सामाजिक परिवर्तन और बदलाव की संभावनाओं का
प्रेरक है यह माध्यम
-संजय द्विवेदी
भारतीय समाज में किसी नए प्रयोग को लेकर इतनी
स्वीकार्यता कभी नहीं थी, जितनी कम समय में सोशल मीडिया ने अर्जित की है। जब इसे
सोशल मीडिया कहा गया तो कई विद्वानों ने पूछा अरे भाई क्या बाकी मीडिया अनसोशल है? अगर वे भी सामाजिक हैं,तो यह सामाजिक
मीडिया कैसे? किंतु समय ने साबित किया कि यह वास्तव
में सोशल मीडिया है।
पारंपरिक
मीडिया की बंधी-बंधाई और एकरस शैली से अलग हटकर जब भारतीय नागरिक इस पर विचरण करने
लगे तो लगा कि रचनात्मकता और सृजनात्मकता का यहां विस्फोट हो रहा है। दृश्य, विचार,
कमेंट् और निजी सृजनात्मकता के अनुभव जब यहां तैरने शुरू हुए तो लोकतंत्र के
पहरूओं और सरकारों का भी इसका अहसास हुआ। आज वे सब भी अपनी सामाजिकता के विस्तार
के लिए सोशल मीडिया पर आ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं भी कहा कि “सोशल मीडिया नहीं होता तो हिंदुस्तान की
क्रियेटिविटी का पता ही नहीं चलता।” सोशल
मीडिया अपने स्वभाव में ही बेहद लोकतांत्रिक है। जाति, धर्म, भाषा, लिंग और रंग की सीमाएं
तोड़कर इसने न सिर्फ पारंपरिक मीडिया को चुनौती दी है वरन् यह सही मायने में आम
आदमी का माध्यम बन गया है। इसने संवाद को निंरतर, समय से पार और लगातार बना दिया
है। इसने न सिर्फ आपकी निजता को स्थापित किया है वरन एकांत को भी भर दिया है।
सूचनाएं
आज मुक्त हैं और वे इंटरनेट के पंखों पर उड़ रही हैं। सूचना 21 वीं सदी की सबसे
बड़ी ताकत बनी तो सोशल मीडिया, सभी उपलब्ध मीडिया माध्यमों में सबसे लोकप्रिय
माध्यम बन गया। सूचनाएं अब ताकतवर देशों, बड़ी कंपनियों और धनपतियों द्वारा चलाए
जा रहे प्रचार माध्यमों की मोहताज नहीं रहीं। वे कभी भी वायरल हो सकती हैं और कहीं
से भी वैश्विक हो सकती हैं। स्नोडेन और जूलियन असांजे को याद कीजिए। सूचनाओं ने
अपना अलग गणतंत्र रच लिया है। निजता अब सामूहिक संवाद में बदल रही है। वार्तालाप
अब वैश्विक हो रहे हैं। इस वचुर्अल दुनिया में आपका होना ही आपको पहचान दिला रहा
है। “ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय” कहने वाले देश में अब एक वाक्य का विचार
क्रांति बन रहा है। यही विचार की ताकत है कि वह किताबों और विद्वानों के इंतजार
में नहीं है।
सोशल
साइट्स का समाजशास्त्र अलग है। यहां ट्वीट फैशन भी है और सामाजिक काम भी। फेसबुक
और ट्विटर नए गणराज्य हैं। इस खूबसूरत दुनिया में आपकी मौजूदगी को दर्ज करते हुए
गणतंत्र। एक नया भूगोल और नया प्रतिपल नया इतिहास रचते हुए गणतंत्र। निजी जिंदगी
से लेकर जनांदोलन और चुनावों तक अपनी गंभीर मौजूदगी को दर्ज करवा रहा ये माध्यम,
सबको आवाज और सबकी वाणी देने के संकल्प से लबरेज है। कंप्यूटर से आगे अब स्मार्ट
होते मोबाइल इसे गति दे रहे हैं। इंटरनेट की प्रकृति ही ऐसी है कि वह डिजीटल गैप
को समाप्त करने की संभावनाओं से भरा –पूरा है। यहां मनुष्य न तो सत्ता का मोहताज
है, न ही व्यापार का। कोई भी मनुष्यता सहअस्तित्व से ही सार्थक और जीवंत बनती है।
यहां यह संभव होता हुआ दिख रहा है।
अपने
तमाम नकारात्मक प्रभावों के बावजूद इसके उपयोग के प्रति बढ़ती ललक बताती है कि
सोशल मीडिया का यह असर अभी और बढ़ने वाला है। 2014 के अंत तक मोबाइल पर इंटरनेट का
इस्तेमाल करने वाले साढे सात करोड़ हो जाएंगें। यह विस्तार इस माध्यम को शक्ति
देने वाला है। इसे टाइम किलिंग मशीन और धोखे का बाजार कहने वाले भी कम नहीं हैं।
अपसंस्कृति के विस्तार का भी इसे दोषी माना जाने लगा है। व्यक्ति का हाइपरऐक्टिव
होना, उसकी एकाग्रता में कमी,अवसाद और एबिलिटी में कमी जैसे दोष भी इस माध्यम को
दिए जाने लगे हैं। इसके स्वास्थ्यगत प्रभावों, मनोवैज्ञानिक प्रभावों पर बातचीत
