75 वीं वर्षगांठ (18 जून) पर विशेष
‘स्वदेश कुल’ की वैचारिक पत्रकारिता के ‘कुलपति’ हैं राजेंद्र शर्मा
-प्रो.संजय द्विवेदी
उनका हमारे बीच होना उस उम्मीद
और आत्मविश्वास का होना है कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। पत्रकारिता के छीजते
आभामंडल, प्रश्नांकित हो रही विश्वसनीयता और बाजार की तेज हवाओं के बीच जब ‘विचार की पत्रकारिता’
सहमी हुई है तभी वे एक प्रकाशपुंज की तरह हमारे सामने आते हैं। बात स्वदेश समाचार
पत्र समूह, भोपाल के प्रधान संपादक श्री राजेंद्र शर्मा की हो रही है। 18 जून,1946 को उज्जैन जिले के बड़नगर में जन्में श्री शर्मा इस समय ‘स्वदेश’ के छह संस्करणों की कमान संभाल रहे हैं। इस
कठिन समय में वे ही हैं, जो डटे हुए हैं और ‘विचार की
पत्रकारिता’ की मशाल को थामे हुए हैं। तमाम आदर्शों के
आत्मसमर्पण के बाद भी वे न जाने किस विश्वास पर अपने उस विचार पर डटे हैं, जो उन्होंने अपनी युवा अवस्था में अपनाया था। उन्होंने रिश्ते बनाए, नाम
कमाया किंतु समझौतों से उन्हें परहेज रहा। कठिन मार्ग ही उन्हें भाता है और वे उस
पर ही चलते आ रहे हैं। सच कहने और लिखने की सजा भी भुगतते रहे हैं और अनेक साथियों
से पीछे रह जाने का भी उन्हें कोई अफसोस नहीं है। ऐसे लोग ही किसी भी समय के नायक
होते हैं और उनका होना हमेशा हमें प्रेरित करता है। अपनी सरलता,सहज स्नेह से किसी
को भी अपना बना लेने वाले राजेंद्र जी सही मायने में अजातशत्रु हैं। पत्रकारिता
में एक खास विचारधारा से जुड़े होकर काम करने के बाद भी उनका कोई शत्रु नहीं है,
प्रतिद्वंदी नहीं है, आलोचक नहीं है। वे अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाले
व्यक्ति हैं और शायद इसीलिए भोपाल ही नहीं देश की पत्रकारिता के शिखर संपादकों की
सूची में उन्हें बड़े सम्मान से देखा जाता है।
विचारधारा के प्रति अविचल आस्थाः
सभी राजनीतिक दलों के शिखर पुरुषों
से उनके रिश्ते हैं, घर आना-जाना है, किंतु विचारधारा के साथ वे कभी समझौता करते
नहीं देखे गए। उनका अखबार कम छपे, कम बिके पर अपनी राह चलता है। उस प्रवाह के साथ
जिसे आदरणीय दीनदयालजी, अटल जी, माणिकचंद्र वाजपेयी जी जैसे तपस्वी पत्रकारों ने
गढ़ा था। उन्हें पता है कि जब ‘विचार’ की ही पत्रकारिता कठिन है तो ‘विचारधारा’ का मार्ग तो और भी कठिन है। बाजार में
उतर गई और कारपोरेट बनने को आतुर ‘मीडिया समय’ में वे एक कठिन संकल्प के साथ हैं। ‘स्वदेश समाचार
पत्र समूह’ की विचारधारा स्पष्ट है और उसके लक्ष्य सबके
सामने हैं। ‘अपना अखबार’ होने के नाते
उसके ‘अपने’ भी उसकी बहुत परवाह नहीं
करते फिर विरोधी क्यों करेंगें? ऐसा नहीं है कि देश में
विचारधारा आधारित अखबारों की कोई परंपरा नहीं है। बावजूद इसके वर्तमान में ऐसे
अखबारों को चलाना और स्पर्धा में बनाए रखना कठिन है। ऐसे अखबार इस मनोरंजक,नकारात्मक
और जुगुत्सा जगाने वाली खबरों की पत्रकारिता के समय में अपने कंटेंट के नाते स्वयं
ही स्पर्धा से बाहर हो जाते हैं। उनका वैचारिक आग्रह ही उन पर भारी पड़ता है। केरल
