- प्रो. संजय द्विवेदी
सफल जीवन के चार सूत्र कहे जाते हैं - जिज्ञासा, धैर्य, नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता। जिज्ञासा का मतलब है जानने की इच्छा। धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में खुद को संभाले रखना। नेतृत्व की क्षमता यानी जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। और एकाग्रता का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केंद्रित करना। अगर भारत के संदर्भ में हम देखें, तो किसी व्यक्ति के जीवन में ये चारों सूत्र चरितार्थ होते हैं, तो वो सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। नेताजी ने एक ऐसी सरकार के विरुद्ध लोगों को एकजुट किया, जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था। दुनिया के एक बड़े हिस्से में जिसका शासन था। अगर नेताजी की खुद की लेखनी पढ़ें, तो हमें पता चलता है कि वीरता के शीर्ष पर पहुंचने की नींव कैसे उनके बचपन में ही पड़ गई थी।
वर्ष
1912 में यानी आज से 110 साल पहले, उन्होंने अपनी मां को जो चिठ्ठी लिखी थी, वो चिट्ठी
इस बात की गवाह है कि नेताजी के मन में गुलाम भारत की स्थिति को लेकर कितनी वेदना
थी। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी। सैंकड़ों वर्षों की गुलामी ने देश का जो
हाल कर दिया था, उसकी पीड़ा उन्होंने अपनी मां से पत्र के
द्वारा साझा की थी। उन्होंने अपनी मां से पत्र में सवाल पूछा था कि, “मां, क्या हमारा देश
दिनों-दिन और अधिक पतन में गिरता जाएगा? क्या ये दुखिया
भारत माता का कोई एक भी पुत्र ऐसा नहीं है, जो पूरी तरह अपने
स्वार्थ को तिलांजलि देकर, अपना संपूर्ण जीवन भारत मां की
सेवा में समर्पित कर दे? बोलो मां, हम
कब तक सोते रहेंगे?” इस पत्र में उन्होंने अपनी मां से पूछे
गए सवालों का उत्तर भी दिया था। उन्होंने अपनी मां को स्पष्ट कर दिया था कि अब
और प्रतीक्षा नहीं की जा सकती, अब और सोने का समय नहीं है,
हमको अपनी जड़ता से जागना ही होगा, आलस्य त्यागना
ही होगा और कर्म में जुट जाना होगा। अपने भीतर की इस तीव्र उत्कंठा ने उस किशोर
सुभाष चंद्र को नेताजी सुभाष चंद्र बोस बनाया।
नेताजी
कहा करते थे कि, “सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ
पर खड़ी होती है। इसलिए किसी को असफलता से घबराना नहीं चाहिए।” इस छोटी सी पंक्ति के माध्यम से नेताजी ने असफल और निराश लोगों के लिए
सफलता के नए द्वारा खोल दिए। यही सरलता और सहजता ही उनकी संचार कला का अभिन्न अंग थी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के साथ-साथ पत्रकारिता भी की थी और उसके माध्यम से पूर्ण स्वराज के अपने स्वप्न
और विचारों को शब्दबद्ध किया था। नेताजी ने 5 अगस्त, 1939 को
अंग्रेजी में राजनीतिक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’
निकाला और 1 जून, 1940 तक उसका संपादन किया। इस
अखबार के एक अंक की कीमत थी, एक आना। नेताजी ने अपनी
पत्रकारिता का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता के लक्ष्य से जोड़ रखा था। नेताजी सुभाष
चंद्र बोस की पत्रकारिता में यह विवेक था कि सही बात का अभिनंदन और गलत का विरोध
करना चाहिए। नेताजी अंग्रेजी शासन के धुर विरोधी थे, लेकिन
ब्रिटेन के जिन अखबारों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम का समर्थन किया, उसकी प्रशंसा करते हुए उन अखबारों के मत को नेताजी ने अपने अखबार में
पुनर्प्रस्तुत किया। नेताजी ने स्वाधीनता की लक्ष्यपूर्ति के लिए अखबार निकाला,
तो रेडियो के माध्यम का भी उपयोग किया। 1941 में ‘रेडियो जर्मनी’ से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने
भारतीयों के नाम संदेश में कहा था, “तुम मुझे खून दो,
मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” उसके बाद 1942 में ‘आजाद हिंद रेडियो’ की स्थापना हुई, जो पहले जर्मनी से और फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिए समाचार
