शनिवार, 26 अप्रैल 2008

पहचान बनाने की जद्दोजहद




वह एक ऐसा इंसान है जो जो पिछले 32 सालों से रायपुर शहर की गरीब बस्तियों में धर्मार्थ चिकित्सा सेवा कर रहा है। वह है जो राज्य की अस्मिता के लिए सतत निगरानी करते हुए एक लेखक और संवेदनशील इंसान के तौर पर खुद को साबित कर रहा है। संघर्ष पर भरोसा उठने लगे तो इस आदमी की तरफ देखिएगा। वह बहुत दूर का नहीं, बहुत बड़ा भी नहीं, एक साधारण सा आदमी है जिसके खाते में असाधारण उपलब्धियां दर्ज हैं। जी हां, बात डा. राजेन्द्र सोनी की हो रही है। वे जिद और जिजीविषा का दूसरा नाम हैं। आयुर्वेद के चिकित्सिक हैं लेकिन उन्हें साहित्य की हर पैथी में हाथ आजमाने का शौक है। वे साहित्यकार हैं, चित्रकार हैं,व्यंग्यकार हैं,समाजसेवी हैं और न जाने क्या-क्या हैं।


राजेन्द्र जी को देख उनके खास होने का अंदाज नहीं होता,कारण वे ठेठ छत्तीसगढी मानस हैं जिसे न तो आत्मप्रचार आता है न ही मार्केटिंग की कलाएं। फिर भी उपलब्धिों के नाम पर उनके पास एक बड़ा आकाश है। वे छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य के महत्वपूर्ण रचनाकार ही नहीं हैं बल्कि लघुकथा को देश में स्थापित करने वाले कलमकारों में एक हैं। दावे की पुष्टि हो जाए तो शायद वे राज्य के प्रथम लघुकथाकार एवं हाइकू लेखक भी साबित हो जाएं। वे ऐसे लेखक नहीं हैं जो लिखकर मुक्त हो जाता है, वे मैदान के सिपाही हैं। जो राज्य की अस्मिता के नायक हरि ठाकुर के साथ छत्तीसगढ राज्य के निर्माण के आंदोलन में भी कूद पड़ता है तो अंधश्रध्दा के निर्मूलन के लिए गांव-गांव घूमकर ट्रिक्स प्रदर्शन और कानूनी कार्रवाई तथा चेतना जगाने का काम भी कर सकता है।


राजनांदगांव के घुमका गांव में 9 अगस्त,1953 को जन्में डा. सोनी के पिता रामलाल सोनी जन्मजात कलाकार थे। वे कई मूक फिल्मों जैसे राजा हरिश्चंद्र तारामती,वीर अभिमन्यु आदि में अभिनय कर चुके थे। वे अभिनय के साथ-साथ उच्चकोटि के जेवर निर्माता भी थे। ऐसे कलाधर्मी रूङाानों वाले पिता का प्रभाव डा. सोनी के जीवन पर साफ दिखता है। रामलीला में रोल करने के साथ-साथ मूर्तिकला, फाइनआर्ट, पेंटिंग पर भी राजेन्द्र सोनी ने अपने को आजमाया। छठवीं कक्षा से ही कविताएं लिखने का शौक लगा, जो आज तक साथ है। छत्तीसगढ राज्य की लोक संस्कृति पर उनका काम विलक्षण है। उनके द्वारा लिखे गए लगभग 150 आलेख इस विधा में एक प्रामाणिक उपलब्धि हैं। उनकी पहली कविता छत्तीसगढी सेवक में छपी , जिसे राजभाषा के अनन्य सेवक श्री जागेश्वर प्रसाद निकालते थे। दुखद यह कि छत्तीसगढी भाषा का यह अखबार अब बंद हो गया है। देश की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लेखन से अपनी खास पहचान बनाने वाले डा. सोनी ने पहचान यात्रा नामक त्रैमासिक पत्रिका के प्रकाशन से राज्य में साहित्य की अलख जगाए रखी है। 1980 में उन्होंने साप्ताहिक के रूप में पहचान का प्रकाशन शुरू किया था। पहचान यात्रा का ऐतिहासिक प्रदेय यह है कि उसने राज्य के नामवर साहित्यकारों जैसे मुकुटधर पाण्डेय, नारायणलाल परमार,हरि ठाकुर जैसे लेखकों पर केंद्रित महत्वपूर्ण विशेषांक प्रकाशित किए।


लघुकथा पर लंबा और सतत काम करने वालों में राजेंद्र सोनी का प्रदेय रेखांकित करने योग्य है। वे लघुकथा के क्षेत्र में 1968 से कार्य कर रहे हैं। अपने पिता की स्मृति में देश में पहली बार लघुकथा लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने एक पुरस्कार की शुरूआत की । राष्ट्रीय स्तर पर लघुकथा आंदोलन को बल देने के लिए नवें दशक की लघुकथा नामक पुस्तक का संपादन प्रकाशन भी किया। इसके अलावा लगभग 50 लघुकथा संकलनों में संपादक रहे। सृजन सम्मान द्वारा आयोजित प्रथम अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन जो पिछले दिनों रायपुर में सम्पन्न हुआ का संयोजन आपने किया। डा. सोनी लंबे समय से पत्रकारिता से भी जुड़े रहे। अखबारों में एक कंपोजिटर से लेकर अपने स्वंत्रत बुलेटिन और पत्रिका के संपादन-प्रकाशन तक का काम उन्होंने किया। उनकी एक पुस्तक खोरबाहरा तोला गांधी बनाबो पर आपातकाल में प्रतिबंध भी लगाया गया। इसके अलावा उनकी तीन अन्य किताबें भी राज्य की भाषा छत्तीसगढ़ी में होने के नाते काफी सराही गयीं।


प्रकाशन के क्षेत्र में राज्य के रचनाकारों को पहचान दिलाने के उद्देश्य से डा. सोनी ने पहचान प्रकाशन की शुरूआत की। जिससे 1982 से लेकर अब तक 60 साहित्यिक कृतियों का प्रकाशन किया जा चुका है। अपने लंबे और विविध आयामी कार्यों के लिए उन्हें 10,मई 1994 को राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा द्वारा चिकित्सा समन्वय शोध ग्रंथ हेतु सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी द्वारा प्रेमचंद सम्मान, लघु आघात सम्मान, अस्मिता सम्मान, ग्राम्य भारती सम्मान, साहित्य श्री सम्मान आदि से अलंकृत किया जा चुका है। अब जबकि राजेन्द्र सोनी अपनी एक सार्थक पारी खेल चुके हैं तो दूसरी पारी में भी उनसे कुछ गंभीर और महत्वपूर्ण कार्य की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। उनकी त्वरा और जिजीविषा देखकर यह भरोसा भी होता है कि वे निराश नहीं करेंगें।

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