीरों के माध्यम से प्रसारित की जाती हैं और एआई की पूरी क्षमता रॉ डेटा को पुर्नजीवित करना है। इस तरह बहुत से पत्रकार और मीडिया पेशवरों का मानना है कि एल्गोदिरम और ऑटोमेशन पर बढ़ती निर्भरता से पत्रकारिता की विश्वसनीयता कम होने का खतरा है।

एआई न्यूज एंकर या पत्रिकारिता में एआई की निर्भरता सूचना क्षेत्र के भविष्य के लिए दोधारी तलवार है। एक तरफ इससे मीडिया के नयेपन और संचार के क्षेत्र की अपार संभावनों पर ध्यान दिया जा रहा है। वहीं इसे नैतिक और जिम्मेदारी तय करने के लिए रेग्यूलेशन और निरीक्षण की आवश्यकता भी है। ऐसे दौर में जहां मीडिया में पहले से ही ग्राउंड रिपोर्ट, खोजी पत्रकारिता और जनपक्ष की कमी है, उस समय में एआई तकनीक का बढ़ता प्रभाव सूचनाओं से मानवीय पक्ष को खत्म करने वाला ज्यादा नजर आ रहा है।

सोमवार, 10 जून 2024

निरंतरता, अनुभव और उत्साह का संगम है केंद्रीय मंत्रिमंडल

-डा.संजय द्विवेदी 


   केंद्र सरकार का नया मंत्रिमंडल निरंतरता की गवाही देता है। यह बात बताती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी टीम पर भरोसा कायम है। प्रमुख विभागों में अपनी आजमाई जा चुकी टीम को मौका देकर मोदी ने बहुत गंभीर संदेश दिए हैं। मंत्रिमंडल में अनुभव, उत्साह और नवाचारी विचारों के वाहक नायकों को जगह मिली है।

अनुभवी सरकार:

यह मंत्रिमंडल गहरी राजनीतिक सूझबूझ वाले नायकों से संयुक्त है। लंबे समय तक राज्य सरकारों को चलाने वाले 7 पूर्व मुख्यमंत्री इस सरकार में शामिल हैं। कैबिनेट में नरेंद्र मोदी सहित सात पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं। जिनमें मोदी खुद गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं। इसके अलावा राजनाथ सिंह (उप्र), शिवराज सिंह चौहान (मप्र), जीतनराम मांझी (बिहार), एचडी कुमारस्वामी (कर्नाटक), मनोहरलाल खट्टर(हरियाणा), सर्वानंद सोनोवाल (असम) मुख्यमंत्री रहे हैं। भारत सरकार के विदेश सचिव और पिछली सरकार में विदेश मंत्री रह चुके एस.जयशंकर अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं। आईएएस अधिकारी रहे अश्विनी वैष्णव अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में उनके सचिव रहे,विविध अनुभव संपन्न वैष्णव सरकार में नवाचारों के वाहक हैं। पिछली सरकार उनके प्रदर्शन की गवाही है। इसी क्रम में नौकरशाह रहे हरदीप सिंह पुरी सरकार की शक्ति हैं।  नितिन गडकरी का महाराष्ट्र सरकार से लेकर अब केंद्र में 10 साल का कार्यकाल सबकी नजर में है। देश में हुई परिवहन और सड़क क्रांति के वे वाहक हैं। वे केंद्र में सबसे लंबे समय तक परिवहन मंत्री रहने का रिकार्ड बना चुके हैं।

   भाजपा के पास अनुभवी मंत्रियों की टीम सरकार के संकल्पों की वाहक बनेगी, इसमें दो राय नहीं। धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल, प्रहलाद जोशी,किरण रिजिजू, भूपेंद्र यादव,जोएल ओराम, गजेंद्र सिंह शेखावत, डा.वीरेंद्र कुमार , ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी हस्ताक्षर बन चुके हैं। सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के प्रभावी संचालन का रिकार्ड इनके नाम है। 

सरकार के संकटमोचक:

केंद्रीय मंत्रिमंडल में राजनाथ सिंह और अमित शाह इस सरकार के संकटमोचक हैं। राजनाथ सिंह के साथ जहां सहयोगी दलों का शानदार संवाद है, वहीं अमित शाह अपने कुशल राजनीतिक प्रबंधन के लिए जाने जाते हैं।  इस सरकार में सहयोगी दलों के 11 मंत्री हैं। जबकि 2014 में 5 और 2019 में सहयोगी दलों के 4 मंत्री शामिल थे। यह संख्या अभी और बढ़ सकती है। ऐसे में सरकार में कुशल प्रबंधन की जरूरत हमेशा बनी रहेगी। आने वाले समय में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव भी होने हैं। यही इस सरकार का पहला सार्वजनिक टेस्ट भी है।

