मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

भारतीय भाषाओं को बचाने का समय : प्रो. द्विवेदी



नई दिल्ली, 20 अक्टूबर । ''पूरे विश्व में लगभग 6000 भाषाओं के होने का अनुमान है। भाषाशास्त्रियों की भविष्यवाणी है कि 21वीं सदी के अंत तक इनमें से केवल 200 भाषाएं जीवित बचेंगी और खत्म हो जाने वाली भाषाओं में भारत की सैकड़ों भाषाएं होंगी।'' यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने मंगलवार को हिंदी पखवाड़े के दौरान आयोजित की गई प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरण समारोह में व्यक्त किए। कार्यक्रम में संस्थान के अपर महानिदेशक श्री सतीश नम्बूदिरीपाद, प्रोफेसर आनंद प्रधान एवं भारतीय सूचना सेवा की पाठ्यक्रम निदेशक श्रीमती नवनीत कौर भी मौजूद थीं।


समारोह में प्रो. द्विवेदी ने सभी विजेताओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। कोविड-19 महामारी के संबंध में सरकार की ओर से जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए इस कार्यक्रम में केवल पुरस्कार विजेताओं को ही आमंत्रित किया गया।

इस अवसर पर प्रो. द्विवेदी ने कहा कि अगर आप भाषा विज्ञान के नजरिए से देखें, तो हिंदी एक पूर्ण भाषा है। हिंदी की देवनागरी लिपि पूर्णत: वैज्ञानिक है। हिंदी भाषा में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है, जिसके कारण संवाद और उसके लेखन मे त्रुटियां न के बराबर होती हैं। उन्होंने कहा कि भाषा मनुष्य की श्रेष्ठतम संपदा है। सारी मानवीय सभ्यताएं भाषा के माध्यम से ही विकसित हुई हैं।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि वर्ष 2040 तक भारत विश्व की एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन चुका होगा। आप सोचिए कि उस भारत के अधिकतर नागरिक अपने जीवन के सारे प्रमुख काम किस भाषा में कर रहे होंगे? वर्तमान में जिस तरह अंग्रेजी का चलन तेजी से बढ़ रहा है, क्या उसके बीच हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को स्थान मिलेगा?

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आईआईएमसी ने इस वर्ष हिंदी पखवाड़े का आयोजन भारतीय भाषाओं के बीच संवाद बढ़ाने की भावना के साथ किया था। इस वर्ष हमारा ये प्रयास था कि हिंदी पखवाड़ा संवाद और विमर्श का प्रबल माध्यम सिद्ध हो।

हर वर्ष की तरह इस बार भी हिंदी पखवाड़े के तहत भारतीय जन संचार संस्थान में हिंदी पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं की प्रदर्शनी, निबंध प्रतियोगिता, हिन्दी टिप्पणी एवं प्रारूप लेखन प्रतियोगिता, हिन्दी काव्य पाठ प्रतियोगिता, हिन्दी टंकण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। पखवाड़े के दौरान भारतीय सूचना सेवा प्रशिक्षुओं के लिए एक कार्यशाला का आयोजन भी किया गया, ताकि उन्हें रोजमर्रा के सरकारी कामकाज को हिंदी में करने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित किया जा सके।

कार्यक्रम का संचालन भारतीय जन संचार संस्थान की छात्र संपर्क अधिकारी विष्णुप्रिया पांडेय ने किया। समारोह के अंत में संस्थान के राजभाषा विभाग की परामर्शदाता श्रीमती रीता कपूर ने सभी का धन्यवाद दिया।




रविवार, 18 अक्तूबर 2020

IIMC के DG प्रो.संजय द्विवेदी बोले- दो आधारों पर खड़ी है आज की पत्रकारिता

 

मेरे जीवन में किस्से बहुत नहीं हैं, संघर्ष तो बिल्कुल नहीं। मेरे पास यात्राएं हैं, कर्म हैं और उससे उपजी सफलताएं हैं। बहुत संघर्ष की कहानियां नहीं हैं, जिन्हें सुना सकूं।

 


   प्रो.संजय द्विवेदी देश के जाने-माने पत्रकारसंपादकलेखकसंस्कृतिकर्मी और मीडिया प्राध्यापक हैं। अनेक मीडिया संगठनों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालने के बाद वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालयभोपाल में 10 वर्ष मास कम्युनिकेशन विभाग के अध्यक्ष, विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव भी रहे। राजनीतिकसामाजिक और मीडिया के मुद्दों पर निरंतर लेखन से उन्होंने खास पहचान बनाई है। अब तक 25 पुस्तकों का लेखन और संपादन करने वाले प्रो.  द्विवेदी को अनेक संगठनों ने मीडिया क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित किया है। हाल ही में उन्हें देश के प्रतिष्ठित मीडिया प्रशिक्षण संस्थान- भारतीय जनसंचार संस्थान का महानिदेशक नियुक्त किया गया है। भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के 56वें स्थापना दिवस पर समाचार4मीडिया ने उनसे खास बातचीत की - 

आपने अब तक तमाम मीडिया संस्थानों और शैक्षणिक संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैंअपने अब तक के सफर के बारे में कुछ बताएं?

मैं खुद को आज भी मीडिया का विद्यार्थी ही मानता हूं।  पत्रकारिता में मेरा सफर 1994 में दैनिक भास्कर, भोपाल से प्रारंभ हुआ। उसके बाद स्वदेश-रायपुर, नवभारत- मुंबई, दैनिक भास्कर-बिलासपुर, दैनिक हरिभूमि-रायपुर, इंफो इंडिया डॉटकॉम-मुंबई, जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ जो छत्तीसगढ़ का पहला सैटेलाइट चैनल था के साथ रहा। पत्रकारिता में संपादक, स्थानीय संपादक, समाचार संपादक, इनपुट एडिटर, एंकर जैसी जिम्मेदारियां मिलीं, उनका निर्वाह किया। मीडिया शिक्षा में आया तो कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर में पत्रकारिता विभाग का संस्थापक विभागाध्यक्ष रहा। बाद में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कुलपति, कुलसचिव जैसे पदों के साथ जनसंचार विभाग के अध्यक्ष के रूप में भी दस साल दायित्व रहा। बचपन के दिनों के में दोस्तों के मिलकरबालसुमन’ नाम की पत्रिका निकाली। यह लिखने-पढ़ने का शौक ही बाद में जीविका बन गया  तो सौभाग्य ही था।

 इस दौरान का कोई ऐसा खास वाक्या जो आपको अभी तक याद हो?

मेरे जीवन में किस्से बहुत नहीं हैं, संघर्ष तो बिल्कुल नहीं। मेरे पास यात्राएं हैं, कर्म हैं और उससे उपजी सफलताएं हैं। बहुत संघर्ष की कहानियां नहीं हैं, जिन्हें सुना सकूं। अपने काम को पूरी प्रामणिकता, ईमानदारी से करते रहे। अपने अधिकारी के प्रति ईमानदार रहे, यात्रा चलती रही। मौके मिलते गए। मुंबई, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर और अब दिल्ली में काम करते हुए कभी चीजों के पीछे नहीं भागा। नकारात्मकता और नकारात्मक लोगों से दूरी से बनाकर रखी। साधारण तरीके से चलते चले गए। यह सहज जीवन ही मुझे पसंद है। सफलता से बड़ा मैंने हमेशा सहजता को माना। कुछ दौड़कर, छीनकर नहीं चाहिए। स्पर्धा और संघर्ष मेरे स्वभाव में नहीं है। मैं अपना आकलन इस तरह करता हूं कि मैं कोई विशेष प्रतिभा नहीं हूं। सकारात्मक हूं और सबको साथ लेकर चलना मेरा सबसे खास गुण है। मैं जो कुछ भी हूं अपने माता-पिता, मार्गदर्शकों, शिक्षकों और दोस्तों की बदौलत हूं।   

 'कोविड-19 के दौरान पढ़ाई-लिखाई की पुरानी व्यवस्था पर काफी फर्क पड़ा है। नए दौर में ऑनलाइन पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। आईआईएमसी में इसके लिए किस तरह की तैयारी पर जोर है?