में माकपा के मुखपत्र पीपुल्स डेली, बंगाल के पीपुल्स डेमोक्रेसी, कांग्रेस के
नवजीवन, नेशनल हेराल्ड, कौमी आवाज, शिवसेना के सामना और दोपहर का सामना जैसे
अखबारों की ओर देखें तो पता चलता है कि विचारधारा आधारित पत्र अपने कैडर तक भी
नहीं पहुंच पाते। अगर विचारधारा और राजनीतिक प्रशिक्षण पर जोर दिया जाता तो निश्चय
ही इन अखबारों की अपनी उपस्थिति बन पाती। सच तो यह है कि अगर ये अखबार विवादित और
तेवर भरी टिप्पणियां न करें तो उनका उल्लेख भी नहीं होता। इन स्थितियों के बीच भी
मध्यप्रदेश में अगर ‘स्वदेश’ की आवाज
कही और सुनी गयी तो इसके पीछे इसके यशस्वी संपादकों की परंपरा और समाज जीवन में
उनकी गहरी उपस्थिति के कारण ही हो पाया। श्री माणिकचंद्र वाजपेयी मामा जी, श्री
जयकृष्ण गौड़, श्री जयकिशन शर्मा, श्री बलदेव भाई शर्मा, श्री भगवतीधर वाजपेयी,
श्री बबन प्रसाद मिश्र ( युगधर्म) जैसे
अनेक नाम इसके उदाहरण हैं। इसी परंपरा का सबसे प्रासंगिक नाम श्री राजेंद्र शर्मा
का है, जिन्होंने पिछले पांच दशक से मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में अपनी यशस्वी
पत्रकारिता के पदचिन्ह छोड़े हैं।
‘स्वदेश’ की विस्तार यात्रा के सारथीः
श्री राजेंद्र शर्मा का पिंड पत्रकार
का है,लेखक का है , संपादक का है। बावजूद इसके वे चुनौतियों से भागने वाले व्यक्ति
नहीं हैं। एक सफल संपादक के नाते ग्वालियर में उनकी ख्याति हम सब जानते हैं।
बावजूद इसके पत्रकार-संपादक होते हुए भी उन्होंने न सिर्फ प्रबंधन की जिम्मेदारियां संभाली, वरन ‘स्वदेश’ के विस्तार की
सफल योजनाएं बनाईं। जिसके चलते स्वदेश ग्वालियर और इंदौर से आगे मध्यप्रदेश और
छत्तीसगढ़ का प्रमुख पत्र बन सका। उसकी आवाज और उपस्थिति पूरे संयुक्त मध्यप्रदेश
में महसूस की जाने लगी। आज ई-माध्यमों की उपस्थिति के बाद ‘स्वदेश’ के सभी संस्करणों की वैश्विक उपस्थिति है। इसके लेख, समाचार और विचार
वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर में पढ़े जाते हैं, जिनकी
खबरों और लेखों को सुधी पाठक सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं। यह राजेंद्र जी
का ही करिश्मा है कि उन्होंने ‘स्वदेश’
के संपादकीय पृष्ठ को कभी प्राणहीन नहीं होने दिया। देश के शिखर संपादक और लेखक ‘स्वदेश’ के संपादकीय पृष्ठ पर अपने विचारों से
विमर्श के नित नए बिंदु देते हैं, जिससे लोकमत निर्माण का
पत्रकारीय उद्देश्य पूर्ण होता है। बावजूद इसके प्रबंधन में उनकी व्यस्तता ने उनके
मूल काम(लेखन) को प्रभावित किया है, इसमें दो राय नहीं है। प्रबंधन में उनकी गहरी
संलग्नता न होती तो आज वे देश के श्रेष्ठतम लेखकों में गिने जाते। जिन्होंने उनकी
आलंकारिक भाषा, साहसी कलम, गहरी सामाजिक संलग्नता से निकली अभिव्यक्ति देखी है, वे
मानेंगें कि राजेंद्र जी अपने को जिस तरह और जितना अभिव्यक्त कर सकते थे, नहीं कर
पाए। कहा भी जाता है कि संपादन का कर्म आपके व्यक्तिगत लेखन को खा जाता है। यहां
तो राजेंद्र जी संपादन और प्रबंधन दोनों को साधते दिखते हैं, सो उनका लेखन तो इससे