    मंत्रिमंडल में प्रतिबद्धता, निरंतरता और वरिष्ठता का ख्याल रखते हुए भी युवाओं को खास मौके दिए गए हैं। इसके साथ ही यह अखिल भारतीय चरित्र की सरकार भी है, केरल, तमिलनाडु से लेकर जम्मू कश्मीर तक का प्रतिनिधित्व इस सरकार में है। पांच अल्पसंख्यक समुदायों से भी सरकार में मंत्री बने हैं। साथ ही सामाजिक समरसता की दृष्टि से यह समावेशी सरकार कही जा सकती है। 

  अभी तक की स्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सुशासन को लेकर सरकार पर कोई दबाव नहीं है। लेकिन समान नागरिक संहिता, मुस्लिम आरक्षण, जातीय जनगणना, राज्यों को विशेष दर्जा जैसे मुद्दे मतभेद का कारण जरूर बनेंगे। प्रधानमंत्री के कद और उनकी छवि जरूर इन साधारण प्रश्नों से बड़ी है। सरकार के प्रबंधक इन मुद्दों से कैसे जूझते हैं,यह बड़ा सवाल है। सहयोगी दलों के साथ संतुलन और उनकी महत्ता बनाए रखते हुए चलना सरकार की जरूरत हमेशा बनी रहेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह अपने अभिभावकत्व और नेतृत्व से एनडीए को संभालते हुए काम प्रारंभ किया है। वे आसानी से साधारण विवादों का हल भी निकाल ही लेंगे। 



रविवार, 9 जून 2024

'सर्वमत' और 'सुशासन' से बनेगा विकसित भारत

- आर्थिक-सामाजिक विकास तथा सामाजिक न्याय ही रहेगा एजेंडा 

-प्रो.संजय द्विवेदी 



 लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी भले ही सीटों के मामले में अपने घोषित लक्ष्य से पीछे रह गए हों , किन्तु चुनौती स्वीकार करने की उनकी जिजीविषा स्पष्ट है। पिछले तीन दिनों से उनके भाषण, बाडी लैंग्वेज बता रही है कि वे राजग की सरकार को उसी अंदाज से चलाना चाहते हैं, जैसी सरकार वे अब तक चलाते आए हैं। सहयोगी दलों से मिली पूर्ण आश्वस्ति के पश्चात मोदी ने अपने नेता पद पर चयन के बाद 'बहुमत' से नहीं बल्कि 'सर्वमत' से सरकार चलाने की बात कही है। वैसे भी चंद्रबाबू नायडू तथा नीतिश कुमार की ज्यादा रूचि अपने राज्यों की राजनीति में हैं। इसलिए सीधे तौर पर दो बड़े सहयोगी दलों तेलुगु देशम और जनता दल (यूनाइटेड) से कोई तात्कालिक चुनौती नहीं है। इसके साथ ही 'सुशासन' मोदी, नायडू और नीतिश तीनों की प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पिछले 22 वर्षों से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जैसे पदों पर रहते हुए सरकारों का नेतृत्व कर रहे हैं। उनमें सबको साथ लेकर चलने की अभूतपूर्व क्षमता है। सुशासन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टालरेंस उनकी कार्यशैली है। यह बात उन्होंने इस बार भी स्पष्ट कर दी है। लंबे नेतृत्व अनुभव ने उनमें साथियों के प्रति सद्भाव और अभिभावकत्व भी पैदा किया है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए एनडीए का हर एक सांसद समान है।  मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने तब यह बात काफी कही गई थी कि उन्हें दिल्ली की समझ नहीं है। विदेश नीति जैसे विषयों पर क्या मोदी नेतृत्व दे पाएंगे। जबकि पिछले 10 वर्षों में मोदी ने इन दोनों प्रारंभिक धारणाओं को खारिज किया। ऐसे में गठबंधन सरकार का नेतृत्व वे सफलतापूर्वक करेंगे, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। 

   सत्ता के संकटों और सीमाओं के बाद भी नरेंद्र मोदी ने अपने विजन और नेतृत्व क्षमता से लंबी लकीर खींची है। गहरी राष्ट्रीय चेतना से लबरेज उनका व्यक्तित्व एनडीए की चुनावी सफलताओं की गारंटी बन गया है। अब जबकि एनडीए के लगभग 303 सांसद हो चुके हैं,तब यह मानना ही पड़ेगा यह सरकार आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और सामाजिक कल्याण की योजनाएं लागू करते हुए तेज़ी से आगे बढ़ेगी। अरूणाचल प्रदेश, उड़ीसा की राज्य सरकारें मोदी मैजिक का ही परिणाम है। केरल में खाता खोलने के साथ तेलंगाना, आंध्र और कर्नाटक के परिणाम दक्षिण भारत में भाजपा की बढ़ती स्वीकार्यता बताते हैं। इन परिणामों में नरेंद्र मोदी की छवि और उनका परिश्रम संयुक्त है। 

