- संजय द्विवेदी
हिंदी पत्रकारिता में
अंग्रेजी पत्रकारिता की तरह कापी संपादन का बहुत रिवाज नहीं है। अपने लेखन और उसकी
भाषा के सौंदर्य पर मुग्ध साहित्यकारों के अतिप्रभाव के चलते हिंदी पत्रकारिता का
संकोच इस संदर्भ में लंबे समय तक कायम रहा। जनसत्ता और इंडिया टुडे (हिंदी) के दो
सुविचारित प्रयोगों को छोड़कर ये बात आज भी कमोबेश कम ही नजर आ रही है। वैसे भी जब
आज की हिंदी पत्रकारिता भाषाई अराजकता और हिंग्लिश की दीवानी हो रही है ऐसे समय में
हिंदी की प्रांजलता और पठनीयता को स्थापित करने वाले संपादकों को जब भी याद किया
जाएगा, जगदीश उपासने उनमें से एक हैं। वे कापी संपादन के मास्टर हैं। भाषा को लेकर
उनका अनुराग इसलिए और भी महत्व का हो जाता है कि मूलतः मराठीभाषी होने के नाते भी
उन्होंने हिंदी की सबसे महत्वपूर्ण पत्रिका इंडिया टुडे को स्थापित करने में अपना
योगदान दिया।
जनसत्ता, युगधर्म, हिंदुस्तान समाचार जैसे अखबारों में पत्रकारिता
करने के बाद जब वे ‘इंडिया टुडे’ पहुंचे
तो इस पत्रिका का दावा देश की भाषा में देश की धड़कन बनने का था। समय ने साबित किया
कि इसे इस पत्रिका ने सच कर दिखाया। छत्तीसगढ़ के बालोद और रायपुर शहर से अपनी
पढ़ाई करते हुए छात्र आंदोलनों और सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े जगदीश
उपासने ने विधि की परीक्षा में गोल्ड मैडल भी हासिल किया। अखिलभारतीय विद्यार्थी
परिषद, मप्र के वे प्रमुख कार्यकर्ताओं में एक थे। आपातकाल के दौरान वे तीन माह
फरार रहे तो मीसा बंदी के रूप में 16 महीने की जेल भी काटी ।उनके पिता और माता का
छत्तीसगढ़ के सार्वजनिक जीवन में खासा हस्तक्षेप था। मां रजनीताई उपासने 1977 में
रायपुर शहर से विधायक भी चुनी गयी। उनके छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने आज भी
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। राजनीतिक परिवार और एक खास विचारधारा से
जुड़े होने के बावजूद उन्होंने पत्रकारिता में अपेक्षित संतुलन बनाए रखा। उन्होंने
हिंदी पत्रकारिता को एक ऐसी भाषा दी जिसमें हिंदी का वास्तविक सौंदर्य व्यक्त होता
है।
उन्होंने कई पुस्तकों का
संपादन किया है जिनमें दस खंडों में प्रकाशित सावरकर समग्र काफी महत्वपूर्ण है।
टीवी चैनलों में राजनीतिक परिचर्चाओं का आप एक जरूरी चेहरा बन चुके हैं। गंभीर
अध्ययन, यात्राएं, लेखन और व्याख्यान उनके शौक हैं। आज जबकि वे मीडिया में एक लंबी
और सार्थक पारी खेल कर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नोयडा परिसर
के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं तो भी वे रायपुर के अपने एक वरिष्ठ संपादक
दिगंबर सिंह ठाकुर को याद करते हैं,
जिन्होंने पहली बार उनसे एक कापी तीस बार लिखवायी थी। वे प्रभाष जोशी, प्रभु चावला
और बबन प्रसाद मिश्र जैसे वरिष्ठों को अपने कैरियर में दिए गए योगदान के लिए याद
करते हैं, जिन्होंने हमेशा उन्हें कुछ अलग करने को प्रेरित किया।
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