रविवार, 15 फ़रवरी 2015

संवेदनाएं हो रही हैं खत्म : तेजिन्दर

पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में वरिष्ठ पत्रकार विनय उपाध्याय का सम्मान


भोपाल, 07 फरवरी। हम बहुत ही कठिन समय में जी रहे हैं, यह हमें याद रखना चाहिए। वर्तमान समय में लोगों की संवेदनाएं खत्म हो रही हैं, यह गंभीर बात है। मीडिया की भी यही स्थिति है। मीडिया के लिए भूख और गरीबी कोई खबर नहीं है। उसकी सारी खबरें राजनीति, क्रिकेट, बॉलीवुड और फैशन के इर्द-गिर्द हैं। ये विचार प्रख्यात उपन्यासकार तेजिन्दर ने व्यक्त किए। मीडिया विमर्श के तत्वावधान में आयोजित पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में वे बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद जगदम्बिका पाल भी विशिष्ट अतिथि के नाते उपस्थित थे। सम्मान समारोह में आठवां पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान-2015 'कला समय' और 'रंग संवाद' के संपादक विनय उपाध्याय को दिया गया।
            साहित्यकार श्री तेजिन्दर ने कहा कि बाजारवाद के प्रभाव से साहित्य को किनारे किया जा रहा है। हमारी भाषा, शैली और शब्दों पर कार्पोरेट ने कब्जा कर लिया है। कार्पोरेट बड़ी चालाकी से साहित्य का इस्तेमाल अपने उत्पाद को बेचने में कर रहा है, लेकिन उसे साहित्यकार की संवेदनाओं की परवाह नहीं है। आज शब्द की सत्ता पर सबसे अधिक खतरा है। साहित्यिक पत्रिकाओं के मुकाबले फैशन की पत्रिकाएं अधिक हैं। आर्थिक पत्रिकाओं की भी संख्या ज्यादा है। उन्होंने बताया कि प्रकाशकों और पूंजीपतियों ने लेखकों की संवेदनाओं का दुरुपयोग करने के नए तरीके इजाद कर लिए हैं। उनके जाल में मध्यमवर्गीय लेखक धंसता जा रहा है। ऐसे दौर में मीडिया विमर्श पत्रिका ने साहित्यिक पत्रकारिता का सम्मान कर एक सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश की है।
संसद नहीं कर सकती, वे काम मीडिया ने किए : सांसद जगदम्बिका पाल
उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के सांसद जगदम्बिका पाल ने कहा कि पत्रकारिता के उद्देश्य से भटकने की बहस के बीच आज भी पत्रकारिता की भूमिका और प्रभाव को उपेक्षित नहीं किया जा सकता है। जनधारणा है कि आज भी जो काम संसद नहीं कर सकी है, वे सब काम पत्रकारिता ने किए हैं और कर रही है। संसद की कार्यवाही के एजेंडा तक पत्रकारों के समाचार और लेख से तय हो जाते हैं। भोपाल को कला-संस्कृति का केन्द्र बताते हुए उन्होंने कहा कि देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली है, आर्थिक राजधानी मुम्बई है तो सांस्कृतिक राजधानी भोपाल है। उन्होंने कहा कि आज के समय में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। आप किसी भी प्रकार के ट्रायल से बच सकते हैं लेकिन मीडिया ट्रायल से नहीं। भारतीय पत्रकारिता ने कई घोटाले उजागर किए हैं। समाज में सकारात्मक वातावरण का निर्माण भी मीडिया कर रहा है। 
विमर्श से समाज का बौद्धिक विकास : प्रो. बृजकिशोर कुठियाला
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि समाज का बौद्धिक विकास विमर्श से होता है। लेकिन, विमर्श की दिशा क्या हो, यह साहित्यकारों और प्रबुद्धवर्ग को गंभीर चिंतन कर तय करनी चाहिए। शब्द ब्रह्म भी है और भ्रम भी। विमर्श के माध्यम से हमें समाज में ऐसा जागरण लाना चाहिए कि लोग शब्द के भ्रम से बच सकें। शब्द के माध्यम से जोडऩे का प्रयास होना चाहिए, तोडऩे का नहीं। बौद्धिक विमर्शों के माध्यम से हमें यह प्रयास करना चाहिए कि शब्द भ्रम का मायाजाल खड़ा न हो पाए। उन्होंने कहा कि शब्द का व्यापार होने लगे तो कहीं न कहीं समाज का नुकसान है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि बौद्धिक पत्रिकाओं की आज भी जरूरत है। शोध ने यह सिद्ध किया है कि 70 प्रतिशत परिवारों में साहित्यिक पत्रिकाओं को पढ़ा जा रहा है।
सार्थक कोशिशों का सम्मान है : वरिष्ठ पत्रकार विनय उपाध्याय