  उत्तर प्रदेश, राजस्थान,बंगाल और महाराष्ट्र से गंभीर नुकसान के बाद भी सबसे बड़े दल के रूप में भाजपा को जिताकर ले आना और एनडीए को बहुमत दिलाने में उनकी खास भूमिका है।  एनडीए सांसद और सहयोगी दल भी मानते हैं उन्हें मोदी की छवि का फायदा अपने-अपने क्षेत्रों में मिला है। 10 साल के सत्ता विरोधी रूझानों के बाद भी अन्य क्षेत्रों में विस्तार करते हुए भाजपा और एनडीए अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रहे, यह साधारण बात नहीं है।

   राजग ने चुनावी जंग में मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश की सभी सीटें जीत लीं। बावजूद इसके अपराजेय समझे जाने वाले 'मोदी -योगी ब्रांड' को उत्तर प्रदेश में बहुत गहरा झटका लगा है। प्रधानमंत्री की वाराणसी में जीत के अंतर को भी विरोधी रेखांकित कर रहे हैं। अयोध्या की हार मीडिया की सबसे बड़ी खबर बन गयी है। जाहिर तौर पर इसे लोकतंत्र की खूबसूरती ही मानना चाहिए। इसलिए इसे जनादेश कहते हैं। आरक्षण और संविधान बदलाव के भ्रामक प्रचार ने जैसा उत्तर प्रदेश में असर दिखाया है , संभव है बिहार में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी गठबंधन में न होते तो वहां भी ऐसा ही नुकसान संभावित था। 

 कांग्रेस और उसके गठबंधन को निश्चित ही बड़ी सफलता मिली है। इसके चलते संसद और उसके बाहर मोदी सरकार को चुनौतियां मिलती रहेंगी। विपक्ष का बढ़ा आत्मविश्वास क्या आनेवाले समय में सरकार के लिए संकट खड़ा कर पाएगा, इसे देखना रोचक होगा।

  भारतीय लोकतंत्र वैसे भी निरंतर परिपक्व हुआ है। सर्वसमावेशी होना उसका स्वभाव है। 'सबका साथ, सबका विकास' ही मोदी मंत्र रहा है। बाद में मोदी ने इसमें दो चीजें और जोड़ीं 'सबका विश्वास और सबका प्रयास'। गठबंधन सरकार चलाने के लिए इससे अच्छा मंत्र क्या हो सकता है। मोदी और उनकी पार्टी ने विकसित भारत बनाने का कठिन उत्तरदायित्व लिया है, वे इस संकल्प को पूरा करने के लिए प्रयास करेंगे तो यही बात भारत मां के माथे पर सौभाग्य का टीका साबित होगी।


शनिवार, 8 जून 2024

मध्यप्रदेश में खास रही 'स्त्री शक्ति' की भूमिका

-लोकसभा की सभी सीटें जीतकर भाजपा ने रचा इतिहास 

-प्रो.संजय द्विवेदी 



मध्यप्रदेश में सभी लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त कर भाजपा ने कठिन समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बड़ा सहारा दिया है। जिसमें मध्यप्रदेश की महिला मतदाताओं का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है। विधानसभा चुनाव अभियान से ही प्रधानमंत्री मोदी मध्यप्रदेश में सबसे खास चेहरा बने हुए हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा था और भारी जनसमर्थन प्राप्त किया। 'मोदी के मन में मध्यप्रदेश, मध्यप्रदेश के मन में मोदी' यह मुख्य नारा था, जिसमें संगठन के परिश्रम ने प्राण फूंक दिए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सत्ता में तीसरी बार वापसी एक असाधारण घटना है। भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र में अपनी लोकप्रियता और प्रासंगिकता बनाए रखना इतना आसान नहीं होता। भाजपा जैसे दल के लिए जिसने 8 वें दशक में सिर्फ दो लोकसभा सीटों के साथ अपनी यात्रा प्रारंभ की हो, यह चमत्कार ही है।  अनपेक्षित परिणामों के बाद भी केंद्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी और एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन है। मध्यप्रदेश वैसे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के अद्भुत समन्वय से चलने वाला राज्य रहा है। मुख्यमंत्री मोहन यादव, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, संगठन मंत्री हितानंद शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गजों की जुगलबंदी ने जो इतिहास रचा है, उसे लंबे समय तक याद किया जाएगा। इसके अलावा नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राजेन्द्र शुक्ल, फग्गन सिंह कुलस्ते, वीरेंद्र कुमार जैसे अनेक नेता भाजपा के सामाजिक और भौगोलिक विस्तार को स्थापित करते हैं।

