भोपाल, 1 दिसंबर, 2011। युवा पत्रकार एवं लेखक संजय द्विवेदी ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के सवाल पर कांग्रेस महासचिव श्री राहुल गांधी के नाम एक पत्र भेज कर इस अन्याय को रोकने की मांग की है। संजय ने अपने पत्र के महात्मा गांधी लिखित ‘हिंद स्वराज्य’ की प्रति भी श्री गांधी को भेजी है। अपने पत्र में संजय द्विवेदी ने केंद्र की सरकार पर जनविरोधी आचरण के अनेक आरोप लगाते हुए राहुल गांधी से आग्रह किया है कि वे इस ऐतिहासिक समय में देश की कमान संभालें अन्यथा देश के हालात और बदतर ही होंगें। अपने पत्र में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद दिलाते हुए संजय द्विवेदी ने साफ लिखा है कि महंगाई के सवाल पर हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के पास जादू की छड़ी नहीं हैं, किंतु अमरीका के पास ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है कि जिसके चलते हमारी सरकार के मुखिया वही कहने और बोलने लगते हैं जो अमरीका चाहता है। क्या हमारी सरकार अमरीका की चाकरी में लगी है और उसके लिए अपने लोगों का कोई मतलब नहीं है? प्रस्तुत है इस पत्र का मूलपाठ-
प्रति,
श्री राहुल गांधी
महासचिव
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी,
12, तुगलक लेन, नयी दिल्ली-110011
आदरणीय राहुल जी,
सादर नमस्कार,
आशा है आप स्वस्थ एवं सानंद होंगें। देश के खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की मंजूरी देने के सवाल पर देश भर में जैसी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उससे आप अवगत ही होंगे। आपकी सरकार के प्रधानमंत्री आदरणीय मनमोहन सिंह जी अपने पूरे सात साल के कार्यकाल में दूसरी बार इतनी वीरोचित मुद्रा में दिख रहे हैं। आप याद करें परमाणु करार के वक्त उनकी देहभाषा और भंगिमाओं को, कि वे सरकार गिराने की हद तक आमादा थे। उनकी यही मुद्रा इस समय दिख रही है। निश्चय ही अमरीका की भक्ति का वे कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहते। किंतु सवाल यह है कि इन सात सालों में देश में कितने संकट आए, जनता की जान जाती रही, वह चाहे आतंकवाद की शक्ल में हो या नक्सलवाद की शक्ल में, बाढ़-सूखे में हो, किसानों की आत्महत्याएं या इंसीफ्लाइटिस जैसी बीमारियों से मरते लोगों पर, हमारे प्रधानमंत्री की इतनी मुखर संवेदना कभी व्यक्त नहीं होती।
अमरीकी जादू की छड़ीः
महंगाई के सवाल पर हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के पास जादू की छड़ी नहीं हैं, किंतु अमरीका के पास ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है कि जिसके चलते हमारी सरकार के मुखिया वही कहने और बोलने लगते हैं जो अमरीका चाहता है। क्या हमारी सरकार अमरीका की चाकरी में लगी है और उसके लिए अपने लोगों का कोई मतलब नहीं है? आखिर क्या कारण है कि जिस सवाल पर लगभग पूरा देश, देश के प्रमुख विपक्षी दल, आम लोग और कांग्रेस के सहयोगी दल भी सरकार के खिलाफ हैं, हम उस एफडीआई को स्वीकृति दिलाने के लिए कुछ भी करने पर आमादा हैं। एक दिसंबर, 2011 को भारत बंद रहा, संसद पिछले कई दिनों से ठप पड़ी है। क्या जनता के बीच पल रहे गुस्से का भी हमें अंदाजा नहीं है? क्या हम एक लोकतंत्र में रह रहे हैं ? आखिर हमारी क्या मजबूरी है कि हम अपने देशी धंधों और व्यापार को तबाह करने के लिए वालमार्ट को न्यौता दें?