समारोह में वरिष्ठ साहित्यिक पत्रकार विनय उपाध्याय को शॉल-श्रीफल और सम्मान निधि से सम्मानित किया गया। पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित होने के अवसर पर श्री उपाध्याय ने कहा कि यह मेरा नहीं बल्कि साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में सार्थक कोशिशों का सम्मान है। उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता के पुरोधा माखनलाल चतुर्वेदी की कर्मभूमि खण्डवा में पढ़ाई के दौरान साहित्यिक पत्रकारिता के बीज मेरे हृदय में पड़े। भोपाल आकर मैंने असल मायने में साहित्यिक पत्रकारिता को जाना। शुरुआत में मुझे हतोत्साहित करने का प्रयास भी किया गया लेकिन बाद में सबने मेरे प्रयासों की सराहना की। श्री उपाध्याय ने बताया कि पहले मुख्यधारा के समाचार-पत्रों में साहित्यिक पत्रकारिता के लिए पर्याप्त स्थान दिया जाता था, जो वर्तमान में गायब हो गया है। यह समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है।
सरकार करे साहित्यिक पत्रकारिता का संरक्षण : वरिष्ठ पत्रकार कमल भुवनेश
कमोडिटीज कंट्रोल डॉट कॉम के सम्पादक कमल भुवनेश ने कहा कि पत्रकारिता में खबरों को उत्पाद की तरह बेचने की जो प्रवृत्ति आई है, उसने कहीं न कहीं पत्रकारिता और समाज दोनों का नुकसान किया है। इलेक्ट्रोनिक चैनल्स की बाढ़ आ गई है। लेकिन, इन चैनल्स का दृष्टिकोण राष्ट्रहित न होकर व्यावसायिक हित तक ही सीमित है। किस खबर को बेचा जा सकता है, यह ही ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पूंजीपतियों ने समाचार पत्र-पत्रिकाओं को उत्पाद बनाकर बेचने पर जोर दिया है, इसीलिए उन्होंने अपनी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाएं बंद कर दी हैं। श्री भुवनेश ने कहा कि समाज हित में सरकार को साहित्यिक पत्रकारिता का संरक्षण करना चाहिए। साहित्यिक पत्रिकाओं को मुख्यधारा के समाचार पत्रों की तरह सुविधाएं देनी चाहिए।
परंपराओं और लोक कलाओं पर आक्रमण का समय : साहित्यकार गिरीश पंकज
    वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि यह हमारी परंपराओं, संस्कृति और लोक कलाओं पर आक्रमण का समय है। पेरिस में चार्ली एब्दो पर हमला वैश्विक आतंकवाद का सबसे घृणित चेहरा है। यह बताता है कि किस तरह अभिव्यक्ति पर खतरा है। यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। हम जिस प्रकार की पत्रकारिता करें, उसके केन्द्र में मनुष्य होना चाहिए। समाज में सकारात्मक विचारों को बढ़ाने के लिए हमें कलम चलानी चाहिए। उन्होंने पश्चिम के नाम पर चल रही अंधानुकरण पर भी सवाल खड़े किए। श्री पंकज ने कहा कि अब बस्तर में भी बाजार घुस आया है। जिसके कारण हमारी मौलिकता खत्म हो रही है। पारंपरिक गीत-संगीत गायब हो गया है। पहनावा भी पश्चिमी हो गया है। कार्यक्रम में स्वागत भाषण पत्रिका के संपादक डॉ. श्रीकांत सिंह ने भी दिया। निर्णायक मण्डल की ओर से प्रतिवेदन सृजनगाथा डॉट कॉम के सम्पादक जयप्रकाश मानस ने पढ़ा। उन्होंने कहा कि बाजार और वैश्वीकरण के इस दौर में साहित्यिक पत्रकारिता को बचाने का प्रयास है, पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक सम्मान। पत्रकारिता की मुख्यधारा की पत्रिका होकर मीडिया विमर्श के इन प्रयासों से साहित्यिक पत्रकारिता को बढ़ावा मिल रहा है।  

    कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुभद्रा राठौर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया। पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए। इस मौके पर डा. विजयबहादुर सिंह, प्रो, रमेश दवे, कैलाशचंद्र पंत, सुबोध श्रीवास्तव, शिवकुमार अर्चन, डा. रमाकांत श्रीवास्तव, महेश सक्सेना, अनिल चौबे, मधुकर द्विवेदी, डा.सुनीता खत्री, महेंद्र गगन, डा. पवित्र श्रीवास्तव, डा. पी.शशिकला, डा. अविनाश वाजपेयी सहित भोपाल के अनेक प्रबुद्ध लोग मौजूद थे। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें