-संजय द्विवेदी
देश में मध्यप्रदेश इकलौता ऐसा राज्य है, जहां
पर आम नागरिकों के हितों की आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों के हित में पिछले
11 वर्षों में कई क्रांतिकारी निर्णय हुए हैं। इन निर्णयों से मध्यप्रदेश के 52
जिलों में 24 घंटे समाज को समर्पित रहते हुए मीडिया का काम कर रहे पत्रकारों में
एक आत्मीय माहौल है और वह अपने काम को बखूबी अंजाम दे पा रहे हैं। यह हम सभी जानते
हैं कि पत्रकार समाज का दर्पण होता है और वह समाज मे घटित घटनाओं, जानकारियों और सूचनाओं को समाज तक पहुंचाने का काम करता है।
शब्दसाधकों का रखा
ख्यालः
पत्रकार की कलम सरकार की बड़ी योजनाओं पर भी
चलती है। उनकी कमियों और क्रियान्वयन में हो रही गड़बड़ियों को वह रेखांकित करते
हैं। पिछले 11 वर्षों में पत्रकारों ने अपनी इस भूमिका को जिम्मेदारी के साथ
निभाया है। जिसके परिणाम स्वरूप मप्र शिक्षा, सड़क, बिजली, स्वास्थ्य जैसी कई
नई-नई योजनाओं के क्षेत्र में आगे बढ़ सका है। सिर्फ एक दशक पहले मध्यप्रदेश की गिनती बीमारू राज्यों में होती
थी और बिजली का आलम यह था कि वह “आ गयी और चली गयी” यही शीर्षक समाचार पत्रों में दिखते थे। सड़कें
अपनी दुर्दशा पर आंसूं बहा रही थीं। स्वास्थ्य का ‘स्वास्थ्य’ ही बिगड़ा हुआ था। ऐसे अनेक विषय देश के
ह्दयप्रदेश की छवि को बिगाड़ रहे थे। एक नेतृत्व ने मध्यप्रदेश को फिर से खड़े
होने और संभलने का अवसर तथा संबल प्रदान किया। नेतृत्व के कदमताल में मध्यप्रदेश
का मीडिया भी सहभागी बना।
“ पांव-पांव वाले
भैया” को जगत मामा बनाने और विकास का एक स्वच्छ आईना
प्रस्तुत करने वाले राजनेता की छवि बनाने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है। इसी
का प्रतिफल है कि मध्यप्रदेश में आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश, मध्यप्रदेश गान,
मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस जैसे आयोजन आज जन-जन की जुबान पर सुने जा सकते हैं।
माटी का गौरव जगाने
की कोशिशः
आंचलिकता और क्षेत्रीयता में बंटे मध्यप्रदेश
को शिवराज सिंह चौहान ने एकता के सूत्र में पिरोने का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।
उन्होंने यहां के नागरिकों में एक ऐसा भाव पैदा किया जिसके चलते न उनमें अपनी माटी
के प्रति प्रेम पैदा हुआ बल्कि उनमें इस जमीन पर विकास की ललक भी जगाई। इस मामले
वे एक आशावादी और विकासवादी राजनेता के रूप में सामने आते हैं। मध्यप्रदेश सरकार
द्वारा पिछले पंद्रह वर्षों में जहां एक ओर विकास की अनेक योजनाओं को अमली जामा
पहनाया गया,वहीं दूसरी ओर समाज सेवा में रत पत्रकारों के हित में भी कई जनोपयोगी
और क्रांतिकारी फैसले लिए हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मध्यप्रदेश
के पत्रकारों को उनके दायित्वबोध को निभाने के लिए संबल देने का काम इस सरकार ने
किया है। इसी कड़ी में सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में लागू की गयी पत्रकार सामूहिक
बीमा योजना, उपचार योजना तथा अधिमान्यता के लिए तहसील एवं ब्लाक स्तर पर प्रावधान
किया जाना उल्लेखनीय है। साठ वर्ष से ऊपर के पत्रकारों को श्रद्धानिधि के माध्यम
से उनकी सेवाओं के लिए उन्हें सम्मानित करने का काम किया है। मध्यप्रदेश के कई स्थानों
