-प्रो. संजय द्विवेदी
वे ही थे जो खिलखिलाकर मुक्त हंसी हंस सकते थे, खुद पर भी, दूसरों पर भी। भोपाल में उनका होना एक भरोसे और आश्वासन का होना था। ठेठ बुंदेलखंडी अंदाज उनसे कभी बिसराया नहीं गया। वे अपनी हनक, आवाज की ठसक, भरपूर दोस्ताने अंदाज और प्रेम को बांटकर राजपुत्रों के शहर भोपाल में भी एक नई दुनिया बना चुके थे, जो उनके चाहने वालों से भरी थी। 12 मई,2021 की सुबह जब वरिष्ठ पत्रकार श्री शिवअनुराग पटैरया ने अपनी कर्मभूमि रहे इंदौर शहर में आखिरी सांसें लीं तो भोपाल बहुत रीता-रीता हो गया। मेरे जैसे लोग जो छात्र जीवन से उनके संरक्षण और अभिभावकत्व में ही इस शहर और यहां की पत्रकारिता को थोड़ा-बहुत जान पाए, उन सबके लिए उनका न होना एक ऐसा शून्य रच रहा है, जिसे भर पाना कठिन है। 1958 में मप्र के छतरपुर जिले में जन्में श्री पटैरया की समूची जीवन यात्रा रचना, सृजन और संघर्ष का उदाहरण है।
भोपाल की पत्रकारिता अनेक दिग्गज
नामों से भरी पड़ी है। लेकिन शिवअनुराग पटैरया ही ऐसे थे जिनके पास कोई भी मुक्त
होकर जा सकता। वे किसी को उसके पद और उपयोगिता के आधार पर नहीं आंकते थे। तमाम
नौजवानों को उन्होंने जैसा स्नेह,संरक्षण और अपनापन दिया, वह महानगरों में दुर्लभ
ही है। वे धुन के धनी थे। छतरपुर जैसी छोटी जगह से आकर जिस आत्मविश्वास से
उन्होंने इंदौर, भोपाल और मुंबई में झंडे गाड़े वह साधारण नहीं था। एक आंचलिक
पत्रकार से संपादक का शिखर पाना सबके बूते की बात नहीं होती। किंतु वे बने और बाद
में उन्होंने खुद को एक लेखक और शोधकर्ता के रूप में भी साबित किया।
लेखन से बनाई खास जगहः
उनमें कुछ नया करने की बेचैनियां
मैंने हमेशा महसूस की। वे नक्सलवाद पर किताब लिखने के बाद, अचानक युद्ध संवाददाता
के प्रशिक्षण के लिए चले जाते हैं। फिर युद्ध की रिपोर्टिंग पर किताब लिखने लगते
हैं। उससे मुक्त होकर वे मध्यप्रदेश
संदर्भ जैसी भारी भरकम और परिश्रम से भरी किताब के लिए संदर्भ जुटाने लगते
हैं। अलग राज्य बना तो छत्तीसगढ़ का भी संदर्भ ग्रंथ रचते हैं। वे अचानक पानी के
मुद्दे पर काम करना प्रारंभ करते हैं और ‘मप्र की जल निधियां’, ‘मप्र की गौरवशाली जल परंपरा’ जैसी दो पुस्तकें लिखते
हैं। सही मायने में उनकी यही रचनाशीलता और सतत सक्रियता उनकी शक्ति थी। वे लिखकर
ही मुक्त हो सकते थे। अपनी पत्रकारीय व्यस्तताओं के बाद भी वे 25 से अधिक किताबें
हमें सौंपकर जा चुके हैं। जिनमें ज्यादातर संदर्भ ग्रंथ की तरह हैं। इसके अलावा
उन्होंने प्रख्यात पत्रकार राजेंद्र माथुर पर मोनोग्राफ भी लिखा। उन्हें राजेंद्र
माथुर सम्मान,मेदिनी पुरस्कार,डा.शंकरदयाल शर्मा अवार्ड जैसे सम्मानों से अलंकृत
किया गया था। श्री पटैरया न सिर्फ पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में बल्कि
मध्यप्रदेश के सार्वजनिक जीवन में भी सार्थक हस्तक्षेप रखते थे। उनके मार्गदर्शन
में पत्रकारों की एक लंबी पूरी पीढ़ी तैयार हुई। पत्रकारिता शिक्षण-प्रशिक्षण में
उनकी गहरी रूचि थी। इसलिए वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता
विश्वविद्यालय में अकादमिक कार्यों में सहयोग हेतु हमेशा तत्पर रहते। सप्रे
संग्रहालय की गतिविधियों में भी उनकी सक्रियता दिखती थी।
आत्मीय पिता, पति और दोस्तः
पटैरया जी सबसे खास बात यह थी वे
बहुत सार्वजनिक व्यक्ति होने के साथ-साथ बेहद पारिवारिक व्यक्ति भी थे। वे बहुत मीठा बोलते थे, परिवार में भी
सब ऐसा ही करते थे। उनकी पत्रकारिता में, टीवी डिबेट में उनका खरा-खरा बोलना निजी
जिंदगी में नहीं दिखता। उनका कोई विरोधी नहीं था। वे सबके प्रति आत्मीय भाव रखते
और मधुरता से मिलते। घर में पहुंचने पर उनका आतिथ्य आपको द्रविद कर देता। मैंने
