सोमवार, 23 नवंबर 2009

झारखंड के दर्द को समझिए

राज्य को राजनीतिक स्थायित्व का इंतजार

एक ऐसा भूभाग जो अंतहीन उपेक्षा का शिकार है। बिहार के साथ रहते हुए उसे लगता रहा कि हमें न्याय नहीं मिलेगा। पृथक राज्य के लिए यह इलाका लंबे समय तक संधर्ष करता रहा और अब जबकि उसके राज्य बने नौ साल पूरे हो रहे हैं तो यह सवाल वहीं का वहीं खड़ा है कि आखिर उसे मिला क्या। वहां की बहुसंख्यक आदिवासी आबादी को इंतजार था एक भागीरथ का जो आए और उन्हें पिछड़ेपन, नक्सलवाद और गरीबी से मुक्त कराए। पर नजर आते हैं मधु कौड़ा, जो हजारों करोड़ के मालिक तो बन गए पर राज्य वहीं का वहीं खड़ा है। झारखंड राज्य का निर्माण एक त्रासदी बन गया है। पृथक राज्य के आंदोलन से जुड़े रहे शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, करिया मुंडा, इंदरसिंह नामधारी क्या सब अपनी आभा खो चुके हैं ? क्या होगा इस राज्य का ? यह सवाल चुनाव के मैदान में उतरे हर नेता से वहां की प्रायः खामोश रहने वाली जनता का है।

झारखंड में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। सवाल बहुत हैं पर उनके उत्तर नदारद हैं। जनता के सामने भरोसा जताने और जीतने लायक कोई चेहरा नहीं दिखाता। यही अविश्वास वहां त्रिशंकु विधानसभा बनवाता रहा है। कभी भाजपा के दिग्गज नेता रहे और पहले मुख्यमंत्री बने बाबूलाल मरांडी अपनी साफ छवि के बावजूद अकेले दम पर सरकार बनाने का माद्दा नहीं रखते सो कांग्रेस ने उन्हें अपने पाले में कर लिया है। वे कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में हैं। भाजपा पिछले लोकसभा चुनावों में अपनी जीत से उत्साहित है और उसे लगता है झारखंड पर असली अधिकार उसी है। सो मैदान तो इन्हीं दो ताकतों के बीच बंटा हुआ लगता है। जिसमें त्रिशंकु विधानसभा बनने पर छोटे दलों की भी भूमिका हो सकती है। किंतु झारखंड के सवाल इस चुनाव से बड़े हैं क्योंकि पिछली सरकारें और उनके चार मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन और मधु कौड़ा उनसे टकराने का साहस भी नहीं पाल पाए हैं। सो जनता को पास वोट देने की मजबूरी तो है पर वह उम्मीद से खाली है। सुबोधकांत सहाय और यशवंत सिन्हा जैसे बड़े नेताओं की मौजूदगी के बावजूद वहां की राजनीति की सीमाएं बेहद तंग हैं। पैसे को लेकर जैसी प्रकट पिपासा झारखंड की राजनीति में दिख रही है वह चिंतन का विषय है। एक नवसृजित राज्य यदि अपनी यात्रा के प्रारंभ में ही इतना बेचारा और लाचार हो जाएगा तो वह भविष्य की सुंदर रचना के स्वप्न भी नहीं देख सकता।

झारखंड के सामने नक्सलवाद, भ्रष्टाचार राजनीतिक स्थायित्व आज सबसे बड़े प्रश्न हैं। एक ऐसा राज्य जो प्राकृतिक संसाधनों और वन संपदा से समृद्ध है क्या लोगों की लूट का इलाका बनकर रह जाएगा ? क्या यहां के निवासी जो आज भी अपनी जिंदगी को बहुत मुश्किलों से चला रहे हैं के सामने राजनीति और प्रशासन का कोई संवेदनशील चेहरा कभी सामने आएगा ? गरीब आदिवासियों का पलायन रोकने में सरकार विफल रही है। घरेलू दाई बनाकर महानगरों में भेजी जाती रही महिलाओं-युवतियों का शोषण बदस्तूर जारी है। इससे दलालों का मन बढा है। अब, वह खुल्लम-खुला मानव व्यापार करने लगे हैं। झारखंड के निवासियों का यह दर्द आज समझने की जरूरत है। प्रशासन की संवेदनशीलता, राजनीतिज्ञों की नैतिकता, आम लोगों की राज्य के विकास में हिस्सेदारी कुछ ऐसे सवाल है जो झारखंड की आम जनता को मथ रहे हैं। दूरदराज अंचलों में पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास के रोशनी का आज भी इंतजार हो रहा है। शोषण और देश के विभिन्न क्षेत्रों में पलायन कर रोजी रोटी कमाने के लिए मजबूर राज्य के गरीब आदमी की चिंता आखिर कौन करेगा। 22 जिलों में बसे दो करोड़, 70 लाख लोगों के भविष्य का सवाल भी अगर झारखंड राज्य के गठन के बाद भी यहां की राजनीति के केंद्र में नहीं है तो हमें सोचना होगा कि आखिर इस जनतंत्र का मतलब क्या है।

यह झारखंड की राजनीति की त्रासदी ही कही जाएगी कि शिबू सोरेन जैसे क्रांतिकारी पृष्टभूमि के नेता का पतन होते हुए हमने देखा। बाबूलाल मरांडी जैसे नेता की विफलता देखी। इन दो नेताओं की सीमाओं और असफलताओं ने राज्य को ऐसे मोड़ पर खड़ाकर दिया है जिससे निजात तो असंभव दिखती है। झारखंड के साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्य कई मोर्चों पर बेहतर काम करते दिख रहे हैं पर राजनीतिक अस्थिरता ने झारखंड के पैरों में बेड़ियां बांध दी हैं। आज हालात यह हैं कि बिहार जैसा राज्य भी विकास की एक नई यात्रा शुरू कर अपनी गलतियों को सुधारने के लिए आतुर दिखता है किंतु झारखंड इस उम्मीद से भी खाली दिख रहा है। राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिणामों का इंतजार पूरा देश कर रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य को एक स्थिर सरकार मिलेगी और झारखंड अपने सपनों में रंग भर सकेगा। विकास के मोर्चे पर तेजी से बढ़ते राज्य के रूप में अपनी पहचान बना सकेगा। नक्सलवाद की गंभीर चुनौती से जूझने का साहस जुटा सकेगा और अपनी जनता को निराशा और अवसाद से मुक्त कर सकेगा।

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