संघ की प्रयोगभूमि होने के कारण मध्यप्रदेश पर पूरे देश की निगाह थी। मध्यप्रदेश में यह वैचारिक यात्रा हिंदुत्व,भारतबोध की यात्रा तो है ही समाज के सभी वर्गों की हिस्सेदारी ने इसे सफल बनाया है। स्त्री शक्ति इसमें सबसे प्रमुख है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जहां स्त्री शक्ति को भाजपा के साथ गोलबंद करने में अहम भूमिका निभाई, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आते ही सामान्य जन के जीवन स्तर को उठाने के प्रयास किए। विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गरीब परिवारों को संबल दिया, जिस बदलाव को स्त्री शक्ति ने महसूस किया। स्त्री भारतीय परिवारों की धुरी है। भारतीय राजनीति में स्त्री को इस तरह से केंद्र में रखकर कभी विचार नहीं किया गया। यह बात रेखांकित करना चाहिए कि आखिर देश की राजनीति में स्त्री के सवाल हाशिए पर क्यों रहे हैं? स्त्री आखिर चाहती क्या है? वह चाहती है सुखद, सुरक्षित, आनंदमय जीवन और अपने बच्चों का सुनहरा भविष्य। एक अदद छत जिसमें वह अपने परिवार के साथ चैन से रह सके। 

 नरेंद्र मोदी ने सामान्य भारतीय स्त्री के इस मन और जीवन की समस्याओं को संबोधित किया। स्त्री को सुरक्षित परिवेश और बेटियों को आसमान छूने की प्रेरणा दी। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सिर्फ नारा नहीं एक सामाजिक संकल्प बन गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत सामान्य परिस्थितियों से आगे बढ़े हैं। वे परिवारों को चलाने वाली स्त्री के दर्द, उसकी जरूरतों को समझने वाले राजनेता हैं। उज्जवला गैस जैसे योजना उनके संवेदनशील मन की गवाही देती है। लकड़ियां लेटर आने,गोबर के उपलों से खाना बनाती स्त्री, उसके कष्ट सब नहीं समझ सकते। धुएं के नाते उसको होने वाले स्वास्थ्यगत नुकसान को भी सब नहीं समझ सकते। बात छोटी है,पर संवेदना बहुत बड़ी। इसी तरह शौचालय न होने के कारण स्त्री के कष्ट से हर घर शौचालय का विचार एक क्रांतिकारी कदम था। यह मुद्दा महिला सुरक्षा ,स्वास्थ्य और स्वच्छता सबसे जुड़ा हुआ मुद्दा है। मध्यप्रदेश ने केंद्र की सभी योजनाओं का श्रेष्ठ क्रियान्वयन किया। इस पहल ने देश और प्रदेश में परिवर्तन का सूत्रपात किया।  प्रधानमंत्री आवास योजना इसी दिशा में उठाया गया एक ऐसा कदम था, जिसने परिवार को छत दी। आप लाख कहें महिला के लिए उसके घर से बड़ी कोई चीज नहीं होती। यह बहुत भावनात्मक विषय है, जो सामान्य मन से समझ में नहीं आएगा। कोरोना संकट में देश और उसके नागरिकों की अभिभावक की तरह चिंता करके प्रधानमंत्री ने लोगों के मन में जगह बना ली। वैक्सीन से लेकर 80 करोड़ परिवारों को राशन ने स्त्रियों के मन में सरकार के प्रति भरोसा जगाया। 

  स्त्री कल्याण की योजनाएं मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को 'मामा' के रूप में स्थापित कर गयीं। शिवराज जी मध्यप्रदेश में इसी लोकप्रियता के कारण अपनी सीट आठ लाख से ज्यादा मतों से जीते और मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी सफलता मिली। भाजपा मध्यप्रदेश की सरकार सामाजिक कल्याण की योजनाएं और केंद्र की योजनाओं ने कमाल किया। भरोसा पैदा किया। मोदी ने 2014 में सत्ता में आते ही अपनी सरकार को गरीबों के कल्याण के समर्पित होने की 'घोषणा' की थी। यह घोषणा बाद के 10 सालों में 'संकल्प' सरीखी नजर आई। भरोसा जगाते हुए मोदी देश के दिल में उतरते चले गए। मध्यप्रदेश में नरेंद्र मोदी के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान तब भी प्रकट हुआ, जब विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अभूतपूर्व जनादेश प्राप्त किया। इसके लिए पीएम ने सार्वजनिक मंच पर प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की पीठ भी ठोंकी। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने साफ कहा कि महिला कल्याण की कोई योजना बंद नहीं होगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी लालड़ी बहना योजना को चुनावों में प्रभावित करने वाला बताते हैं।