वालमार्ट के कर्मचारी हैं या देश के नेताः
अगर इस विषय पर राष्ट्रीय सहमति नहीं बन पा रही है, तो पूरे देश की आकांक्षाओं को दरकिनार करते हुए हमारे प्रधानमंत्री और मंत्री गण वालमार्ट के कर्मचारियों की तरह बयान देते क्यों नजर आ रहे हैं? आप इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि आप इन दिनों गांवों में जा रहे हैं और गरीबों के हालात को जानने का प्रयास कर रहे हैं। आपको जमीनी सच्चाईयां पता हैं कि किस तरह के हालात में लोग जी रहे हैं। अर्जुनसेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट से लेकर सरकार की तमाम रिपोर्ट्स हमें बताती हैं कि असली हिंदुस्तान किस हालात में जी रहा है। 20 रूपए की रोजी पर दिन गुजार रहा 70 प्रतिशत हिंदुस्तान कैसे और किस आधार पर देश में वालमार्ट सरीखी दानवाकार कंपनियों को हिंदुस्तान की जमीन पर पैर पसारने के लिए सहमत हो सकता है?
भूले क्यों गांधी कोः
आप उस पार्टी के नेता हैं जिसकी जड़ों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संस्कार, पं. जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा, आदरणीया इंदिरा गांधी जी का अप्रतिम शौर्य और आदरणीय राजीव गांधी जी संवेदनशीलता और निष्छलता है। क्या यह पार्टी जो हिंदुस्तान के लोगों को अंग्रेजी राज की गुलामी से मुक्त करवाती है,वह पुनः इस देश को एक नई गुलामी की ओर झोंकना चाहती है ? मेरा निवेदन है कि एक बार देशाटन के साथ-साथ आपको बापू (महात्मा गांधी) को थोड़ा ध्यान से पढ़ना चाहिए। बापू की किताब ‘हिंद स्वराज्य’ की प्रति मैं आपके लिए भेज रहा हूं। इस किताब में किस तरह पश्चिम की शैतानी सभ्यता से लड़ने के बीज मंत्र दिए हुए हैं, उस पर आपका ध्यान जरूर जाएगा। मैं बापू के ही शब्दों को आपको याद दिलाना चाहता हूं, वे कहते हैं-“ कारखाने की खूबी यह है कि उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं रहता कि लोग हिंदुस्तान में या दुनिया में कहीं भूखे मर रहे हैं। उसका तो बस एक ही मकसद होता है, वह यह कि दाम उंचे बने रहें। इंसानियत का जरा भी ख्याल नहीं किया जाता।” जिस देश में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और नौजवान बड़ी संख्या में बेरोजगार हों, वहां इस तरह की नीतियां अपनाकर हम आखिर कैसा देश बनाना चाहते हैं?क्या इसके चलते देश में हिंसाचार और अपराध की घटनाएं नहीं बढ़ेगीं, यह एक बड़ा सवाल है।
धोखे का लोकतंत्रः
महात्मा गांधी इसीलिए हमें याद दिलाते हैं कि – “अनाज और खेती की दूसरी चीजों का भाव किसान नहीं तय किया करता। इसके अलावा कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन पर उसका कोई बस नहीं चलता है और फिर मानसून के सहारे रहने की वजह से साल में कई महीने वह खाली भी रहता है। लेकिन इस अर्से में पेट को तो रोटी चाहिए ही।” राहुल जी क्या हमारी व्यवस्था किसानों के प्रति संवेदनशील है? हमारे कृषि मंत्री के बयानों को याद कीजिए और बताइए कि क्या हमने जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने का एक अभियान सरीखा नहीं चला रखा है। एक लोकतंत्र में होने के हमारे मायने क्या हैं? इसीलिए राष्ट्रपिता हमें याद दिलाते हैं कि “बड़े कारखानों में लोकराज्य नामुमकिन है। जो लोग चोटी पर होते हैं,वे गरीब मजदूरों पर उनके रहन-सहन के तरीकों पर –जिनकी तादाद प्रति कारखाना चार-पांच हजार तो होती ही है –एक दबाव डालते हैं और मनमानी करते हैं। ......राष्ट्रजीवन में ऐसे धंधों की एक बहुत बड़ी जगह होनी चाहिए, जिससे लोग लोकशाही की तरफ झुकें। बड़े कारखानों से राजनीतिक तानाशाही ही बढ़ेगी। नाम के लोक –राज्यवाले देश तक जैसे अमरीका, रूस वगैरह लड़ाई के दबाव में सचमुच तानाशाह बन जाते हैं। जो कोई देश भी अपनी जरूरत का सामान केंद्रीय कारखानों से तैयार करेगा, वह आखिर में जरूर तानाशाह बन जाएगा। लोकराज्य वहां केवल दिखावे का रहेगा जिससे लोग धोखे में पड़े रहें। ”
