समीक्षकः लोकेंद्र सिंह
हम जिन्हें प्रतिदिन न्यूज चैनल पर बहस
करते-कराते देखते हैं। खबरें प्रस्तुत करते हुए देखते हैं। अखबारों और पत्रिकाओं
में जिनके नाम से प्रकाशित खबरों और आलेखों को पढ़कर हमारा मानस बनता है। मीडिया
गुरु और लेखक संजय द्विवेदी द्वारा संपादित किताब 'हिन्दी मीडिया के हीरो' पत्रकारिता के उन चेहरों और नामों को
जानने-समझने का मौका उपलब्ध कराती है।
किताब में देश के 101 मीडिया दिग्गजों की सफलता की कहानी
है। किन परिस्थितियों में उन्होंने अपनी पत्रकारिता शुरू की? कैसे-कैसे सफलता की सीढिय़ां चढ़ते गए? उनका व्यक्तिगत जीवन कैसा है? टेलीविजन पर तेजतर्रार नजर आने वाले
पत्रकार असल जिन्दगी में कैसे हैं? उनके बारे में दूसरे दिग्गज क्या सोचते हैं? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब यह किताब देती है। किताब को
पढ़ते वक्त आपको महसूस होगा कि आप अपने चहेते मीडिया हीरो को नजदीक से जान पा रहे
हैं। यह किताब पत्रकारिता के छात्रों सहित उन तमाम युवाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है
जो आगे बढऩा चाहते हैं। पुस्तक में जमीन से आसमान तक पहुंचने की कई कहानियां हैं।
पत्रकारों का संघर्ष प्रेरित करता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रहे युवाओं को
यह भी समझने का अवसर किताब उपलब्ध कराती है कि मीडिया में डटे रहने के लिए कितनी
तैयारी लगती है। इस तरह के शीर्षक से कोई सामग्री किताब में नहीं है, यह सब तो अनजाने और अनायस ही पत्रकारों
के जीवन को पढ़ते हुए आपको जानने को मिलेगा।
यह पुस्तक ऐसे समय में प्रकाशित होकर
आई है जबकि मीडिया की चर्चा सब ओर है, नकारात्मक भी और सकारात्मक भी। मीडिया के संबंध में धारणा है कि वह
लोकतंत्र में प्रतिपक्ष की भूमिका निभाता है। उसने पिछले कुछ समय से अपनी इस
भूमिका के साथ काफी हद तक न्याय किया है। तमाम घोटालों को उजागर करने के लिए
मीडिया की तारीफ हुई है। समाज से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखा गया है। इस सबके
बावजूद भी पत्रकारों पर रुपये लेकर खबर छापने-दिखाने के आरोप लग रहे हैं। खबरों को
लेकर पक्षपाती होने के आरोप भी मीडिया के माथे आ रहे हैं। 'पैसा फेंको तमाशा देखो' यानी अर्थ के प्रभाव से मीडिया को
मैनेज किया जा सकता है, यह भी आम धारणा बना दी गई है। सोशल मीडिया पर परम्परागत मीडिया का 'पोस्टमार्टम' किया जा रहा है। वातावरण ऐसा बना दिया
गया है कि पत्रकारों को संदिग्ध नजर से भी देखा जाने लगा है। एक समय में बेहद आदर
से देखे जाने वाले पत्रकारों से आज निष्ठुरता से पूछा जा रहा है कि 'ऊपर की कमाई' कितनी हो जाती है? मिशन के जमाने में पत्रकार संदिग्ध
नहीं था। उसकी जेब भले ही खाली रहती थी लेकिन समाज का हौसला उसकी कलम को धार देता
रहता था। पत्रकारिता आदर्श थी। यह आदर्श आज भी बाकी है। आज भी कई पत्रकार
सिद्धांतों की लकीर से इधर-उधर नहीं होते हैं। पत्रकारों की प्रतिष्ठा कुछ कम हो
रही है तब पत्रकारों को हीरो की तरह स्थापित करने का काम यह किताब करती है।
पत्रकारों के जीवन पर इससे पहले भी कई किताबें आई हैं। उनमें से अधिकतर किताबें
एक-एक पत्रकार पर समग्रता से सामग्री प्रस्तुत करती हैं। लेकिन, 'हिन्दी मीडिया के हीरो' की विशेषता है कि यह एक बार में अनेक
लोगों के बारे में जानकारी देती है। हम इसे 'बंच ऑफ जर्नलिस्ट प्रोफाइल' यानी पत्रकारों के जीवन का गुलदस्ता भी
कह सकते हैं। आलोचना की दृष्टि से देखें तो इसमें दूरदराज के कई अच्छे पत्रकारों
के नाम शामिल किये जा सकते थे, जो चमक-धमक से दूर खांटी पत्रकारिता कर रहे हैं।
इस बात पर भी बहस की गुंजाइश है कि 101 में शामिल कितने पत्रकार आदर्श हैं? यह सूची 101 पत्रकारों की ही क्यों है? कम या ज्यादा क्यों नहीं? हालांकि, इन सबके जवाब संपादक संजय द्विवेदी ने
अपनी भूमिका में दिए हैं। फिर भी असहमतियां तो बनी ही रहती हैं। संपादक का कहना है
कि किताब में जितने भी पत्रकारों के प्रोफाइल को शामिल किया गया है, मौजूदा वक्त में वे देश भर में हिन्दी
मीडिया के चेहरे हैं। देश उनके बारे में जानना चाहता है। हीरो शब्द पर विवाद की
संभावना अधिक है। इसलिए उन्होंने 'हीरो' शब्द
के उपयोग को भी स्पष्ट किया है। वे कहते हैं कि आदर्श अलग चीज है और हीरो अलग। वे
मानते हैं कि किताब में आए कई नाम हिन्दी पत्रकारिता के आदर्श नहीं हैं। इसलिए
उन्होंने पुस्तक को 'हिंदी
मीडिया के हीरो'
नाम दिया है, 'हिन्दी पत्रकारिता के आदर्श' नहीं। श्री द्विवेदी लिखते हैं कि “हीरो वे हैं जो हिन्दी पत्रकारिता के नाम पर जाने-पहचाने जाते हैं।
हीरो का मतलब विलेन भी होता है। जैसे डर फिल्म में शाहरुख खान हीरो होते हुए भी
विलेन का काम करता है।” बहरहाल, इन 101 नामों को चयन करने वाले
निर्णायक मंडल में मीडिया के ऐसे दिग्गज शामिल हैं, जिन्होंने बेदाग रहते हुए पत्रकारिता
में काफी लम्बा सफर तय किया है।
पुस्तक : हिन्दी मीडिया के हीरो
संपादक : संजय द्विवेदी
मूल्य : 695 रुपये (साजिल्द)
पृष्ठ संख्या : 227
प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस
1/11848 पंचशील गार्डन, नवीन शाहदरा,
दिल्ली-110032
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