बुधवार, 7 जुलाई 2021

अजस्र ऊर्जा के स्रोत प्रो. कुठियाला

 

- प्रो. संजय द्विवेदी



     वे हैं तो जिंदगी में भरोसा है, आत्मविश्वास है। हमेशा लगता है, कुछ हुआ तो वे संभाल लेंगें। प्रो. बृजकिशोर कुठियाला की मेरी जिंदगी में जगह एक बॉस से ज्यादा है। वे पितातुल्य हैं, अभिभावक हैं। मेरी उंगलियां पकड़कर जमाने के सामने ला खड़े करने वाले स्नेही मार्गदर्शक हैं। उनके सान्निध्य में काम करने का मुझे अवसर मिला, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में वे मेरे कुलपति रहे।

    यह सन् 2010 की बात है, जब वे हमारे कुलपति बनकर आए। उनके साथ काम करना कठिन था। वे ना आराम करते हैं, न करने देते हैं। उनके लिए कई लोगटफ टास्क मास्टरका शब्द इस्तेमाल करते हैं। यह सच भी है। अपने साढ़े आठ साल के कार्यकाल में उन्होंने हमें बहुत सिखाया। चीजों को तराशा और एक तंत्र खड़ा किया। जब वे भोपाल आए तो उन्हें बहुत विरोधों का सामना करना पड़ा। लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। वे जमे और खूब जमे। जमकर काम किया। नए नेतृत्व को विकसित कर उन्हें काम दिया। विश्वविद्यालय को कई दृष्टियों से समृद्ध बनाया। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को विवि अनुदान आयोग से 12 बी की मान्यता, समस्त कर्मचारियों (दैनिक वेतनभोगी और संविदा) का नियमितीकरण, विश्वविद्यालय की 50 एकड़ भूमि पर परिसर निर्माण उनकी तीन ऐसी उपलब्धियां हैं, जिसे भूलना नहीं चाहिए। भारतीय संचारकों पर पुस्तकों का प्रकाशन, पत्रकारिता और जनसंचार पर केंद्रित पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन, अनेक श्रेष्ठ अकादमिक आयोजन, संगोष्ठियां उनकी उपलब्धि हैं।

    हमारे विचार ही हमारे शब्द बनते हैं और फिर ये शब्द ही हमारे कर्म बनते हैं। प्रो. कुठियाला ने क्रिया की इस गूढ़ मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को अपने जीवन में उतार के दिखाया है। विचार, वाणी और कर्म के संतुलन ने उनके संपूर्ण व्यक्तित्व में विश्वसनीयता एवं प्रभाव की वह दीप्ति पैदा की है, जिससे बचना उनके विरोधियों तक के लिए संभव नहीं है। उन्होंने जो सोचा, वही किया और जो नहीं कर सकते थे, उसके लिए कभी कहा नहीं। शब्द ब्रह्म होता है, यह उन्होंने जीकर दिखाया। शब्द जब आचरण से मंडित होता है, तब वह मंत्र की शक्ति प्राप्त कर लेता है। प्रो. कुठियाला के साथ यही बात साबित होती थी। उनका संपूर्ण जीवन एक प्रकार से अपने अंत:करण के पालन का जीवन रहा है।

     वे एक अप्रतिम प्रशासक हैं। कुशल शिक्षाविद् होने के साथ उनकी प्रशासनिक दक्षता हम सबके सामने है। वे परिणामकेंद्रित योजनाकार हैं। खुद काम करते हुए अपनी टीम को प्रेरित करते हुए वे आगे बढ़ते हैं। आज जब संचार और प्रबंधन की विधाएं एक अनुशासन के रूप में हमारे सामने हैं, तब हमें पता चलता है कि कैसे उन्होंने अपने पूरे जीवन में इन दोनों विधाओं को साधने का काम किया। एक संचारक के रूप में यदि उन्हें समझना है, तो हमें     भारतीयता को समझना होगा। यदि हमें उन्हें जानना है, तो भारतीय आत्मा, संस्कृति और संवाद को समझना होगा। ऊपरी तौर पर जब हम उनके जीवन को देखते हैं, तो वह जीवन अन्य की तुलना में थोड़ा ही बेहतर लगता है, लेकिन जब उसकी ऊपरी परतों को हटाकर उसके गहरे तल तक पहुंचते हैं, तो वही जीवन किसी चमत्कार से कम नहीं लगता।

      प्रो. कुठियाला की जिंदगी का पाठ बहुत बड़ा है। वे अपने समय के सवालों पर जिस प्रखरता से टिप्पणियां करते हैं, वो परंपरागत संचारकों से उन्हें अलग खड़ा कर देता है। वे 21 देशों में शिक्षा, मीडिया, संस्कृति और सभ्यता के विषय पर भारत की बात कर चुके हैं। वे विश्वमंच पर सही मायने में भारत, उसके अध्यात्म, पुरुषार्थ और वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को स्थापित करने वाले नायक हैं। अपने जीवन, लेखन और व्याख्यानों में वे जिस प्रकार की परिपक्वता दिखाते हैं, पूर्णता दिखाते हैं, वह सीखने की चीज है। उनमें नेतृत्व क्षमता, कुशल प्रबंधन के गुर, परंपरा और आधुनिकता का तालमेल दिखता है। वे आधुनिकता से भागते नहीं, बल्कि उसका इस्तेमाल करते हुए नए समय में संवाद को ज्यादा प्रभावकारी बना पाते हैं।

