बुधवार, 19 मई 2021

विचार को समर्पित बौद्धिक योद्धा

                                

कलम आज उनकी जय बोल

देश के चुनिंदा 11 पत्रकारों की कहानी, जिनके लिए पत्रकारिता का मतलब था भारतबोध का संचार, मूल्यनिष्ठा और समाज के लिए समर्पण

-प्रो. संजय द्विवेदी

  देश में पत्रकारिता के विस्तार और उसके एक उद्योग की तरह बदलने के बाद भी मिशनरी पत्रकारिता का भाव अभी भी जिंदा है। अनेक पत्रकारों ने अपने विचार और सिद्धांतों को जीवन की सुख-सुविधाओं से बड़ा माना। उसी के लिए जिए, संघर्ष में जीवन काटा पर न तो झुके, न टूटे, न समझौते किए। उनकी कलम न तो अटकी, न ही भटकी। ऐसे तपःपूतों ने विचारधारा के लोकव्यापीकरण में अनथक परिश्रम किया है। ऐसे अनाम योद्धाओं को याद करना जरूरी है, जो किसी बड़े मीडिया हाउस में बाजार के साथ चलते हुए बड़ा नाम और बड़ी सुविधाएं पा सकते थे। किंतु इन वैचारिक योद्धाओं ने अपनी विचार निष्ठा, ध्येय निष्ठा, राष्ट्रनिष्ठा को सर्वोपरि माना। यह विचार यज्ञ आज भी जारी है। नई पीढ़ी शायद इन कलमवीरों को उस तरह न जानती हो, किंतु उन्हें जानना अपनी आग तेज करने के लिए जरूरी है।

     इस कड़ी में सर्वाधिक खास योगदान है पांचजन्य का, जिसने राष्ट्रीय भावधारा की पत्रकारिता की अलख जगाई। उसके यशस्वी संपादकों की श्रृखंला में सर्वश्री अटलबिहारी वाजपेयी, राजीव लोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरुप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरूण विजय, बलदेवभाई शर्मा, जगदीश उपासने, हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। राष्ट्रधर्म,स्वदेश, तरूण भारत, साधना, हिंदुस्तान समाचार के संपादकों की गौरवशाली परंपरा भी राष्ट्रीय चेतना को विस्तारित करती रही है। नारद जयंती के मौके पर कुछ ऐसे साधक पत्रकारों को याद करना जरूरी है, जिनके द्वारा स्थापित परंपराओं और मूल्यनिष्ठा के आदर्श से वर्तमान पत्रकारिता को भी संबल मिल सकता है। साथ ही नई पीढ़ी को मूल्याधारित पत्रकारिता का सबक भी।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी दादा साहब आप्टे


दादा साहब आप्टे

   दादा साहब आप्टे उपाख्य शिवराम शंकर आप्टे ने परमपूज्य गुरू जी की भावनानुसार हिंदुस्तान समाचार जैसी बहुभाषी समाचार एजेंसी की स्थापना की। यह एक सहकारी समिति थी। 19 मई,1905 को गुजरात के बड़ोदरा में जन्में दादा साहब जब विधि की पढ़ाई करने मुंबई आए तो आपने भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान के.एम.मुँशी का सानिध्य प्राप्त किया। इसके बाद वे लियो प्रेस से जुड़े। 1939 के आसपास आप संघ के संपर्क में आए और राष्ट्र ही उनके लिए सर्वोपरि हो गया। हिंदुस्तान समाचार की स्थापना और उसके विस्तार में  उन्होंने आपने अपने आपको झोंक दिया। इस प्रकल्प में संघ के अनेक प्रचारक जुड़े जिनमें बापूराव लेले, नारायण राव तर्टे, बालेश्वर अग्रवाल,अशोक पंडित के नाम प्रमुख हैं। आप्टे जी ने राष्ट्रीय स्तर पर इसके विस्तार और तटस्थता व गुणवत्तापूर्ण समाचारों के प्रेषण के लिए जो योजनाएं बनाई उसके यह समाचार एजेंसी मीडिया क्षेत्र की अनिवार्य आवश्यक्ता बन गयी। पत्रकारिता के क्षेत्र में किसी भी सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन की प्रेरणा से चलने वाली इस एजेंसी ने मूल्य आधारित और वस्तुनिष्ठ पत्रकारिता की परंपरा को स्थापित किया। यह एजेंसी आज भी अपने स्थापित परंपरागत मूल्यों के साथ काम कर रही है। दादा साहब आप्टे एक अनाम योद्धा की तरह काम करते रहे। बाद में दिनों में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद की संकल्पना और उसकी स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे एक लेखक, पत्रकार, चित्रकार,यायावर, प्राचीन भारतीय वांग्मय के ज्ञाता होने के साथ अप्रतिम संगठनकर्ता भी थे। 10 अक्टूबर,1985 को इस महान प्रतिभा का निधन हो गया।