  संसद और विधानसभाओं के लिए महिला आरक्षण बिल पास करवाना  भी केंद्र सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि रही। लंबे समय से लंबित यह बिल अनेक सरकारों के प्रयास के बाद भी पास नहीं हो सका था। मोदी सरकार की स्त्री मुद्दों पर प्रतिबद्धता भी इससे जाहिर हुई। साथ ही इस संसदीय चुनाव में देश में भाजपा ने 69 महिलाओं को टिकट दिया। कांग्रेस ने 41 महिला प्रत्याशी उतारे।‌ संकेत और संदर्भ राजनीति को प्रभावित करते हैं। ऐसे में भाजपा की ओर स्त्री शक्ति का आकर्षण सहज ही है। आंकड़े बताते हैं कि हर वर्ग की महिलाओं में भाजपा की लोकप्रियता किसी अन्य दल से ज्यादा है। मोदी वैसे भी सामान्य रूप से सभी वर्गों के आकर्षण के केंद्र हैं। महिलाओं और युवाओं में उनकी लोकप्रियता बहुत है। सही मायनों में भारतीय लोकतंत्र में बढ़ती महिलाओं की हिस्सेदारी और उनका वोट प्रतिशत बड़े बदलाव का सूचक है। राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती द्रोपदी मुर्मू के चुनाव ने राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को प्रेरित किया। नरेंद्र मोदी ने 'आकांक्षावान भारत' की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य को लेकर महिलाएं सदैव चिंतित रहती हैं। अपने विकास केंद्रित विजन से मोदी सरकार भविष्य के आत्मविश्वासी भारत की नींव रख चुकी है। भरोसा यहीं से आता है। महिलाएं जानती हैं यह मोदी की गारंटी है, पूरी होनी चाहिए। स्त्री शक्ति के इस सहयोग और आशीर्वाद के बाद मोदी सरकार की जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई हैं, देखना है केंद्र सरकार आने वाले समय में इन प्रश्नों को किस तरह संबोधित करती है। फिलहाल तो देश की जनता और स्त्री शक्ति के जनादेश से सत्ता में आई एनडीए सरकार को शुभकामनाएं ही दी जा सकती हैं। 

मध्यप्रदेश ने साबित किया है कि सत्ता और संगठन में समन्वय से ही अच्छे परिणाम पाए जा सकते हैं। महिलाओं को अपने साथ गोलबंद कर भाजपा ने अपना आधार मध्यप्रदेश में बहुत मजबूत कर लिया है। महिला आरक्षण बिल के बाद निश्चित ही आने वाले समय में राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए महिलाओं को आगे आना ही होगा। ऐसे में मध्यप्रदेश में होने वाले संगठनात्मक प्रयोग अन्य राज्यों के लिए भी सबक होंगे।



शुक्रवार, 31 मई 2024

एक आहत सभ्यता की सजल आँखें!

‘सबके राम, सबमें राम’ की भावना को स्थापित करने से बनेगा ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’

- प्रो. संजय द्विवेदी

    


अयोध्या में 22 जनवरी,2024 को रामलला विराजे और तमाम आँखें सजल हो उठीं। ये आँसू यूं ही नहीं आए थे। ये भारत की लगातार आहत होती सभ्यता को एक सुनहरे पल में प्रवेश करते देखकर भर आई आँखें थीं। अयोध्या को इस तरह देखना विरल है। यह शहर सालों से सन्नाटे में था, गहरी उदासी और गहरे अवसाद में डूबा, शांत और उत्साहहीन। जैसे इतिहास और समय एक जगह ठहर गया हो और उसने आगे न बढ़ने की ठान रखी हो। दूरस्थ स्थानों से अयोध्या आते लोग भी हनुमान गढ़ी और कनक भवन जैसे स्थानों को देखकर लौट जाते। चौदहकोसी परिक्रमा करते और चले जाते। राम के लिए आए लाखों लोगों में बहुत कम लोग त्रिपाल या टाट में बैठे रामलला के दर्शन करते। लेकिन 22 जनवरी का नजारा अलग था। हर राह राममंदिर की ओर जा रही थी। आँखों में आँसू, चेहरे पर मुस्कान और पैरों में तूफान था। आखिर हमारे राम को उनके अपने घर और शहर में सम्मान मिलते देखना अद्भुत अनुभव था। सदियां गुजर गईं लेकिन सत्य स्थिर था। इसी सत्य को देखने सारी दुनिया टीवी, मोबाइल स्क्रीन पर आँखें गड़ाए बैठी थी। विवाद का अंत हुआ और सत्यमेव जयते का उद्धोष सार्थक हुआ। यह समाधान सर्वजनहिताय तो था ही।