      73 वर्ष की उम्र में भी वे स्वयं को एक तेजस्वी युवा के रूप में प्रस्तुत करते हैं और उनके विचार भी उसी युवा चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे शास्त्रीय प्रसंगों की भी ऐसी सरल व्याख्या करते हैं कि उनकी संचार कला अपने आप स्थापित हो जाती है। अपने कर्म, जीवन, लेखन, भाषण और संपूर्ण प्रस्तुति में उनका एक आदर्श प्रबंधक और कम्युनिकेटर का स्वरूप प्रकट होता है। किस बात को किस समय और कितने जोर से कहना है, यह उन्हें पता है। उनका पूरा जीवन कर्मयोग की मिसाल है। उनका नाम सुनते ही भारतीय शिक्षा पद्धति और भारतीय संस्कृति की गौरवान्वित छवि हमारी आंखों के सामने आ जाती है।

      एक संचारक की दृष्टि से प्रो. कुठियाला का नाम उन लोगों में शामिल है, जो बेहद सरल और सहज शब्दों में अपनी बात रखते हैं। जब हम एक कुशल संचारक को किसी कसौटी पर परखते हैं, तो संवाद और प्रतिसंवाद की बात करते हैं, लेकिन प्रो. कुठियाला की संचार कला में बात संवाद और प्रतिसंवाद की नहीं है, बल्कि बात प्रभाव की है, और उसमें वे लाजवाब हैं। इस संसार में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो अपने जीवनकाल में एक उदाहरण बन जाते हैं। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण अनुकरणीय और प्रेरणादायी होता है। प्रो. कुठियाला का पूरा जीवन ही राष्ट्रीय विचारों के लिए समर्पित रहा है। आज की पीढ़ी के लिए उनका जीवन दर्शन एक विचार है। अपने जीवन में उन्होंने समाज के अनेक क्षेत्रों में मौन तपस्वी की भांति अनथक कार्य किया है और हर जगह आत्मीय संबंध जोड़े हैं। उनका हर कार्य, यहां तक कि प्रत्येक शब्द एक प्रेरणा है। तन समर्पित, मन समर्पित और ये जीवन समर्पित...की राह को अंगीकार करने वाले प्रो. कुठियाला ने अपने आलेखों के माध्यम से समाज जीवन और लेखकों को जो दिशा प्रदान की, उसका जीवंत उदाहरण आज कई युवा पत्रकारों के लेखन में भी दिखाई दे रहा है। मेरे जैसे लेखक ने उनके लेखों को कई-कई बार पढ़कर दिशा प्राप्त की है। उनका अकाट्य लेखन कोई कागजी लेखन नहीं माना जा सकता, वे हर लेख को जीवंतता के साथ लिखते हैं। जैसे भाग्य का लिखा हुआ कोई मिटा नहीं सकता, वैसे ही उनके लेखन की जीवंतता को कोई मिटा नहीं सकता।

     अगर हम प्रो. कुठियाला को आधुनिक पत्रकारिता को दिशा प्रदान करने वाला साधक कहें, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि उनके लेखन में पूरे भारत का दर्शन होता है। उनकी जीवन कथा में संघर्ष है, राष्ट्रप्रेम है, समाजसेवा का भाव और लोकसंग्रह की कुशलता भी है। उनका जीवन खुला काव्य है, जो त्याग, तपस्या व साधना से भरा है। उन्होंने अपने को समष्टि के साथ जोड़ा और व्यष्टि की चिंता छोड़ दी। देखने में वे साधारण हैं, पर उनका व्यक्तित्व असाधारण है। एक पत्रकार और मीडिया शिक्षक होने के नाते अगर मुझे कहना हो, तो मैं उन्हें पत्रकारीय ज्ञान और आचार संहिता का साक्षात विश्वविद्यालय कहूंगा।

      पहचान और प्रतिष्ठा केवल प्रोफेशन, सेंसेशन और इंटेंशन से ही अर्जित नहीं की जाती है, बल्कि ईमानदारी, सादगी और ध्येयनिष्ठा ही किसी जीवन को टिकाऊ और अनुकरणीय बनाते हैं। प्रो. कुठियाला पत्रकारिता शिक्षा के इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो स्वार्थ नहीं, बल्कि सरोकारों और सत्यनिष्ठा के प्रतिमानों पर खड़ा है। उनके व्यक्तित्व का फलक इतना व्यापक है, जिसमें आप एक पत्रकार, शिक्षक, प्रबंधक, समाजकर्मी और गृहस्थ का अक्स पूरी प्रखरता से चिन्हित कर सकते हैं। उनके व्यक्तित्व का एक अहम पक्ष उनकी राष्ट्र आराधना में समर्पण का भी है। उन्होंने जो लिखा या कहा, उसे खुद के जीवन में उतारकर दिखाया।

    प्रो. कुठियाला एक व्यक्ति नहीं, विचार हैं, केवल पत्रकारिता के लिए नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों के लिए भी, भारतबोध के लिए भी, हमारी सामाजिक प्रतिबद्धताओं के लिए भी, जिनसे होकर समकालीन पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा गुजरती है। जो व्यक्ति उच्च आयामों के साथ दूसरों की चिंता करते हुए जीवन का संचालन करता है, उसका जीवन समाज को प्रेरणा तो देता ही है, साथ ही समाज के लिए वंदनीय बन जाता है। प्रो. कुठियाला का ध्येयमयी जीवन हम सबके लिए एक ऐसा पथ है, जो जीवन को अनंत ऊंचाइयों की ओर ले जाने में समर्थ है।






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