-संजय द्विवेदी
छत्तीसगढ़ राज्य यानि वह उपेक्षित भूगोल जो पिछले 11 सालों से अपने सपनों में रंग भरने की कोशिशें कर रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के लिए हुए संघर्षों की मूल भावना को समझें तो साफ नजर आएगा कि राज्य इसलिए चाहिए था कि क्योंकि शोषण से मुक्ति चाहिए थी, विकास चाहिए था और राज्य की बड़ी आदिवासी आबादी को राजनैतिक तौर पर सक्षम होते हुए देखना था। विकास आज बड़ा विवादित शब्द बन गया है। विकास के मानक हमें अनेक स्थानों पर बेमानी दिखने लगे हैं कि क्योंकि वे मनुष्य की शर्त पर विकास का सपना साकार करते हैं।
छत्तीसगढ़ इस मामले में नए राज्यों की तुलना में सौभाग्यशाली है कि यहां राजनीतिक स्थिरता बनी रही और मुख्यमंत्री के रूप में दोनों राजनेताओं की दृष्टि विकास को लेकर बहुत साफ रही। प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जहां अपनी तमाम कमियों के बावजूद विकास को सवाल को दरकिनार नहीं किया, वहीं डा. रमन सिंह ने सपनों में रंग भरने का काम तेजी से किया। अब जबकि राज्य की स्थापना के ग्यारह साल पूरे हो चुके हैं तब यह ठहरकर सोचने का वक्त है कि आखिर हम कहां खड़े हैं और हमसे अपेक्षाएं क्या हैं।
सबसे बड़ी चुनौती नक्सलवादः
छत्तीसगढ़ राज्य की आज सबसे बड़ी चुनौती क्या है। शायद इसका सामूहिक उत्तर हो नक्सलवाद। इन 11 सालों में समस्या भयंकर से भयावह हो गयी है और स्थिति खराब से अराजक। युद्ध लड़ने की अपनी साफ प्रतिबद्धता के बावजूद इस मोर्चे पर राज्य की सरकार कुछ कर नहीं पाई। नक्सली आतंकवाद के शिकार पुलिसवाले भी हो रहे हैं और आम आदिवासी भी। इन सालों में नक्सली अपना क्षेत्र विस्तार करते रहे और हम जुबानी जमा खर्च से आगे बढ़ नहीं पाए। हिंसा हमारी स्थायी पहचान बन गयी और कथित मानवाधिकार संगठन उल्टे हमारे लोगों की निरंतर हत्याओं के बावजूद हमारे राज्य को ही हिंसक बताने में लगे रहे। छत्तीसगढ़ में जो हो रहा है वह दरअसल एक ऐसा पाप है जिसके लिए हमें पीढ़ियां माफ नहीं करेंगीं। दुनिया की सबसे खूबसूरत कौम, आदिवासियों का सैन्यीकरण करने का पाप जो अतिवादी वामपंथी कर रहे हैं, उसके लिए इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा। राज्य से भी कुछ गलतियां हो रही हैं किंतु जब कोई जंग हमारे गणतंत्र के खिलाफ हो तो समाज की एकजुटता जरूरी हो जाती है। डा.रमन सिंह से लेकर कल तक नक्सलियों के प्रति उदार रही ममता बनर्जी की बातचीत की अपीलें ठुकराकर भी एक हिंसक लड़ाई जनतंत्र और व्यवस्था के खिलाफ लड़ी जा रही है। दुर्भाग्य यह कि इस रक्तक्रांति को भी महिमामंडित करने वाले हमारे बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। इस जंग में पिस रहे आदिवासी किसी की चिंता का विषय नहीं हैं। इसलिए इस आतंक से लड़ना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अब प्रतीकात्मक कदमों से आगे बढ़ने की जरूरत है और बस्तर के जंगलों से बारूद की गंध हटाने का समय आ गया है।
विकास के सवालों पर तेजी से काम करने की जरूरतः
छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी चिंता शिक्षा के स्तर की है। हम देखें तो तमाम बड़े संस्थानों के आगमन के बावजूद हमारे सरकारी स्कूलों का हाल क्या है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ का स्थान राष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरने से ही तय होगा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरूस्त कर राज्य ने जहां चौतरफा वाहवाही पायी है, वहीं तमाम विकास के सवाल हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं। शिशु मृत्यु दर में आज भी छत्तीसगढ़ 62 प्रतिशत पर बना हुआ है जो पहले स्थान पर चल रहे मप्र से मात्र 8 प्रतिशत कम है। गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों का आंकड़ा आज भी 30 प्रतिशत को पार कर चुका है तो यह चिंता की बात है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार और विकसित राज्यों के मानकों को छूना जरूरी है। किंतु छत्तीसगढ़ में, इन 11 सालों की यात्रा में तेज प्रगति करते हुए दिखने के बावजूद अभी काफी कुछ होना शेष है। छत्तीसगढ़ की विकास दर काफी ठीक है किंतु विकास दर या प्रति व्यक्ति के आंकड़े जिन आधारों पर तैयार होते हैं उससे आम आदमी की स्थिति का सही आकलन व्यक्त नहीं होता। गरीबी- बेरोजगारी से निपटना आज सबसे बड़ी चुनौती है। जाहिर तौर पर इससे निपटने का रास्ता यही है कि हम शिक्षा का स्तर उठाएं और प्रशिक्षण के आधार पर श्रेष्ठ मानव संसाधन का निर्माण करें।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थ बनाएं-
सिंचाई के साधनों का विकास करते हुए खेती को उन्नत करने की आवश्यकता है। कृषि के विकास से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत मिलेगी। सरकार की अनेक योजनाओं जैसे सस्ता चावल और मनरेगा के चलते गांवों से पलायन कम हुआ है, यह एक शुभ संकेत है। इसके साथ-साथ औद्योगिक निवेश को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। ऐसे उद्यमियों को अनुमति दी जाए जिनके उद्योगों से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। इसमें स्थानीय नागरिकों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। गरीबी कम करना वास्तव में सबसे बड़ी चुनौती है। यह तभी कम होगी जब शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, स्वावलंबन की भावना आएगी , लोग अनेक फसलें लेने की ओर बढ़ेंगें साथ नशाखोरी कम होगी। शराब ने जिस कदर आम लोगों को जकड़ रखा है उसके खिलाफ भी एक जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। शराब पीकर मेहनतकश लोग अपनी मेहनत की कमाई गंवा रहे हैं जिसका असर उनके परिवारों पर पड़ रहा है। नशे से मुक्त समाज ज्यादा स्वाभिमान से अपना जीवन यापन करता है। हमें इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। गांव-गांव में खोली जा रही शराब दुकानें, आखिर हमारा चेहरा कैसा बना रही हैं इस पर भी सोचने की जरूरत है।
प्रदेश की अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार को तेज करते हुए को देश के साथ कदमताल करना होगा, तभी सपने सच होंगें और राज्य का वास्तविक सौंदर्य़ सामने आएगा। छत्तीसगढ़ वास्तव में एक लोकप्रदेश है उसकी अपनी पहचान इसी विस्तृत लोकजीवन और परंपराओं के चलते है। बाजार और औद्योगीकरण की आंधी में इस पहचान को भी बचाने की जरूरत है। बाजार की तेज हवाएं और पश्चिमीकरण के तूफान के बीच छत्तीसगढ़ आम आदमी के लिए रहने लायक बना रहे, इसके लिए इसके ‘लोक’ का संरक्षण जरूरी है।
सुन्दर आलेख...सार्थक चिन्तन.
जवाब देंहटाएं-पंकज झा.
सही विषय पर सही समय पर सही सोच के साथ सही दिशा सरकार की ओर ...
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