सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

पाक जैसे पड़ोसी हों तो दुश्मनों की जरूरत क्या है ?


मुर्शरफ ने जो कहा वही पाकिस्तानी राजनीति का मूल चरित्र
- संजय द्विवेदी

अगर पाकिस्तान जैसे पड़ोसी हों तो आपको दुश्मनों की जरूरत नहीं है। अपनी कुठांओं और आंतरिक बदहाली का शिकार, यह विफल राष्ट्र, खुद से ज्यादा भारत की चिंता करता है। हमारी आंतरिक समस्याओं में अतिरिक्त रूचि दिखाकर वह अपने आवाम को भारत विरोध की धुट्टी पिलाता रहता है। पाकिस्तान के मन में अपने पड़ोसी के प्रति कैसे षडयंत्रकारी विचार हैं अगर जानना है तो मुशर्रफ की ओर देखिए, क्योंकि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने यह स्वीकार कर लिया है कि पाकिस्तान ने ही कश्मीर में लड़ने के लिए भूमिगत आतंकी समूहों को प्रशिक्षित किया था। एक जर्मन पत्रिका में दिए इंटरव्यू ने यह जहर परवेज मुर्शरफ ने उगला है। कारगिल घुसपैठ का भी का भी पाकिस्तान के इस पूर्व शासक को कोई अफसोस नहीं हैं, क्योंकि भारत घृणा ही पाकिस्तान की राजनीति का एक अनिवार्य तत्व है और परवेज मुशर्रफ यही कर रहे हैं।

पाकिस्तान में अब एक नई पार्टी बनाकर अपनी दूसरी राजनीतिक पारी की शुरूआत करने जा रहे परवेज मुशर्रफ का यह बयान निश्चय ही सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। इस बहाने वे देश में अपनी अलोकप्रियता कम करने का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि इन दिनों में पाकिस्तान में उन्हें लेकर बहुत अच्छे भाव नहीं हैं। उनकी राजनीतिक पार्टी को अपनी जड़ें जमाने के लिए अतिवादी और आतंकी समूहों के समर्थन की जरूरत है और उसके तहत ही उन्होंने ये बातें कहीं हैं। किंतु इससे इतना तो पता ही चलता है कि पाकिस्तान की भारत के प्रति क्या सोच और रणनीति रही है। पाकिस्तान ने हमेशा भारत में आतंकवाद को पोषित करने का काम किया है। परवेज मुशर्रफ के इस बयान ने दरअसल पाकिस्तानी राजनीति और सरकार के असली चेहरे को उजागर कर दिया है। वहां की पूरी राजनीति दरअसल भारत घृणा के तत्व से ही प्रेरणा पाती है और कुर्सी पर बैठने वाला हर शासक भारत के विरूद्ध अभियान चलाकर अपने को बचाए रखना चाहता है। क्योंकि पाकिस्तान वास्तव में एक विफल देश बन चुका है, जिसके पास अपनी समस्याओं का समाधान नहीं हैं। सो उसके नेताओं के सामने यही विकल्प है कि वे भारत का भय दिखाकर अपने देश को संभाले रहें। पाकिस्तान में आयी विकराल बाढ़ और तबाही के समय वहां की राजनीति का असली चेहरा लोगों ने देखा है। इतनी संवेदनहीन राजनीति के लोग जब काश्मीर के लोगों को न्याय दिलाने की बात करते हैं तो हंसी आती है। परवेज मुशर्रफ स्वयं बाढ़ की तबाही के दौरान कहीं नजर नहीं आए। पाकिस्तान की कश्मीर में अतिरिक्त रूचि के कारण ही, आजादी के बाद से ही कश्मीर के भाग्य में चैन नहीं है, जैसे-तैसे भारत विलय के बाद से आज तक वह लगातार खूनी संघर्षों का अखाड़ा बना हुआ है। सही अर्थो में भारत के अप्राकृतिक विभाजन का जितना कष्ट कश्मीर ने भोगा है, वह अन्य किसी राज्य के हिस्से नहीं आया। दिल्ली के राजनेताओं की नासमझियों ने हालात और बिगाड़े, आज हालात ये हैं कि कश्मीर के प्रमुख हिस्सों लद्दाख, जम्मू और घाटी तीनों में आतंकवाद की लहरें फैल चुकी हैं। इनमें सबसे बुरा हाल कश्मीर घाटी का है, जहां सिर्फ सेना को छोड़कर ‘भारत मां की जय’ बोलने वाला कोई नहीं है। आखिर इन हालात के लिए जिम्मेदार कौन है ? वे कौन से हालात हैं वे कौन लोग हैं जो पाकिस्तान षड्यंत्रों का हस्तक बनकर इस्लामी आतंकवाद की लहर की सवारी कर रहे है।

हालात जितने भी बुरे हों, हम कश्मीर विहीन भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते, इसलिए कश्मीर मसले से जुड़े हर पक्ष के साथ हमें संवेदनशीलता से पेश आना होना। कश्मीर को राजनीति और तिकड़मों से नहीं सुधारा जा सकता । यह हमने चुनी गयी सरकारें गिराकर तथा केंद्र के कठपुतली मुख्यमंत्रियों तथा राज्यपालों को बिठाकर दिख लिया है। सेना की सीमाएं क्या हैं, यह भी हमने देख लिया है। सारी कवायदों के बावजूद, जगमोहन की उपस्थिति में भी कश्मीरी पंडितों को घर छोड़ना पड़ा था, इसलिए कश्मीर के प्रसंग पर हमारी पराजय के संदेश बहुत खतरनाक होंगे और एक राष्ट्र-राज्य के रूप में हम अपनी विफलता का इतिहास अपने ही हाथों से लिख रहे होंगे । यह पराजय सिर्फ दिल्ली में बैठी सरकार की नही होगी, पराजय देश की 1 अरब जनता की होगी। हमारे उस इतिहास की होगी जो सालों-साल कश्मीर को अपने मुकुट और ‘धरती के स्वर्ग’ के रूप में अपनी स्मृति में रखता आया है। हम कश्मीर में अपनी पराजय से इस्लामी कट्टरवाद के सामने समर्पण का इतिहास लिखेंगे । इसलिए कश्मीर को कैसे भी बचाना देश के राजनीतिक नेतृत्व और जनता की जिम्मेदारी है । यह हार हमें विश्व मंच पर मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी । इस्लामी कट्टरपंथ की यह जीत समूचे उप-महाद्वीप में सांप्रदायिक विद्वेष की लपटों का कारण बनेगी। भारत में रहने वाले हिंदू-मुस्लिमों के रिश्तों की बुनियाद इससे हिल जाएगी । देश के हिंदू-मुसलमानों को इस खतरे को समझना होगा। किसी ‘राजनीतिक एजेंडे’ के आधार पर नहीं, दिनायतदारी के आधार पर हमें कश्मीर का माथा झुकने नहीं देना है। जाहिर है, भारत को अपनी लड़ाई का आधार अब इस्लामी कट्टरंपंथ से संघर्ष को बनाना होगा। पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद सही अर्थों में कुंठा और अराजक मानसिकता से प्रेरणा पाता है। उससे कश्मीरी मानस के हितलाभ की कोई सोच जुड़ी हुई नहीं है। भारत को यहीं चोट करनी होगी। अपने राजनीतिक एजेंडों से परे कश्मीर को एक विशेष विमर्श का हिस्सा मानकर हमें समाधान के रास्ते तलाशने होंगे। अफसोस है कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला जैसे लोग भी आज गलत भाषा बोल रहे हैं। उमर अब्दुल्ला जो भाषा बोल रहे हैं उसे कोई भी स्वाभिमानी समाज और राष्ट्र कैसे सह सकता है। ऐसे में राज्य की विधानसभा में भारतीय जनता के विधायकों के द्वारा उनका विरोध जायज ही कहा जाएगा। उमर ने अपने नासमझी भरे बयानों से निरंतर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की है। आखिर वे किसका दिल जीतना चाहते हैं ? वे किसे खुश करना चाहते हैं? अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक विफलताओं पर परदा डालने के लिए राजनेता ऐसे बयान देते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। किंतु हमें देखना होगा कि एक देश के नाते हम अपने ऐसे नेताओं को कितना और कब तक स्वीकार करें। ऐसे नेताओं की पाकपरस्ती और भारत के प्रति अनुदार रवैया चिंता में डालता है। एक मुख्यमंत्री ही अगर अलगाववादियों की भाषा बोलने लगे तो कहने के लिए क्या बचता है।

जहां तक परवेज मुशर्रफ जैसे पाकिस्तानी नेताओं की बात है -संवेदनहीनता, भ्रष्टाचार और धार्मिक भावनाओं व भारत विरोध के नाम पर अपनी राजनीति चलाने वाले ये जहरीले नेता निश्चय ही पाकिस्तान को बरबाद कर रहे हैं और अपनी नकारात्मक राजनीति से भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं। अफसोस है कि जनता भी इनकी चालों को न समझकर राजनीति का शिकार बन रही है। जबकि बदलती दुनिया के मद्देनजर राजनीति के मुद्दे बदल रहे हैं किंतु पाकिस्तान के भाग्य में शायद चैन नहीं है। क्योंकि वहां के राजनीतिक नेतृत्व में देश और अपनी जनता के प्रति ईमानदारी नहीं है।

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