-संजय द्विवेदी
अरसे के बाद देश की राजनीति में आदर्शवाद, नैतिकता और सादगी राजनीतिक
विमर्श के केंद्र में है। ये अचानक नहीं हुआ
है। ये हुआ है आम आदमी पार्टी के उदय के चलते। आम आदमी पार्टी के राजनीतिक विमर्श
में जो चीजें प्रकट हुयीं वह मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के लिए स्वीकार्य नहीं
हैं। आप देखें तो आम आदमी पार्टी के चाल-चरित्र में जरा सा विचलन देखकर ही
मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का उत्साह चरम पर पहुंच जाता है। आप के नेताओं की
अनुभवहीनता, उनके बयानों और बिन्नी जैसे विधायकों की असहमति किस तरह राजनीतिक दलों
में उत्साह भर रही है। यह बात बताती है आप के चलते ये दल किस तरह घबराए हुए हैं।
साथ ही यह बात भी प्रकट होती है कि एक नई तरह की राजनीतिक संस्कृति किस तरह हमारे
मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में अस्वीकार्य है।
यह साधारण नहीं है कि हमारे मुख्यधारा के सभी राजनीतिक दल किसी भी अपनी
जैसे चरित्र वाली पार्टी से नहीं घबराते हैं, वे घबराते हैं राजनीति के नए चरित्र
से, नई शैली से। जिनको सपा,बसपा, अन्नादुमुक और इस जैसी तमाम पार्टियों ने नहीं
डराया वे आखिरकार आप से क्यों डर रहे हैं ? जिस देश में 1300 से अधिक पार्टियां हैं वहां
एक और दल का आना क्या बुरी बात है? किंतु आप को लेकर स्वागत भाव क्यों नहीं है? आप नष्ट हो जाए,
बिखर जाए या उन जैसी ही बन जाए यह कामना लगातार क्या दिखा रही है? यह बात बताती है कि
आप के द्वारा उठाए गए मुद्दों से घबराहट है। संसद में लोकपाल पास करने में जो तेजी
राजनीतिक दलों ने दिखाई वह इस बात को साबित करती है। सत्ता की राजनीति को ठीक से
समझने वाली कांग्रेस ने जिस तेजी से दौड़कर दिल्ली में आप की सरकार बनवाई वह बताती
है कि घबराहट का स्तर क्या है। भाजपा जरूर इसके चलते एक अनोखे अवसर से चूक गयी।
क्या शानदार राजनीतिक फैसला होता अगर भाजपा ने स्वयं आगे बढ़कर आप की सरकार को
समर्थन दिया होता। इस फैसले से कांग्रेसमुक्त भारत बनाने में लगे नरेंद्र मोदी को
फायदा मिलता और कांग्रेस राजनीतिक विमर्श से ही गायब हो जाती। दिल्ली में केजरीवाल
और देश में मोदी जैसी लहर भाजपा को फायदा पहुंचा सकती थी। राजनीतिक तौर पर
कांग्रेस विरोधी लहर एक आंधी में बदल सकती थी। किंतु आप को कांग्रेस ने समर्थन
देकर इस अभियान और इसकी तेजी में कुछ सिथिलता जरूर डाल दी है।
यहां सवाल यह है कि हमारे मुख्यधारा के राजनीतिक दल किसी से कुछ अच्छा
सीखने को तैयार क्यों नहीं है? ठीक है, राजनीति में समझौते होते हैं, जीतने वाले
उम्मीदवारों पर आत्मविश्वास से हीन पार्टियां दांव लगाती हैं, किंतु अगर परिवेश
में कुछ बदल रहा है तो उस अवसर का लाभ लेना चाहिए। इस बदलाव के चलते दलों को कुछ
बेहतर कर पाना, अच्छा उम्मीदवार उतार कर उसे चुनाव जीता पाना संभव होता दिख रहा है
तो उसका लाभ लेना चाहिए। किंतु जो दल सपा, बसपा,राजद, द्रमुक, शिवसेना, अकाली दल
जैसे दलों से भी कभी समस्या महसूस नहीं करते, उन्हें आप से ही समस्या क्यों है।
अगर आप उनकी तरह की पार्टी बन जाए या बनने की कोशिश करे तो भी शायद उन्हें उससे
कोई समस्या नहीं हो। समस्या तभी है जब आप अपने तरह की राजनीति को हमारे समाज जीवन
के विमर्श का हिस्सा बना रही है। अब आप देखिए कि आप के उठाए सवालों महंगाई,
भ्रष्टाचार,सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, सादगी, तामझाम से मुक्त जीवन को अपनाने
और इस अवसर का लाभ उठाकर अपने राजनीतिक तंत्र में शुचिता लाने में तेजी लाने के
बजाए सारा जोर इस बात पर है कि आप की दिल्ली की सरकार जल्दी से जल्दी एक्सपोज हो
जाए और उन्हीं राजनीतिक बुराईयों की शिकार हो जाए जिसमें हमारे दल डूबे हुए हैं। यानि
कि इतिहास की इस घड़ी में हमारी दलीय प्रार्थनाएं आम आदमी पार्टी द्वारा उठाए गए
सवालों की सफलता के लिए नहीं हैं। सार्वजनिक जीवन में सुधार के प्रति नहीं है,
