माखनलाल विश्वविद्यालय के नए
कुलपति का है हिंदी पत्रकारिता में खास योगदान
-संजय द्विवेदी
मीडिया
और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश के सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,भोपाल के कुलपति
के रूप में जब ख्यातिनाम पत्रकार श्री जगदीश उपासने का चयन हो चुका है, तब यह
जानना जरूरी है कि आखिर हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान क्या है? मध्यप्रदेश के
इस महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय के कुलपति बनने से पूर्व उनकी यात्रा रेखांकित की
जानी चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए कि वे इस संस्था को और भी गति से आगे ले जाने
में कोई कसर नहीं रखेगें।
कापी के मास्टरः
हिंदी
पत्रकारिता में अंग्रेजी पत्रकारिता की तरह कापी संपादन का बहुत रिवाज नहीं है।
अपने लेखन और उसकी भाषा के सौंदर्य पर मुग्ध साहित्यकारों के अतिप्रभाव के चलते
हिंदी पत्रकारिता का संकोच इस संदर्भ में लंबे समय तक कायम रहा। जनसत्ता
और इंडिया टुडे (हिंदी) के दो सुविचारित प्रयोगों को छोड़कर ये बात
आज भी कमोबेश कम ही नजर आ रही है। ऐसे समय में जबकि हिंदी पत्रकारिता भाषाई
अराजकता और हिंग्लिश की दीवानी हो रही है, तब हिंदी की प्रांजलता और पठनीयता को
स्थापित करने वाले संपादकों को जब भी याद किया जाएगा, जगदीश उपासने
उनमें से एक हैं। वे कापी संपादन के मास्टर हैं। हिंदी भाषा को लेकर उनका अनुराग
इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि वे मराठीभाषी हैं। उन्होंने हिंदी की
सबसे महत्वपूर्ण पत्रिका इंडिया टुडे को स्थापित करने में अपना योगदान दिया। इस
तरह वे हिंदी के यशस्वी मराठीभाषी संपादकों सर्वश्री विष्णुराव पराड़कर, माधवराव
सप्रे, राहुल बारपुते की परंपरा में अपना विनम्र योगदान जोड़ते नजर आते हैं। इंडिया टुडे के माध्यम से उन्होंने जिस हिंदी को प्रस्तुत किया वह
प्रभावी, संप्रेषणीय और प्रांजल थी, वह न तो अनुवादी भाषा थी ना उसमें अंग्रेजी के
नाहक शब्दों की घुसपैठ थी। यह एक ऐसी हिंदी थी, जिसके पहली बार दर्शन हो रहे थे-
पठनीय, प्रवाहमान और सीधे दिल में उतरती हुयी। सही मायनों में उन्होंने पहली बार
देश को हिंदी की सरलता और सहजता के साथ-साथ कठिन से कठिन विषयों को प्रस्तुत करने
के सामर्थ्य के साथ प्रस्तुत किया।
शानदार पत्रकारीय पारीः
जनसत्ता, युगधर्म, हिंदुस्तान समाचार जैसे अखबारों व समाचार
एजेंसियों में पत्रकारिता करने के बाद जब वे ‘इंडिया
टुडे’ पहुंचे तो इस पत्रिका का दावा ‘देश की भाषा में देश की धड़कन’ बनने का था। समय ने इसे सच कर दिखाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र
पांचजन्य को टेबलाइट अखबार के बजाए पत्रिका के स्वरूप में निकालने का जब विचार हुआ
तो जगदीश उपासने को इसका समूह संपादक बनाया गया। आज पांचजन्य और आर्गनाइजर दोनों
प्रकाशन एक नए कलेवर में लोगों के बीच सराहे जा रहे हैं। जनसत्ता को प्रारंभ करने
वाली टीम और इंडिया टुडे (हिंदी) की संस्थापक टीम के इस नायक को हमेशा भाषा और
उसकी प्राजंलता के विस्तार के लिए जाना जाएगा।
आपातकाल में काटी जेलः
छत्तीसगढ़
के बालोद कस्बे और रायपुर शहर से अपनी पढ़ाई करते हुए छात्र आंदोलनों और
सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े जगदीश उपासने ने विधि की परीक्षा में
गोल्ड मैडल भी हासिल किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, मप्र के वे
प्रमुख कार्यकर्ताओं में एक थे। आपातकाल के दौरान वे तीन माह फरार रहे तो मीसा
बंदी के रूप में 16 महीने की जेल भी काटी । उनके माता-पिता का छत्तीसगढ़ के
सार्वजनिक जीवन में खासा हस्तक्षेप था। मां रजनीताई उपासने 1977 में रायपुर शहर से
विधायक भी चुनी गयीं। उपासने के पिता श्री दत्तात्रेय उपासने जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, प्रख्यात समाज सेवी थे। उपासने परिवार का राजनीति एवं समाज सेवा में काफी योगदान
रहा है। परिवार के मुखिया के नाते श्री दत्तात्रेय उपासने ने आपात काल का वह दौर
भी झेला था, जब उनके परिवार के अधिकतर सदस्य जेल में डाल दिए गए थे। संघ
परिवार में भी उनका अभिभावक जैसा सम्मान था। जगदीश उपासने के अनुज सच्चिदानंद
उपासने आज भी छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं।
एक राजनीतिक
परिवार और खास विचारधारा से जुड़े होने के बावजूद जगदीश जी ने पत्रकारिता में
अपेक्षित संतुलन बनाए रखा। इन अर्थों में वे राष्ट्र के समावेशी चरित्र और उदार
लोकतांत्रिक व्यक्तित्व का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। वे अपनी विचारधारा पर गर्व
तो करते हैं, किंतु कहीं से कट्टर और जड़वादी नहीं हैं। राष्ट्रबोध और राष्ट्र के
लोगों के प्रति प्रेम उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को
एक ऐसी भाषा दी, जिसमें हिंदी का वास्तविक सौंदर्य व्यक्त होता है।
उन्होंने कई पुस्तकों का संपादन किया है,
जिनमें दस खंडों में प्रकाशित सावरकर समग्र काफी महत्वपूर्ण है।
टीवी चैनलों में राजनीतिक परिचर्चाओं का आप एक जरूरी चेहरा बन चुके हैं। गंभीर
अध्ययन, यात्राएं, लेखन और व्याख्यान
उनके शौक हैं। आज जबकि वे मीडिया में एक लंबी और सार्थक पारी खेल कर माखनलाल
चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बन चुके हैं, तो भी वे
रायपुर के अपने एक वरिष्ठ संपादक स्व. दिगंबर सिंह ठाकुर को याद करना नहीं भूलते, जिन्होंने पहली बार उनसे एक कापी तीस बार लिखवायी थी। वे प्रभाष जोशी,
प्रभु चावला और बबन प्रसाद मिश्र जैसे वरिष्ठों को अपने कैरियर में
दिए गए योगदान के लिए याद करते हैं, जिन्होंने हमेशा उन्हें
कुछ अलग करने को प्रेरित किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं
स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)