पं.बृजलाल द्विवेदी सम्मान से
नवाजे गए गिरीश पंकज
भोपाल। प्रख्यात कवि, आलोचक और लेखक विजयबहादुर सिंह का कहना है कि भारत में धर्म और राजनीति कोई दो बातें
नहीं हैं। अन्यायी की पहचान और उससे ‘लोक’ की मुक्ति या त्राण दिलाने की सारी कोशिशें ही
धार्मिक कोशिशें रही हैं। वे यहां पं.बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिलभारतीय साहित्यिक
पत्रकारिता सम्मान समारोह में मुख्यवक्ता की आसंदी से बोल रहे थे। कार्यक्रम का
आयोजन भोपाल के रवींद्र भवन में ‘मीडिया विमर्श’ पत्रिका द्वारा किया गया था।
राजनीति हो चुकी है लोकविमुखः
अपने वक्तव्य में उन्होंने
लोकतंत्र के रोज-रोज वीआईपी और वीवीआईपी तंत्र में बदलने और गांधी द्वारा
निर्देशित दरिद्रनारायणों के हितों को हाशिए लगाए जाने की स्थितियों पर गहरी चिंता
व्यक्त की। साथ ही भारत के सांस्कृतिक इतिहास,तिरंगे के प्रतीक रंगों और बीच में
प्रतिष्ठित चक्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने याद दिलाया कि साहित्य का काम
सभ्यता के अंधेरों में मशाल की तरह जलना है। रामायण, महाभारत- भारत के लोगों के
पास ऐसी ही कभी न बुझने वाली और प्रत्येक कठिन अंधेरों में अपनी रोशनी फेंकने वाली
मशालें हैं। श्री सिंह का कहना था कि भारत की सत्ता राजनीति लोकविमुख हो चुकी है।
विश्व पूंजीवाद और उत्तर साम्राज्यवाद अपने पांव पसार चुके हैं। वे मनुष्य को
ग्राहक के रूप में बदलने पर आमादा हैं।
साहित्यिक पत्रकारिता के सामने इन ताकतों से लड़ने की गहरी चुनौतियां हैं।
उन्होंने कहा कि साहित्य मानव मन की सबसे
पवित्र भाषा है।साहित्य ही सबसे अधिक दैवी और ताकतवर भाषा है। उन्होंने उम्मीद
जतायी कि भारत की साहित्यिक पत्रकारिता इसके तेज और ताप की रक्षा प्रत्येक स्थिति
में कर सकेगी।
सामाजिक संवाद में मर्यादाएं जरूरीः
कार्यक्रम के मुख्यअतिथि माखनलाल चतुर्वेदी
राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि
पत्रकारिता सामाजिक संवाद का ही एक रूप है। सामाजिक संवाद में अगर मर्यादाएं न होंगी
तो उसका चेहरा कितना विकृत हो सकता है, इसे समझा जा सकता है। इसके लिए समाजशास्त्र
और मनोविज्ञान को समझे बिना पत्रकारिता बेमानी हो जाएगी। पत्रकारिता के धर्म को तय
करते समय यह जरूरी है कि हम यह सोचें की पत्रकारिता का कलेवर नकारात्मक रहे या
समाज को जोड़ने और विकास की ओर ले जाने वाला हो। पत्रकार और पत्रकारिता की
नकारात्मक दृष्टि के पीछे इसकी धर्मविहीनता ही है। उनका कहना था कि यदि भारतीय
समाज में संवाद का निर्धारण विदेशी पूंजीपतियों को करना है तो भविष्य का भारतीय
समाज अपने हितों की रक्षा करेगा या विदेशी शक्तियों के योजनाओं के पालन में लगेगा,
यह एक बड़ा सवाल मीडिया के सामने खड़ा है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि जब मीडिया या
मानव का संवाद व्यापार बन जाए और कुछ गिने-चुने लोग ही तय करें कि वृहत्तर समाज को
क्या सुनना, देखना, पढ़ना, करना और सोचना है तो यह अप्राकृतिक और अमानवीय है। हमें
इस खतरे को पहचान कर इसका भी तोड़ खोजना होगा, जिसमें सोशल मीडिया कुछ हद तक कारगर
साबित हो सकता है।
बदली नहीं हैं मनुष्यता की चिंताएं-
समारोह के अध्यक्ष प्रख्यात समाजवादी लोककर्मी रघु ठाकुर ने भारतीय
पत्रकारिता के सामने उपस्थित चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भले ही अब हालात
पहले जैसे न रहे हों किंतु मानव समाज और मनुष्यता की चिंताएं कमोबेश वही हैं। इसके
लिए भविष्य की पत्रकारिता को अपने हथियारों को अधिक पैना और जरूरत से ज्यादा
समझदार बनाना होगा। घुटने टेकना और समझौते करना पत्रकारिता का फर्ज नहीं है।
उन्होंने याद दिलाया कि हम अंततः एक लोकतांत्रिक और राष्ट्रीय समाज हैं। इसमें
बहुत सारी राष्ट्रीयताएं अपनी आजादी के लिए हाथ-पांव पसार रही हैं। पत्रकारों को
इन सब जगहों की ओर अपनी सजगता और कर्मठता का इम्तहान देना होगा।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि हरिभूमि के प्रबंध
संपादक डा. हिमांशु द्विवेदी ने कहा
कि जिस दौर में भारत की परिवार परंपरा खतरे में हो,रिश्तों के नकलीपन उजागर हो रहे
हों, उस समय में अपने पूर्वजों की स्मृति में ऐसा बड़ा आयोजन जड़ों से जोड़ने का
प्रयास है। साहित्यिक पत्रकारिता ने निश्चय ही हिंदी की सेवा और गंभीर विमर्शों के
क्षेत्र में बड़ा काम किया है। ऐसे में इस सम्मान की सार्थकता और प्रासंगिकता बहुत
बढ़ जाती है।
समारोह में सद्भावना दर्पण(रायपुर) के संपादक गिरीश पंकज को 11 हजार रूपए की
सम्मान राशि, शाल, श्रीफल, मानपत्र और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस
अवसर पर श्री पंकज ने कहा कि अपनी पत्रकारिता के माध्यम से वे भाषाई सद्भभावना को
फैलाने का काम कर रहे हैं।
कार्यक्रम में सर्वश्री रमेश दवे, कमल दीक्षित, सुबोध
श्रीवास्तव, महेंद्र गगन, दिनकर सबनीस, हेमंत मुक्तिबोध, नरेंद्र जैन, दीपक
तिवारी, गिरीश उपाध्याय, मधुकर द्विवेदी, अनिल सौमित्र,प्रकाश साकल्ले सहित अनेक
साहित्यकार, पत्रकार,लेखक एवं नगर के विविध क्षेत्रों से जुड़े लोग और छात्र बड़ी
संख्या में मौजूद थे। स्वागत भाषण संजय द्विवेदी ने और आभार प्रदर्शन मीडिया
विमर्श के संपादक डा.श्रीकांत सिंह ने किया। कार्यक्रम का संचालन डा.सुभद्रा राठौर
ने किया।
गूंजा कबीर रागः कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पूरा रवींद्र भवन कबीर
और सूफी राग में नहा उठा। अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति में पद्श्री स्वामी जीसीडी भारती ( भारती बंधु) ने समूचे श्रोता वर्ग को सूफीयाना
माहौल में रंग दिया। कार्यक्रम के प्रारंभ में इस सत्र के मुख्यअतिथि पूर्व सांसद कैलाश नारायण सारंग ने भारती बंधु और सभी
साथी कलाकारों का शाल-श्रीफल देकर अभिनंदन किया।
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