इस फोटो को गौर से देखिए. एक नौजवान जिसकी आंखों में भविष्य के सपने और मासूमियत है। ये हैं श्री दिनेश पटेल, नक्सली हमले में शहीद हुए प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के बेटे। अपने पिता के साथ दिनेश भी नक्सली हमले में शहीद रहे। आखिर दिनेश का दोष क्या था। वे किसी तरह की राजनीति का हिस्सा भी नहीं थे। राज्य की हिंसा पर हाय-हाय करने वाले स्वामी अग्निवेश, बहन अरूंधती राय और मानवाधिकार वादी बताएंगें कि आखिर दिनेश पटेल जैसे युवाओं या श्री नंदकुमार पटेल जैसे कृषक परिवार से आने वाले नायकों की हत्या कहां का जनयुद्ध् है। व्यापारियों से लेवी वसूलकर भ्रष्टाचार के धन पर ऐश करने वाले नक्सली नेता सही मायने में नरभक्षी हैं। इस हिंसक अभियान का अंत बहुत बुरा होगा। पर न जाने कितने युवाओं की जान लेने के बाद।
दिनेश पटेल से मेरा संपर्क उनके पिता के नाते ही आया। एक लायक पुत्र की तरह वे अपने पिता को संभालते थे, हमारे जैसे उनके न जाने कितने संपर्कियों को भी। अभी हाल में ही परिवार में छोटे भाई की शादी थी, दिनेश जी का फोन आया बोले भोपाल से आपको सपरिवार आना है। बहुत आग्रह किया। शादी का कार्ड भेजने पता लिया। बीच में रायपुर पहुंचा तो बंगले पर आने को कहा और अपने चचेरे भाई संजय पटेल से फोन पर कहा कि संजय द्विवेदी आ रहे हैं, उन्हें उनका कार्ड हाथ में देना। संजय पटेल मिले बात हुयी। शादी में आने का आग्रह भी। भोपाल आया तो एक कार्ड पहले से विश्वविद्यालय के पते पर आ चुका था। अपने पिता के चाहनेवालों की इतनी चिंता करने वाले दिनेश बहुत कम समय में मेरे बहुत करीब आ गए थे। एक बड़े पिता के पुत्र होने का गुमान नहीं, बल्कि विनम्रता और जिम्मेदारी उनमें दिखती थी। उनकी हत्या से नक्सलियों को क्या मिला नहीं कह सकता, पर मैने एक मित्र और छोटा भाई खोया है। दिनेश जैसी पवित्र आत्मा के हत्यारों को समय जरूर सजा देगा, ये कायर, वोट और नोट की भिखारी राजनीति भले उन्हें माफ कर दे। दिनेश तुम्हें भूलना कठिन है। तुम्हारी फोन पर बेहद विनम्र और गहरी आवाज गूंज रही है- "भैया पापा भोपाल पहुंच रहे हैं-सर्किट हाउस में रूकेंगे, आप चाहें तो उनसे मिल लेना।"
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