जीवन महान संभावनाओं से भरा है इसे यूं न गवाएं
-प्रो. संजय द्विवेदी
कर्म
की महत्ता अनंत है। हमारी परंपरा इसे ‘कर्मयोग’ कहकर संबोधित
करती है। हताश, निराश, अवसाद से घिरे वीरवर अर्जुन को महाभारत के युद्ध में
योगेश्वर कृष्ण इसी कर्मयोग का उपदेश देते हैं। इसके बाद अर्जुन में जो सकारात्मक
परिर्वतन आते हैं, उसे हम सब जानते हैं। हमारे देश में कर्मयोग की साधना करने वाले
अनेक महापुरूष हुए हैं। कम आयु पाकर भी सिद्ध हो जाने वाले जगद्गुरू शंकराचार्य और
स्वामी विवेकानंद का कृतित्व भी हमें पता है। संकल्प के धनी, परिस्थितियों को धता
बताकर अपने जीवन लक्ष्यों को पाने वाले भी अनेक हैं। गुलाम भारत में भी ऐसी
प्रतिभाओं ने अपने सपनों को मरने नहीं दिया और आगे आए। जिंदगी में असंभव स्वप्न
देखे और पूरे किए। देश की आजादी का सपना देखने वालों में ऐसे तमाम योद्धा थे,
जिन्हें पता नहीं था कि ये जंग कब तक चलेगी, पर वे जीते। भारत से अंग्रेजी राज का
सूर्यास्त हो गया।
वे जूझते हैं ताकि हम रहें खुशहालः
मनुष्य का सारा जीवन इसी कर्मयोग का उदाहरण है।
कर्तव्यबोध से भरे हुए लोग ही समाज का नेतृत्व करते हैं। उनकी कर्मठता,समर्पण से
ही यह पृथ्वी सुखों का सागर बन जाती है। स्वयं को झोंककर नए-नए अविष्कार करने वाले
वैज्ञानिक, सीमा पर डटे जवान, विपरीत स्थितियों में खेतों में जुटे किसान,आर्थिक
गतिविधियों में लगे व्यापार उद्योग के लोग, मीडियाकर्मी, मेडिकल और स्वास्थ्य
सेवाओं में लगे लोग ऐसे न जाने कितने क्षेत्र हैं, जहां लोगों ने खुद को झोंक रखा
है ताकि हमारी जिंदगी खुशहाल रहे। कोई भी व्यक्ति कर्म से अलग होकर नहीं रह सकता।
सोते-जागते, उठते बैठते, यहां तक कि सांस लेते हुए वह कर्म करता है। कर्मशील
व्यक्ति वर्तमान को पहचानता है। उसका उपयोग करता है। श्रद्धा, आस्था और लगन से
किया गया हर कार्य पूजा बन जाता है। जैसे हम कहते हैं कि उन डाक्टर साहब के हाथ
में यश है। जादू है। वह कोई जादू नहीं है। उन्होंने लगन और निष्ठा से अपने काम में
सिद्धि प्राप्त कर ली है।
सिद्ध कारीगरों से भरे थे हमारे गांवः
एक समय में हमारे गांव भी ऐसे सिद्धों से भरे
हुए थे। गहरी कलात्मकता, आंतरिक गुणों के आधार हमारे गांव कलाकारों, कारीगरों से भरे
थे। जो समाज के उपयोग की चीजें बनाते थे, समाज उनका संरक्षण करता था। श्री धर्मपाल
ने अपने लेखन में ऐसे समृद्ध गांवों का वर्णन किया है। जो समृध्दि से भरे थे,
आत्मनिर्भर भी। इसके पीछे था ग्रामीण भारत में छिपा कर्मयोग। उनके मन में रची-बसी ‘गीता’। इन्हीं जागरूक भारतीय कारीगरों, कर्मठता से
भरे कलाकारों ने भारत को विश्वगुरू बनाया था। कबीर अपने समय के लोकप्रिय कवि,
समाजसुधारक हैं, पर वे भी कर्मयोगी हैं। वे अपना मूल काम नहीं छोड़ते। झीनी-झीनी
चादर भी बीनते रहे। संत रैदास भी सिद्धि प्राप्त कर अपना काम करते रहे। यहां ज्ञान
के साथ कर्म संयुक्त था। इसलिए गुरूकुल परंपरा में वहां की सारी व्यवस्थाएं छात्र
