सोमवार, 22 दिसंबर 2008

संतुलन साधने की कवायद

छत्तीसगढ़ः नई सरकार, नया मंत्रिमंडल

छत्तीसगढ़ की सरकार की नई सरकार के मंत्रिमंडल ने सोमवार को शपथ ले ली। राज्य में दुबारा सरकार बनाकर लौटी भाजपा के पास जहां रमन सिंह के रूप में एक सौम्य और अनुभवी चेहरा है वहीं उसकी सेना में अब अनुभवी सिपाही भी हैं। रमन सिंह को जोड़कर बने 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय संतुलन, जातीय संतुलन और कार्यक्षमता का बराबर ध्यान रखा गया है। आत्मविश्ववास से भरे-पूरे डा. रमन सिंह ने जब अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के नाम की घोषणा की तो ऐसा नहीं लगा कि यह टीम कहीं से भी कमजोर है।

आदिवासी क्षेत्रों और वोटों के भरोसे सत्ता में आई भाजपा ने इसका ऋण पांच आदिवासी समाज के मंत्री बनाकर चुकाया है। पिछली बार की तरह इस बार भी गृहमंत्री का पद आदिवासी समाज के नेता को ही दिया गया है और मंत्रिमंडल में नंबर दो का दर्जा भी इस समाज के मंत्री हासिल होगा। यह बात राहत देने वाली है कि इस पद पर पार्टी के बुर्जग आदिवासी नेता ननकीराम कंवर को मौका मिला है। जबकि ननकीराम कंवर को पिछली बार जिस कड़वाहट के बाद मंत्री पद छोड़ना पड़ा था उसमें इसे रमन सिंह का बड़ा दिल ही कहा जाएगा कि वे इस अनुभवी नेता को पुनः मुख्यधारा में वापस ले आए। ननकीराम कंवर इस बार भी अपनी परंपरागत सीट रामपुर से चुनाव जीतकर आए हैं। कोरबा जिले से चुनाव जीतने वाले वे अकेले भाजपा विधायक हैं। आदिवासी समाज के अन्य मंत्रियों में रामविचार नेताम, केदार कश्यप, लता उसेंड़ी, विक्रम उसेंडी शामिल हैं। बस्तर संभाग के तीन मंत्रियों को मौका देकर डा. रमन ने इस इलाके पर खास फोकस किया है। इस इलाके की 12 में से 11 सीटों पर भाजपा विधायकों को जीत हासिल हुयी है। इसी तरह सरगुजा इलाके से जीते रामविचार नेताम को फिर मंत्री बनाया गया है। पिछली बार वे मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के रूप में शामिल थे।

रायपुर संभाग से भाजपा के चार दिग्गज मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं। बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, हेमचंद यादव और चंद्रशेखर साहू का नाम इस संभाग से मंत्री बनाए जाने वालों में शामिल हैं। चंद्रशेखर साहू, अभनपुर से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू को हराकर विधानसभा में पहुंचे हैं। जाहिर तौर पर उनकी इस विजय का पुरस्कार उन्हें मंत्री बनाकर दिया गया है। साहू तीसरी बार विधायक बने हैं और महासमुंद से एक बार लोकसभा के सदस्य भी रह चुके चुके हैं। बिलासपुर संभाग से तीन मंत्रियों को जगह मिली है। जिसमें अमर अग्रवाल, पुन्नूलाल मोहले और ननकीराम कंवर शामिल हैं। अमर पहले भी राज्य शासन में मंत्री थे, मोहले और कंवर को जगह मिली है।

श्री मोहले चार बार से बिलासपुर से सांसद हैं। इस बार बिलासपुर की सीट सामान्य हो गयी है सो मोहले ने मुंगेली क्षेत्र से विधानसभा के लिए किस्मत आजमायी और सफल रहे, जाहिर तौर पर इतने वरिष्ठ सांसद को मंत्री बनाना ही था। इसके चलते पिछली सरकार में मंत्री रहे डा. कृष्णमूर्ति बांधी जरूर मंत्री नहीं बन सके। इसका कारण यह है कि वे भी बिलासपुर के मस्तूरी इलाके से ही चुनाव जीते हैं और सतनामी समाज से ही आते हैं। आयु, अनुभव, जातीय समीकरण हर लिहाज से मोहले उनपर बीस साबित हुए।

सरगुजा संभाग जरूर सिर्फ एक मंत्री पाने की शिकायत कर सकता है। किंतु सभी जिलों को सीमित मंत्री संख्या के नाते प्रतिनिधित्व दे पाना संभव नहीं है। ऐसे में मंत्रिमंडल में कुल 9 जिलों को ही प्रतिनिधित्व मिल सका है और 9 जिलों से कोई मंत्री नहीं बना है। यह एक तरह की मजबूरी है जिसका समाधान नहीं है। सबसे ज्यादा मंत्री रायपुर से बनाए गए हैं जिनकी संख्या तीन है। इसी तरह महिलाओं को भी कोई खास तरजीह नहीं मिली है, भाजपा ने कुल 10 महिलाओं को टिकट दी थी जिसमें 6 जीतकर भी आईं किंतु सिर्फ एक महिला को ही मंत्री बनाया गया है। आदिवासी समाज में भाजपा ने कुल आरक्षित 29 सीटों से ज्यादा 32 सीटों पर आदिवासी खड़े किए थे जिनमें 20 को जीत हासिल हुई और इसीलिए सबसे ज्यादा पांच मंत्री इसी समाज से बनाए गए हैं। अनुसूचित जाति के लिए कुल 9 सीटें आरक्षित हैं जिनमे पांच पर भाजपा के लोग जीते हैं इनमें केवल एक को ही मंत्री (पुन्नूलाल मोहले) बनाया गया है।