ऑनलाइन कक्षाएं हमारी मजबूरी हैं। कोरोना  जैसे संकट से डील करने का न हमारे तंत्र का अभ्यास, न हमारा है। लोंगों की जिंदगी अहम है। खासकर हमारे विद्यार्थी किसी संकट का शिकार न हों यही चिंता है। पहला सेमेस्टर ऑनलाइन ही चलेगा। तैयारी पूरी है। हमारा प्रशासनिक तंत्र और अध्यापकगण इसके लिए तैयार हैं। विद्यार्थी तो वैसे भी नए माध्यमों और  प्रयोगों का स्वागत ही करते हैं। ई-माध्यमों के साथ हमारी पीढ़ी भले सहज न हो, किंतु हमारे विद्यार्थी बहुत सहज हैं। 

पिछले दिनों आईआईएमसी में फीस बढ़ोतरी का मुद्दा काफी गरमाया रहा हैहालांकि फिलहाल यह मामला शांत हैइस बारे में आपका क्या कहना है और इस तरह के मुद्दों से किस तरह निपटेंगे?

किसी भी मामले में अपना अभ्यास निपटने-निपटाने का नहीं है। सहज संवाद का है, बातचीत का है। बातचीत से चीजें हल नहीं होतीं, तो लोग अन्य मार्ग भी अपनाते हैं। एक शासकीय संगठन होने के नाते हमारी सीमाएं हैं, हम हर चीज को मान नहीं सकते। किंतु छात्र हित सर्वोपरि है।  संवाद से रास्ते निकालेंगे। अन्यथा अन्य फोरम भी जहां लोग जाते रहे हैं, जाएंगे, जाना भी चाहिए।

पत्रकारिता में व्यावहारिक रूप में काफी बदलाव आए हैं। कोरोना काल में पत्रकारों ने अपनी जान जोखिम में डालकर ड्यूटी को अंजाम दिया हैयह बिल्कुल नई तरह की आपदा है। पत्रकारों की नई पौध को इस तरह की किसी भी स्थिति के लिए किस तरह व्यावहारिक रूप से तैयार करेंगे?

मैंने आपसे पहले भी कहा इस तरह के संकटों से निपटने का अभ्यास हमारे पास नहीं है। हम सब सीख रहे हैं। बचाव के उपाय भी अब धीरे-धीरे आदत में आ चुके हैं। पत्रकारिता हमेशा जोखिम भरा काम था। खासकर जिनके पास मैदानी या रिपोर्टिंग  दायित्व हैं। जान जोखिम में डालकर पत्रकार अपने कामों को अंजाम देते रहे हैं। कोरोना संकट में भी पत्रकारों के सामने सिर्फ संक्रमण के खतरे ही नहीं थे, कम होते वेतन, जाती नौकरियों के भी संकट थे। सबसे जूझकर उन्हें निकलना  होता है। फिर भी वे काम कर रहे हैं, समाज को संबल देने का काम कर रहे हैं। हमें भी ऐसी पीढ़ी का निर्माण करना है, जो जरा से संकटों से घबराए नहीं, संबल और साहस बनाए रखे। एक संचारक के नाते हम सबकी कोशिश होनी चाहिए कि समाज में गलत खबरें न फैलें, नकारात्मकता न फैले, लोग निराशा और अवसाद के शिकार न हों। उन्हें उम्मीदें जगाने वाली खबरें और सूचनाएं देनी चाहिए। हमारे विद्यार्थी बहुत प्रतिभावान हैं। वे अपने सामने उपस्थित सवालों और उनके ठोस तथा वाजिब हल निकालने की क्षमताओं से भरे हैं। मैं उन्हें बहुत आशा और उम्मीदों से देखता हूं। 

इस प्रतिष्ठित मीडिया शिक्षण संस्थान से पढ़कर निकले तमाम विद्यार्थी विभिन्न संस्थानों में ऊंचे पदों पर काम कर रहे हैं। IIMC को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए क्या आपने किसी तरह की खास स्ट्रैटेजी बनाई है?