अयोध्या के दर्द को समझिए

   कभी त्रेता में वनवास गए राम कलयुग में भी एक दूसरी दुविधा के सामने थे। आजाद हिंदुस्तान में भी भारत के इस सबसे लायक बेटे के लिए मंदिर की प्रतीक्षा थी। बाबर के सेनापति द्वारा गिराए मंदिर के सामने पूजा-अर्चना करके आहत समाज यह सोचते हुए लौटता था कि कभी राम का भव्य मंदिर बनेगा। 2024 की यह 22 जनवरी करोड़ों आँखों के सपने सच करने के लिए आई थी। राम भारत के राष्ट्रनायक हैं, जिन्होंने अयोध्या से रामेश्वरम् को जोड़ा। वे दीन-दुखियों के, जीवन जीने के लिए संघर्ष करती आम जनता के पहले और अंतिम सहायक हैं। रामचरित मानस और हनुमान चालीसा की पंक्तियों को दोहराते हुए यह संघर्षरत समाज राम के सहारे ही अपनी जीवनयात्रा को सरल बनाता रहा है। बावजूद इसके आजादी के बाद भी सबको मुक्त करने वाले नायक को मुक्ति नहीं मिली। लंबे समय तक तो वो ताले में बंद रहे। अखंड कीर्तन चलता रहा। किंतु राहें आसान नहीं थीं। अयोध्या आंदोलन की यादें आपको सिहरा देंगीं। 1990 और 1992 की यादें एक गहरी कड़वाहट घोल जाती हैं। राजनीति किस तरह आसान मुद्दों को भी जटिल बनाती है। इसकी कहानी अयोध्या आज भी बताती है। अयोध्या अब अपने सदियों के दर्द से मुक्त मुस्करा रही है।

धैर्य, सहनशीलता और धर्म की जंग थी यह

दुनिया के किसी पंथ,संप्रदाय के महानायक के साथ यह होता तो क्या होता? सोचकर भी सिहरन होती है। किंतु भारत में यह हुआ और हिंदू समाज के अपार धैर्य, सहनशीलता की कथा फिर से दोहराई गयी। एक साधारण मंदिर नहीं अपने राष्ट्रपुरूष, राष्ट्रनायक की जन्मभूमि के लिए भी लंबा अहिंसक संघर्ष सड़क से लेकर अदालतों तक चलता रहा। सही मायने में 22 जनवरी का दिन हमारे राष्ट्रजीवन में 15 अगस्त,1947 से कम महत्त्पूर्ण नहीं है। क्योंकि 15 अगस्त के दिन हमें अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी तो 22 जनवरी को हम सांस्कृतिक, वैचारिक दासता और दीनता से मुक्त हो रहे हैं। यह भारत की चिति को प्रसन्न करने का क्षण है। यह आत्मदैन्य से मुक्ति का क्षण है। यह क्षण अप्रतिम है। वर्णनातीत है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर स्व. राजीव गांधी (अपनी अयोध्या यात्रा में) तक रामराज्य लाने की बात करते हैं। किंतु उस यात्रा की ओर पहला कदम आजादी के अमृतकाल में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ाया है। इसलिए सारा देश उनके साथ खड़ा है। कांग्रेस नेता श्री प्रमोद कृष्णन ने सत्य ही कहा है कि यदि श्री मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो मंदिर निर्माण संभव नहीं होता। 

नए भारत के स्वप्नदृष्टा हैं मोदी

रामलला का 496 वर्षों बाद अपनी जन्मभूमि पर पुनःस्थापित होना सबको भावविह्वल कर गया। दुनिया भर में बसे 100 करोड़ से ज्यादा हिंदुओं और भारतवंशियों के लिए यह गौरव का क्षण था। इस मौके पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख डा. मोहन भागवत जी ने किसी तरह का राजनीतिक संवाद न करते हुए जो बातें कहीं वो भविष्य के भारत की आधारशिला बनेंगीं। संघ प्रमुख ने रामराज्य की अवधारणा को व्याख्यायित करते हुए भविष्य के कर्तव्य पथ की चर्चा की। उनका कहना था-“आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का स्व लौट आया है। संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा। उसका प्रतीक यह कार्यक्रम बन गया है।”  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर साफ कहा कि-  “राम आग नहीं ऊर्जा हैं।राम विवाद नहीं समाधान हैं। राम विजय  नहीं विनय हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं, सबके हैं।” यह बात बताती है कि माननीय प्रधानमंत्री एक नए भारत के स्वप्नदृष्टा हैं। नया भारत बनाने और उसमें एक जीवंत ऊर्जा का संचार करने के लिए प्रधानमंत्री ने न सिर्फ रामलला की मूर्ति स्थापना के लिए 11 दिनों का व्रत विधानपूर्वक बिना ठोस भोजन लिए पूर्ण किया, बल्कि उनकी विराट सोच ने इस आयोजन को और भी अधिक भव्य और सरोकारी बना दिया। देश के विविध क्षेत्रों की माननीय प्रतिभाओं को एक स्थान पर एकत्र कर राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट ने इस आयोजन को विशेष गरिमा प्रदान की। राजनीति से परे हटकर इस घटना का विश्लेषण करना ही इसे सही अर्थ में समझना होगा। तभी हम भारत और उसकी महान जनता के मन में रमे राम को समझ पाएंगें। ‘सबके राम-सबमें राम’की भावना स्थापित कर हम राममंदिर को राष्ट्रमंदिर में बदल सकते हैं। जिससे मिलने वाली ऊर्जा दिलों को जोड़ने, मनों को जोड़ने का काम करेगी। यह अवसर भारत का भारत से परिचय कराने का भी है। जनमानस में आई आध्यात्मिक और नैतिक चेतना को देखकर लगता है कि भारत की एक नई यात्रा प्रारंभ हुई है, जो चलती रहेगी बिना रूके, बिना थके।