मंत्रिमंडल में पहली बार मंत्री बने लोगों में चंद्रशेखर साहू और पुन्नूलाल मोहले शामिल हैं, यह संयोग ही है कि दोनों पूर्व सांसद हैं और कई बार विधायक भी रह चुके हैं। यानि पहली बार मंत्री बने ये दोनों भी संसदीय अनुभव में कमजोर नहीं हैं। एक अदभुत संयोग यह भी है कि डा. रमन सरकार के पिछले कार्यकाल में आरंभिक दिनों में मंत्री रहे दो सहयोगी ननकीराम कंवर और विक्रम उसेंडी फिर मंत्री बनाए गए हैं। इन दोनों को अनेक कारणों से पिछली बार मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा था। इस पूरे दौर में विधानसभा उपाध्यक्ष बद्रीधर दीवान की एक जातिगत टिप्पणी के अलावा कुछ भी बेसुरा नजर नहीं आया। दीवान का दर्द भी जातिगत कम व्यक्तिगत ज्यादा है। उम्मीद है डा. सिंह उन्हें समझा लेंगें।

कुल मिलाकर रमन सरकार में इस बार अनुभव और उत्साह का संयोग देखने को मिलेगा। पिछली बार जहां पहली बार चुनाव जीते विधायकों के चलते मंत्रियों की अनुभवहीनता आरंभिक दिनों में काफी रेखांकित की गयी थी इस बार वैसा नहीं है। अनुभवी मंत्रियों से सजी रमन सिंह की टीम के पास पाने के लिए पूरा आकाश है, सवाल यह है कि क्या वे इसके लिए तैयार हैं। फिलहाल शपथ ग्रहण के बाद उन सब पर जिम्मेदारियों का एक बड़ा सवाल मुंह बाए खड़ा है, राज्य की 2 करोड़ जनता इस मौके पर अपने मंत्रियों को शुभकामनाओं के सिवा क्या दे सकती है।


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जो बने मंत्री
ननकीराम कंवर, बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम, पुन्नूलाल मोहले, चंद्रशेखर साहू, अमर अग्रवाल, हेमचंद यादव, विक्रम उसेंडी, राजेश मूणत, केदार कश्यप, लता उसेंडी।

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कहां से कितने मंत्री ( मुख्यमंत्री सहित संभाग गणित)
रायपुर संभाग-5, बस्तर संभाग-3, बिलासपुर संभाग-3, सरगुजा-1

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पहली बार बने मंत्री
चंद्रशेखर साहू और पुन्नूलाल मोहले पहली बार मंत्री बने हैं। लेकिन संसदीय अनुभव में दोनो काफी आगे हैं। साहू जहां तीसरी बार विधानसभा पहुंचे है वहीं वे महासमुंद से लोकसभा में भी पहुंच चुके हैं। इसी तरह पुन्नूलाल मोहले पहले विधायक रहे और चार बार बिलासपुर से सांसद रह चुके हैं। यह एक संयोग ही है दोनों पूर्व सांसद हैं। जिन्हें रमन सरकार में मंत्री बनाया गया है।

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हाशिए पर महिलाएं
भाजपा ने राज्य की 90 विधानसभा पर 10 महिला उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें 6 को जीत हासिल हुई है। इसमें मात्र एक को मंत्री बनाया गया है। मंत्री बनने वाली लता उसेंडी पिछली बार भी रमन सरकार में मंत्री रही हैं। उन्हें आदिवासी महिला होने का लाभ मिला है।


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आदिवासियों को मौके ज्यादा
सरकार में आदिवासियों को सबसे ज्यादा पांच मंत्री पद मिले हैं। अनुसूचित जाति को एक, अन्य पिछड़ा वर्ग को दो, वैश्य समाज को तीन पद मिले हैं। इसी तरह ठाकुर समुदाय से डा. रमन सिंह अकेले सरकार में हैं। किसी ब्राम्हण को मंत्री नहीं बनाया गया है। इससे भाजपा विधायक बद्रीधर दीवान ने नाराजगी जताई है। पिछली बार भी किसी ब्राम्हण को मंत्री नहीं बनाया गया था, हां विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर जरूर ब्राम्हण समुदाय को जगह मिली थी। जिसमें विधासभा अध्य़क्ष रहे प्रेमप्रकाश पाण्डेय इस बार भिलाई से चुनाव हार गए हैं। भाजपा के तीन जीते ब्राम्हण विधायकों सरोज पाण्डेय, रविशंकर त्रिपाठी और बद्रीधर दीवान में से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया है।

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