क्रांतिकथाओं के सर्जक वचनेश त्रिपाठी


वचनेश त्रिपाठी

     क्रांतिकारियों के इतिहास और उनके गौरव के व्याख्याकार रहे श्री वचनेश त्रिपाठी का जन्म 24 जनवरी,1914 को हरदोई(उप्र) के संडीला में हुआ था। सिर्फ 12 वीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी वचनेश जी बहुत प्रतिभावान और स्वाध्यायी थे।1935 में मात्र 15 वर्ष की आयु में मैनपुरी केस के फरार क्रांतिकारी देवनारायण भारतीय से उनका संपर्क हुआ और वे राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। बालामऊ जंक्शन पुलिस चौकी लूटने के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया। पं. रामप्रसाद बिस्मिल के दल में काम करते हुए साथियों के साथ मिलकर 1942 में भूमिगत पत्र ‘चिनगारी’ निकाला, उसका संपादन भी किया। श्री अटलबिहारी वाजपेयी जब संडीला में संघ के विस्तारक होकर आए तो वचनेश जी के घर पर ही रहते थे। दोंनों में प्रगाढ़ मैत्री हो गयी। लखनऊ से राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और स्वदेश का प्रकाशन का कार्य अटलजी के जिम्मे आया, उन्होंने वचनेश जी को पत्रकारिता से जोड़ दिया। 1960 में वचनेश जी तरूण भारत के संपादक बने। 1967 से 1973 तथा 1975 से 1984 तक वे राष्ट्रधर्म के संपादक रहे। 1973 से 75 तक वे पांचजन्य के संपादक रूप में दायित्व निर्वहन करते रहे। वचनेश जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साहित्य की हर विधा में उन्होंने काम किया और विपुल लेखन किया। बावजूद इसके क्रांतिकारियों की वीरगाथाओं में उनकी विशेष रूचि थी, अनेक क्रांतिकारियों से उनका संपर्क भी था। 2001 में उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया गया। बड़ा बाजार कुमार सभा पुस्तकालय, कोलकाता ने उन्हें हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान से सम्मानित किया। 30 नवंबर,2006 को लखनऊ में उनका देहांत हो गया।

प्रसिद्धि परांगमुखता के विरल उदाहरण मामाजी

माणिकचंद्र वाजपेयी

   मामाजी के नाम से प्रख्यात श्री माणिकचंद्र वाजपेयी त्याग, अप्रतिम सादगी, समर्पण और प्रतिबद्धता के विरल उदाहरण हैं। उन सा होना कठिन है। 7 अक्टूबर,1919 को आगरा जिले के  बटेश्वर गांव में जन्में मामा जी ने लगभग चार दशक तक पत्रकारिता की। भिंड के एक अखबार देशमित्र से प्रारंभ उनकी पत्रकारिता को राष्ट्रीय पहचान स्वदेश, इंदौर के प्रकाशन के साथ मिली। 1966 में स्वदेश का प्रकाशन इंदौर से प्रारंभ हुआ तो मामा जी उसके संपादक बने। इसके बाद 1971 में ग्वालियर स्वदेश और स्वदेश के अन्य संस्करणों के प्रधान संपादक होने का श्रेय उन्हें प्राप्त है। आपातकाल में वे इंदौर जेल में 19 महीने बंद रहे किंतु उनकी कलम रूकी नहीं, वे जेल से ही संपादकीय लिखकर भेजते रहे।उन्होंने ज्योति जला निज प्राण की, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली अग्निपरीक्षा, आपात् कालीन संघर्ष गाथा,कश्मीर का कड़वा सच, पोप का कसता शिकंजा,भारतीय नारी स्वामी विवेकानंद की दृष्टि में, ज्योतिपथ, स्वामी विवेकानंद जीवन और विचार, मध्यभारत की संघ गाथा जैसी पुस्तकें लिखीं। आप इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे। 2002 में जब माननीय अटलजी प्रधानमंत्री थे, तब स्वदेश (इंदौर) की योजना से दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर मामाजी का अभिनंदन समारोह ‘अमृत महोत्सव’ का आयोजन किया गया। उस दिन भार-विभोर होकर छल-छलाती आँखों से भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भरी सभा में मामाजी के चरणस्पर्श करने की अनुमति माँगी, तब वहाँ स्पंदित कर देने वाला वातावरण बन गया। भारत की राजसत्ता त्याग, समर्पण और निष्ठा के पर्याय साधु स्वभाव के मामाजी के सामने नतमस्तक थी। दिल्ली में आयोजित मामा जी जन्मशती वर्ष के समापन कार्यक्रम में पूज्य सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने कहा, किसी ने पूछा कि मामा जी कौन हैं? फिर भागवत जी ने कहा -माणिक चंद्र वाजपेयी कौन हैं? यही उनका सबसे बड़ा सर्टिफिकेट है। उनके इसी समर्पण के कारण आज हम उनके बारे में बातचीत कर रहे हैं। बीज मिट्टी में मिलकर वृक्ष खड़ा कर देता है। ऐसे ही थे मामाजी। वे जानते थे कि विश्व को अपना बनाना है तो पहले भारत को अपना बनाना होगा। इसके लिए भारतीयों को खड़ा करना होगा होगा।”

साधक महापुरुष माधव गोविंद वैद्य

माधव गोविंद वैद्य

    श्री मा.गो.वैद्य हमारे समय के साधक महापुरुष थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था में जिस विचार को स्वीकारा अपनी सारी  गुणसंपदा उसे ही समर्पित कर दी। श्री वैद्य उन लोंगों मे थे, जिन्होंने पहले संघ को समझा और बाद में उसे गढ़ने में अपनी जिंदगी लगा दी।श्री वैद्य संपादक और लेखक के रुप में बहुत प्रखर थे। उनकी लेखनी और संपादन प्रखरता का आलम यह था कि तरूण भारत मराठी भाषा का एक लोकप्रिय दैनिक बना। उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व  में अनेक पत्रकारों का निर्माण किया और पत्रकारों की एक पूरी मलिका खड़ी की। जीवन के अंतिम दिनों तक वे लिखते-पढ़ते रहे, उनकी स्मृति विलक्षण थी।वे स्वभाव से शिक्षक थे, जीवन से स्वयंसेवक और वृत्ति(प्रोफेशन) से पत्रकार थे। लेकिन हर भूमिका में संपूर्ण। कहीं कोई अधूरापन और कच्चापन नहीं। सच कहने का साहस और सलीका दोनों उनके पास था। वे एक ऐसे संगठन के ‘प्रथम प्रवक्ता’ बने, जिसे बहुत ‘मीडिया फ्रेंडली’ नहीं माना जाता था। वे ही ऐसे थे जिन्होंने प्रथम सरसंघचालक से लेकर वर्तमान सरसंघचालक की कार्यविधि के अवलोकन का अवसर मिला। उनकी रगों में, उनकी सांसों में संघ था। अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रणयन कर श्री वैद्य ने राष्ट्रीय भावधारा को एक बौद्धिक आधार दिया। 11 मार्च,1923 को जन्में श्री वैद्य ने 97 साल की आयु में 19 दिसंबर,2020 को नागपुर में आखिरी सांसें लीं। वे बहुत मेधावी छात्र थे,बाद के दिनों  में वे ईसाई मिशनरी की संस्था हिस्लाप कालेज, नागपुर में ही प्राध्यापक भी रहे।

एक आत्मविलोपी व्यक्तित्व रामशंकर अग्निहोत्री


रामशंकर अग्रिहोत्री

    प्रखर चिंतक, पत्रकार और संपादक श्री रामशंकर अग्निहोत्री का जन्म  4 अप्रैल, 1926 को मप्र के सिवनी मालवा हुआ। आरंभ में संघ के प्रचारक रहे श्री अग्निहोत्री बाद के दिनों में पत्रकारिता क्षेत्र में गए। 1951-52 में युगधर्म, नागपुर से जुड़कर उन्होंने पत्रकारिता प्रारंभ की।  पांचजन्य, राष्ट्रधर्म, तरूण भारत, हिंदुस्थान समाचार, आकाशवाणी, युगवार्ता वे जहां भी रहे राष्ट्रवाद की अलख जगाते रहे। उनका खुद का कुछ नहीं था। देश और उसकी बेहतरी के विचार उनकी प्रेरणा थे। राजनीति के शिखर पुरूषों की निकटता के बावजूद वे कभी विचलित होते नहीं दिखे। संपर्कों के मामले में उनका कोई सानी न था। पांचजन्य के प्रबंध संपादक, राष्ट्रधर्म के संपादक, लगभग एक दशक नेपाल में समाचार एजेंसी के संवाददाता, हिंदुस्थान समाचार के प्रधान संपादक और अध्यक्ष जैसे पदों पर रहे। अनेक देशों की यात्राएं की, विपुल लेखन किया। मध्यप्रदेश की सरकार ने उन्हें अपने प्रतिष्ठित माणिकचंद्र वाजपेयी सम्मान से अलंकृत किया था और उस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में पूर्व सरसंघचालक पूज्य श्री के.सी.सुदर्शन जी ने स्वीकार किया कि वे श्री अग्निहोत्री के ही बनाए स्वयंसेवक हैं और उनके एक वाक्य – “संघ तुमसे सब करवा लेगा” ने मुझे प्रचारक निकलने की प्रेरणा दी। यह एक ऐसा स्वीकार था जो रामशंकर अग्निहोत्री की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता को जताने के लिए पर्याप्त था। उनके बारे में पूर्व सांसद एवं पत्रकार स्व. राजनाथ सिंह कहा करते थे- वे आत्मविलोपी व्यक्तित्व हैं। जिन्हें पीछे रहकर काम करना आता है। अपने जीवन के अंतिम समय में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) में स्थापित शोधपीठ के अध्यक्ष रहे। 7 जुलाई,2010 को रायपुर में उनका निधन हो गया।

इतिहास के व्याख्याकार देंवेंद्र स्वरूप

देवेंद्र स्वरूप

 इतिहास, संस्कृति तथा भारतबोध के अप्रतिम व्याख्याकार और लेखक डा. देवेंद्र स्वरूप का जन्म 30 मार्च,1926 को मुरादाबाद(उप्र) के कांठ कस्बे में हुआ। 1947 से 1960 तक संघ के प्रचारक रहे श्री स्वरूप ने चेतना साप्ताहिक(वाराणसी) से पत्रकारिता प्रारंभ की। 1958 से सह-संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते पांचजन्य से पूरी जिंदगी जुड़े रहे। 1960 से 1963 तक वे स्वतंत्र भारत (लखनऊ) में उपसंपादक भी रहे। दीनदयाल शोध संस्थान निदेशक व उपाध्यक्ष के रूप में आपने काम किया। संस्थान की शोध पत्रिका मंथन का संपादन लंबे समय तक संपादन किया। सन् 1964 से 1991 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कालेज में इतिहास का अध्यापन करते हुए आपने विपुल लेखन किया। अपने लंबे पत्रकारीय एवं अकादमिक जीवन में आपने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें और पांच हजार से अधिक लेख लिखे। एक राष्ट्रऋषि और साधक की तरह उनका पूरा जीवन संघ विचार को समर्पित रहा। श्री यादवराव देशमुख ने उनके बारे में ठीक ही कहा था- देवेंद्र स्वरूप भारतीय इतिहास तथा संस्कृति के गहन अध्येता हैं। यदि हम कहें कि वे राष्ट्रवादी पत्रकारिता पत्रकारिता के स्तंभ हैं तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी।  14 जनवरी,2019 को उनका दिल्ली में निधन हो गया। उनकी इच्छानुसार उनका देहदान सफदरजंग अस्पताल को किया गया।