खुद संभालते हैं। कर्मयोग और ज्ञानयोग की शिक्षा उन्हें साथ मिलती है। उनकी ज्ञान
पिपासा उन्हें कर्म से विरत नहीं करती। वहां राजपुत्र भी सन्यासी वेश में रहते हैं
और गुरू आज्ञानुसार लकड़ी काटने से लेकर भिक्षा मांगने, खेती-बागवानी का काम करते
हुए जीवन युद्ध के लिए तैयार होते हैं। जमीन हकीकतें उन्हें योग्य बनाती हैं,गढ़ती
हैं। वहां राजपुत्रों के फाइव स्टार स्कूल नहीं हैं। आश्रम ही हैं। समान व्यवस्था
है। गीता में इसीलिए कृष्ण कहते हैं-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते
संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
महात्मा गांधी इसी कर्मयोग को बुनियादी
शिक्षा के माध्यम से जोड़ना चाहते थे। लंबे समय के बाद आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति
में एक बार फिर कौशल आधारित शिक्षा की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी भी कर्मयोग की बात कर रहे हैं और केंद्र सरकार ने मिशन कर्मयोगी के माध्यम से
अपने अधिकारियों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील,
नवाचारी, अधिक क्रियाशील, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम,
पारदर्शी और प्रौद्योगिकी समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिये तैयार करने
का लक्ष्य तय किया है। यह लक्ष्य तभी पूरा होगा जब हर भारतवासी अपने कर्मपथ पर आगे
बढ़े। सही मायनों में व्यक्ति को कर्मभोगी नहीं, कर्मयोगी बनना चाहिए। इसके
मायने हैं कि कोई भी छोटा से छोटा काम भी इतनी गुणवत्ता से किया जाए कि वह उदाहरण
बन जाए। खास बन जाए। आपका हर कार्य कर्ता की ईमानदारी का साक्षी बन जाए।
छोटी शुरूआत के बड़े मायनेः
हर काम जिंदगी में महान संभावनाएं लेकर आता
है। छोटे से बीज से ही विशाल वृक्ष बनते हैं और देते हैं हमें ढेर सी आक्सीजन,
छाया और फल। कर्मवीर इसीलिए अपने काम को ही जीवन का आधार मानते हैं। एक संत कहा
करते थे-“हे कार्य! तुम्हीं मेरी कामना हो, तुम्हीं मेरी प्रसन्नता हो, तुम्हीं मेरा आनंद
हो।” हमारी जिंदगी में कई बार ऐसा
लगता है कि यह काम छोटा है, मेरे व्यक्तित्व के अनुकूल नहीं है। हमें सोचना चाहिए
कि जब कोई नदी अपने उद्गम से निकलती है तो वह बहुत छोटी होती है। एक पेड़ जो अपनी
विशालता से आकर्षित करता है, अनेक पक्षियों का बसेरा होता है, वह भी आरंभ में एक
बीज ही रहता है। एक बहुमूल्य मोती अपने प्रारंभ में बालू का कण ही होता है। हमने
अनेक महापुरूषों के बारे में सुना है कि उन्होंने जीवन का आरंभ किस काम से किया।
छोटी शुरूआत के मायने ठहरना नहीं है,यात्रा का आरंभ है। थामस अल्वा एडीशन
वैज्ञानिक बनना चाहते थे, किंतु उनके अध्यापक ने उन्हें घर में झाड़ू लगाने का काम
दिया। किंतु जब उन्होंने देखा कि इस बालक में गहरी प्रतिभा है तो उन्होंने उसे
विज्ञान की शिक्षा देनी आरंभ की। बाद में थामस एक महान वैज्ञानिक बने। इस बात को