अपनी आंखों से देखा है, वे अपने बेटी और बेटे को कितना समय देते और कितना स्नेह
करते। भाभी के प्रति सम्मान और प्रेम देखते ही बनता। अपनी खूब व्यस्तताएं भी
उन्हें परिवार की जरूरतों से अलग नहीं कर पातीं। अपने घर के बुजुर्गों, भाई और
उसका परिवार। सारा कुछ उनकी जिंदगी था। दोस्तों के साथ भी उनका यही व्यवहार था। वे
आपकी जरूरत पर आपके साथ होते। रिश्तों को जीना और उन्हें निभाना वे रोज अपने आचरण
से सिखाते थे।
मैं पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद लगभग चौदह साल
रायपुर, बिलासपुर और मुंबई में पत्रकारिता करता रहा। 2009 में भोपाल लौटा तो भी
उनका वही व्यवहार, प्रेम और सहजता कायम थी। इस बीच वे कई अखबारों के संपादक रह
चुके थे। भोपाल के सार्वजनिक जीवन में उनकी एक बड़ी जगह थी। किंतु उनका दोस्ताना
व्यवहार और दिल जीत लेने की कोशिशें कम नहीं होतीं थीं। 2009 से लगातार मेरे
जन्मदिन पर वे बुके और मिठाई लेकर आते जरूर। एक बार वे घर आ गए और मैं हबीबगंज
स्टेशन पर लोकगायक पद्मश्री से अलंकृत श्री भारती बंधु को लेने स्टेशन गया
था।दूसरा व्यक्ति होता तो चीजें घर छोड़कर जाता, किंतु वे ऐसा कैसे कर सकते थे। वे
हबीबगंज स्टेशन पर बुके के साथ खड़े थे। साथ गए हमारे विद्यार्थियों को भी बहुत
आश्चर्य हुआ कि पटैरया जी रिश्तों को कैसे निभाते थे। मैं भोपाल में शहर के आखिरी
छोर सलैया में रहता हूं। एक बार वे हमारे घर एक पूजा में आ रहे थे। रात को रास्ता
खोजते भटक गए, फिर भी देर रात आए। हमें खुशी हुई। मेरी पत्नी भूमिका और बिटिया को
अपना आशीर्वाद दिया और कहा “भूमिका जी इस शहर ने संजय को संजयजी होते हुए देखा है। इसकी
मुझे बहुत खुशी है।” वे आत्मीयता से सराबोर थे। रास्ता भटकने की थकान गायब थी। कहा
महाराज “अब कुछ खिला भी दो, जंगल में तो बस ही गए हो।”
सत्ता से आलोचनात्मक विमर्श का रिश्ताः
मैंने देखा राजपुत्रों से पटैरया जी
की बहुत बनती है। कांग्रेस- भाजपा दोनों दलों के शीर्ष नेताओं से उनका याराना था।
उनके पास खबरें बहुत होती थीं। एक तरह से वे मध्यप्रदेश की राजनीति का बेहद समृध्द
संदर्भ थे। उनकी जिंदगी और पत्रकारिता इन्हीं जीवंत रिश्तों से बनी और बुनी गई थी।
किंतु रिश्तों को उन्होंने कभी बाजार में इस्तेमाल नहीं किया। इन दिनों टीवी
डिबेट्स का वे जरूरी चेहरा बन गया थे, किंतु उनकी आवाज सच बोलते हुए न तो कभी
कांपती थी, न ही उस वक्त वे किसी तरह का दोस्ताना निभाते थे। सच को, उसके सही
संदर्भों के साथ व्यक्त करना उनकी शक्ति थी। इसे वे जानते थे। लेखन में भी उनका यह
संतुलन कायम था। अपनी पत्रकारिता में राजेंद्र माथुर, अच्युतानंद मिश्र के प्रभाव
को वे गहरे महसूस करते थे। उनकी समूची पत्रकारिता इसी सत्यान्वेषण से बनी थी।
दिल्ली से लौटकर जब भोपाल जाऊंगा, मेरी सुबहें और शामें पटैरया जी के बिना कैसी
बेरौनक होंगीं, सोचकर दिल कांप जाता है। मेरे अभिभावक और आत्मीय बड़े भाई को मेरी
भावभीनी श्रद्धांजलि।
बहुत सुंदर विवरण
जवाब देंहटाएंसुन्दर विवरण सर
जवाब देंहटाएंइस महामारी ने हमसे बहुत लोगों का साथ छीन लिया है, बहुत ही दुखद है ऐसे महान सख्शियतों का जाना।
जवाब देंहटाएंइस महामारी ने हमसे बहुत लोगों का साथ छीन लिया है, बहुत ही दुखद है ऐसे महान सख्शियतों का जाना।
जवाब देंहटाएंGeeta Kashyap
शिव अनुराग पटैरिया के जाने को जिस प्रकार आपने अंकित किया इससे पता चलता है आपका मन कितना कोमल है और कैसा अनुभव कर रहे होंगे। जहां चहुंओर निन्दा की कोसी बह रही हो वहां आपने की-बोर्ड को सृजन संसार बना दिया है। यह निश्चित तौर पर समाज को दिशा देता है
जवाब देंहटाएंशानदार व्यक्तित्व एवं कृतत्त्व. शिव अनुराग जी के व्यकित्व का अति यतार्थ चित्र.
जवाब देंहटाएंबहुत दुःखद.