यशस्वी संपादक,श्रेष्ठ शिक्षाविद् राधेश्याम शर्मा


श्री राधेश्याम शर्मा

राजस्थान के एक गांव जोनाइचकला में 01 मार्च,1934 को जन्में श्री राधेश्याम शर्मा अपने विद्यार्थी जीवन में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में पढ़ते हुए ही पत्रकारिता से जुड़ गए थे। वे वाराणसी से जनसत्ता के लिए समाचार भेजा करते थे। 1956  से उन्होंने पूरी तरह अपने आपको पत्रकारीय कर्म में समर्पित कर दिया। उसके बाद मध्यप्रदेश ,पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली की पत्रकारिता में उन्होंने अपने उजले पदचिन्ह छोड़े। युगधर्म के एक नगर प्रतिनिधि से काम प्रारंभ कर वे उसके विशेष संवाददाता और फिर संपादक बने। 6 साल युगधर्म(जबलपुर) के संपादक रहने के बाद में वे दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण अखबार के संपादक भी रहे। इतने बड़े अखबार के संपादक पद पर रहते हुए ही उन्होंने उसे छोड़कर मीडिया शिक्षा के लिए खुद को समर्पित कर दिया और 1990 में भोपाल में स्थापित हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पहले महानिदेशक (अब पदनाम कुलपति है)बने। इसके बाद वे हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक भी बने। अपनी पूरी जीवन यात्रा में उन्होंने कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया। पत्रकारीय जीवन में उन्होंने विविध क्षेत्रों के लोगों से लंबे इंटरव्यू किए। मुलाकातें कीं। किंतु उन्हें दादा माखनलाल चतुर्वेदी के साथ उनकी भेंटवार्ता सबसे प्रेरक लगती थी। वे उसे बार-बार याद करते थे। इस भेंट में माखनलाल जी ने उनसे कहा था – “पत्रकार की कलम न अटकनी चाहिए, न भटकनी चाहिए, न रुकनी चाहिए, न झुकनी चाहिए।”  राधेश्याम जी ने इसे अपना जीवन मंत्र बना लिया। 28 दिसंबर,2019 को उनका पंचकूला में निधन हो गया।

अभिव्यक्ति के खतरे उठाते रहे हुसैन


मुजफ्फर हुसैन

 श्री मुजफ्फर हुसैन एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने बिना बड़े अखबारों के संपादक जैसी कुर्सियों के भी, सिर्फ कलम के दम पर अपनी बात कही और देश ने उन्हें बहुत ध्यान से सुना। 20 मार्च,1940 को नीमच में जन्में पद्मश्री से अलंकृत श्री मुजफ्फर हुसैन जैसा मसिजीवी होना कठिन था। सत्ता के शिखर पुरुषों से निकटता के बाद भी उनसे एक मर्यादित दूरी रखते हुए, उन्होंने सिर्फ कलम के दम पर अपनी जिंदगी चलाई। नौकरी बहुत कम की। बहुत कम समय देवगिरि समाचार, औरंगाबाद के संपादक रहे। एक स्वतंत्र लेखक, पत्रकार और वक्ता की तरह वे जिए और अपनी शर्तों पर जिंदगी काटी। वे चाहते तो क्या हो सकते थे, क्या पा सकते थे यह कहने की आवश्यक्ता नहीं है। लेकिन उन्हें पता था कि वे एक लेखक हैं, पत्रकार हैं और उनकी अपनी सीमाएं हैं। भारतीय मुस्लिम समाज को भारतीय नजर से देखने और व्याख्यायित करने वाले वे विरले पत्रकारों में थे। अरब देशों और वैश्विक मुस्लिम दुनिया को भारतीय नजरों से देखकर अपने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में समाचार पत्रों में विश्लेषण प्रस्तुत करने वाले वे ही थे। वे भारतीय मुस्लिमों को राष्ट्रीय प्रवाह में शामिल करने के स्वप्न देखते थे। वे मुस्लिम समाज में भारतीयता का भाव भरने के लिए अभिव्यक्ति के खतरे भी उठाते रहे। उन पर हुए हमले, विरोधों ने उन्हें अपने विचारों के प्रति अडिग बनाया। वे वही कहते,लिखते और बोलते थे जो उनके अपने मुस्लिम समाज और राष्ट्र के हित में था। उनके द्वारा लिखित ‘इस्लाम और शाकाहार’, ‘मुस्लिम मानस शास्र’, ‘दंगों में झुलसी मुंबई’, ‘अल्पसंख्याक वाद – एक धोखा’, ‘इस्लाम धर्म में परिवार नियोजन’, ‘लादेन, दहशतवाद और अफगानिस्तान’, ‘समान नागरी कायदा’ आदि पुस्तकें चर्चा में रहीं। 13 फरवरी,2018 को मुंबई में उनका निधन हो गया।

