शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

समीक्षाः बजटः जुमलों को जमीन पर उतारने की कवायद


-संजय द्विवेदी

   वित्तमंत्री के नाते पहला बजट पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में दरअसल उन्हीं सपनों, आकांक्षाओं और नारों को जगह दी है, जिसके लिए मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में कुछ कदम उठा चुकी थी। दरअसल यह बजट नवउदारवादी नीतियों के साथ-साथ आम लोगों के लिए जनकल्याण की तमाम योजनाओं को साधते हुए बहुत सावधानी से बनाया गया है। पेट्रोल और डीजल पर एक रूपए की एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने के अलावा कुछ ऐसा साफ तौर पर नहीं दिखता, जिससे जनता में सीधे तौर पर नाराजगी नजर आए। किंतु संसाधनों को जुटाने की जरूरत भी साफ नजर आती है, जिसके चलते बड़े लोगों की कमाई पर टैक्स दरें बढ़ाई गयी हैं। जिसमें 2 से तीन करोड़ कमानेवाले पर 3 प्रतिशत और 5 से 7 करोड़ आमदनी पर अब 7 प्रतिशत ज्यादा टैक्स देना होगा। मध्यवर्गीय ईमानदार करदाताओं की अपने भाषण में वित्तमंत्री ने प्रशंसा तो की पर उन्हें थोड़ी राहत देना भूल गयीं। वहीं दूसरी तरफ शेयर बाजार ने भी इस बजट पर कोई उत्साह नहीं दिखाया और बजट भाषण के बाद बाजार में बड़ी गिरावट दर्ज की गयी।
    इस बजट को पहली नजर में एक पारंपरिक बजट ही कहा जा सकता है। जिस राह को अरूण जेटली छोड़कर गए थे,यह बजट भी उसी दिशा में आगे बढ़ता नजर आता है। अमीरों पर बोझ, गरीबों को राहत का फार्मूला यहां भी इस बजट की हेडलाइंस बनाने में मदद करेगा। बीमार हो चुके सरकारी बैंकों को 70 हजार करोड़ रूपए का पैकेज अपने आप में एक बड़ी खबर है। तो वहीं 2 अक्टूबर तक देश को खुले में शौच से मुक्त करने का नारा कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी है। क्योंकि खुले में शौच का मामला सिर्फ शौचालय निर्माण की समस्या नहीं है, व्यवहार परिर्वतन से भी जुड़ा है। इस दिशा में सरकार के प्रयास सराहनीय है, किंतु आदतों में बदलाव के लिए एक लंबी यात्रा की जरूरत होती है।
    बजट का वास्तविक आकलन तो अर्थशास्त्री ही करेंगें किंतु प्रथम दृष्ट्या यह बजट कृषि, अधोसंरचना, शिक्षा और सामाजिक विकास की योजनाओं पर ही केंद्रित है। सरकार भी यह मान बैठी है कि अब सरकारी क्षेत्र में रोजगार सृजन संभव नहीं है और बड़ी योजनाओं से पैदा होने वाला रोजगार ही युवाओं का सहारा है। हालांकि स्किल डेवलेपमेंट और मुद्रा योजना जैसे प्रयास भी साथ-साथ जारी हैं। किंतु बेरोजगारी की विकराल होती समस्या से जूझने का कोई रोडमैप और संकल्प सरकार के पास नहीं दिखता। प्रधानमंत्री शहरी और ग्रामीण आवास, स्वच्छ भारत, खेलो इंडिया स्कीम, कृषि आधारित ग्रामीण उद्योगों, आयुष्मान योजना, प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना, अटल पेंशन योजना, जल सुरक्षा और संरक्षण पर सरकार का खास फोकस है। हर घर जल, जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम तथा जल के लिए जलशक्ति मंत्रालय का गठन सरकार की प्राथमिकता को दर्शाता है। निश्चय ही पानी का सवाल हमारे तमाम गांवों और शहरों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में सरकार को पानी के मुद्दे को प्राथमिकता में लेना जरूरी ही था। सरकार का मानना है कि डिजीटल साक्षरता बढ़ाने और डिजीटल डिवाइड खत्म करने के सरकारी प्रयासों के माध्यम से ही पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार की समस्या भी कुछ हद तक हल होगी।
    महात्मा गांधी 150 वीं जयंती वर्ष के मौके पर वित्तमंत्री ने कई बार गांधी जी को याद करते हुए अनेक योजनाओं को उनकी पावन स्मृति को समर्पित बताया। इसमें स्वच्छता और ग्रामीण भारत के विकास से जुड़े अनेक प्रकल्प शामिल हैं। रेलवे को विकास और आधुनिकीकरण का जिक्र भी वित्तमंत्री ने किया। महिलाओं के विकास से जुड़ी योजनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने नारी टू नारायण नामक जुमला प्रस्तुत किया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के मुद्दे को उन्होंने उठाया और कहा कि इस चुनाव में ज्यादा मतदान करने और 78 महिला सांसदों के  जीतकर संसद पहुंचने से महिलाओं के विकास की राह आसान होगी।
     समग्रता में यह बजट नरेंद्र मोदी सरकार के सपनों की मार्केटिंग जैसा ही है। पहले कार्यकाल में प्रारंभ किए गए कामों को आगे बढ़ाने की मंशा भी इसमें साफ दिखती है। समय सीमा में योजनाओं को पूर्ण करने की मंशा जताते हुए सरकार आगे बढ़ी है। वित्तमंत्री ने भी अपने बजट भाषण में इस बात का कई बार जिक्र किया। अपने दो घंटे के बजट भाषण में वित्तमंत्री के वक्तव्यों पर जिस तरह प्रधानमंत्री मेज पर थाप दे रहे थे, उससे पता चलता है कि इस बजट से सरकार ने बहुत उम्मीदें बांध रखी हैं। बाद में प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिक्रिया में इस बजट को आशा, विश्वास और आकांक्षाओं का बजट बताते हुए इसे ग्रीन बजट भी कहा। यानि ग्रामीण भारत में छिपी हुई संभावनाओं का दोहन करने के लिए एक नई शुरूआत भी इसमें दिखती है। वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डालर की ऊंचाई तक ले जाने का जो स्वप्न देख रहे हैं, उसके लिए समावेशी, समेकित और निरंतर प्रयासों की जरूरत है। उम्मीद का जानी चाहिए कि सरकार का तंत्र और समाज पूरी संवेदना के साथ जनकल्याण की इन योजनाओं की निगहबानी भी करेगा।

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