वेलैंटाइन डे ( १४ फरवरी) पर विशेषः
-संजय द्विवेदी
क्या प्रेम का कोई दिन हो सकता है। अगर एक दिन है, तो बाकी दिन क्या नफरत के हैं ? वेलेंटाइन डे जैसे पर्व हमें बताते हैं कि प्रेम जैसी भावना को भी कैसे हमने बांध लिया है, एक दिन में या चौबीस घंटे में। पर क्या ये संभव है कि आदमी सिर्फ एक दिन प्यार करे, एक ही दिन इजहार-ए मोहब्बत करे और बाकी दिन काम का आदमी बना रहे। जाहिर तौर पर यह संभव नहीं है। प्यार एक बेताबी का नाम है, उत्सव का नाम है और जीवन में आई उस लहर का नाम है जो सारे तटबंध तोड़ते हुए चली जाती है। शायद इसीलिए प्यार के साथ दर्द भी जुड़ता है और शायर कहते हैं दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना।
प्रेम के इस पर्व पर आंखों का चार होना और प्रेम प्रस्ताव आज एक लहर में बदल रहे हैं। स्कूल-कालेजों में इसे खासी लोकप्रियता प्राप्त है। इसने सही मायने में एक नई दुनिया रच ली है और इस दुनिया में नौजवान बिंदास घूम रहे हैं और धूम मचा रहे है। भारतीय समाज में प्रेम एक ऐसी भावना है जिसको बहुत आदर प्राप्त नहीं है। दो युवाओं के मेलजोल को अजीब निगाह से देखना आज भी जारी है। हमारी हिप्पोक्रेसी या पाखंड के चलते वेलेंटाइन डे की लोकप्रियता हमारे समाज में इस कदर फैली है। शायद भारतीय समाज में इतने विधिनिषेध और पाखंड न होते तो वेलेंटाइन डे जैसे त्यौहारों को ऐसी सफलता न मिलती। किंतु पाखंड ने इस पर्व की लोकप्रियता को चार चांद लगा दिए हैं। भारत की नौजवानी अपने सपनों के साथ जी रही है किंतु उसका उत्सवधर्मी स्वभाव हर मौके को एक खास इवेंट में बदल देता है। प्रेम किसी भी रास्ते आए उसका स्वागत होना चाहिए। वेलेंटाइन एक ऐसा ही मौका है , आपकी आकांक्षाओं और सपनों में रंग भरने का दिन भी। सेंट वेलेंटाइन ने शायद कभी सोचा भी न हो कि भारत जैसे देश में उन्हें ऐसी लोकस्वीकृति मिलेगी।
बाजार में त्यौहारः
वेलेंटाइन के पर्व को दरअसल बाजार ने ताकत दी है। कार्ड और गिफ्ट कंपनियों ने इसे रंगीन बना दिया है। भारत आज नौजवानों का देश है। इसके चलते यह पर्व एक अद्भुत लोकप्रियता के शिखर पर है। नौजवानों ने इसे दरअसल प्रेम पर्व बना लिया है। इसने बाजार की ताकतों को एक मंच दिया है। बाजार में उपलब्ध तरह-तरह के गिफ्ट इस पर्व को साधारण नहीं रहने देते, वे हमें बताते हैं कि इस बाजार में अब प्यार एक कोमल भावना नहीं है। वह एक आतंरिक अनूभूति नहीं है वह बदल रहा है भौतिक पदार्थों में। वह आंखों में आंखें डालने से महसूस नहीं होता, सांसों और धड़कनों से ही उसका रिश्ता नहीं रहा, वह अब आ रहा है मंहगे गिफ्ट पर बैठकर। वह महसूस होता है महंगे सितारा होटलों की बिंदास पार्टियों में, छलकते जामों में, फिसलते जिस्मों पर। ये प्यार बाजार की मार का शिकार है। उसे और कुछ चाहिए, कुछ रोचक और रोमांचक। उसकी रूमानियत अब पैसे से खिलती है, उससे ही दिखती है। यह हमें बताती है कि प्यार अब सस्ता नहीं रहा। वह यूं ही नहीं मिलता। लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद की बातें न कीजिए, यह प्यार बाजार के उपादानों के सहारे आता है, फलता और फूलता है। इस प्यार में रूह की बातें और आत्मा की रौशनी नहीं हैं, चौधिंयाती हुयी सरगर्मियां हैं, जलती हुयी मोमबत्तियां हैं, तेज शोर है, कानफाड़ू म्यूजिक है। इस आवाज को दिल नहीं, कान सुनते हैं। कानों के रास्ते ये आवाज, कभी दिल में उतर जाए तो उतर जाए।
