छत्तीसगढ़ की तीसरी विधानसभा इस बार कई मामलों में अलग होगी। इस बार विधानसभा में जहां चमकते युवा चेहरे होंगें वहीं संसदीय अनुभव से लबरेज पुन्नूलाल मोहले और चंद्रशेखर साहू जैसे नाम भी होंगें। छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में इस बार युवा और ताजा चेहरों की भरमार है तो रामपुकार सिंह जैसे नेता भी हैं जो सातवीं बार विधानसभा में पहुंचे हैं। इसी तरह रवींद्र चौबे जिन्हें इस विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है, छठीं बार विधानसभा में पहुंचे हैं। इसी तरह विधानसभा में बृजमोहन अग्रवाल और नंदकुमार पटेल जैसे चेहरे भी हैं जो पांचवी बार विधानसभा में आए हैं। इस बार की विधानसभा में 10 महिलाएं भी होंगी, जबकि पिछली बार यह संख्या आधी थी।
पहली बार विधानसभा पहुंचे सदस्यों में फूलचंद सिंह, दीपक पटेल, भैयालाल राजवाड़े, रविशंकर त्रिपाठी, रामदेव राम, टीएस बाबा, ह्दयराम राठिया, जय सिंह अग्रवाल, पद्मा मनहर, सौरभ सिंह, सरोजा राठौर, दूजराम बौद्ध, लक्ष्मी बधेल, नंदकुमार साहू, रूद्र कुमार, डमरूधर पुजारी, अंबिका मरकाम, लेखराम साहू, मदनलाल साहू, नीलिमा टेकाम, विजय बधेल, डोमनलाल, डा. सियाराम साहू, रामजी भारती, खेदूराम साहू, शिव उसारे, ब्रम्हानंद नेताम, सुमित्रा मार्कोले, संतोष बाफना, भीमा मंडावी, महेश गागड़ा, युद्धवीर सिंह के नाम शामिल हैं। जाहिर तौर पर इस बार की विधानसभा में संसदीय अनुभव और उत्साह का संयोग देखते ही बनेगा। सदन में जहां रमन सिंह, अजीत जोगी, पुन्नूलाल मोहले और चंद्रशेखर साहू जैसे विधायक हैं जो लोकसभा और विधानसभा दोनों जगहों पर अपने संसदीय अनुभव का लोहा मनवा चुके हैं तो लगातार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले दिग्गज भी हैं। इस बार की विधानसभा इस मायने में अलग होगी कि पिछले पांच साल इस सदन की अध्यक्षता करने वाले प्रेमप्रकाश पाण्डेय इस बार भिलाई से चुनाव हार गए हैं। इसके चलते उनकी जगह लेंगें धर्मलाल कौशिक जो बिल्हा से चुनाव जीतकर आए हैं। बिल्हा से वे पहले भी एक बार विधायक रह चुके हैं। किंतु 2003 का विधानसभा चुनाव कौशिक हार गए थे। इस बार उनकी जीत के साथ उन्हें विधानसभा के अध्यक्ष पद को सुशोभित करने का मौका भी मिलेगा। पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे महेंद्र कर्मा भी इस बार दंतेवाड़ा से चुनाव हार गए हैं। अपने संसदीय अनुभव औऱ आदिवासी समाज में खास पहचान रखने वाले कर्मा बस्तर की कांग्रेसी राजनीति के इस समय सबसे बड़े प्रतीक हैं। सलवा जुडूम आंदोलन के से उनके जुड़ाव से वे देश- विदेश में तो चर्चा का विषय बने किंतु खुद की ही सीट हार गए। जाहिर तौर पर उनकी कमी इसबार बहुत खलेगी। इसी तरह प्रखर विधायक और विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के उपनेता भूपेश बधेल की आवाज भी इस बार सदन में नहीं गूजेंगी। वे अपने पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारे हैं जहां से वे लगातार तीन बार चुनाव जीते थे। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू और कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा भी चुनाव हारे हैं। धनेंद्र साहू जहां अभनपुर से तीन बार चुनाव जीत चुके थे वहीं इस बार वे वहां से चुनाव हार गए। सत्यनारायण शर्मा पांच बार मंदिर हसौद से विधायक रह चुके थे लेकिन उनकी सीट इस बार परिसीमन में विलुप्त हो गयी औऱ उन्हें नई सीट रायपुर ग्रामीण से चुनाव लड़ना पड़ा। सो सत्यनारायण की गैरहाजिरी इस बार विधानसभा में गहरे महसूस की जाएगी। सत्यनारायण अपने सहज हास्यबोध से विधानसभा के वातावरण को हल्का-फुल्का रखते थे। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस विधायक दल के लिए महेंद्र कर्मा, सत्यनारायण शर्मा, भूपेश बधेल, धनेंद्र साहू की कमी एक बड़ा झटका है। ये चारों ऐसे विधायक थे जो अरसे से विधानसभा में थे ही नहीं बल्कि यहां होने वाली चर्चाओं में सक्रिय भूमिका निभाते थे। अपनी अलग छवि और जीवनशैली के लिए जाने जाने वाले आदिवासी नेता गणेशराम भगत, तेजतर्रार मंत्री रहे अजय चंद्राकर भी इस बार भाजपा विधायक दल का हिस्सा नहीं बन पाए। संसदीय कामकाज की समझ के नाते अजय चंद्राकर एक सुलझे हुए विधायक के रूप में सामने आते थे। अपने तेवरों से वे विधानसभा की चर्चाओं को गर्म कर दिया करते थे।
विधानसभा में अपनी पार्टी के अकेले विधायक होने के बावजूद सदन में सक्रिय रहने वाले एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष नोबेल वर्मा की कमी भी नजर आएगी। आदिवासी नेता देवलाल दुग्गा पिछली विधानसभा में अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ भी बोलने से नहीं चूकते थे, सो पार्टी ने उन्हें मोदी फार्मूले का शिकार बनाकर घर बिठा दिया है। अब यह दायित्व अकेले देवजी पटेल को उठाना पड़ेगा।
जो चेहरे इस विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक आर्कषण का केंद्र बनकर उभरे हैं, सदन में भी उनकी मौजूदगी रेखांकित की जाएगी। जिनमें सबसे खास नाम है भाजपा दिग्गज दिलीप सिंह जूदेव के बेटे युद्धवीर सिंह का। युवा विधायक युध्दवीर भी अपनी पिता की शैली में ही आगे आ रहे हैं। वे सरकार में संसदीय सचिव का ओहदा भी पा चुके हैं। इसी तरह सतनामी समाज के गुरू परिवार से आने वाले सबसे कम आयु के कांग्रेस विधायक रूद्रसेन गुरू की ओर भी सबकी निगाहें होंगी। रुद्रसेन के पिता विजय गुरू न सिर्फ सतनामी समाज के धर्मगुरू हैं बल्कि मप्र शासन में मंत्री भी रह चुके हैं। सो पारिवारिक विरासत का दारोमदार अब रूद्र पर आ पड़ा है। इसी क्रम में दुर्ग की महापौर सरोज पाण्डेय का नाम का भी बहुत अहम है। दुर्ग से दो बार मेयर का चुनाव जीतनेवाली सरोज नई बनी वैशाली नगर सीट से चुनाव जीत कर आयी हैं। वे भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री भी हैं। जाहिर तौर पर सदन में उनकी मौजूदगी भाजपा में आ रही नई पीढ़ी के भविष्य को भी तय करेगी। इसी क्रम में अकलतरा के जमींदार औऱ बहुत प्रभावी राजनीतिक परिवार से चुनाव जीत कर आए सौरभ सिंह पर भी लोगों की निगाहें रहेगीं। सौरभ का परिवार राजनीति में कांग्रेस की राजनीति से जुड़ा रहा है, उनके पिता धीरेंद्र सिंह, चाचा राकेश सिंह कांग्रेस से विधायक रहे हैं, सौरभ ने परिवार में एक नई राह पकड़ी है और त बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का उन्हें फायदा भी मिला है। और अब बात बस्तर की न करें तो छत्तीसगढ़ की बात अधूरी रह जाएगी। घोर नक्सली इलाके से जीते दंतेवाड़ा से जीतकर आए भीमा मंडावी और बीजापुर से पहली बार भाजपा का खाता खोलने वाले महेश गागड़ा भी आदिवासी विधायकों में एक खास नाम बन गए हैं। भीमा जहां नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा को चुनाव हराकर आए हैं वहीं गागड़ा ने कांग्रेस दिग्गज राजेंद्र पामभोई को चुनाव हराया है।
ऐसे में राज्य की विधानसभा में इस बार चमकते चेहरे नया रंग भरते दिखेंगें। यह बदलाव राज्य की जनता के लिए कितना मंगलकारी होगा यह तो समय बताएगा किंतु लोंगों की अपेक्षाएं तो यही हैं, उनके ये विधायक जनभावनाओं का भी ख्याल भी रखें। अगर ऐसा हो पाया यह बात छत्तीसगढ़ महतारी के माथे पर सौभाग्य का टीका साबित होगी।
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