तेज हो रही है। ऐसे में यह मान लेने में हिचक नहीं करनी चाहिए कि यहां मोती भी हैं
और कीचड़ भी। झूठ, बेईमानी, अपराध और बेवफाई के किस्से हैं तो दूसरी तरफ निभ रही
दोस्तियों की लंबी कहानियां हैं। हो चुकी और चल रही शादियों की लंबी श्रृंखला है।
आज जबकि अस्सी प्रतिशत युवा सोशल नेटवर्क पर हैं, तो शोध यह भी बताते हैं कि दिन
में इन माध्यमों के अभ्यासी 111 (एक सौ ग्यारह) बार मोबाइल चेक करते हैं। जाहिर
तौर पर यह सच है तो एकाग्रता में कमी आना संभव है। आज देश के लगभग 22 करोड़ लोग
इंटरनेट पर हैं। आप देखें तो कभी किसी भी माध्यम के प्रति इतना स्वागत भाव नहीं
था। फिल्में आई तो अच्छे घरों के लोग न इसमें काम करते थे, ना ही वे फिल्में देखने
जाते थे। मां-पिता से छिपकर युवा सिनेमा देखने जाते थे। टीवी आया तो उसे भी इडियट
बाक्स कहा गया। टीवी को लगातार देखते हुए भी हिंदुस्तान उसके प्रति आलोचना के भाव
से भरा रहा और आज भी है। किंतु सोशल मीडिया के प्रति आरंभ से ही स्वागत भाव है।
इसके प्रति समाज में अस्वीकृति नहीं दिखती क्योंकि यह कहीं न कहीं संबंधों का
विस्तार कर रहा है। संवाद की गुंजाइश बना रहा है। रहिए कनेक्ट के नारे को साकार कर
रहा है। इसके सही और सार्थक इस्तेमाल से छवियां गढ़ी जा रही हैं, चुनाव लड़े और
जीते जा रहे हैं। समाज में पारदर्शिता का विस्तार हो रहा है। लोग कहने लगे हैं।
प्रतिक्रिया करने लगे हैं।
इसके
साथ ही हमें यह भी समझना होगा किसी भी माध्यम का गलत इस्तेमाल हमें संकट में ही
डालता है। यह समय इंफारमेशन वारफेयर का भी है और साइको वारफेयर का भी। इस दौर में
सूचनाएं मुक्त हैं और प्रभावित कर रही हैं। यहां संपादक अनुपस्थित है और रिर्पोटर
भी प्रामाणिक नहीं हैं। इसलिए सूचनाओं की वास्तविकता भी जांची जानी चाहिए। कई बार
जो संकट खड़े हो रहे हैं, वह वास्तविकता से दूर होते हैं। सोशल मीडिया की पहुंच और
प्रभाव को देखते हुए यहां दी जा रही सूचनाओं के सावधान इस्तेमाल की जरूरत भी महसूस
की जाती है। इसे अफवाहें, तनाव और वैमनस्य फैलाने का माध्यम बनाने वालों से सावधान
रहने की जरूरत है। हमारे साईबर कानूनों में भी अपेक्षित गंभीरता का अभाव है और समझ
की भी कमी है। इसके चलते तमाम स्थानों पर निर्दोष लोग प्रताड़ित भी रहे हैं। पुणे
में एक इंजीनियर की हत्या सभ्य समाज पर एक तमाचा ही है। ऐसे में हमें एक ऐसा समाज
रचने की जरूरत है जहां संवाद कड़वाहटों से मुक्त और निरंतर हो। जहां समाज के
सवालों के हल खोजे जाएं न कि नए विवाद और वितंडावाद को जन्म दिया जाए। सोशल मीडिया
में समरस और मानवीय समाज की रचना की शक्ति छिपी है। किंतु उसकी यह संभावना उसके
इस्तेमाल करने वालों में छिपी हुयी है। इसका सही इस्तेमाल ही हमें इसके वास्तविक
लाभ दिला सकता है। सामाजिक सवालों पर जागरूकता और जनचेतना के जागरण में भी यह
माध्यम सहायक सिद्ध हो सकता है। आम चुनावों में राजनीतिक दलों ने इस माध्यम की
ताकत को इस्तेमाल किया और समझा है। आज युवा शक्ति के इस माध्यम में बड़ी उपस्थित
के चलते इसे सामाजिक बदलाव और परिवर्तन का वाहक भी माना जा रहा है। सकात्मकता से
भरे-पूरे युवा और सामाजिक सोच से लैस लोग इस माध्यम से उपजी शक्ति को भारत के
निर्माण में लगा सकते हैं। ऐसे समय में जब सोशल मीडिया की शक्ति का प्रगटीकरण साफ
है, हमें इसके सावधान, सर्तक और समाज के लिए उपयोगी प्रयोगों की तरफ बढ़ने की
जरूरत है। यदि ऐसा संभव हो सका तो सोशल मीडिया की शक्ति हमारे लोकतंत्र के लिए
वरदान साबित हो सकती है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय
पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)
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