मंगलवार, 30 जुलाई 2024

अखबारों में छपे लेख


नवोदय टाइम्स, 20 जुलाई,2024 को छपा लेख



दैनिक जागरण में छपा लेख
 

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मीडिया के उलझे रिश्ते

-प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी



“माननीय प्रधानमंत्री जी हम आभारी हैं कि आप हमारे बीच आए। मेरी ऑन दी जॉब लर्निंग अब शुरू हो गई है और 2024 तक मैं देश की सबसे अच्छी जर्नलिस्ट होने की कोशिश करूंगी। उम्मीद करती हूं कि तब आपसे एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करने का मौका मुझे मिलेगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।” ये शब्द हैं भारत की पहली एआई बॉट एंकर सना के। आर्टिफिशनल इंटेलिजेंस के मीडिया जगत में बढ़ते इस्तेमाल की कई संभावनाएं हैं। इसी में से एक है कि आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री एक एआई एंकर से देश के भविष्य और योजनाओं के बारे में चर्चा करते दिखें।

दरअसल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के 'टेक्स्ट टू स्पीच' फीचर की बदौलत अब भारतीय न्यूजरूम में मशीन को इंसानी चेहरे में ढालकर खबरें पेश की जा रही हैं। पिछले साल अप्रैल के महीने में इंडिया टुडे ग्रुप ने एआई एंकर से समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया था। लॉन्च कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में एंकर का परिचय देते हुए कहा गया था कि वह ब्राइट है, सुंदर है, उम्र का उन पर कोई असर नहीं होता है और न ही कोई थकान होती है, वो बहुत सारी भाषाओं में बात कर सकती हैं। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी दुनिया को फिर से परिभाषित करने, मानवीय क्षमता की सीमाओं को पार करने और अभूतपूर्व पैमाने पर उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार देने के लिए तैयार है। मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में, एआई का आगमन कंटेंट क्रिएटर्स को सामग्री निर्माण के लिए शक्तिशाली उपकरणों से सशक्त बना रहा है, नए अनुभवों को अनलॉक कर रहा है और कलात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का उपभोग करने, बनाने और उनसे जुड़ने के तरीके को हमेशा के लिए बदल रहा है।

हाल के कुछ समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत चर्चा का विषय बना हुआ है और पत्रकारिता का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह रहा है। मौजूदा समय में भारत की मेनस्ट्रीम मीडिया का बड़ा हिस्सा विज्ञापन पर निर्भर होकर काम कर रहा है। ऐसे में तकनीक के जरिये डेटा के आधार पर समाचार बुलेटिन प्रस्तुत करना और अन्य काम भी इंसान की जगह मशीन की बदौलत होने ने मीडिया इंडस्ट्री के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पत्रकारिता के भविष्य से लेकर पत्रकारिता करने वालों के भविष्य को लेकर भी संकट खड़ा होने की बात कही जा रही है। लेकिन एआई पत्रकारिता वास्तव में क्या है? क्या यह चिंता का एक विषय है या फिर सूचना जगत में एक ऐसी नई क्रांति है, जो पत्रकारिता के सही आयाम स्थापित करने में कामयाब हो पाएगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पत्रकारिता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन के लगभग सभी पहलूओं समेत पत्रकारिता में भी शामिल हो गई है। डिजिटल मीडिया की वजह से जाने-अनजाने में ही एआई तकनीक पर आधारित कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे वह यू-ट्यूब के एल्गोदिरम की वजह से आपको दिखते वीडियो हों या वेबसाइट पर दिखने वाले विज्ञापन। सभी का एक कारण एआई तकनीक ही है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से एआई पत्रकारिता में बड़ी भूमिका निभा रहा है। मीडिया कंपनियां अपने कंटेंट को अधिक बूस्ट करने के लिए एआई की मदद ले रही हैं। लेख लिखने से लेकर बुलेटिन प्रसारित करने तक में एआई का सहारा लिया जा रहा है। दुनिया भर के बड़े-बड़े मीडिया हाउस एआई द्वारा लिखे लेख को प्रकाशित कर रहे हैं। एक तरफ तो यह काम को आसान और तेजी से कर रहा है, दूसरी ओर यह कई सवाल भी खड़े करता है जिसमें विश्वसनीयता और अखंडता सबसे पहले है। साथ ही क्या सजृनशीलता पर आधारित क्षेत्र में एआई से डेटा आधारित बातचीत और जानकारी, पत्रकारिता के धरातल पर काम कर पाएगी? पत्रकारिता के सबसे मजबूत और शुरुआती मूल्य 'ग्राउंड रिपोर्टिंग' का भविष्य इससे बच पाएगा?

खतरे में पत्रकारों की नौकरियां

इंसान की जगह मशीन के इस्तेमाल होने का पहला खतरा इंसानों पर ही पड़ता है। 'न्यूज़जीपीटी', दुनिया का पहला समाचार चैनल है, जिसका पूरा कंटेंट आर्टिफिशल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार किया जा रहा है। चैनल के प्रमुख एलन लैवी ने इसे खबरों की दुनिया का गेम चेंजर कहा था, क्योंकि ना इसमें कोई रिपोर्टर है और ना ही यह किसी से प्रभावित है। यहां यही बात मीडिया जगत में काम करने वाले लोगों के लिए बड़ा खतरा है। जैसे-जैसे मीडिया के क्षेत्र में एआई का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वहां मौजूदा लोगों की नौकरियों पर तकनीक का कब्जा होने की संभावना ज्यादा नजर आ रही है। लेखन, संपादन, एंकरिंग, प्रस्तुतीकरण तक के सारे कामों में एआई का सहारा लिया जा रहा है। 

बीबीसी द्वारा प्रकाशित एक समाचार के अनुसार साल 2020 में माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ी संख्या मे 'एमएसएन' वेबसाइट के लिए लेखों के चयन, क्यूरेटिंग, हेडलाइन तय करने और एडिटिंग करने वाले पत्रकारों की जगह स्वचलित सिस्टम को अपनाने की योजना बनाई। खबर के अनुसार कंपनी ने एआई तकनीक के सहारे खबरों के प्रोडक्शन के कामों को पूरा करना तय किया। माइक्रोसॉफ्ट जैसी अन्य टेक कंपनियां मीडिया संस्थानों को उनका कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए भुगतान करती हैं। इन सब कामों के लिए पेशेवर पत्रकारों की मदद ली जाती आई है, जो कहानियां तय करने, उनका प्रकाशन कैसे होना है, हेडलाइन तय करने जैसे काम करते हैं। लेकिन माइक्रोसॉफ्ट के एआई तकनीक के इस्तेमाल के बाद से लगभग 50 न्यूज प्रोड्यूसर्स को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। 

ठीक इसी तरह साल 2022 के अंत में अमेरिकी टेक्नोलॉजी न्यूज वेबसाइट 'सीएनईटी' एआई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चीजें अलग ही स्तर पर ले गई। कंपनी ने एआई प्रोग्राम के तहत लिखे गए दर्जनों फीचर लेख चुपचाप तरीके से प्रकाशित किए। जनवरी 2023 तक कंपनी ने इन सब अटकलों की पुष्टि नहीं की थी, जिसे केवल एक प्रयोग बताया जा रहा था। इतना ही नहीं एसोसिएटेड प्रेस ने भी अपनी कहानियों के लिए एआई का इस्तेमाल किया। ये सब बातें बताती हैं कि कैसे समाचारों को चुनने, उनको व्यवस्थित करने के लिए काम करने वाले मीडिया के पेशेवरों की नौकरियां एआई ले रहा है। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन अभी से न्यूजरूम के भीतर उसकी मौजूदगी से मीडिया पेशवरों की नौकरियों पर संकट बनना शुरू हो चुका है। डायच वेले के अनुसार हाल ही में यूरोप के सबसे बड़े पब्लिकेशन हाउस 'एक्सल स्प्रिंगर' ने कई संपादकीय नौकरियों को एआई में बदल दिया है। स्प्रिंगर में नौकरियों की कटौती से मीडिया उद्योग के रोबोट पर निर्भरता की आशंकाओं में तेजी ला दी है। 