सारी कामना यही है कि आम आदमी पार्टी का यह प्रयोग फ्लाप हो जाए और मुख्यधारा के
राजनीतिक दल यह कह सकें कि राजनीति सबके बस की बात नहीं। अपने राजनीतिक अहंकारों
से भरी ये जमातें कुछ अच्छा सीखने और स्वयं में परिवर्तन के बजाए ‘आप’ के ही बदल जाने की
दुआएं या उनकी सरकार की विफलता की कामना कर रही हैं। यह देखते हुए भी जनता ‘आप’ के प्रयोग को किस
तरह सराह रही है। अगर राजनीतिक दल अपने में इस तरह के कास्मेटिक सुधार भी करें तो भी
जनता उनके पास आ सकती है, एक नई तरह की राजनीतिक धारा की सुधार के लिए देश अवसर दे
रहा है। जनता इस प्रतीक्षा में खड़ी है कि हमारी राजनीति भी ज्यादा जनधर्मी, ज्यादा
सरोकारी,ज्यादा संवेदनशील और ज्यादा मानवीय बने।
इतिहास की इस घड़ी में आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं की जिम्मेदारी बहुत
बढ़ जाती है। आम आदमी पार्टी को इस समय में प्रशांत भूषण जैसी बेसुरी आवाजों से
बचकर देश के विश्वास की रक्षा करनी होगी। क्योंकि आम आदमी पार्टी एक ऐसे आंदोलन से
उपजी पार्टी है, जिसके पिंड में एक जागृत राष्ट्रवाद है, एक नैतिक चेतना है, एक
भरोसा और विश्वास है। जो उसके सफेद टोपी, उसके वंदेमातरम, भारत माता की जय और
इन्कलाब जिंदाबाद जैसे नारों से प्रकट होता है। उसके साथ बड़ी संख्या में जुटे
युवा इसी राष्ट्रवादी चेतना के प्रतिनिधि हैं। उनके सामने एक नरेंद्र मोदी जैसा
महानायक भी खड़ा है। उम्मीदों को पाने और एक नया भारत बनाने की आकांक्षा से भरा
नौजवान आज किसी राहुल गांधी, मुलायम सिंह या तीसरे मोर्चे के प्रतिनिधियों के
इंतजार में नहीं खड़ा है। नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल जैसे नई राजनीति के
वाहक उसकी आकांक्षाओं के सही प्रतिनिधि हैं। इसीलिए इस विमर्श में माणिक सरकार,
मनोहर पारीकर, रंगास्वामी जैसे नायकों के नाम भी लिए जाने लगे हैं। दिल्ली में
विजय गोयल की जगह हर्षवर्धन का चेहरा इसी बदलती राजनीति का प्रतीक ही था। यह बदलता
हुआ भारत और उसकी आकांक्षाएं बहुत अलग हैं। आप को कांग्रेस की कुटिल राजनीति से बचते
हुए दिल्ली की सरकार चलानी तो है ही साथ ही अपने वाचाल नेताओं को थोड़ा खामोश भी
करते हुए जनहित के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखानी है। जिस तरह मोदी देश की
आकांक्षाओं का चेहरा बनकर उभरे हैं केजरीवाल उसी सूची का दूसरा नाम हैं। किंतु
मोदी ने लंबा काम करके यह गौरव हासिल किया है। केजरीवाल ने आंदोलनों और मीडिया के
इस्तेमाल से यह अवसर पाया है। किंतु केजरीवाल को यह ध्यान रखना होगा कि यह देश
बार-बार छला गया है। उसने लंबे समय के बाद एक नौजवान पर उसके किसी बहुत उजले अतीत
के अभाव में भी भरोसा किया है। अन्ना से जुड़े होने के नाते अरविंद की राजनीति न
सिर्फ परवान चढ़ी है वरन उसे व्यापक जनाधार व विश्वास भी प्राप्त हुआ है।आपातकाल विरोधी
आंदोलन, वीपी सिंह के आंदोलन और असम आंदोलन की परिणतियां हमारे सामने हैं। देश
बार-बार छला गया है। एक और छल के लिए देश तैयार नहीं है। अरविंद आम जनता की
उम्मीदों और आकांक्षाओं का चेहरा है। देश की सभी राजनीतिक पार्टियां उनकी विफलता
की राह देख रही हैं किंतु आम जनता उनकी सफलता की दुआएं कर रही है। किंतु इस सफलता
की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी के नायकों पर है। देश के पास कई मोदी, कई
केजरीवाल, कई मनोहर पारीकर, कई माणिक सरकार,कई हर्षवर्धन, कई
ममता बनर्जी होंगें तो जन आकांक्षाएं न सिर्फ पूरी होंगी, वरन व्यक्ति के
अधिनायकवाद का खतरा भी कम होगा। सार्वजनिक जीवन में सादगी और शुचिता की लहर बनेगी
और एक नया परिर्वतन आएगा। ऐसे संक्रमण काल में हमारी दुआ है कि आम आदमी पार्टी खुद
भी बचे और अपने तीखे तेवरों से हमारे राजनीतिक परिवेश में सकारात्मक परिर्वतनों की
वाहक बने, एक कठिन समय में देश की जनता उसे शुभकामनाओं के सिवा क्या दे सकती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें