पुस्तक समीक्षा
- लोकेन्द्र सिंह (लेखक युवा साहित्यकार और लेखक हैं l)
सोलहवीं लोकसभा
का आम चुनाव अपने आप में अनोखा था। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह पहला मामला
था जब समस्त राजनीतिक दल सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ न होकर एक विपक्षी पार्टी के
खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे थे। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
नरेन्द्र मोदी को घेरने का काम सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं कर रहे थे बल्कि लेखक और
बुद्धिजीवी वर्ग भी निचले स्तर तक जाकर मोदी विरोधी अभियान चला रहे थे। लेकिन, कांग्रेस के
भ्रष्टाचार, घोटालों-घपलों
और कुनीतियों से तंग जनता ने न केवल मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया
बल्कि भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व, अकल्पनीय बहुमत दिया और कांग्रेस के गले में डाल दी ऐतिहासिक हार।
भारत के सबसे
लम्बे चलने वाले आम चुनाव-2014 की तारीखों की
घोषणा के पहले से लेकर परिणाम के बाद तक की प्रक्रिया पर पैनी नजर रखने वाले देश
के जाने-माने चुनाव विश्लेषक संजय द्विवेदी की पुस्तक 'मोदी लाइव' इस
अभूतपूर्व चुनाव का एक अहम दस्तावेज है। श्री द्विवेदी भले ही आमुख में यह लिखें -
''यह कोई
गंभीर और मुकम्मल किताब नहीं है। एक
पत्रकार की सपाटबयानी है। इसे अधिकतम चुनावी नोट्स और अखबारी लेखन ही माना जा सकता
है।''
लेकिन, दो दशक से
पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय संजय द्विवेदी को जानने वाले जानते हैं
कि उनका राजनीतिक विश्लेषण गंभीर रहता है। वे सपाटबयानी के साथ गहरी बातें कहते
हैं,
जो
भविष्य में सच के काफी करीब होती हैं। इसी पुस्तक के कई लेखों में उनकी गहरी
राजनीतिक समझ और ईमानदार विश्लेषण से परिचित हुआ जा सकता है। 25 जनवरी को लिखे गए एक आलेख में उन्होंने संकेत दिया था- ''इस बार के चुनाव
साधारण नहीं, विशेष
हैं। ये चुनाव खास परिस्थियों में लड़े जा रहे हैं जब देश में सुशासन, विकास और
भ्रष्टाचार मुक्ति के सवाल सबसे अहम हो चुके हैं। नरेन्द्र मोदी इस समय के नायक
हैं। ऐसे में दलों की बाड़बंदी, जातियों की बाड़बंदी टूट सकती है। गठबंधनों की तंग सीमाएं टूट सकती
हैं। चुनाव के बाद देश में एक ऐसी सरकार बन सकती है जिसमें गठबंधन की लाचारी, बेचारगी और
दयनीयता न हो।'' चुनाव परिणाम से उनकी एक-एक बात सच साबित हुई। लम्बे समय बाद किसी एक
दल को पूर्ण बहुमत मिला। गठबंधन की अवसरवादी राजनीति से देश को राहत मिली। जात-पात
और वोटबैंक की राजनीति काफी कुछ छिन्न-भिन्न हुई। अवसरवादी राजनीति के पर्याय बनते
जा रहे क्षेत्रीय दलों का सफाया हो गया। राजनीतिक छुआछूत की शिकार भाजपा सही मायने
में राष्ट्रीय पार्टी बनकर उभरी, दक्षिण-पूर्व में भी कमल खिला।
कांग्रेस के
भ्रष्टाचार से अधिक, समय के साथ लोकनायक बनते जा रहे नरेन्द्र मोदी के कारण यह आम चुनाव
सर्वाधिक चर्चा का विषय बना। संभवत: यह नए भारत का एकमात्र चुनाव है, जिसने फिर से
राजनीतिक चर्चा-बहस को घर-घर तक पहुंचाया। राजनीति के नाम से ही बिदकने वाले लोग
भी सकारात्मक परिवर्तन की बात कर रहे नरेन्द्र मोदी के भाषण गौर से सुन रहे थे।
सबसे अहम बात यह है कि राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों के बीच ही नहीं युवाओं और
महिलाओं के बीच भी नरेन्द्र मोदी चर्चा का केन्द्र बने। बच्चों की तोतली जुबान पर
भी मोदी का नाम चढ़ा हुआ था। गुजरात से निकलकर देश के जनमानस पर यूं छा जाने के
नरेन्द्र मोदी के सफर को 'मोदी लाइव' में आसानी से समझा जा सकता है। नरेन्द्र मोदी को किन-किन
परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, कैसे उन्होंने विरोधियों की ओर से उछाले गए पत्थरों से मंजिल तक
पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाई, कैसे अपनों से मिल रही चुनौती से पार पाई, इन सवालों के
जवाब आपको मिलेंगे मोदी लाइव में। इसके साथ ही श्री द्विवेदी ने बहुत से सवाल
राजनीतिक विमर्श और शोध के लिए अपनी तरफ से प्रस्तुत किए हैं। निश्चित ही उन
सवालों पर भविष्य में राजनीति के विद्यार्थियों को शोध करना चाहिए और राजनीतिक विचारकों
को सार्थक विमर्श।
पुस्तक के एक
लेख 'भागवत, भाजपा और मोदी!' में श्री
द्विवेदी उन तमाम विश्लेषकों का ध्यान दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन के