न्यूजरूम में एआई एंकर

भारत समेत कई अन्‍य देशों में न्यूज एंकर के तौर पर कम्प्यूटर जनित मॉडल यानी एआई एंकर समाचार पढ़ते नज़र आ रहे हैं। बहुत हद तक इंसानी तौर पर दिखने वाले ये न्यूज एंकर कॉर्पोरेट मीडिया हाउस के मुनाफे वाले दृष्टिकोण से हितैषी हैं, क्योंकि इन्हें न कोई सैलरी की आवश्यकता है, ना छुट्टी की। ये 24 घंटे और सातों दिन डेटा के आधार पर काम कर सकते हैं। भारत की पहली एआई न्यूज एंकर सना के लॉन्च के समय इसी तरह के शब्द कहे गए थे कि वह बिना थके लंबे समय तक काम कर सकती है।

द गार्डियन के अनुसार साल 2018 में चीन की न्यूज एजेंसी 'शिन्हुआ' पहला एआई न्यूज एंकर दुनिया के सामने लाई। इस एजेंसी के किउ हाओ पहले एआई एंकर हैं, जिसने डिजिटल वर्जन पर समाचार प्रस्तुत किया। शिन्हुआ और चीनी सर्च इंजन सोगो द्वारा यह एआई एंकर विकसित किया गया है। प्रकाशकों ने चीन के वार्षिक वर्ल्ड इंटरनेट कॉन्फ्रेंस के क्रार्यक्रम के दौरान इसकी घोषणा की थी। इसी से जुड़ी दूसरी के अनुसार पिछले वर्ष चीन ने एआई महिला न्यूज़ एंकर रेन जियाओरॉन्ग को लॉन्च किया। चीन सरकार केंद्रित पीपल्स डेली अखबार ने दावा किया है कि इस एआई न्यूज एंकर ने हजारों न्यूज एंकर्स से स्किल सीखे हैं और वह 365 दिन 24 घंटे लगातार खबरें बता सकती है। चीन के अलावा कुवैत भी अपना एआई न्यूज एंकर लॉन्च कर चुका है। हाल ही में 'न्यूज 18' के पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रीय चैनल की तरफ से भी एआई एंकर के बारे में बात की गई। इस एंकर का नाम एआई कौर है। हाल ही में रूस के स्वोए टीवी ने स्नेज़ना तुमानोवा को पहले वर्चुअल मौसम की खबर प्रस्तुत करने वाले के रूप में पेश किया। 

इस तरह से दुनिया के अलग-अलग मीडिया संस्थानों की ओर से एआई तकनीक के न्यूज एंकर को लॉन्च किया जा रहा है। एक के बाद एक एआई न्यूज एंकर के लॉन्च को मीडिया की नई क्रांति और बदलाव बताया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि सूचना के क्षेत्र में एआई समावेशिता, विश्वसनीयता स्थापित कर पाती है या नहीं। क्योंकि अगर अब तक लॉन्च एआई एंकर्स के रूप-आकार को लेकर बात करे तो उससे पूरी तरह समावेशिता गायब है। लॉन्च एंकर का आकार यूरो सैंट्रिक ब्यूटी स्टैंडर्ड को ध्यान में रखकर गढ़ा गया है जैसे गोरा रंग, एक ख़ास तय किस्म की बॉडी आदि। सूचना के क्षेत्र में प्रस्तुतिकरण में इस तरह से पूर्वाग्रहों को और स्थापित करने का काम किया जा रहा है।  

एआई की दुनिया और विश्वसनीयता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अभी अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन यह देखना वास्तव में बहुत दिलचस्प होगा कि यह पत्रकारिता को किस तरह से बदलेगा। क्योंकि आज क्लिकबेट पत्रकारिता, फेक न्यूज और प्राइम टाइम में चिल्लाने वाली पत्रकारिता का दौर है। ऐसे में क्या रोबोट, इंसानी रवैये के इतर विवेक के साथ पत्रकारिता करेंगे? प्रसिद्ध मीडिया स्तंभकार पामेल फिलिपोज ने कहा है कि एआई और उसके इस्तेमाल से पैदा खतरे वास्तविक हैं। एआई अधिक बहुस्तरीय समस्या को पैदा कर सकता है, जैसे एआई दुष्प्रचार अधिक फैला सकता है। 

