-संजय
द्विवेदी
माखनलाल
चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का नाम लेते ही मन सुखद
अहसासों से भर जाता है। उन मीठे दिनों की याद आती है, जब हम सबने यहां अपना
व्यक्तित्व गढ़ा और ‘काम के आदमी’ बने।
वे दिन और आज के दिनों में लंबा फासला है। पर भावनाएं वही हैं बहुत गहरी, बहुत
प्यारी और बहुत संजीदा कर देने वाली, बहुत ताकत देने वाली।
1995
में इस परिसर से पढ़कर निकला, दुनिया देखी। अनेक मीडिया संस्थानों में काम करते
हुए एमसीयू का विकास देखा। आज 25 साल पूरे कर चुका यह संस्थान अपने आप में एक
मिसाल बन चुका है। बहुत से झंझावातों, विवादों और सरकारों की अनदेखी को स्वीकारता
हुआ, अपने दम पर इसने अपनी जगह बनाई है। यहां के प्राध्यापक, कर्मचारी, अधिकारी और
उन सबसे ज्यादा यहां के विद्यार्थी जो देशभर में अपनी कीर्ति से इसे गौरव दे रहे
हैं। एमसीयू ने भारतीय मीडिया को ऐसे गौरवशाली चेहरे दिए हैं, जिन पर भारतीय समाज
बहुत लंबे समय तक गर्व करेगा। मीडिया में हो रहे परिर्वतनों की गति को पहचान कर
इसने अपना निरंतर परिष्कार किया है। यह एक ऐसा परिसर है जिसने भारतीय मीडिया और सूचना
प्रौद्योगिकी की दुनिया को बहुत समृद्ध किया है। इस विश्वविद्यालय का पूर्व
विद्यार्थी होने के नाते मेरी भावनाएं इस परिसर से कुछ अलग तरह से जुड़ी हुई हैं,
किंतु सच तो सच होता है। वह किसी भी कारण से बदलता नहीं।
भोपाल से बाहर जाकर
देखिए इस परिसर कोः
भोपाल या मध्यप्रदेश
में रहते हुए आपको इसका भान नहीं होगा, आप मप्र से बाहर जाकर देखिए। माखनलाल
चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नाम का डंका देश भर में बज रहा है। मीडिया
की दुनिया में एमसीयू वालों ने जो किया है, वह दिल्ली में मीडिया के लोग बताएंगें।
बड़े संपादक बताएंगें। टीवी मीडिया की पहली पीढ़ी में अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने
एमसीयू के भोपाल कैम्पस से पढ़ाई की और एक खास जगह बनाई। भरोसा न हो तो संजय सलिल,
दिलीप तिवारी(जी न्यूज), अभिषेक शर्मा अनुराग द्वारी(एनडीटीवी इंडिया), रजनीकांत
सिंह (सहारा), रघुवीर रिछारिया (एबीपी न्यूज) वैभववर्धन, पशुपति शर्मा, (इंडिया न्यूज), प्रकाश पंत (डीडी न्यूज), कृष्णमोहन
मिश्रा,प्रवीण दुबे, शैलेंद्र तिवारी (जी न्यूज), रवि मिश्रा (ईटीवी),
नितिशा कश्यप (सीएनएन आईबीएन न्यूज), संयुक्ता बनर्जी, अमित कुमार सिंह, संदीप
सोनवलकर, राकेश पाठक(इंडिया टीवी) विश्वेष ठाकरे ऐसे न जाने कितने नामों के बारे
में टीवी मीडिया के धुरंधरों से पूछिए। इसी तरह प्रिंट मीडिया की दुनिया में स्व.
वेदव्रत गिरी, आनंद पाण्डेय, सुनील शुक्ला, श्यामलाल यादव, विजयमनोहर तिवारी,
शिवकेश मिश्र, संजीव कुमार शर्मा, अमिताभ श्रीवास्तव, जितेंद्र मोहन रिछारिया,सतीश
एलिया, दीपक तिवारी, धर्मेंद्र मोहन पंत, स्मृति जोशी, अजीत सिंह, अमन नम्र,
पुरूषोत्तम कुमार, आनंद सिंह, वरूण सखाजी, अरूण तिवारी, चैतन्य चंदन, दीपक साहू,
आलोक मिश्रा, मनोज प्रियदर्शी, धनंजय प्रताप सिंह, मनोज दुबे जैसे सैकड़ों नाम
हैं, जिन्होंने एक बड़ी जगह बनाई है। डिजिटल के सर्वथा नए प्लेटफार्म पर अनुज खरे,
आशीष महर्षि, अंकुर विजयवर्गीय, शेफाली चतुर्वेदी, पंकज कुमार साव, स्नेहा शिव,
कौशलेंद्र विक्रम सिंह, कौशल वर्मा, तृषा गौर जैसे अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं,
जिनका स्थान बना है। सामाजिक क्षेत्र में सचिन जैन, राजू कुमार, देवाशीष मिश्रा,
अमरेश चंद्रा, नीलिमा भार्गव, सत्यप्रकाश आर्य, कविता शाह, आकृति श्रीवास्तव का
नाम भी उल्लेखनीय है। इस विश्वविद्यालय से निकले विद्यार्थी आज मीडिया और आईटी
शिक्षा में एक शिक्षक के रूप में भी पहचान बना चुके हैं, जिनमें डा. पवित्र
श्रीवास्तव, डा. राखी तिवारी, डा. अरूण कुमार भगत, डा. अनुराग सीठा, डा. आरती
सारंग, डा.संजीव गुप्ता, मीता उज्जैन, प्रदीप डहेरिया, सत्येंद्र डहरिया,
(एमसीयू), नृपेंद्र शर्मा, आशुतोष मंडावी,(कुशाभाऊ ठाकरे विवि) अमिता (बीएचयू) के
नाम गिनाए जा सकते हैं।
इसी तरह एमसीयू के कंप्यूटर विभाग के विद्यार्थी
आज कंपनियों में सीईओ जैसे पदों को भी सुशोभित कर रहे हैं। विश्वविद्यालय के
विद्यार्थी आज मीडिया, जनसंचार, विकास संचार, सरकारी जनसंपर्क, मीडिया शिक्षा से
