मंगलवार, 24 जून 2008

डा. रमन सिंह: सपनों को सच करने की जिम्मेदारी


छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह अगर अपनी सरकार के साढ़े चार साल से अधिक का समय पूरा करने के बावजूद जनप्रिय बने हुए हैं, तो यह सोचना बहुत मौजूं है कि आखिर उनके व्यक्तित्व की ऐसी क्या खूबियां हैं, जिन्होंने उन्हें सत्ता के शिखर पर होने के बावजूद अलोकप्रियता के आसपास भी नहीं जाने दिया। देखा जाए तो डा. रमन सिंह एक मुख्यमंत्री से कहीं ज्यादा मनुष्य हैं। उनका मनुष्य होना उन सारे इंसानी रिश्तों और भावनाओं के साथ होना है, जिसके नाते कोई भी व्यक्ति वामन से विराट हो जाता है। मुख्यमंत्री बनने के पूर्व डा. रमन सिंह के व्यक्तित्व की तमाम खूबियां बहुज्ञात नहीं थीं। शायद उन्हें इन चीजों को प्रगट करने का अवसर भी नहीं मिला। वे कवर्धा में जरूर 'गरीबों के डाक्टर के नाम से जाने जाते रहे किंतु आज वे समूचे छत्तीसगढ़ के प्रिय डाक्टर साहब हैं। उनकी छवि इतनी निर्मल है कि वे बड़ी सहजता के साथ लोगों के साथ अपना रिश्ता बना लेते हैं। राजनेताओं वाले लटकों-झटकों से दूर अपनी सहज मुस्कान से ही वे तमाम किले इस तरह जीतते चले गए कि उनके विरोधी भी सार्वजनिक तौर पर उनकी आलोचना से संकोच करने लगे हैं।

मुख्यमंत्री के रूप में उनके पदभार ग्रहण करने के साथ ही तमाम आशंकाएं उनकी और उनकी सरकार के आसपास तैर रही थीं। डा. रमन सिंह का स्वयं का इतिहास भी किसी बड़ी प्रशासनिक जिम्मेदारी के साथ जुड़ा नहीं रहा। कुछ समय के लिए वे केंद्र की सरकार में मंत्री जरूर रहे किंतु उस दौर में भी उनके कामकाज के बारे में बहुत कुछ सुनाई नहीं पड़ा। साथ ही साथ उनकी पूरी फौज में ज्यादातर सिपाही ऐसे थे, जो पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। ऐसे में बहुत अनुभवहीन मंत्रियों को लेकर बनी टीम बहुत आशाएं नहीं जगाती थी। डाक्टर साहब का स्वयं का स्वभाव भी उनके प्रशासनिक कौशल पर सवाल उठाता ही दिखता था। अब साढ़े चार साल के बाद यह लगता है कि वे आकलन और विश्लेषण न सिर्फ बहुत सतही थे, बल्कि रमन सिंह को बहुत ही सरलीकृत करके देखा जा रहा था।

डा. रमन सिंह को जिस काम के लिए याद किया जाएगा, उसमें उनकी पहली उपलब्धि तो यही है कि वे अपनी साधारण क्षमताओं के बावजूद पांच साल अपनी सरकार को चला ले गए। आज के समय में यह उपलब्धि भी साधारण नहीं है और तब जबकि मध्यप्रदेश में इसी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को पांच साल में तीन मुख्यमंत्री देने पड़े। दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने संयुक्त मध्यप्रदेश में प्रभावी रहे लगभग सभी भारतीय जनता पार्टी के दिग्गजों को राज्य की राजनीति में लगभग अप्रासंगिक बना दिया। आप इस बात से राहत ले सकते हैं कि भाजपा दिग्गज लखीराम अग्रवाल अपने स्वास्थ्यगत कारणों से राजनीति में निष्क्रिय हैं किंतु यह साधारण नहीं है कि उनके बेटे अमर अग्रवाल को छ: महीने के लिए मंत्रिमंडल से बाहर भी बैठना पड़ा। कभी मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे नंदकुमार साय के समर्थक भी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि सायजी कहां हैं और क्या कर रहे हैं? इसी तरह भाजपा के कई दिग्गजों ने, जिनका नाम उल्लेख आवश्यक नहीं है या तो अपने पंख सिकोड़ लिए हैं अथवा स्वयं को रमन सिंह के साथ ही संबध्द कर लिया है। संगठन और सरकार के बीच इतने अच्छे तालमेल के साथ अपना कार्यकाल पूरा करना डा. रमन सिंह की ऐतिहासिक उपलब्धि ही कही जाएगी। भाजपा संगठन में भी दिल्ली से लेकर रायपुर तक के नेताओं के बीच डा. रमन सिंह न सिर्फ सर्व स्वीकृत नाम हैं, वरन वे सबके प्रिय भी हैं। उनके व्यक्तित्व की सहजता और सहज उपलब्धता ने उनका कवरेज एरिया बहुत बढ़ा दिया है।
डा. रमन सिंह को नक्सलवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबध्दता के लिए भी निश्चित रूप से याद किया जाना चाहिए। वे शायद देश के ऐसे पहले राजनेता हैं, जिन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ अपनी प्रखर प्रतिबध्दता को जाहिर करते हुए नक्सलवाद को राष्ट्रीय आतंकवाद के समकक्ष खड़ा कर पूरे देश का ध्यान इस समस्या की ओर आकर्षित किया। नक्सलियों को आतंकी की संज्ञा देने के साथ उनके खिलाफ जनमत निर्माण के लिए उनकी पहल को निश्चित रूप से याद किया जाएगा। राज्य के चौतरफा विकास के लिए मुख्यमंत्री के नाते उनकी सक्रियता रेखांकित करने योग्य है। सरकारी तंत्र की तमाम सीमाओं के बावजूद मुख्यमंत्री की नीयत पर शक नहीं किया जा सकता। पहले दिन से ही उनके ध्यान में आखिरी पंक्ति पर खड़े लोग ही हैं। राज्य शासन की ज्यादातर योजनाएं इसी तबके को ध्यान में रखते हुए बनाई गईं। आदिवासियों को गाय-बैल, बकरी देने की बात हो, उन्हें चरण पादुका देने की बात हो, गरीब छात्राओं को साइकिल देने या पच्चीस पैसे में नमक और तीन रुपया किलो चावल सबका लक्ष्य अंत्योदय ही है। इस तरह की तमाम योजनाएं मुख्यमंत्री की दृष्टि और दृष्टिपथ ही साबित करती हैं।

विकास की महती संभावनाओं के साथ आज भी पिछड़ेपन और गरीबी के मिले-जुले चित्र राज्य की सर्वांगीण प्रगति में बाधक से दिखते हैं। अमीर और गरीब के बीच की खाई इतनी गहरी है कि सरकार की अत्यंत सक्रियता के बिना विकास के पथ पर बहुत पीछे छूट गए लोगों को मुख्य धारा से जोड़ पाना संभव नहीं है। भूमि, वन, खनिज और मानव संसाधन की प्रचुरता के बावजूद यह राज्य बेहद चुनौतीपूर्ण है, जहां पर एक तरफ विकास की चौतरफा संभावनाएं दिखती हैं, तो दूसरी तरफ बहुत से घरों में न सिर्फ फाका होता है, बल्कि रोजगार की तलाश में नित्य पलायन हो रहा है। भूख, कुपोषण और महामारी जैसे दृश्य यहां बहुत आम हैं। किसान पिट भी रहा है और पिस भी रहा है। इन चित्रों को जोड़कर जो दृश्य बनता है वह बहुत चिंताजनक है। विकास यात्रा पर निकले मुख्यमंत्री को इन बिंबों की तरफ भी ध्यान देना होगा। सरकारी तंत्र की असहिष्णुता और सीमाओं के बावजूद राजनैतिक तंत्र की सक्रियता और नीयत का पूरे तंत्र पर प्रभाव जरूर पड़ता है। इसके लिए समय और अवसर उपलब्ध कराना राज्य के लोगों की जिम्मेदारी है, तो उस अवसर का सही और सार्थक इस्तेमाल राज्य के नेतृत्व की नैतिकता के साथ जुड़ा प्रश्न है।