फिलिपोज ने आगे कहा है कि फेक न्यूज अब व्हाट्सएप टेक्स्ट और तस्वीरों के माध्यम से प्रसारित की जाती हैं और एआई की पूरी क्षमता रॉ डेटा को पुर्नजीवित करना है। इस तरह बहुत से पत्रकार और मीडिया पेशवरों का मानना है कि एल्गोदिरम और ऑटोमेशन पर बढ़ती निर्भरता से पत्रकारिता की विश्वसनीयता कम होने का खतरा है।

एआई न्यूज एंकर या पत्रिकारिता में एआई की निर्भरता सूचना क्षेत्र के भविष्य के लिए दोधारी तलवार है। एक तरफ इससे मीडिया के नयेपन और संचार के क्षेत्र की अपार संभावनों पर ध्यान दिया जा रहा है। वहीं इसे नैतिक और जिम्मेदारी तय करने के लिए रेग्यूलेशन और निरीक्षण की आवश्यकता भी है। ऐसे दौर में जहां मीडिया में पहले से ही ग्राउंड रिपोर्ट, खोजी पत्रकारिता और जनपक्ष की कमी है, उस समय में एआई तकनीक का बढ़ता प्रभाव सूचनाओं से मानवीय पक्ष को खत्म करने वाला ज्यादा नजर आ रहा है।



नरेंद्र मोदी से इतनी नफरत क्यों करता है पश्चिमी मीडिया

-  प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने दोनों कार्यकालों में पश्चिमी नेताओं के साथ अब तक के सबसे अच्छे संबंध रहे हैं। लेकिन पश्चिमी मीडिया के साथ ऐसा नहीं है, जिसने उन्हें 'ताकतवर' से लेकर 'तानाशाह' तक, कई तरह के शब्दों से संबोधित किया है। अब जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों के अंतिम परिणाम आ चुके हैं और नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, तब पश्चिमी मीडिया द्वारा फैलाए गए भारत-विरोधी और मोदी-विरोधी एजेंडे का त्वरित मूल्यांकन करना जरूरी हो जाता है।

भारत ने लोकसभा चुनावों के दौरान विदेशी पर्यवेक्षकों को भारतीय चुनावी प्रक्रिया देखने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन पश्चिमी मीडिया ने मोदी सरकार पर अल्पसंख्यकों के प्रति “घृणा” से भरे “हिंदुत्व” के एजेंडे को आगे बढ़ाने का अपना सामान्य बयान जारी रखा। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश पश्चिमी मीडिया रिपोर्ट्स में मोदी सरकार की विभिन्न मामलों में कड़ी आलोचना की गई है और विपक्ष को पीड़ित के रूप में पेश किया गया है।

पत्रकारिता का नियम है कि संतुलित रिपोर्टिंग में सभी पक्षों के तथ्य और सभी पक्षों के बयानों को समान रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। लेकिन चाहे वह दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी का मुद्दा हो या प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार भाषण का मुद्दा, जिसमें उन्होंने विपक्षी कांग्रेस पर भारत के नागरिकों के अधिकारों को छीनने का आरोप लगाया था, पश्चिमी मीडिया कवरेज ने पूरे परिदृश्य को विकृत किया और बिना किसी पर्याप्त संदर्भ और दूसरे पक्ष के किसी भी दृष्टिकोण को शामिल किए पक्षपातपूर्ण और एकतरफा बयान जारी किये।

पूर्वाग्रह से ग्रसित पत्रकारिता

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ब्रिटिश दैनिक समाचार पत्र 'द गार्जियन' की 2024 के लोकसभा चुनाव कवरेज की कुछ सुर्खियां, जिसमें उन्होंने भारतीय चुनावों को कवर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से रिपोर्ट प्रकाशित की। आइये 'द गार्जियन' में प्रकाशित लेखों के कुछ शीर्षकों पर नजर डालते हैं- “भारत में चुनाव पूरे जोरों पर हैं, नरेंद्र मोदी हताश-और खतरनाक होते जा रहे हैं”, “पीएम नरेंद्र मोदी का दावा है कि उन्हें भगवान ने चुना है”, भारतीय चुनाव पर द गार्जियन का दृष्टिकोण: नरेंद्र मोदी बने नफरत के सौदागर”, “चुनावी कानूनों की धज्जियां उड़ाई गईं, विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया – मोदी की भाजपा के खिलाफ खड़े होने का परिणाम”, “‘मोदी राजमार्ग बनाते हैं लेकिन नौकरियां कहां हैं?’: भारत के चुनाव पर बढ़ती असमानता”।