हमारे संस्थान की स्थापना की आज हम 56वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। 17 अगस्त,1965 को तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका शुभारंभ किया था। मेरा सौभाग्य है कि एक खास  समय में मुझे इस महान संस्थान की सेवा करने का अवसर मिला है। मेरी कोशिश होगी इस महान संस्था की गौरवशाली परंपराओं में कुछ और सार्थक जोड़ सकूं। इसे भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता का केंद्र बनाने, उन पर शोध अनुसंधान का काम हो, इसकी कोशिश होगी। अपने बहुत प्रतिभावान पूर्व विद्यार्थियों, पूर्व प्राध्यापकों, पूर्व महानिदेशकों से संवाद करते हुए, उनकी सलाह लेते हुए इसे जीवंत व ऊर्जावान परिसर बनाने की कोशिश होगी। जहां बिना छूआछूत के सभी विचारों और प्रतिभाओं का स्वागत होगा। एक समर्थ भारत बनाने में कम्युनिकेशन और कम्युनिकेटर्स बहुत खास भूमिका है, हम इस ओर जोर देंगे। 

नई शिक्षा नीति कितनी सहीकितनी गलत, इस बारे में क्या है आपका मानना?

नई शिक्षा बहुत सुविचारित और सुचिंतित तरीके से प्रकाश में आई है। इसको बनाने के पहले जो मंथन हुआ है, जिस तरह पूरे देश  के लोगों की राय ली गयी है, वह प्रक्रिया बहुत खास  है। इसमें भारतीयता, भारत बोध, नैतिक शिक्षा, पर्यावरण और भारतीय भाषाओं को सम्मान देने के विषय जिस तरह से संबोधित किए गए हैं, उसके कारण यह विशिष्ट बन गयी  है। उच्च शिक्षा को स्ट्रीम से मुक्त करना एक तरह का क्रांतिकारी फैसला है। 0 से  8 साल के बच्चों का विचार। जन्म से लेकर पीएचडी तक बच्चे की परवाह यह शिक्षा नीति करती है। मुझे लगता है कि नीति के तौर इसमें कोई समस्या  नहीं है। इसे जमीन पर उतारना एक कठिन काम है। इसलिए शिक्षाविदों, शिक्षा से जुड़े अधिकारियों और संचारकों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गयी है। इस शिक्षा नीति को हम उसके वास्तविक संकल्पों के साथ जमीन पर उतार पाए तो एक ऐसा भारत बनेगा जिसकी कल्पना हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के नायकों ने की थी। मुझे लगता है कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की मंशाएं बहुत स्पष्ट हैं, अब समय हमारे द्वारा किए जाने वाले क्रियान्वयन और डिलेवरी का है। निश्चय ही इस कठिन दायित्वबोध ने हम सबमें ऊर्जा का संचार भी किया है। 

एक आखिरी सवालपत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले नए विद्यार्थियों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?

आज की पत्रकारिता दो आधारों पर खड़ी है, एक भाषा, दूसरा तकनीकी ज्ञान। तकनीक दिन-प्रतिदिन और माध्यमों के अनुसार बदलती रहती है। तकनीक ज्यादातर अभ्यास का मामला भी है। हम करते और सीखते जाते हैं। भाषा एक कठिन स्वाध्याय से अर्जित की जाती है। किंतु हमें हर तरह से भाषा में ही व्यक्त होना है। इसलिए हमारे युवा पत्रकारों को भाषा के साथ रोजाना का रिश्ता बनाना होगा। एक अच्छी भाषा में सही तरीके कही गयी बात का कोई विकल्प नहीं है। दूसरा हमें सिर्फ सवाल खड़े करने वाला नहीं बनना है, इस देश के संकटों के ठोस  और वाजिब हल तलाशने वाला पत्रकार बनना है। मीडिया का उद्देश्य अंततः लोकमंगल ही है। यही साहित्य का भी उद्देश्य है, हमारी सारी प्रदर्शन कलाओं का भी यही ध्येय है। इसके साथ ही देश की समझ। देश के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, परंपरा, आर्थिक-सामाजिक चिंताओंसंविधान की मूलभूत चिंताओं की गहरी समझ हमारी पत्रकारिता को प्रामणिक बनाती है। तभी हम समाज के दुखः-दर्द, उसकी चिंताओं को समझकर तथ्य और सत्य पर आधारित पत्रकारिता करने में समर्थ होते हैं। सामाजिक-आर्थिक न्याय से  युक्त, न्यायपूर्ण-समरस समाज हम सबका साझा स्वप्न है। पत्रकारिता अपने इस कठिन दायित्वबोध से अलग नहीं हो सकती।

-विकास जैन द्वारा 17 अगस्त,2020 को  प्रकाशित

लिंक-   https://www.samachar4media.com/interviews-news/interview-of-iimc-dg-sanjay-dwivedi-54094.html