प्रसारित करता रहा। 6 जुलाई, 1944 को ‘आजाद
हिंद रेडियो’ से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार महात्मा
गांधी के लिए ‘राष्ट्रपिता’ संबोधन का
प्रयोग किया था।
आजाद
हिंद सरकार की स्थापना के समय नेताजी ने शपथ लेते हुए एक ऐसा भारत बनाने का वादा
किया था,
जहां सभी के पास समान अधिकार हों, सभी के पास
समान अवसर हों। आज स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भारत अनेक कदम आगे बढ़ा है,
लेकिन अभी नई ऊंचाइयों पर पहुंचना बाकी है। इसी लक्ष्य को पाने के
लिए आज भारत के सवा सौ करोड़ लोग नए भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। एक
ऐसा नया भारत, जिसकी कल्पना नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने की
थी। समाज के प्रत्येक स्तर पर देश का संतुलित विकास, प्रत्येक
व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण का अवसर और राष्ट्र की प्रगति में उसकी भूमिका,
नेताजी के विजन का एक अहम हिस्सा था। नेताजी ने कहा था, “हथियारों की ताकत और खून की कीमत से तुम्हें
आजादी प्राप्त करनी है। फिर जब भारत आजाद होगा, तो देश के
लिए तुम्हें स्थाई सेना बनानी होगी, जिसका काम होगा हमारी
आजादी को हमेशा बनाए रखना।” आज भारत एक ऐसी सेना के निर्माण
की तरफ बढ़ रहा है, जिसका सपना नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने
देखा था। जोश, जुनून और जज्बा, हमारी
सैन्य परम्परा का हिस्सा रहा है। अब तकनीक और आधुनिक हथियारी शक्ति भी उसके साथ
जोड़ी जा रही है। सशस्त्र सेना में महिलाओं की बराबर की भागीदारी हो, इसकी नींव नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही रखी थी। देश की पहली सशस्त्र
महिला रेजिमेंट, जिसे रानी झांसी रेजिमेंट के नाम से जाना
जाता है, भारत की समृद्ध परम्पराओं के प्रति सुभाष बाबू के
आगाध विश्वास का परिणाम था।
नेताजी
जैसे महान व्यक्तित्वों के जीवन से हम सबको और खासकर युवाओं को बहुत कुछ सीखने को
मिलता है। लेकिन एक और बात जो सबसे ज्यादा प्रभावित करती है,
वो है अपने लक्ष्य के लिए अनवरत प्रयास। अपने संकल्पों को सिद्धि तक
ले जाने की उनकी क्षमता अद्वितीय थी। अगर वो किसी काम के लिए एक बार आश्वस्त हो
जाते थे, तो उसे पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक प्रयास
करते थे। उन्होंने हमें ये बात सिखाई कि, अगर कोई विचार बहुत
सरल नहीं है, साधारण नहीं है, अगर
इसमें कठिनाइयां भी हैं, तो भी कुछ नया करने से डरना नहीं
चाहिए। अगर हमें नेताजी को याद रखना है, तो संपूर्ण दुनिया
में अपने प्रत्येक विचार, सिद्धांत, व्यवहार
को किसी जन समूह के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने वाले संचारक के रूप में याद रखना
चाहिए। आज भारत में जनसंचार के विभिन्न माध्यम हैं। आजादी के पूर्व सीमित संचार के
साधनों के बाद भी नेताजी लोकप्रिय हुए। वे तब लोकप्रिय हुए, जब
जन संचार की कोई अधोसंरचना उपलब्ध नहीं थी। भारत जैसी विविधता वाले देश में एक
राष्ट्र की अवधारणा को बढ़ावा देने का कार्य एक कुशल संचारक ही कर सकता था और यह
कार्य नेताजी ने किया। नेताजी ने अपने व्यक्तित्व के प्रयास से स्त्री, पुरुष, शिक्षित, अशिक्षित,
किसान, मजदूर, पूंजीपति,
सभी को प्रभावित किया और देश की स्वतंत्रता के लिए सबको एक साथ
पिरोने का कार्य किया।
आज
जिस मॉर्डन इंडिया को हम देख पा रहे हैं, उसका
सपना नेताजी ने बहुत पहले देखा था। भारत के लिए उनका जो विजन था, वो अपने समय से बहुत आगे का था। नेताजी कहा करते थे कि अगर हमें वाकई में
भारत को सशक्त बनाना है, तो हमें सही दृष्टिकोण अपनाने की
जरुरत है और इस कार्य में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। एकता, अखंडता और आत्मविश्वास की हमारी ये यात्रा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के
आशीर्वाद से निरंतर आगे बढ़ रही है।
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