प्रभावित होना ही था। बावजूद इसके उनकी अन्य उपलब्धियां कम नहीं हैं, जो उन्हें
हमारे समाज में आदर्श के रूप में प्रस्तुत करती हैं।
अप्रतिम संपादक, संदर्भों के सृजनकारः
श्री राजेंद्र शर्मा एक दैनिक अखबार के संपादक
तो हैं ही, साथ ही संदर्भों के सृजनहार भी हैं। उनके संपादन में जो पुस्तकें निकली
हैं, उनका मूल्यांकन होना अभी शेष है। ‘स्वदेश’ के विविध विषयों पर निकले
विशेषांक अलग से समीक्षा और समालोचना की मांग करते हैं। इन सभी विशेषांकों का ऐतिहासिक
महत्त्व है. क्योंकि ये पहली बार किसी भी व्यक्तित्व पर एकत्र की गयी अप्रतिम
संदर्भ सामग्री है। मुझे लगता है श्री अटलविहारी वाजपेयी अमृत महोत्सव विशेषांक,
राजमाता सिंधिया पुण्य स्मरण विशेषांक, लालकृष्ण आडवाणीः व्यक्ति और विचार,
राष्ट्रऋषि गुरूजी, सुदर्शन स्मृति, भाजपा रजत जयंती विशेषांक, स्वामी विवेकानंद विशेषांक, माणिकचंद्र वाजपेयी विशेषांक, प्यारेलाल
खंडेलवाल विशेषांक,जनादेश विशेषांक, आओ बनाएं अपना
मध्यप्रदेश, विश्वसनीय छत्तीसगढ़, जननायक (श्री नरेंद्र मोदी पर एकाग्र) को
जिन्होंने न देखा हो, उन्हें इन ग्रंथों/विशेषांकों को पलटकर
देखना चाहिए। इसके साथ ही कर्इ वर्षों तक आप मध्यप्रदेश संदर्भ का भी संपादन-
प्रकाशन करते रहे। ये सभी ग्रंथ सिर्फ विशेषांक नहीं हैं, एक पूर्ण संदर्भ ग्रंथ
हैं। अफसोस है कि इस महत्त्वपूर्ण प्रदेय की उतनी चर्चा नहीं हुई, जैसी होनी
चाहिए। जिद के धनी राजेंद्र जी इन ग्रंथों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देते हैं।
ये सारे ग्रंथ(विशेषांक) महाकाय हैं। ग्लेज पेपर पर बहुत सुंदर प्रिंटिग के साथ
छपे हैं, जिसे देखकर ही इनकी गुणवत्ता का पता चलता है। उनका यह प्रदेय निश्चित ही
रेखांकित किया जाना चाहिए। किसी भी समाचार पत्र द्वारा ऐसे ग्रंथों का प्रकाशन एक
अद्भुत घटना है, क्योंकि समाचार पत्र समूह प्रायः उन्हीं संदर्भों पर विशेषांक
छापते हैं, जिनसे व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इस अर्थ में राजेंद्र
जी के विषय चयन और उसकी प्रस्तुति सराहनीय है।
सामाजिक सरोकारों से जुड़ा जीवनः
संपादक- प्रबंधक की आसंदी व्यस्तता
की पराकाष्ठा है। इसके बीच भी राजेंद्र शर्मा सामाजिक सरोकारों, सामाजिक आंदोलनों,
तमाम विधाओं के संगठनों से जुड़कर अपना सामाजिक उत्तरदायित्व भी निभाते हैं। वे
सही अर्थों में सरोकारी, जीवंत और लोकाचारी व्यक्तित्व हैं। वे भारतीय भाषाओं के
समाचार पत्रों की प्रतिनिधि संस्था इंडियन लैंग्वेज न्यूज पेपर एसोसिएशन(इलना) के
दो बार अध्यक्ष रहे, ग्वालियर के श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष रहे। वे उसकी
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष भी रहे। ग्वालियर प्रेस क्लब के संस्थापक
अध्यक्ष होने के साथ आप अखिलभारतीय संपादक सम्मेलन से भी जुड़े रहे। इसके साथ ही
मप्र समाचार पत्र संघ, मप्र प्रेस सलाहकार परिषद, मप्र रेडक्रास सोसाइटी, मप्र
अधिमान्यता समिति, मप्र पत्रकार कल्याण कोष, डीएवीपी की प्रेस एडवाइजरी कमेटी,