IIMC को विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करने का होगा प्रयास,वेबदुनिया से बोले नवनियुक्त महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी

 

विकास सिंह  (बुधवार, 8 जुलाई 2020, वेबदुनिया से साभार)



वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर संजय द्विवेदी को इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन (IIMC ) के महानिदेशक पर नियुक्त किया गया हैं और वह बहुत जल्द अपनी नई जिम्मेदारी संभालने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के रहने वाले प्रोफेसर संजय द्विवेदी वर्तमान में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति भी हैं। वेबदुनिया ने भारतीय जनसंचार संस्थान के नवनियुक्त महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी से खास बातचीत की।

वेबदुनिया - IIMC के डीजी पद पर आपकी नियुक्ति मध्यप्रदेश के लिए एक गौरव की बात है, आप किस विजन के साथ IIMC जा रहे हैं ?

प्रो.संजय द्विवेदी - जी, निश्चित रूप से मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात है, मेरे अपने विश्वविद्यालय माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के लिए भी गौरव की बात हैं कि यहां से पढ़ाई और मध्यप्रदेश की धरती पर कर्मभूमि के रूप में काम करने के बाद मैं IIMC जैसे महत्वपूर्ण संस्थान के महानिदेशक की कुर्सी पर जा रहा हूं, विजन तो यहीं है कि IIMC जैसा बड़ा और महत्वपूर्ण संस्थान जो भारत सरकार के प्राइम इंस्टिट्यूट में गिना जाता है, वह पहले से ही बहुत अच्छा संस्थान है उसको और बेहतर बनना, सूचना प्रसारण मंत्रालय की उस परिकल्पना को कि IIMC एक विश्वविद्यालय के रूप में रूप में स्थापित हो, इस दिशा में प्रयास होगा।

वेबदुनिया - आप हमेशा युवाओं को आगे बढ़ाने की बात कहते हैं और अब आप बहुत कम उम्र में IIMC जैसे राष्ट्रीय और महत्वपूर्ण संस्थान के महानिदेशक की कामकाज संभालने जा रहे हैं ?

प्रो. संजय द्विवेदी - देखिए मुझे लगता है जो विश्वास जताया गया है मुझ पर, शासन और प्रशासन ने उसको लिए मैं माननीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जी और सभी का धन्यवाद करता हूं। मेरा चयन बाकायदा चयन प्रकिया के जरिए हुआ है तो निश्चित रूप से उन्होंने कुछ संभावनाएं देखी होंगी मेरे अंदर जिसके लिए मुझे बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।

 

वेबदुनिया - वैश्विक महामारी कोरोना के समय माखनलाल यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन संवाद एक अलग तरह की श्रृखंला शुरु की गई।

प्रो. संजय द्विवेदी - माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय प्रारंभ से ही नवाचारों की तरफ प्रेरित करता रहा है और बहुत से नवाचार कार्यक्रम यहां पहले से होते रहे हैं, मैंने कुछ नया किया ऐसा नहीं है, विश्वविद्यालय में सतत संवाद की एक परंपरा है। इन आयोजनों के माध्यम से जो हम सीखते हैं और जिस तरह राष्ट्रीय स्तर के लोगों से संवाद करते हैं और उनकी प्रतिभा से परिचय होते हैं, तो यह माखनलाल की एक पंरपरा है और इसका ही मैने निर्वहन किया और इस नाते पहले 8 दिनों का हिंदी पत्रकारिता सप्ताह जिसका उद्घाटन माननीय राज्यपाल लालजी टंडन ने किया और उसके बाद कुलपित संवाद जिसमें 6 राज्यों के 7 कुलपति ने अपने विचार रखे और इसके बाद स्त्री शक्ति संवाद कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इन संवादों के माध्यम से विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलती हैं उनको मोटिवेशन मिलता है और नया सीखने का अवसर प्राप्त होता है।

वेबदुनिया - कोरोना काल में आपकी नजर हायर एजुकेशन में किस तरह नई प्लानिंग की जरूरत है?

