संघ परिवार के सामने
विचारों को जमीन पर उतारने की चुनौती
-संजय द्विवेदी
उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ का लाभ लेते हुए
अगर मध्यप्रदेश सरकार ने जीवन से जुड़े तमाम मुद्दों पर संवाद करते हुए कुछ नया
करना चाहा तो इसमें गलत क्या है?
सिंहस्थ के पूर्व मध्य प्रदेश की सरकार ने अनेक गोष्ठियां आयोजित कीं और इसमें
दुनिया भर के विद्वानों ने सहभागिता की। इन गोष्ठियों से निकले निष्कर्षों के आधार
पर सिंहस्थ-2016 का सार्वभौम संदेश सरकार ने जारी किया है। मध्यप्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने नवाचारों और सरोकारों के लिए प्रसिद्ध हैं।
उनकी मंशा थी कि कुंभ के अवसर पर होने वाली विचार विमर्शों की परंपरा को इस युग
में भी पुनर्जीवित किया जाए। उनकी इस
विचार शक्ति के तहत ही मध्यप्रदेश में लगभग दो साल चले विमर्शों की श्रृंखला का
समापन उज्जैन के समीप निनोरा गांव में तीन दिवसीय ‘अंतराष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ के रूप में हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना सहित आरएसएस के प्रमुख मोहन
भागवत ने भी शिरकत की।
मूल्य
आधारित जीवन, मानव कल्याण के लिए धर्म, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन,
विज्ञान और अध्यात्म, महिला सशक्तिकरण, कृषि की ऋषि परम्परा, स्वच्छता और
पवित्रता, कुटीर और ग्रामोद्योग जैसे विषयों पर विमर्शों ने इन संगोष्ठियों की
उपादेयता न केवल बढ़ाई है, बल्कि यह आयोजन एक सरकारी कर्मकांड से आगे लोक-विमर्श के
स्वरूप में बदल गया। किसी भी सरकार द्वारा किए जा रहे आयोजन पर यह आरोप लगाना बहुत
आसान है कि यह एक सरकारी आयोजन है। आरोप यह भी लगे कि संघीकरण है। किंतु आप विषयों
की विविधता और विद्वानों की उपस्थिति देखें तो लगेगा कि यह एक सरकार प्रेरित आयोजन
जरूर था, किंतु इसमें जिस तरह से भारतीय भूमि को केन्द्र में रखकर लोकहितार्थ
विमर्श हुआ, वह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है। राजसत्ता को
जनसरोकारों से जोड़ता है और विमर्श की भारतीय परम्परा को मजबूत करता है।
विमर्श के 51 सूत्रों की पुस्तिका प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने जारी की। इन 51 मुद्दों सूत्रों पर नजर डालें तो यह सूत्र भारत से भारत का
परिचय कराते हुए नजर आते हैं। पहली नजर में शायद आपको कुछ नया नजर न भी आए,
क्योंकि जिस धारा को हम छोड़कर आए यह बिंदु आपकी उसी राह पर वापसी कराते हैं। सही
मायने में भारतीय राज्य और राष्ट्र को अपनी नजर से देखना है, अपने घर लौटना है। यह
घर वापसी विचारों की भी है, राजनीतिक संस्कृति की भी है। भारतीय परम्पराओं और
सांस्कृतिक प्रवाह की भी है। इस भावधारा को लोगों तक ले जाना, उनके मन और जीवन में
बसे भारत से उनका परिचय कराना, राजनीति का
काम भले न रहा हो किंतु राजसत्ता को इसे करना चाहिए। यहां जो निकष निकले वह
चौंकाने वाले नहीं हैं। वे वही बातें हैं जिन्हें हमारे ऋषि, विद्वान, पीर-फकीर,
बुद्धिजीवी कहते आ रहे हैं और आधुनिक समय में जिन बातों को महर्षि अरविंद, स्वामी
विवेकानंद, महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया,दीनदयाल उपाध्याय, आचार्य नरेन्द्र देव,
जेबी कृपलानी, डा.बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर, डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा। यह
सिंहस्थ घोषणापत्र जब कहता है कि “विकास
का लक्ष्य सभी के सुख, स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करना है। जीवन में मूल्य
के साथ जीवन के मूल्य का उतना ही सम्मान करना जरूरी है।” इसी घोषणापत्र में कहा गया है कि “धर्म यह सीख देता है
कि जो स्वयं को अच्छा न लगे, वह दूसरों के लिए भी नहीं करना चाहिए। जियों और जीने
दो का विचार हमारे सामाजिक व्यवहार का मार्गदर्शी सिद्धांत होना चाहिए। धर्म एक जोड़ने
वाली शक्ति है अतः धर्म के नाम पर की जा रही सभी प्रकार की हिंसा का विरोध विश्व
भर के समस्त धर्मों , पंथों, संप्रदायों और विश्वास पद्धतियों के प्रमुखों द्वारा
किया जाना चाहिए।”
सिंहस्थ का घोषणा पत्र सिर्फ इस अर्थ में ही महत्वपूर्ण नहीं है कि वह केवल