क्या हमने स्वतंत्रता की लड़ाई लोकतंत्र के लिए लड़ी थीः
सवाल यह भी है क्या हमारी आजादी की लड़ाई देश में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए थी? जाहिर तौर पर नहीं, हमारी लड़ाई तो सुराज, स्वराज्य और आजादी के लिए थी। आजादी वह भी मुकम्मल आजादी। क्या हम ऐसा बना पाए हैं? यहां आजादी चंद खास तबकों को मिली है। जो मनचाहे तरीके से कानूनों को बनाते और तोड़ते हैं। यही कारण है कि हमें लोकतंत्र तो हासिल हो गया किंतु सुराज नहीं मिल सका। इस सुराज के इंतजार में हमारी आजादी ने छः दशकों की यात्रा पूरी कर ली किंतु सुराज के सपने निरंतर हमसे दूर जा रहे हैं।
चमकीली दुनिया के पीछे छिपा अंधेराः
सवाल यह है कि गांधी-नेहरू-सरदार पटेल-मौलाना आजाद- इंदिरा जी जैसा देश बनाना चाहते थे,क्या हम उसे बना पा रहे है ? इस नई अर्थनीति ने हमारे सामने एक चमकीली दुनिया खड़ी की है,किंतु उसके पीछे छिपा अंधेरा हम नहीं देख पा रहे हैं। आपकी चिंता के केंद्र में अगर हिंदुस्तान की तमाम ‘कलावतियां’ हैं तो आपकी पार्टी की सरकार का नेतृत्व मनमोहन सिंह जी जैसे लोग कैसे कर सकते हैं? जिनके सपनों में अमरीका बसता है। हिंदुस्तान को न जानने और जानकर भी अनजान बनने वाले नेताओं से देश घिरा हुआ है। यह चमकीली प्रगति कितने तरह के हिंदुस्तान बना रही है,आप देख रहे हैं।
संभालिए नेतृत्व राहुल जीः
आपकी संवेदना और कही जा रही बातों में अगर जरा भी सच्चाई भी है तो इस वक्त देश की कमान आपको तुरंत संभाल लेनी चाहिए। क्योंकि आप एक ऐतिहासिक दायित्व से भाग रहे हैं। मनमोहन सिंह न तो देश का, न ही कांग्रेस का स्वाभाविक नेतृत्व हैं। उनकी नियुक्ति के समय जो भी संकट रहे हों किंतु समय ने साबित किया कि यह कांग्रेस का एक आत्मघाती फैसला था। जनता के मन में चल रहे झंझावातों और हलचलों को आपको समझने की जरूरत है। देश के लोग व्यथित हैं और बड़ी आशा से आपकी तरफ देख रहे हैं। किंतु हम सब आश्चर्यचकित हैं कि क्या सरकार और पार्टी अलग-अलग दिशाओं में जा सकती है? कांग्रेस संगठन का मूल विचार अगर आम आदमी के साथ है तो मनमोहन सिंह की सरकार खास आदमियों की मिजाजपुर्सी में क्यों लगी है? महंगाई और भ्रष्टाचार के सवालों पर सरकार बगलें क्यों झांक रही है ? क्या कारण है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अहिंसक प्रतिरोधों को भी कुचला जा रहा है ? क्या कारण है आपकी तमाम इच्छाओं के बावजूद भूमि अधिग्रहण का बिल इस सत्र में नहीं लाया जा सका ? क्या आपको नहीं लगता कि यह सारा कुछ कांग्रेस नाम के संगठन को जनता की नजरों में गिरा रहा है। कांग्रेस पार्टी को अपने अतीत से सबक लेते हुए गांधी के मंत्र को समझना होगा। बापू ने कहा था कि जब भी आप कोई काम करें,यह जरूर देखें कि इसका आखिरी आदमी पर क्या असर होगा। सादर आपका
( संजय द्विवेदी)
40, शुभालय विहार, ई-8 एक्सटेंशन, बावड़ियाकलां, भोपाल (मध्यप्रदेश)