सफल प्रयोग की ओर दिलाते हैं, जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय मिली। राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ को एक खास नजरिए से देखने वाले बुद्धिजीवी सदैव उसका गलत मूल्यांकन
करते हैं। इस सच को सबको स्वीकार करना होगा कि आरएसएस राजनीतिक संगठन नहीं है
लेकिन जब बात देश की आती है तो राजनीतिक परिवर्तन के लिए भी वह चुप रहकर काम करता
है। लोकनायक जेपी के नेतृत्व में व्यवस्था परिवर्तन के लिए खड़ा किया गया आंदोलन
हो या फिर आपातकाल के खिलाफ संघर्ष, आम समाज की नजर में संघ की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। बावजूद इसके
देश के तमाम तथाकथित बड़े साहित्यकार, इतिहासकार और बुद्धिजीवी संघ की भूमिका और ताकत को नजरंदाज ही नहीं
करते बल्कि उसकी गलत व्याख्या करते हैं। श्री द्विवेदी अपने इसी लेख में बताते हैं
कि किस तरह संघ ने 'मोदी प्रयोग' को सफल बनाया। वे लिखते हैं - ''संघ के क्षेत्र
प्रचारकों ने अपने-अपने राज्यों में तगड़ी व्यूह रचना की और माइक्रो मॉनीटरिंग से
एक अभूतपूर्व वातावरण का सृजन किया। चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने और शत प्रतिशत
मतदान के लिए संपर्क का तानाबाना रचा गया।'' संघ के इस
प्रयास का खुले दिल से स्वागत करना चाहिए कि दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र के
महायज्ञ की तैयारी की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने वाले चुनाव आयोग के अलावा
आरएसएस ही एकमात्र ऐसा संगठन था जिसने अपनी पूरी ताकत मतदान प्रतिशत बढ़ाने में
झोंक रखी थी। पुस्तक का आखिरी लेख भी संघ को समझने में काफी मदद करता है। वरिष्ठ
पत्रकार भुवनेश तोमर ने इस बात का जिक्र बातचीत के दौरान किया था कि इस आम चुनाव
में संघ की भूमिका का सही विश्लेषण किसी ने किया है तो वे संजय द्विवेदी ही हैं।
वे बताते हैं कि यह संघ की ही तैयारी थी कि उत्तरप्रदेश में उम्मीद से अधिक अच्छा
प्रदर्शन भाजपा ने किया।
'मोदी लाइव' 22 आलेखों का संग्रह है। हर एक आलेख चुनाव से जुड़ी अलग-अलग
जिज्ञासाओं का समाधान है। चुनाव के दौरान की परिस्थितियों का बयान करते आलेखों में
मीडिया गुरु संजय द्विवेदी ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर बौद्धिक प्रलाप कर रहे
बुद्धिजीवियों के चयनित दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने ऐसे लेखकों को 'सुपारी लेखक' बताया है। लेखक
ने लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक तरीके से एक व्यक्ति के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान
चलाने वाले यूआर अनंतमूर्ति, अशोक वाजपेयी, नामवर सिंह, के. सच्चिदानंद और प्रभात पटनायक जैसे स्वयंभू बुद्धिजीवियों को आड़े
हाथ लिया है। मोदी का भय दिखाकर सदैव से मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वालों की
हकीकत बयान की है। श्री द्विवेदी ने अपने एक आलेख में बताया है कि कैसे कांग्रेस
सहित अन्य दल मुस्लिमों का अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए इस्तेमाल करते आए
हैं। इसके अलावा इस अभूतपूर्व आम चुनाव में मीडिया की भूमिका, चुनाव से पहले
अंगड़ाई लेने वाले तीसरे मोर्चे का वजूद, राष्ट्रीय दलों की स्थिति, परिवारवाद और अवसरवाद की राजनीति को समझने का मौका 'मोदी लाइव' में संग्रहित
श्री द्विवेदी के चुनिंदा आलेख उपलब्ध कराते हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार
के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 99 पृष्ठों की बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक 'मोदी लाइव' की भूमिका लिखी
है। 'मीडिया विमर्श' ने 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के मौके पर पुस्तक को प्रकाशित किया
है। इसका आवरण शिल्पा अग्रवाल ने तैयार किया है। पुस्तक कितनी चर्चित और पाठकप्रिय
हो गयी है, उसे यूँ समझिये कि एक ही माह बाद यानी 24 जून, 2014 को रानी दुर्गावती
बलिदान दिवस के मौके पर मोदीलाइव का द्वितीय संस्करण प्रकाशित हो गया।l
पुस्तक : मोदी लाइव, लेखक : संजय द्विवेदी
मूल्य : 25 रुपये, पृष्ठ : 99
प्रकाशक : मीडिया विमर्श, एम.आई.जी.-37, हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी,
कचना, रायपुर (छत्तीसगढ़)-492001
ईमेल : mediavimarsh@gmail.com
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