राष्ट्र
के बौद्धिक विकास में मीडिया एक खास भूमिका निभा सकता है। वह अपनी सकारात्मक
भूमिका से राष्ट्र के सम्मुख उपस्थित अनेक चुनौतियों के समाधान खोजने की दिशा में वह एक अभियान चला सकता है। दुनिया के अनेक
विकसित देशों में वहां के मीडिया ने सामुदायिक विकास में अपना खास योगदान दिया है।
भारत का मीडिया तो इस गौरव से युक्त है कि उसने आजादी की लड़ाई में अपना विशेष
योगदान दिया। आजादी के बाद भारत के नवनिर्माण में भी उसने भूमिका निभाई। सामाजिक
भेदभाव-गैरबराबरी को दूर करने से लेकर अन्याय और शोषण के विरूद्ध पत्रकारिता का
इस्तेमाल
हमेशा एक लोकतंत्र में हथियार की तरह होता रहा
है।
आज
दुनिया के तमाम देश प्रगति और विकास की ओर तेजी से बढ़ते भारत को एक नई उम्मीद से
देख रहे हैं। भारत के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक यात्रा की एक नई शुरूआत हुयी
है। भारत की पहचान बदल रही है और वह एक समर्थ परंपरा का सांस्कृतिक उत्तराधिकारी
मात्र नहीं बल्कि तेजी से सब क्षेत्रों में विकास करता हुआ राष्ट्र है। इसलिए वह
उम्मीदें भी जगा रहा है। ऐसे समय में भारतीय मीडिया का आकार-प्रकार और शक्ति भी
बढ़ी है। भारत में मीडिया का इस्तेमाल और उपयोग करने वाले लोग भी बढ़े हैं। तमाम
संचार माध्यमों से विविध प्रकार की सूचनाएं समाज के सामने उपस्थित हो रही हैं।
इसमें सूचनाओं की विविधता भी है और विकृति भी। अधिक सूचनाओं से संपन्न दुनिया
बनाने के बजाए हमें सार्थक सूचनाओं की दुनिया बनानी होगी।
भारत
जैसे विविधता और बहुलता के वाहक देश में कोई एक माध्यम या कोई एक बाहरी विचार थोपा
नहीं जा सकता। भारत के पास स्वयं का विचार ही इसे जोड़ने और शक्ति देने का काम कर
सकता है। हमारे पास दुनिया को देने के लिए श्रेष्ठतम विचार हैं। श्रेष्ठतम जीवन
पद्धति है। श्रेष्ठतम सांस्कृतिक धारा है। जिसमें दूसरों का भी स्वीकार है। दूसरों
के लिए भी जगह है। भारतीय सांस्कृतिक धारा और उसके विविध पहलुओं पर संवाद के
माध्यम से स्वीकृति बनाने का यह उपयुक्त समय है।
मीडिया
इस देश की विविधता और बहुलता को व्यक्त करते हुए इसमें एकत्व के सूत्र निकाल सकता
है। गणतंत्र दिवस पर इस शक्ति का प्रगटीकरण हमने होते हुए देखा। भारत की
सांस्कृतिक विविधता और शक्ति के दर्शन हमें पहली बार इतने प्रकट रूप में देखने को
मिले क्योंकि मीडिया की शक्ति और उसकी उपस्थिति ने पूरे देश को दिल्ली के राजपथ से
जोड़ दिया। इसके पूर्व ऐसे आयोजन कई सालों से एक औपचारिकता बनकर रह गए थे जिसे
मीडिया भी बहुत महत्व नहीं देता था। इस बार के आयोजन में एक राष्ट्र की शक्ति और
उसकी एकता महसूस की गयी। ऐसे अवसरों पर मीडिया की शक्ति प्रकट रूप में दिखती है।
हमारे
देश की ताकत यह है कि हम संकटों में शीघ्र ही एकजुट हो जाते हैं। किंतु संकट टलते
ही वह भाव नहीं रहता। हमें इस बात को लोगों के मनों में स्थापित करना है कि वे हर