संघ पर लगे तीनों प्रतिबंधों में जेल गए वाजपेयी


भगवतीधर वाजपेयी

राष्ट्रीय भावना से अनुप्राणित होकर पत्रकारिता में आए श्री भगवतीधर वाजपेयी ने मध्यप्रदेश और विदर्भ की पत्रकारिता में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बाद वे लखनऊ में ' स्वदेश' से पत्रकारिता का पहला पाठ सीखते हैं, जिसमें उन्हें पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख जैसी महान विभूतियों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। आर्थिक संकटों से अखबार बंद होने के बाद वे अटल जी के साथ दिल्ली आकर 'दैनिक वीर अर्जुन' में काम करने लगे।  बाद के दिनों में अटल जी तो पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ हो गए और भगवतीधर जी ने राष्ट्रवादी पत्रकारिता को अपने जीवन का मिशन बनाते हुए नागपुर से प्रकाशित 'दैनिक युगधर्म' के संपादकीय दायित्व को संभाला। युगधर्म (नागपुर-जबलपुर-रायपुर) के संपादक के रूप में उनकी पत्रकारिता ने राष्ट्रीय चेतना का विस्तार किया। 1957 में नागपुर में युगधर्म के संपादक के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने 1990 तक सक्रिय पत्रकारिता करते हुए युवा पत्रकारों की एक पूरी पौध तैयार की। उनकी समूची पत्रकारिता में मूल्यनिष्ठा, भारतीयता, संस्कृति के प्रति अनुराग और देशवासियों को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने की भावना दिखती है। 2006 में उन्हें मध्यप्रदेश शासन द्वारा माणिकचन्द्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी एक विचार के लिए लगा दी और संघर्षपूर्ण जीवन जीते हुए भी घुटने नहीं टेके। आपातकाल में न सिर्फ उनके अखबार पर ताला डाल दिया गया, वरन उन्हें जेल भी भेजा गया। संघ पर लगे तीनों प्रतिबंधों (वर्ष 1948, 1975 और 1992) में कारागृह की यात्रा करने वाले वे बिरले लोगों में से थे। श्री वाजपेयी का पिछले दिनों 7 मई,2021 को जबलपुर में निधन हो गया।

पत्रकारिता के शिक्षक डा. नंद किशोर त्रिखा


डा. नंदकिशोर त्रिखा

   नवभारत टाइम्स, लखनऊ के संपादक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता विभाग के संस्थापक अध्यक्ष, एनयूजे के माध्यम से पत्रकारों के हित की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता जैसी डा. नंदकिशोर त्रिखा की अनेक छवियां थीं। लेकिन वे हर छवि में संपूर्ण थे। पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में उनके छोटे से कार्यकाल की अनेक यादें भोपाल में बिखरी पड़ी हैं। समयबद्धता और कक्षा में अनुशासन को उनके विद्यार्थी आज भी याद करते हैं। ये विद्यार्थी मीडिया में शिखर पदों पर हैं लेकिन उन्हें उनके बेहद अनुशासनप्रिय प्राध्यापक डा. त्रिखा नहीं भूले हैं। प्रातः 8 बजे की क्लास में भी वे 7.55 पर पहुंच जाने का व्रत निभाते थे। वे  ही थे, जिन्हें अनुशासित जीवन पसंद था और वे विद्यार्थियों से भी यही उम्मीद रखते थे। वे संपादक के रूप में व्यस्त रहे, किंतु समय निकालकर विद्यार्थियों के लिए पाठ्यपुस्तकें लिखते थे। उनकी किताबें हिंदी पत्रकारिता की आधारभूत प्रारंभिक किताबों  में से एक हैं। समाचार संकलन और प्रेस विधि पर लिखी गयी उनकी किताबें बहुमूल्य हैं। डॉ. त्रिखा छह वर्ष भारतीय प्रेस परिषद् के भी सदस्य और नैशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे । उन्होंने 1963 से देश के अग्रणी राष्ट्रीय दैनिक नवभारत टाइम्स में विशेष संवाददाता, वरिष्ठ सहायक-संपादक, राजनयिक प्रतिनिधि और स्थानीय संपादक के वरिष्ठ पदों पर कार्य किया । उससे पूर्व वे संवाद समिति हिन्दुस्थान समाचार के काठमांडू (नेपाल), उड़ीसा और दिल्ली में ब्यूरो प्रमुख और संपादक का दायित्व भी निभाया। 15 जनवरी,2018 को उनका दिल्ली में निधन हो गया।

आखिरी सांस तक लिखते रहे जयकृष्ण गौड़


जयकृष्ण गौड़

   जीवन की आखिरी सांस तक राष्ट्रभाव की पत्रकारिता करने वालों में एक प्रमुख नाम है श्री जयकृष्ण गौड़ का। 6 अगस्त,1944 को मप्र के राजगढ़ जिले सारंगपुर में जन्में श्री गौड़ इंदौर स्वदेश के संपादक, इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष,भाजपा-मप्र के मुखपत्र चैरेवेति के प्रधान संपादक रहे। स्वदेश(इंदौर) के नगर संवाददाता से लेकर वे उसके संपादक भी बने। 1977 में आपातकाल के दौरान वे मीसाबंदी भी रहे। बाल्यकाल से ही संघ की शाखा में उन्हें जो संस्कार मिले उसे उन्होंने पूरे जीवन निभाया। उच्च शिक्षा प्राप्त कर आपको शासकीय सेवा में काम करने का मौका मिला। यहां उनका मन रमा नहीं। शासकीय सेवा छोड़ वे स्वदेश से जुड़ गए। यहां श्री माणिकचंद्र वाजपेयी मामाजी के मार्गदर्शन में उन्होंने पत्रकारिता का ककहरा सीखा और खुद को स्वदेश के लिए समर्पित कर दिया। अनेक पुस्तकों का लेखन करते हुए राष्ट्रीय भाव के साहित्य को समृद्ध किया। बाद के दिनों में श्री गौड़ महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष, मप्र संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। 2010 उन्हें मप्र सरकार के माणिकचंद्र वाजपेयी सम्मान से अलंकृत किया गया। 14 अक्टूबर,2019 को भोपाल में उनका निधन हो गया।

    राष्ट्रीय भावधारा के ऐसे अनेक लेखकों, पत्रकारों ने हिंदी ही नहीं सभी भारतीय भाषाओं में अपना यशस्वी योगदान दिया है। अपनी राष्ट्रनिष्ठा और भारतप्रेम से भरे ये पत्रकार बिना किसी यश, पद, पुरस्कार और अन्य कामनाओं से लगातार लिखते रहे हैं, जूझते रहे हैं। उनकी सृजनयात्रा और उसके लिए उनका संघर्ष आज भी रोमांचित करता है। ऐसे तमाम अनाम योद्धाओं के बारे में ही कवि श्री रामकृष्ण श्रीवास्तव ने बहुत सार्थक पंक्तियां लिखीं हैं-

जो कलम सरीखे टूट गए पर झुके नहीं

यह दुनिया उनके आगे शीश झुकाती है।

जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गयी

वह तो मशाल की तरह उठाई जाती है।

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