संतुलन साधने में दम तोड़ देता है सचः अरूण शौरी
भोपाल,27 दिसंबर। मध्यप्रदेश के राज्यपाल महामहिम रामनरेश यादव कहना है कि मीडिया की तरफ लोग बड़ी आशा भरी निगाहों से देखते हैं इसलिए जनांकांक्षाओं के साथ जुड़ना पत्रकारों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा प्रशासन अकादमी में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में मुख्यअतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का विषय है ‘मीडिया में विविधता एवं अनेकता समाज का प्रतिबिंब’। उन्होंने कहा कि मीडिया को एक सर्वसमावेशी समाज का प्रतिबिंब प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि वह समाज का वास्तविक आईना बन सके। इससे मीडिया के प्रति समाज का भरोसा भी बढ़ेगा। उनका कहना था कि मीडिया को असली भारत की समस्याओं, चुनौतियों. सपनों और शक्तियों को रेखांकित करना होगा क्योंकि इससे ही समाज को संबंल मिलेगा। मीडिया को समाज की विविधता को देखते हुए समाज के विविध क्षेत्रों की जरूरतों, भावनाओं, इच्छाओं को जगह देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय पत्रकारिता का अतीत बहुत गौरवशाली रहा है, हमारी आजादी की लड़ाई के तमाम नायक पत्रकारिता से जुड़े थे। उन्होंने पत्रकारिता की शक्ति को पहचानकर ही उसे समाज सुधार और देशसेवा का माध्यम बनाया।
राज्यपाल ने कहा कि भारत जैसे विशाल देश का मीडिया सामाजिक दायित्वबोध से लैस होकर ही समस्याओं का निदान ढूंढ सकता है। जनमत निर्माण का माध्यम होने के नाते मीडिया की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, क्योंकि वह रूचियों का विस्तार और परिष्कार दोनों कर सकता है। वह समाज में व्याप्त तनावों से निजात दिलाते हुए सहज संवाद की स्थितियां बहाल कर सकता है। इसके लिए मीडिया की ताकत का सही इस्तेमाल जरूरी है। उन्होंने कहा कि विविधता में एकता ही भारत का सौन्दर्य और इसकी पहचान है। हमें यह सोचने का समय आ गया है कि हमारा मीडिया कैसा है और इसे कैसा होना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जतायी कि इस संगोष्ठी के माध्यम से हम कुछ बेहतर निष्कर्षों पर पहुंचेगें जिससे भारत की मीडिया और मीडिया शिक्षा दोनों में इसके प्रयोग किए जा सकें। उन्होंने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय शोध और अनुंसंधान के क्षेत्र में निरंतर नई उंचाइयां हासिल कर रहा है इसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने कहा कि मीडिया को मुद्दों को उठाते समय संतुलन साधने के बजाए सच का पक्ष लेना चाहिए। उसे जनता को सही राय बताने की हिम्मत दिखानी चाहिए। क्योंकि उसका काम जनमत बनाने का भी है। मीडिया तमाम महत्वपूर्ण सवालों को नजरंदाज करता है या फिर अपनी राय नहीं बताता। संतुलन साधने की कोशिश में सच दम तोड़ देता है। यही कारण है कि अखबार पांच मिनट में पढ़ लिए जाते हैं और टीवी चर्चाएं बेमानी साबित हो रही हैं। प्रिंट मीडिया की एक बड़ी जिम्मेदारी है किंतु वह भी उससे भटक रहा है। हमें पत्रकार होने के नाते सोसायटी के ट्रस्टी की भूमिका निभानी चाहिए कितु हम ऐसा कहां कर पा रहे हैं। पत्रकारिता, मनोरंजन का व्यवसाय नहीं एक जिम्मेदारी भरा काम है। हमें लोगों को शिक्षित करना और देश के लिए काम करना है। इसलिए हमें अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होंगीं। हमारे सामने यह शोध का विषय है कि फिल्म स्टार्स मीडिया में कितना स्थान ले रहे हैं और डिफेंस बजट पर हमारे समाचार पत्रों में कितनी जगह मिलती है। चीन के आक्रामक रवैये पर हमारे मीडिया का स्वर क्या है। संतुलन साधने की पत्रकारिता से हम लक्ष्य से भटक रहे हैं। हम अपनी साफ राय देश वासियों को नहीं बताना चाहते, इससे भ्रम का वातावरण फैलता है। हमारी जिम्मेदारी है हम तथ्य और सत्य सामने लाएं। उन्होंने कहा कि हालात यह हैं कि हमारा पूरा मीडिया एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक ही चीजों को देख पाता है। हमें भविष्य की ओर देखना होगा।
श्री शौरी ने कहा कि अध्ययन के साथ-साथ मीडिया एक्टीविज्म भी दिखाए। हमें लगातार काम करने की जरूरत है। सरकारी दस्तावेजों का अध्ययन और उनका आकलन जरूरी है। साथ ही खबरों का फालोअप करने से पत्रकारिता का चेहरा बदल सकता है। उनका कहना था कि हालात इसलिए बिगड़ रहे हैं क्योंकि पत्रकार तथ्यों का परीक्षण नहीं करते। टीआरपी और प्रसार के गणित के पीछे भागते हैं। इससे पत्रकारिता का प्रामणिकता और विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। इसका परिणाम यह हो रहा है नेता अब मीडिया से डरता नहीं और पाठक उसपर भरोसा नहीं करता। मुद्दों से मुंह फेरने वाली पत्रकारिता कभी जनता के मन में स्थान नहीं बना सकती। भारतीय लोकतंत्र को ताकत तभी मिलेगी जब समाज की विविधता को मीडिया में स्थान मिलेगा। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एडीएन वाजपेयी ने कहा कि सत्य तो एक ही है भले ही मीडिया में उसके अलग-अलग प्रतिबिंब बनते हों। सच के जब हम निकट होते हैं तो तो विविधता में भी एकता के दर्शन होने लगते हैं। इसके लिए आध्यात्मिक संचार से जुड़ने की जरूरत है क्योंकि इससे हम पूरी प्रकृति से एक रिश्ता बना पाते हैं।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने अपने संबोधन में कहा कि विविधता विघटन नहीं है, एकात्मता एकता नहीं है। मीडिया के कथ्य में विविधता झलकनी चाहिए। समाचारों के चयन, प्रस्तुति और संप्रेषण में यह विविधता प्रकट हो तभी वह सरोकारों से जुड़ेगा। इससे वैकल्पिक पत्रकारिता की राह भी बनेगी। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य ऐसे रास्तों की तलाश है जो हमारे मीडिया को ज्यादा जवाबदेह और सरोकारी बना सकें। आभार प्रदर्शन विवि के पूर्व महानिदेशक राधेश्याम शर्मा ने एवं संचालन डा. रामजी त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में स्मरिका का विमोचन भी राज्यपाल महोदय ने किया जिसमें संगोष्ठी के सार-संक्षेप शामिल हैं। राज्यपाल महोदय ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. चंदर सोनाने की पुस्तक “पर्वतों का अंतः संगीत (हिमांशु जोशी की रचना यात्रा)” का विमोचन भी किया। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में संचार एवं पत्रकारिता के भारतीय सिद्धांत पर चर्चा हुयी। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रोफेसर डा. नंदकिशोर त्रिखा ने की। सत्र में हुयी चर्चा में काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर राममोहन पाठक, अंतरराष्ट्रीय जनसंपर्क संघ के अध्यक्ष रिचर्ड लिनिंग (लंदन), काठमांडू विश्वविद्यालय के डा. निर्मल मणि अधिकारी ने अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन डा. पी.शशिकला ने किया।
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