स्थिति में साथ हैं और अच्छे दिनों में साथ मिलकर चल सकते हैं। यही एकात्म भाव है।
यही जुड़ाव जिसे जगाने की जरूरत है। बौद्धिकता सिर्फ बुद्धिजीवियों तक सीमित नहीं
रहनी चाहिए, उसे आम-आदमी के विचार का हिस्सा बनना चाहिए। मीडिया अपने लोगों को
प्रबोधन करने में भूमिका निभा सकता है। मीडिया का काम सिर्फ सूचनाएं देना नहीं है
अपने पाठकों की रूचि परिष्कार तथा उन्हें बौद्धिक रूप से उन्नत करना भी है। हमें ऐसे
मीडिया प्रोफेशनलों की पौध तैयार करनी होगी जो, अपने पाठकों की रूचियों का संसार
विस्तृत तो करें हीं उनका परिष्कार भी करें। भौतिक विकास के साथ बुद्धि का स्तर भी
बढ़ना जरूरी है। कोई भी लोकतंत्र ऐसे ही सहभाग से साकार होता है। सार्थक होता है।
अतः जनता से जुड़े मुद्दे और देश के सवालों की गंभीर समझ पाठकों और दर्शकों में
पैदा करना मीडिया की जिम्मेदारी है।
भारत
जैसे देश में मीडिया का प्रभाव पिछले दो दशकों में बहुत बढ़ा है। वह तेजी से
विकसित होती अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल करता हुआ एक बड़े उद्योग में भी बदल गया
है। बावजूद हमें यह मानना पड़ेगा कि मीडिया का व्यवसाय अन्य व्यवसायों या उद्योगों
सरीखा नहीं है। इसके साथ सामाजिक दायित्वबोध गुंथे हुए हैं। सामाजिक उत्तरदायित्व
से रहित मीडिया किसी काम का नहीं है। मीडिया के इसी चरित्र का विकास हमारा दायित्व
है। मीडिया के नए बदलावों पर आज सवाल उठने लगे हैं। बाजार के दबावों ने मीडिया
प्रबंधकों की रणनीति बदल दी है और बाजार के मूल्यों पर आधारित मीडिया का विकास भी
तेजी से हो रहा है। जहां खबरों को बेचने पर जोर है। यहां मूल्य सकुचाए हुए दिखते
हैं। समझौते और समर्पण के आधार पर बनने वाला मीडिया किसी भी तरह राष्ट्रीय
संकल्पों का वाहक नहीं बन सकता। हमें अपने मीडिया की जड़ों को देखना होगा। वह
परंपरा से ही व्यवस्था विरोधी और सामाजिक मूल्यों का संरक्षक और प्रेरक है। इसलिए
हमें यह देखना होगा कि हम अपनी जड़ों से अलग न हों। पारंपरिक मूल्यों के आधार पर
हम अपने मीडिया का विकास और विस्तार करें। आज मीडिया के प्रभाव के चलते इस क्षेत्र
में तमाम तरह ऐसे लोग भी शामिल हुए हैं जिनके सामाजिक सरोकार शून्य हैं। वे विविध
साधनों से धन कमाकर मीडिया में अचानक अवतरित हो गए हैं। उनका मुख्य उद्देश्य
मीडिया की ताकत का इस्तेमाल करना है। इसके चलते मूल्यों में चौतरफा गिरावट देखने
को मिल रही है। घने अंधेरे में रौशनी की चाह और प्रबल होती है। लगातार सच्चाई और
अच्छाई की भूख बढ़ रही है। समाज तेजी से बदल रहा है। राजनीति, समाज हर जगह आज
शुचिता और सच्चाई की भूख की इच्छा बढ़ रही है। यह इच्छा ही बदलाव की वाहक बनेगी।
नए मीडियकर्मियों पर यह दायित्व है कि वे इस जनाकांक्षा को मूर्त रूप देने में
सहायक बनें।
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