डॉ. शिवओम अंबर ने लिखा है-

राम हमारा कर्म, हमारा धर्म, हमारी गति है।

राम हमारी शक्ति, हमारी भक्ति, हमारी मति है।

बिना राम के आदर्शों का चरमोत्कर्ष कहां है?

बिना राम के इस भारत में भारतवर्ष कहां है?

इसलिए जरूरी है संकठा जी जैसे स्कूल शिक्षक की याद !

संकठा सिंह : आदर्श शिक्षक,संवेदना से भरे मनुष्य 

-प्रो.संजय द्विवेदी

  

भरोसा नहीं होता कि मेरे पूज्य गुरुदेव श्री संकठा प्रसाद सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। बस्ती (उप्र) के सरस्वती शिशु मंदिर, रामबाग के प्रधानाचार्य रहे संकठा जी में ऐसा क्या था, जो उन्हें खास बनाता है? क्या कारण है कि वे अपने विद्यार्थियों के लिए हमेशा प्रेरणा देने वाली शख्सियत बने रहे। बहुत बालपन में उनके संपर्क में आनेवाला शिशु अपनी प्रौढ़ावस्था तक उनकी यादों और शिक्षाओं को भूल नहीं पाता।   

      शिशु मंदिर व्यवस्था के इस पक्ष का अध्ययन किया जाना चाहिए कि  पारिवारिक और आत्मीय संवाद बनाकर यहां के आचार्य गण जो आत्मविश्वास नयी पीढ़ी को देते हैं,वह अन्यत्र दुर्लभ क्यों है? निम्न और मध्यम वर्गीय परिवारों से आए विद्यार्थियों में जो भरोसा और आत्मविश्वास संकठा जी जैसे अध्यापकों ने भरा, वह मोटी तनख्वाहें पाने वाले पांच सितारा स्कूलों के अध्यापक क्यों नहीं भर पा रहे हैं? हमने अपने सामान्य से दिखने वाले आचार्यों से जो पाया, उससे हम दुनिया में कहीं भी जाकर अपनी भूमिका शान से निभाते हैं, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी डिप्रेशन, अवसाद से घिरकर आत्महत्याएं भी कर रहे हैं। हमारी उंगलियां पकड़कर जमाने के सामने ला खड़े करने वाले संकठा जी जैसे अध्यापकों की समाज को बहुत जरुरत है। 

  गुरुवार 28 मार्च ,2024 को   अपने गृहग्राम वनभिषमपुर, पोस्ट-मुसाखाडं, चकिया,जिला -चंदौली (उप्र) में अपनी अंतिम सांसें लीं, तो उनकी बहुत सी स्मृतियां ताजा हो आईं। उनके मानवीय गुण, कर्मठता, अध्यापन और प्रबंधन शैली सब कुछ। कच्ची मिट्टी से शिशुओं में प्रखर राष्ट्रीय भाव, नेतृत्व क्षमता, सामाजिक संवेदनशीलता भरते हुए उन्हें योग्य नागरिक बनाना उनका मिशन था। वे ताजिंदगी इस काम में लगे रहे। बाद में शिशु मंदिर योजना के संभाग निरीक्षक गोरखपुर,काशी,प्रयाग संभाग का दायित्व भी उन्होंने देखा। सतत् प्रवास करते हुए मैंने उनके मन में कभी कड़वाहट और नकारात्मक भाव नहीं देखे। रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह छात्र जीवन में उनके सहपाठी रहे। वे दिल्ली जब भी आते माननीय रक्षा मंत्री जी से लेकर हम जैसे तमाम विद्यार्थियों से खोजकर मिलते। कोई चाह नहीं , बस हालचाल जानना और अपनी शुभकामनाएं देना। ऐसे अध्यापक का आपकी जिंदगी में होना भाग्य है। भोपाल में अपने पूज्य दादाजी की स्मृति में होने वाले पं.बृजलाल द्विवेदी स्मृति साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में मैंने उन्हें अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया। मेरे तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला इस बात से बहुत खुश हुए कि मेरा अपने स्कूल जीवन के अध्यापक से अभी तक रिश्ता बना हुआ है। मैंने सर को बताया कि इसमें संकठा जी का नियमित संपर्क और स्नेहिल व्यवहार बहुत बड़ा कारण है। 


       माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के मेरे विद्यार्थियों को भी यह बात बहुत अच्छी लगी। अध्यापक और छात्र के इस जीवंत रिश्ते की ऐसी तमाम कथाएं संकठा जी के लिए सामान्य थीं। छात्र जीवन में हम कुछ दोस्त 'चाचा नेहरू अखिल भारतीय बाल मित्र सभा' नाम से एक संगठन चलाते थे। तब हम शिशु मंदिर से पढ़कर निकल चुके थे। चाचा नेहरू का नाम जुड़ा होने के कारण हमें लगता था, आचार्य जी इससे नहीं जुड़ेंगे, किंतु जब हम पूर्व विद्यार्थियों ने उन्हें इस संगठन का अध्यक्ष बनाया तो सहर्ष तैयार हो गए। उस समय बस्ती से इसी संगठन से एक बाल पत्रिका 'बालसुमन' नाम से हमने निकाली। इसके कुछ अंक हमने बस्ती से छापे। बाद थोड़ी अच्छी छपाई हो इसलिए संकठा जी ने इसके कुछ अंक वाराणसी से छपवाए। शिशु मंदिर से निकलकर मेरा प्रवेश मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित कालेज 'खैर कालेज, बस्ती ' में हो गया। वहां के मेरे सहपाठियों शाहीन परवेज, एहतेशाम अहमद खान आदि से भी संकठा जी काफी दोस्ती हो गयी। कारण था चाचा नेहरु अखिल भारतीय बाल मित्र सभा। इसकी गतिविधियां भी बढ़ीं। संकठा जी बस्ती से स्थानांतरित होकर गाजीपुर गये, तो हम वहां शाहीन परवेज के गांव में भोजन के लिए गए। रिश्ते को अटूट बना लेना और लोकसंग्रह उनकी वृत्ति थीं। यहीं गाजीपुर में उन्होंने मेरी मुलाकात श्री अजीत कुमार से करवाई, जो बाद वाराणसी में छात्र आंदोलन में में मेरे वरिष्ठ साथी रहे। आज वे नेशनल बुक ट्रस्ट के बोर्ड के सदस्य और सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। मैं याद करता हूं तो ढेर सी यादें घेरती हैं। मेरी शादी में वे सपरिवार आए। मां की मृत्यु पर, भाई की मृत्यु पर । हर सुख -दुख की घड़ी में उनका हाथ मेरे कंधे पर रहा। 

     दिल्ली में आखिरी मुलाकात  हुई ,तब मैं भारतीय जन संचार संस्थान में कार्यरत था। वे आए दो दिन साथ रहे। शरीर कमजोर था, पर आंखों की चमक और अपनी सींची पौध पर उनका भरोसा कायम था। ऐसे शिक्षक दुर्लभ ही हैं, जो आपको आपके सपनों, दोस्तों, परिवार के साथ स्वीकार करता हो। आप अपनी जिंदगी में व्यस्त और मस्त हैं और उन्हें फोन भी करने का वक्त नहीं निकाल पाते। किंतु संकठा जी फोन आता रहेगा, आपको आपकी जड़ों से जोड़ता रहेगा। उनका हर फोन यह अपराधबोध देकर जाता था कि क्या हमें अभी और मनुष्य बनना शेष है? इतनी उदारता, संवेदनशीलता और बड़प्पन लेकर वे आए थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पाठशाला ने संकठा जी जैसे तमाम अनाम योद्धाओं के माध्यम से यह दुनिया रची है। मैं शब्दों में नहीं कह सकता कि मैंने क्या खोया, पर अपने विद्यार्थियों के लिए उनका पचास प्रतिशत भी कर पाऊं तो स्वयं को उनका शिष्य कह पाऊंगा।‌ संकठा जी की कहानी विद्या भारती के महान अभियान की सिर्फ एक कहानी है। हमारे आसपास ऐसे अनेक हीरो हैं। जो अनाम रहकर पीढ़ियां गढ़ रहे हैं। उन सबका मंत्र है "एक समर्थ, आत्मविश्वास से भरा भारत!" संकठा जी एक व्यक्ति नहीं हैं, प्रवृत्ति हैं। जो समय के साथ दुर्लभ होती जा रही। जिनके लिए 'शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है।' भावभीनी श्रद्धांजलि!!