गुरुवार, 3 मार्च 2011

साहित्य और पत्रकारिता में निकट का नाता : प्रो. सारस्वत

भोपाल, 3 मार्च। साहित्य और पत्रकारिता में गहरा संबंध है। देश में पत्रकारिता का आरंभ भी साहित्य के उद्देश्यों को ही नए माध्यम और नए रूप में प्रस्तुत करने के लिए हुआ था। पत्रकारिता का धर्म वास्तव में संस्कृति की रक्षा करना है। उक्त बातें सुविख्यात साहित्यकार प्रो. ओमप्रकाश सारस्वत ( शिमला) ने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में आयोजित व्याख्यान में कहीं।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से आज की पत्रकारिता साहित्य के पवित्र उद्देश्यों को छोड़कर गलत रास्तों पर चल पड़ी है। अर्थ प्रमुख हो गया है और बाकी सारे आदर्श व्यर्थ हो गए हैं। भारतीय संस्कृति की वैश्विक दृष्टि पर बाजार हावी हो गया है। खबर वस्तु बन गई है। इसे बेचा व खरीदा जा रहा है। प्रो. सारस्वत ने कहा कि पत्रकारिता में विदुर नीति चलनी चाहिए थी जबकि शकुनि की नीति चल रही थी। ऐसी पत्रकारिता सनसनीखेज तो हो सकती है पर वह हमारे देश और समाज के लिए घातक है। आज संस्कारवान पत्रकारिता की आवश्यता है जो देश की वास्तविक समस्याओं को उजागर करे उसके आदर्श समाधान बताए। आज बाढ़ के समय सेक्स स्टोरी छापने वाले पत्र- पत्रिकाओं पर नियंत्रण की आवश्यकता है। इसे बाजारवाद की अंधी दौड़ से बाहर निकालने की जरुरत है। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारिता के पाठ्यक्रमों में सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मिलित करने की जरूरत है। सब कुछ बुरा नहीं हो रहा बल्कि कुछ अच्छा हो रहा है उसे प्रेरित करना आवश्यक है। कार्यक्रम का संचालन विभाग के व्याख्याता सुरेंद्र पॉल ने किया। इस अवसर पर दूरदर्शन के समाचार संपादक मनीष गौतम, पीएन द्विवेदी, डा. मोनिका वर्मा, अभिजीत वाजपेयी सहित विभाग के शिक्षक व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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