पर न्यूनतम दरों पर पत्रकार कालोनियों का निर्माण हुआ है। कई पत्रकार भवन बने हैं।
पत्रकार हित के इन फैसलों से मीडिया जगत अपनी सेवाओं को ज्यादा जनोन्मुखी बना पा
रहा है। सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने में मीडिया की भूमिका ज्यादा प्रखर हो
इसके लिए उनका सम्मान और व्यस्थापन ठीक हो, इसके लिए सरकार की नजर रही है। बेहतर
काम कर रहे पत्रकारों एवं छायाकारों के लिए अनेक सम्मान और पुरस्कार तो सरकार दे
ही रही है।
अन्नदाता का बढ़ाया
मानः
मध्यप्रदेश
के अन्नदाता का मान इस सरकार ने बढ़ाया है। जिसके फलस्वरूप किसानों द्वारा की गयी
मेहनत का नतीजा है कि मध्यप्रदेश अनाज के उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ राज्य बन सका
है। इस अद्भुत और उल्लेखनीय उपलब्धि के चलते मध्यप्रदेश को लगातार कृषि कर्मण
अवार्ड मिल रहा है। यह सच है कि विकास के लिए शांति होना बेहद आवश्यक है।
मध्यप्रदेश को शांति का टापू बनाने का श्रेय भी शिवराज सिंह को जाता है। चंबल के
बीहड़ कभी डकैतों का अभ्यारण्य हुआ करते थे, सरकार ने मुहिम चलाकर डकैतों का जहां
एक ओर सफाया कर दिया वहीं दूसरी ओर डकैतों एवं बदमाशों के नाम पर हो रही अवैध
वसूली को भी रोकने का काम किया है। अभी हाल में ही भोपाल जेल से भागे सिमी
आतंकवादियों का एनकाउंटर सरकार की बड़ी उपलब्धि है। अपराधी और बदमाशों के साथ हमें
सख्त होना ही पडेगा अन्यथा सरकार और प्रशासन से लोगों का भरोसा उठ जाएगा और वह खुद
को असुरक्षित महसूस करने लगेगें। इस भय को मध्यप्रदेश में समूल नष्ट करने का
प्रयास सफल रहा है। निःसंदेह आज मध्यप्रदेश के सभी कोनों पर सुरक्षा,
कानून-व्यवस्था और सदभाव का वातावरण हमें दिखाई देता है। मप्र का दृश्य पूरी तरह
बदल चुका है, यहां इनवेस्टर्स समिट के जरिए उद्योगपति आते हैं, चर्चा करते हैं और
करोड़ों रूपए के प्रोजेक्ट लगाने पर मोहर लगाते हैं।
स्त्री सम्मान के
लिए बड़ी पहलः
एक समय
था जब लड़की को समाज में बोझ समझा जाता था। इस सामाजिक मानसिकता को योजनाओं के
जरिए बदलने का काम शिवराज जी ने किया। इस काम को उन्होंने दिल से किया और स्त्री
सम्मान को भारतीय राजनीति का केंद्रीय विषय बना दिया। यह साधारण नहीं है कि उनकी
बनाई योजनाएं कई अन्य राज्यों ने भी स्वीकार की और उन पर अमल प्रारंभ कर दिया है।
बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा कराने वाला मध्यप्रदेश संभवतः पहला राज्य बना। यहां
लागू की गयी तीर्थ दर्शन योजना वास्तव में अपनी जड़ों से जोड़ती है और एक सपने को
सच भी करती है। मध्यप्रदेश सरकार ने योजनाओं के साथ-साथ समाज में घटित घटनाओं एवं
ज्वलंत विषयों पर मंथन करने के लिए बौद्धिक विमर्श भी आयोजित किए। उज्जैन महाकुंभ को
वैचारिक महाकुंभ बनाने वाली शिवराज सरकार ने विश्व हिंदी सम्मेलन का आतिथ्य लेकर
विश्व को हिंदी जगत के वैश्विक स्वरूप से परिचित कराया। इसके साथ ही मूल्य आधारित
जीवन और लोकमंथन जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों से सरकार ने अपनी दिशा और दृष्टि दोनों
प्रकट कर दी। इन आयोजनों में राज्य के मुखिया की संलग्नता और आतिथ्यभाव देखते ही
बनता था। इससे उनकी सदाशयता और मनुष्यता का बार-बार प्रकटीकरण हुआ।