याद रखिए सफलतम लोगों का जीवन प्रायः उन कामों से प्रारंभ होता है, जिन्हें हम
मामूली समझकर छोड़ देते हैं। कोई भी व्यक्ति जब खुद को कर्म, परिश्रम और पुरूषार्थ
की आग में तपाता है तो वह कुंदन(सोने) की तरह चमकने लगता है। उसके आत्मविश्वास में
वृद्धि होती है।बाधाएं उसे सफलता के रहस्य और मार्ग बताती हैं। सूरज, चांद, तारे,
नदियां, पेड़-पौधे सब अपना काम नियमित करते हैं। हम एक सचेतन मनुष्य होकर किसकी
प्रतीक्षा में हैं। इसी भाव से गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था-
करम प्रधान विश्व रचि राखा,
जो जस करहि सो तस फल चाखा।
सकल पदारथ है जग मांही
करमहीन नर पावत नाहीं।
कठिन
से कठिन परिस्थितियों में हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। अमरीका के टेनेसी में
रहने वाली चार साल की लड़की के पैरों को लकवा मार जाता है। वो हिम्मत से जूझती है।
चलने की जगह दौड़ने का अभ्यास करने लगी। ऐसा समय भी आया जब वह ओलंपिक में शामिल
होकर तीन पदक जीते।वह लड़की थी गोल्डीन रूलाफ, जो आज भी प्रेरणा देती है।
आत्मविश्वास, आत्मबल और आत्मनिर्भरता हैं मंत्रः
कर्मयोगी
बनना है तो आत्मविश्वास, आत्मबल और आत्मनिर्भरता को साधना होगा। इन तीन मंत्रों को
साधकर ही हम जिंदगी की हर जंग जीत सकते हैं। निडर होकर सिद्धांतों पर अडिग रहते
हुए, समाजहितों में लगे रहनेवाली दृढ़ता आत्मबल से आती है। सफलता के सबसे
जरूरी है आत्मविश्वास। स्वामी विवेकानंद कहते थे- “आत्मविश्वास जैसा कोई मित्र नहीं है।
आत्मविश्वास के कारण बाधाएं भी मंजिल पर पहुंचाने वाली सीढ़ियां बन जाती हैं।” हमने राजस्थान के राणा सांगा का
नाम जरूर सुना होगा। वे 80 धाव होने पर भी युद्ध में जूझते रहे। ऐसी ही कहानी है
इंग्लैंड के वेल्स की । वो बहुत दुबला पर सेना में शामिल हुआ। एक युद्ध में दाहिना
हाथ कट गया, दूसरे युद्ध में आंख चली गई। सरकार ने उसे दिव्यांगों की पेंशन देनी
चाही किंतु उसने मना कर दिया। उसके बाद भी
उसने कई युध्दों में भाग लिया। हर स्थिति में न झुकने वालों में वेल्स का नाम लिया
जाता है। वेल्स कहते थेः “कायर एक
बार जीता और बार-बार मरता है, लेकिन जिसके पास आत्मविश्वास है, वो एक बार ही जन्म
लेता है और एक बार ही मरता है।” तीसरी खास चीज है आत्मनिर्भरता। मनोविज्ञान हमें बताता है, जब तक आप
दूसरों पर निर्भर हैं, आप धोखे में हैं। सच तो यह है कि हर संकट से जूझने की चाबी
आपके पास है।जीवन में सफलता पाने के लिए हमें अपने सपनों, आकांक्षाओं के साथ अपनी
योग्यताओं में वृध्दि करना प्रारंभ कर देना चाहिए। इससे न सिर्फ हमें सफलता
मिलेगी, तनावों से मुक्ति मिलेगी बल्कि शांति, संतोष और सुखद जीवन भी प्राप्त
होगा। आइए आज से ही निष्काम कर्मयोग की यात्रा पर निकलते हैं। तय मानिए एक
सुंदर दुनिया बनेगी और जिंदगी मुस्कराएगी।
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