भारत और भारत के लोगों का विचार करता है बल्कि इसमें विश्व मानवता की चिंता है और
समूची पृथ्वी पर सुख कैसे विस्तार पाए इसके सूत्र इसमें पिरोए गए हैं। यह
पारिस्थितिकी की रक्षा की बात करता है, तो पौधों की चिंता भी करता है। नदियों की
चिंता करता है, तो प्रकृति के साथ सहजीवन की बात भी कही गयी है। अनियोजित शहरीकरण,
अंधाधुंध विकास, रासायनिक खेती, विज्ञापनों में स्त्री देह के वस्तु की तरह
इस्तेमाल से लेकर नारी की प्रतिष्ठा और गरिमा की बात इसमें है। सिंहस्थ घोषणा पत्र
गिरते भूजल स्तर, मिट्टी के क्षरण की चिंता करते हुए ऋषि खेती या जैविक खेती के
पक्ष में खड़ा दिखता है। देशी गायों को बचाने और उनके संवर्धन की चिंता भी यहां की
गई है। यह घोषणा पत्र एक वृहत्तर समाजवाद की पैरवी करते हुए कहता है-“पूंजी का अधिकतम लोगों में अधिकतम प्रसार
ही आर्थिक प्रजातंत्र है। कुटीर उद्योगों को आर्थिक और सामाजिक प्रजातंत्र के
महत्वपूर्ण अंश की तरह देखा जाना चाहिए। ” खेती के बारे में सिंहस्थ घोषणापत्र कहता
है कि “शून्य बजट खेती की अवधारणा को लोकप्रिय करने की
जरूरत है ताकि न्यूनतम लागत से अधिकतम लाभ अर्जित किया जा सके।”
12 से 14 मई,2016 को निनौरा में आयोजित इस
महाकुंभ की विशेषता यह है कि यह एक साथ अनेक विषयों पर बात करते हुए, हमारे समय के
अनेक सवालों से टकराता है और उनके ठोस और वाजिब हल ढूंढने की कोशिश करता है। यह
धर्म की छाया में मानवता के उदात्त विचारों के आधार पर विकास की अवधारणा पर बात
करता है। यह आयोजन राजनीति और विकास के पश्चिमी प्रेरित अधिष्ठानों के खिलाफ खड़ा
है। यह लंबे समय से चल रही विकास की परिपाटी को प्रश्नांकित करता है और भारतीय
स्वावलंबन, ग्राम स्वराज की पैरवी करता है। यह आयोजन सही मायने में गांधी का
पुर्नपाठ सरीखा है। जहां गांव, समाज, गाय, कृषि, स्त्री, विकास की दौड़ में पीछे
छूटे लोगों,किसानों, बुनकरों, चर्मकारों इत्यादि सब पर विचार हुआ। यह साधारण नहीं
था कि मंच से ही बाबा रामदेव ने कहा कि आज से वे मिलों के बने कपड़े नहीं पहनेंगे
और हाथ से बुने कपड़े पहनेंगे। उन्होंने लोगों से भी कहा कि वे भी सूती कपड़े
पहनें, मोची के हाथों से बने जूते पहनें। उन्होंने लोगों से ब्रांड के मोह से बचने
की सलाह दी। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि लोग चाहें तो पतंजलि के बने दंतकांति
के पेस्ट के बजाए दातून करें। जाहिर तौर यह आयोजन भारतीय मेधा के वैश्विक संकल्पों
को तो व्यक्त करता ही था, वैश्विक चेतना से जुड़ा हुआ भी था। कई देशों से आए
प्रतिनिधियों से लेकर निनौरा गांव वासियों के बीच आपसी विमर्श के तमाम अवसर नजर
आए। निनोरा ग्राम वासियों के प्रति मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कार्यक्रम के एक
दिन बाद जाकर आभार भी जताया और कहा कि एक माह के बाद उनके खेतों में फिर खेती हो
सकेगी। इस पूरे आयोजन ने म.प्र. को एक नई तरीके से देखने और सोचने के अवसर दिया है।
पिछले चार सालों से कृषि कर्मण अवार्ड जीत रहे म.प्र. ने खेती के मामले में
राष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाया है। अब उसके सामने एक नई तरह की चुनौती है। वह
विकास की पश्चिमी भौतिकवादी अवधारणा से विलग कुछ करके दिखाए और भारतीय पारंपरिक
मूल्यों के आधार पर कृषि और अन्य संरचनाएं खड़ी करे। विचारों को घरती पर उतारना एक
कठिन काम है, शिवराज सिंह चौहान ने इस बहाने अपने लिए बहुत से नए लक्ष्य तय कर लिए
हैं, देखना है कि उनके ये प्रयोग पूरे देश
को किस तरह आंदोलित और प्रभावित कर पाते हैं। इसके साथ ही संघ परिवार और उसके
संगठनों के सामने सिंहस्थ के विचार महाकुंभ से उपजे विचारों को जमीन पर उतारने की
चुनौती मौजूद है, वरना यह आयोजन भी इतिहास के निर्मम पृष्ठ पर एक मेले से ज्यादा
अहमियत शायद ही रख पाए।
अति सूंदर व्याख्या।। घोषणा पुस्तिका की प्रति उपलब्ध करने की कृपा करें।।
जवाब देंहटाएंअति सूंदर व्याख्या।। घोषणा पुस्तिका की प्रति उपलब्ध करने की कृपा करें।।
जवाब देंहटाएंThanks for sharing Modi Quotes. If you read or find more quotes, suvichar, anmol vachan, click here Quotes and Suvichar
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