एक नवंबर, 2000 को अपना भूगोल रचने वाला यह राज्य आज भी एक 'भागीरथ के इंतजार में है। छत्तीसगढ़ का भौगोलिक क्षेत्रफल 1, 35, 194 वर्गकिलोमीटर है, जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 4.1 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश के सोलह राज्यों से बड़ा है। यह कई छोटे-छोटे राष्ट्रों से भी विशाल है। छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल पंजाब, हरियाणा और केरल इन तीनों राज्यों के योग से ज्यादा है। जाहिर है इस विशाल भूगोल में बसने वाली जनता छत्तीसगढ़ की सत्ता पर बैठे मुखिया की तरफ बहुत आशा भरी निगाहों से देखती है। इन अर्थों में डा. रमन सिंह के पास एक ऐसी कठिन जिम्मेदारी है, जिसका निर्वहन उन्हें करना ही होगा। इस विशाल भूगोल में सालों साल से रह रही आबादी अपनी व्यापक गरीबी और पिछड़ेपन से मुक्त होने का इंतजार कर रही है। डा. रमन सिंह के सामने यह चुनौती भी है कि वे श्रोष्ठ मानव संसाधन का विकास करते हुए न सिर्फ लोगों को उत्तम शासन उपलब्ध कराएं वरन उत्तम अधोसंरचना का विकास भी करें।

छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधन, खनिज, वन संपदा और जल संसाधन की दृष्टि से जहां बेहद संपन्न है, वहीं यहां अधोसंरचना के विकास के कई अवसर हैं। देश के मध्य में स्थित होने के नाते देश के सभी हिस्सों से यह लगभग समान दूरी पर है। उत्पादन के साधन, भूमि और श्रम सस्ता होने के नाते विकास की यहां अपार संभावनाएं हैं। राज्य में पावर हब के साथ-साथ फसल चक्र परिवर्तन के माध्यम से एग्रीकल्चर हब बनने की भी क्षमता है। औद्योगिक विकास के लिए समूह आधारित उद्योगों का विकास और लघु उद्योगों का बढावा देकर बेहतर परिणाम पाए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ के सामने औद्योगिकीकरण की दिशा में संभावनाओं के साथ कई बाधाएं भी उपस्थित हैं। राज्य के सांसदों को एकजुट होकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर बहुत तेजी के साथ रेल सुविधाएं बढ़वानी चाहिए। बस्तर का अशांत वातावरण भी एक बड़ी चुनौती है। छत्तीसगढ़ के औद्योगिकीकरण के और इस विकास में आम लोगों को साथ लेकर चलने के लिए कृषि आधारित, वन संपदा आधारित, खनिज संपदा आधारित उद्योगों के साथ-साथ और उदीयमान उद्योगों को महत्व देने की आवश्यकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर सही अर्थों में छत्तीसगढ़ बहुत पीछे है। सरकारी क्षेत्र के अंतर्गत चलने वाली प्राथमिक शिक्षा का बहुत बुरा हाल तो है ही, उच्च शिक्षा की स्थिति भी बेहतर नहीं कही जा सकती। यह एक संकेतक ही है कि राज्य के थोड़े से भी संपन्न लोग अपने बच्चों को इस राज्य के संस्थानों में शिक्षा नहीं दिलाना चाहते। चिकित्सा की सारी सुविधाएं खरीदकर ही उपलब्ध हैं। सरकारी अस्पताल लगभग अपना प्रभाव खो चुके हैं और बहुत मजबूर लोग ही इन अस्पतालों की शरण में आते हैं। राज्य की ये सच्चाइयां मुंह मोड़ने नहीं बल्कि इनके खिलाफ खड़ा होने का अवसर हैं। राज्य गठन के पिछले सात साल, राज्य की संभावनाओं को देखने और खंगालने के नाम पर बीत गए। अब राजसत्ता की जिम्मेदारी है कि वह राज्य के नागरिकाें के मूल प्रश्नों पर भी बातचीत शुरू करे। सरकारी तंत्र को प्रभावी बनाते हुए राज्य के सर्वांगीण विकास की तरफ ध्यान केंद्रित करे।

विरासत में मिली इन तमाम चुनौतियों की तरफ देखना और उनके जायज समाधान खोजना किसी भी राजसत्ता की जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को इतिहास की इस घड़ी में यह अवसर मिला है कि वे इस वृहतर भूगोल को उसकी तमाम समस्याओं के बीच एक नया आयाम दे सकें। सालों साल से न्याय और विकास की प्रतीक्षा में खड़ी 'छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के हर क्षण का रचनात्मक उपयोग करें। बहुत चुनौतीपूर्ण और कंटकाकीर्ण मार्ग होने के बावजूद उन्हें इन चुनौतियों को स्वीकार करना ही होगा, क्योंकि सपनों को सच करने की जिम्मेदारी इस राज्य के भूगोल और इतिहास दोनों ने उन्हें दी है। जाहिर है वे इन चुनौतियों से भागना भी नहीं चाहेंगे।

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