प्रो. संजय द्विवेदी - शिक्षा के क्षेत्र में डिटिटाइलजेशन हो रहा है और हमें डिजिटिल माध्यमों पर ज्यादा विश्वास करना पड़ेगा और जब हालात सामान्य होंगे तो सामान्य कक्षाएं भी होगी, बावजूद इसके सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही जा रही है, उसके लिए अधिक से अधिक - माध्यमों और -कंटेट का इस्तेमाल करते हुए, विद्यार्थियों का मनोबल बनाए रखते हुए उनमें निराशा की भावना आए वे किसी तरह उदास, हताश और अवसाद के शिकार हो इन चीजों का विचार करते हुए उनका मनोबल बनाए रखने का काम करना होगा और कक्षाओं को जारी रखते हुए बच्चों से सतत संपर्क और संवाद बनाए रखना होगा।

वेबदुनिया IIMC ऐसा संस्थान है जहां देश भर से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं, ऐसे में कोरोना काल में आप की प्राथमिकता क्या होगी ?

प्रो. संजय द्विवेदी - निश्चित रूप से IIMC में प्रवेश लेना एक सपना होता है और मीडिया की पढ़ाई करने वाला हर विद्यार्थी प्रयास करता है कि उसका IIMC में प्रवेश हो। ऐसे में कोरोना को देखते हुए जो भी रणनीति वहां बन रही होगी और वहां प्रशासन और मंत्रालय के अधिकारी जो भी दिशा निर्देश देंगे उसका पालन कराया जाएगा, बच्चों के सुरक्षा और स्वास्थ्य पहली प्राथमिकता होगी।

 

वेबदुनिया - युवाओं के लिए आप एक ऑइकॉन है, मीडिया के क्षेत्र में आने वाले वाले छात्रों को क्या सलाह देना चाहेंगे ?

प्रो. संजय द्विवेदी - देखिए मुझे लगता है कि अपने काम में ईमानदारी और प्रामणिकता रखने के साथ परिश्रम करना चाहिए क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है। सामान्य परिवार से आने वाले बच्चों के पास दो ही शक्ति होती है उनकी क्रिएटिविटी और उनके आईडियाज, अगर परिश्रम के साथ काम करते हैं तो अपार संभावनाएं हैं, मीडिया और आईटी के क्षेत्र में काम करने वालों की बहुत जरूरत हैं, आज अच्छे काम करने वालों का अभाव हैं। अगर धैर्य के साथ थोड़ा समय देकर अपनी योग्यता और स्किल को बढ़ाते हुए धीरे धीरे आगे बढ़े तो निश्चित रूप से हम उन ऊंचाइयों और सफलता को प्राप्त कर सकते हैं जो हमारे तमाम शीर्ष लोगों ने प्राप्त की है

वेबदुनिया - आप उन सौभाग्यशाली लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने जिस यूनिवर्सिटी में छात्र के रूप में पढ़ाई की वहीं कुलपति बनें ?

प्रो. संजय द्विवेदी - माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय एक ऐसा संस्थान है जिसके अनके विद्यार्थियों ने शिखरतम पद हासिल किए हैं। आज अनेक संपादकों, टीवी चैनल के एडिटर का नाम ले सकता हूं, अगर मैं नाम गिनाऊंगा तो संकट पैदा होगा, मैं अकेला नहीं हूं ऐसे अनेक पत्रकार है जो आज देश ही नहीं विदेश में बड़े बड़े पदों पर कार्यरत हैं और जिन्होंने यूनिवर्सिटी की नाम रोशन किया है।

वेबदुनिया - कुलगुरू के रूप में आप माखनलाल और IIMC के छात्रों के लिए क्या मंत्र देना चाहेंगे?

प्रो. संजय द्विवेदी - मेरा एक ही मंत्र है, मेहनत से कभी पीछे नहीं रहिए, अपनी क्रिएटीविटी, आईडियाज, लेखन की शक्ति से अपने व्यक्तित्व को को मांजते हुए चलिए। हर दिन हमें कुछ सीखना हैं ये भाव लेकर चालिए तो धीरे-धीरे आपका व्यक्तित्व ऐसा व्यक्तित्व बनेगा जिससे लोग आर्कषित होंगे जिससे लोग सीखना चाहेंगे और सफलता आपके कदम चूमेंगी। मैं माखनलाल और आईआईएमसी के सभी विद्यार्थियों को उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामना देता हूं वह आगे चलकर मीडिया और आईटी के क्षेत्र में भारत का नेतृत्व करें।