खोले सीएम हाउस के
द्वारः
मुख्यमंत्री निवास में जाना और वहां भोजन करना
एक सुखद अनुभव होता है, किंतु वह कुछ गिने-चुने लोगों और राजपुरूषों को ही नसीब
होता था। शिवराज जी ने मुख्यमंत्री निवास के द्वार आम लोगों के लिए खोल दिए और एक
के बाद एक वर्गों और समुदायों की पंचायतें मुख्यमंत्री निवास में आयोजित कीं। इन
पंचायतों में समाज की परेशानियों को सरकार ने समझा और उनके ठोस और वाजिब समाधानों
के लिए वहीं पर बैठकर नीति विषयक घोषणाएं की गयीं और उन पर अमल भी हुआ। इन
पंचायतों में शामिल आम आदमी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी ने अपने हाथ से परोसकर
भोजन कराया। ऐसे दृश्य भारतीय राजनीति में दुर्लभ हैं।
शिवराज सिंह जानते हैं वे एक
ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री हैं, जो विकास के सवाल पर काफी पीछे था, इसलिए वे राज्य
के सामाजिक प्रश्नों को संबोधित करते हैं। लाड़ली लक्ष्मी, जननी सुरक्षा योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, पंचायतों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण ऐसे प्रतीकात्मक
कदम हैं जिसका असर जरूर दिखने लगा है। इसी तरह राज्य में कार्यसंस्कृति विकसित
करने के लिए लागू किए गए लोकसेवा गारंटी अधिनियम को एक नई नजर से देखा जाना चाहिए।
शायद विश्ल के प्रशासनिक इतिहास में ऐसा प्रयोग देखा नहीं गया है। किंतु
मध्यप्रदेश की जनता जागरूक होकर इस कानून का लाभ ले सके तो, सरकारी काम की संस्कृति बदल जाएगी और लोगों को सीधे राहत
मिलेगी। शिवराज विकास की हर घुरी पर फोकस करना चाहते हैं। क्योंकि मप्र को हर
मोर्चे पर अपने पिछड़ेपन का अहसास है। उन्हें अपनी कमियां और सीमाएं भी पता हैं।
वे जानते हैं कि एक जागृत और सुप्त पड़े समाज का अंतर क्या है। इसलिए वे समाज की
शक्ति को जगाना चाहते हैं। वे इसलिए मप्र के अपने नायकों की तलाश कर रहे हैं।
वनवासी यात्रा के बहाने वे इस काम को कर पाए। टंटिया भील, चंद्रशेखर आजाद, भीमा नायक का स्मारक और उनकी
याद इसी कड़ी के काम हैं।
सदैव
आमजनों की चिंताः
एक
साझा संस्कृति को विकसित कर मध्यप्रदेश के अभिभावक के नाते उसकी चिंता करते हुए शिवराज
जी हमेशा दिखते हैं। मुख्यमंत्री की यही जिजीविषा उन्हें एक सामान्य कार्यकर्ता से
नायक में बदल देती है। शायद इसीलिए वे विकास के काम में सबको साथ लेकर चलना चाहते
हैं। राज्य के स्थापना दिवस एक नवंबर को उन्होंने उत्सव में बदल दिया है। वे चाहते
हैं कि विकासधारा में सब साथ हों, भले ही विचारधाराओं का अंतर
क्यों न हो। यह सिर्फ संयोग ही नहीं है कि जब मप्र की विकास और गर्वनेंस की तरफ देश
एक नई नजर से देख रहा है तो पूरे देश में भी तमाम राज्यों में विकासवादी नेतृत्व
ही स्वीकारा जा रहा है। बड़बोलों और जबानी जमाखर्च से अपनी राजनीति को धार देने
वाले नेता हाशिए लगाए जा रहे हैं। ऐसे में शिवराज सिंह का अपनी पहचान को निरंतर
प्रखर बनाना साधारण नहीं है। मध्यप्रदेश की जंग लगी नौकरशाही और पस्त पड़े तंत्र
को सक्रिय कर काम में लगाना भी साधारण नहीं है। जिस राज्य के 45.5 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, उस राज्य की चुनौतियां साधारण नहीं है, शुभ संकेत यह है कि ये सवाल राज्य के मुखिया के जेहन में भी
हैं।