लेकर एनजीओ और आईटी सेक्टर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
परिवार भावना से
जुड़े हैं पूर्व विद्यार्थीः
पिछले पांच सालों में माखनलाल चतुर्वेदी
राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने तीन ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन
किया है जिनमें पूर्व विद्यार्थियों ने अपने अनुभव लिखे हैं। इन तीन पुस्तकों में
100 से अधिक विद्यार्थियों ने अपने अनुभव नई पीढ़ी को मार्गदर्शन के लिए शेयर किए
हैं। इन किताबों से गुजरते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार
विश्वविद्यालय का इतिहास विकास साफ नजर आता है। विश्वविद्यालय की इस गौरवशाली
यात्रा के पचीस साल पूरे होने पर देश भर में विमर्श और गोष्ठियों का आयोजन चल रहे
हैं। इन आयोजनों में प्रबुद्ध नागरिकों के साथ-साथ हमारे पूर्व विद्यार्थी भी
सहभागी होते हैं तो खुशी दोगुनी हो जाती है। हाल में ही इंदौर, मुंबई, पटना,
बेंगलुरू, दिल्ली, भोपाल में हुए आयोजनों में पूर्व विद्यार्थियों की सहभागिता
सराहनीय रही। अपने परिसर से उनका जुड़ाव हमें बताता है कि हम किस तरह एक परिवार की
तरह आज भी जुड़े हैं। यह जुड़ाव हमें पूर्व विद्यार्थी सम्मेलनों में दिखता है जब
अपनी व्यस्तता के बाद भी पूर्व विद्यार्थी बड़ी संख्या में आते हैं। हाल में ही
भोपाल में आयोजित पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन में लगभग 400 विद्यार्थियों ने हिस्सा
लिया। यह बात बताती है परिसर किस तरह उनकी भावनाओं से जुड़ा हुआ है।
सतत गतिविधियों से
बनी राष्ट्रव्यापी पहचानः
विश्वविद्यालय ने
अपने स्थापना काल से ही पाठ्यक्रम के साथ-साथ विद्यार्थियों और शोधार्थियों के
मानसिक और बौद्धिक विकास पर ध्यान दिया। इसके निमित्त निरंतर आयोजनों का सिलसिला
विश्वविद्यालय की एक खास पहचान है। सेमीनार, कार्यशालाओं के आयोजन के अलावा विशेष
व्याख्यान निरंतर आयोजित किए जाते हैं। शनिवार को प्रत्येक विभाग में ऐसे आयोजन
होते हैं, जिनमें विविध क्षेत्रों के शीर्ष पुरूष आते हैं और विद्यार्थियों से
संवाद करते हैं। इसके साथ ही विविध विषयों पर पुस्तकों का प्रकाशन एक बड़ा काम है।
स्वतंत्र भारत की शोध परियोजना के तहत लगभग 75 पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। इसके
अलावा अनेक पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन करने के साथ-साथ विश्वविद्यालय वर्तमान में
चार पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कर रहा है, जिनमें मीडिया मीमांसा (शोध पत्रिका),
मीडिया नवचिंतन(विचार पत्रिका), अतुल्य भारतम् (संस्कृत पत्रिका), एमसीयू समाचार(
हाउस जनरल) शामिल हैं। भारत की संचार परंपरा के तहत शोध परक पुस्तकों का प्रकाशन
कर विश्वविद्यालय ने माटी के ऋण को चुकाने का भी प्रयास किया है। अपनी जड़ों से
जुड़े रहकर भावी चुनौतियों को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय अनेक मुद्दों पर काम
कर रहा है। एक यशस्वी पत्रकार, कवि, लेखक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम से
जुड़ा यह परिसर आज अपने होने को सार्थक करता हुआ दिखता है। शिक्षा के क्षेत्र में
स्वालंबन की मिसाल बन चुका यह परिसर आज देश भर के बीच चर्चा का विषय है। विश्वविद्यालय
की संपूर्ण यात्रा रचना और सृजन की संघर्ष यात्रा है। इस यात्रा में उसने तमाम
अनाम चेहरों को नाम और पहचान दी है। यहां आकर नई पीढ़ी आज भी अपने सपनों में रंग
भर रही है और खुद की सार्थकता के लिए निरंतर सक्रिय है। उम्मीद की जानी चाहिए कि
आने वाले समय में यह परिसर अपनी इसी भूमिका का और विस्तार करते हुए अपनी सार्थकता
को साबित करेगा। यह जिम्मेदारी निभाना विश्वविद्यालय परिवार की नैतिक और सामाजिक
जिम्मेदारी दोनों है।
आपने तो निःसंदेह विश्वविद्यालय के कर्मक्षेत्र की सर्वांगीण तस्वीर लेख में व्यक्त कर दी। मेरा सुझाव है कि इसे आगामी रजत पथ में शामिल किया जाए। इससे न सिर्फ विश्वविद्यालय परिवार को बल मिलेगा बल्कि देश के उन क्षेत्रों में भी चर्चा होगी जहाँ अभी तक किसी कारण नाम और ख्याति नहीं पहुँच पाई है। हमें अपने इस परिवार का अभिन्न सदस्य होने पर अभिमान है। यदि आपकी इज़ाज़त हो तो लेख को शेयर करना चाहता हूँ।
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