इस दौर में प्यारः
इस दौर में प्यार करना मुश्किल है और निभाना तो और मुश्किल। इस दौर में प्यार के दुश्मन भी बढ़ गए हैं। कुछ लोगों को वेलेंटाइन डे जैसे पर्व रास नहीं आते। इस अवसर पर वे प्रेमियों के पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं। देश में अनेक संगठन चाहते हैं कि नौजवान वेलेंटाइन का पर्व न मनाएं। जाहिर तौर पर उनकी परेशानियों हमारे इसी पाखंड पर्व से उपजी हैं। हमें परेशानी है कि आखिर कोई ऐसा त्यौहार कैसे मना सकता है जो प्यार का प्रचारक है। प्यार के साथ आता बाजार इसे प्रमोट करता है, किंतु समाज उसे रोकता है। वह चाहता है संस्कृति अक्षुण्ण रहे। संस्कृति और प्यार क्या एक-दूसरे के विरोधी हैं ? प्यार, अश्ललीलता और बाजार मिलकर एक नई संस्कृति बनाते हैं। शायद इसीलिए संस्कृति के रखवाले इसे अपसंस्कृति कहते हैं। सवाल यह है कि बंधन और मिथ्याचार क्या किसी संस्कृति को समर्थ बनाते हैं ? शायद नहीं। इसीलिए नौजवान इस विधि निषेधों के खिलाफ हैं। वे इसे नहीं मानते, वे तोड़ रहे हैं बंधनों को। बना रहे हैं अपनी नई दुनिया। वे इस दुनिया में किसी के हस्तक्षेप के खिलाफ हैं। वे चाहते हैं प्यार जिए और सलामत रहे। प्यार की जिंदाबाद लगे। बाजार उनके साथ है। वह रंग भर रहा है, उन्हें प्यार के नए फलसफे समझा रहा है। प्यार के नए रास्ते बता रहा है। इस नए दौर का प्यार भी क्षणिक है ,वह एक दिन का प्यार है। इसलिए वन नाइट स्टे एक हकीकत बनकर हमें मुंह चिढ़ा रहा है। ऐसे में रास्ता क्या है ? सहजीवन जब सच्चाई में बदल रहा हो। महानगर अकेले होते इंसान को इन रास्तों से जीना सिखा रहे हों। एक वर्चुअल दुनिया रचते हुए हम अपने अकेले होने के खिलाफ खड़े हो रहे हों तो हमारा रास्ता मत रोकिए। यह हमारी रची दुनिया भले ही क्षणिक और आभासी है, हम इसी में मस्त-मस्त जीना चाहते हैं। नौजवान कुछ इसी तरह से सोचते हैं। प्यार उनके लिए भार नहीं है, जिम्मेदारी नहीं है, दायित्व नहीं है, एक विनिमय है। क्योंकि यह बाजार का पैदा किया हुआ, बाजार का प्यार है और बाजार में कुछ स्थाई नहीं होता। इसलिए उन्हें झूमने दीजिए, क्योंकि इस कोलाहल में वे आपकी सुनने को तैयार नहीं हैं। उन्हें पता है कि आज वेलेंटाइन डे है, कल नई सुबह होगी जो उनकी जिंदगी में ज्यादा मुश्किलें,ज्यादा चुनौतियां लेकर आने वाली है- इसलिए वे कल के इंतजार में आज की शाम खराब नहीं करना चाहते। इसलिए हैप्पी वेलेंटाइन डे।
Apke dwara likha gya yeh lekh mujhe bahut psand aya. apne is visay ko itne acche dhng se samjhya iske m apko Dhanyabad Deta hu.
जवाब देंहटाएंApka Bhavdiye
Karan
lekhh bahut hi acchaa laga
जवाब देंहटाएंthanks