श्रम सलाहकार परिषद, समाचार पत्र संचालकों की संस्था आईएनएस जैसे संगठनों में उनकी
सक्रियता उनकी सामाजिक उपस्थिति का प्रमाण है। सबको पता है कि राजेंद्र जी के
व्यक्तित्व को रचने और गढ़ने वाले संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है, जिसके
संपर्क में वे बाल्यकाल में ही आ गए थे। इसी भावधारा के चलते वे 25 वर्षों तक
विश्व हिंदू परिषद, मध्यभारत प्रांत के अध्यक्ष रहे। मानस भवन, भोपाल और माखनलाल
चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से भी वे अनेक दायित्वों से जुड़े
रहे हैं। उन्हें उप्र हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा पत्रकारिता भूषण, माखनलाल
चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान से भी अलंकृत किया
गया है।
मेरे गुरु, मेरे अभिभावकः
श्री राजेंद्र शर्मा की मेरे जीवन
में बहुत खास जगह है। वे मेरे लिए पितातुल्य तो हैं ही, मेरे पत्रकारिता गुरू और
अभिभावक भी हैं। उनकी स्नेहछाया में ही मैंने पत्रकारिता की मैदानी दीक्षा ली और
उन्होंने बहुत कम आयु में ही श्री हरिमोहन शर्मा जी की संस्तुति पर मुझे अखबार का
संपादक बना दिया। यह भरोसा साधारण नहीं था। उनके इस कदम से मुझमें अतिरिक्त
आत्मविश्वास भी पैदा हुआ और पत्रकारिता के क्षेत्र में मैं कुछ कर सका। उनकी
प्रेरणा, प्रोत्साहन और संरक्षण ने मेरी जिंदगी की हर कठिनाई का अंत ही नहीं किया,
वरन विजेता भी बनाया। आपकी जिंदगी में जब ऐसे स्नेही अभिभावक होते हैं तो आपके लिए
हर मंजिल आसान हो जाती है। आज भी वे मुझे बहुत उम्मीदों से देखते हैं। उनका यह
भरोसा बचा और बना रहे इसके लिए मैं भी सतत कोशिशें भी करता हूं। उनका मार्गदर्शन
और स्नेह पितृछाया की तरह ही है, जो आपको जीवन के झंझावातों से जूझने के लिए हौसला
देती है। राजेंद्र जी का असली सच यह है कि वे एक ‘वैचारिक योद्धा’ हैं जिन्होंने अपने जैसे
न जाने कितने विचारवंत संपादक-पत्रकार तैयार किए हैं। ‘स्वदेश’ को ‘वैचारिक पत्रकारिता की नर्सरी’ यूं ही नहीं कहा जाता। ‘स्वदेश’ में प्रशिक्षण प्राप्त कर अनेक संपादक और पत्रकार अपने क्षेत्र में
यशस्वी हैं, उनकी प्रगति और ख्याति निश्चित ही राजेंद्र जी के लिए संतोष का बड़ा
कारण है। श्री अक्षत शर्मा उनके सुयोग्य पुत्र और सक्षम उत्तराधिकारी हैं। अक्षत
जी ने अपने पिता का सौंदर्य, आकर्षक व्यक्तित्व, सरलता, सहजता और सौजन्य पाया है।
वे ‘स्वदेश कुल’ को निश्चित ही आगे
लेकर जाएंगें। ‘स्वदेश कुल’ का
शिक्षार्थी होने के नाते मैं स्वयं को गौरवशाली मानता हूं। साथ ही कामना करता हूं
कि ‘स्वदेश कुल’ के ‘कुलपति’ श्री राजेंद्र शर्मा यूं ही हम सबको दिशाबोध
कराते रहें। उनके स्वस्थ-सानंद व सुदीर्घ जीवन की मंगलकामनाएं, प्रार्थनाएं।
(लेखक
भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक और वरिष्ठ पत्रकार हैं। स्वदेश,
भोपाल और रायपुर संस्करणों से जुड़े रहे श्री द्विवेदी के श्री राजेंद्र शर्मा से
पारिवारिक और आत्मीय रिश्ते हैं।)
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