इनमें से कुछ हेडलाइनें ‘द गार्जियन’ जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन से नहीं, बल्कि एक सस्ते टैब्लॉयड से सीधे निकली हुई लगती हैं। अत्यधिक पूर्वाग्रह से ग्रसित ये हेडलाइनें शायद किसी सनसनीखेज थ्रिलर के कवर पर या किसी मेलोड्रामैटिक सोप ओपेरा के पंचलाइन के रूप में अधिक उपयुक्त लगेंगी। आप पहला लेख देखें, “भारत में चुनाव पूरे जोरों पर हैं, नरेंद्र मोदी हताश-और खतरनाक होते जा रहे हैं”। यह लेख सलिल त्रिपाठी द्वारा लिखा गया है, जिनका गलत सूचना फैलाने और भारत विरोधी प्रचार करने का इतिहास रहा है। वे PEN इंटरनेशनल राइटर्स इन प्रिज़न कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। उनका यह लेख 2002 के गोधरा दंगों के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को दोषी ठहराने की सामान्य कथा से शुरू होता है और उन्हें अपराधी के रूप में चित्रित करता है। त्रिपाठी अपनी सुविधा के अनुसार इस प्रमुख कथा से चिपके रहते हैं और सफेद झूठ का प्रचार करते हैं। वह यह उल्लेख करने की भी परवाह नहीं करते कि भारतीय प्रधानमंत्री को 2002 के गोधरा नरसंहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी आरोपों से बहुत पहले ही बरी कर दिया गया है। जाहिर है, लेखक यह सब नहीं बताएगा क्योंकि यह उसकी शातिर कथा के अनुकूल नहीं है। लेख का बाकी हिस्सा हमेशा की तरह मोदी की “हिंदुत्व” वाली राजनीति के बारे में  ही चर्चा करता है। लेखक के अनुसार, मोदी की राजनीति खतरनाक और स्पष्ट रूप से विभाजनकारी है। मोदी के भाषण की तीव्रता से पता चलता है कि सत्ता में 10 साल रहने के बाद, उनकी सरकार के पास कोई तरकीब नहीं बची है और वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि भाजपा के मुख्य मतदाता उनका साथ न छोड़ें।

चुनाव आयोग पर प्रहार

'द गार्जियन' के अलावा जर्मन ब्रॉडकास्टर 'डॉयचे वेले' भी अपने इसी एजेंडे में लगा हुआ है। 'डॉयचे वेले' ने हाल ही में एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था, “क्या भारत का चुनाव आयोग मोदी के खिलाफ शक्तिहीन है?” यह लेख भी प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी भाषण पर केंद्रित है। लेख में उनके भाषण को सनसनीखेज बनाने की कोशिश की गई है, जिसमें कहा गया है कि उनके शब्द इस्लामोफोबिया में डूबे हुए थे। लेकिन जाने अनजाने में लेखक ने इस लेख में ऐसे तथ्य भी प्रस्तुत कर दिये, जो दिखाते हैं कि मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए सबसे अधिक योजनाएँ चलाई हैं। लेख में सुविधाजनक रूप से उस संदर्भ को भी छोड़ दिया गया है, जिसमें मोदी ने टिप्पणी की थी कि धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान करना भारतीय संविधान की भावना और प्रावधानों के विरुद्ध है। लेख में इस बात पर बहस की जा सकती थी कि क्या धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान करना वास्तव में भारतीय संविधान की मूल बातों के विरुद्ध है, या इसके लिए कोई जगह है? लेकिन इस तरह के काम के लिए गहन शोध की आवश्यकता होती है और कम से कम यहाँ 'डॉयचे वेले' का इरादा निष्पक्ष समाचार रिपोर्टों के बजाय पक्षपाती और इमोशनल क्लिकबेट कहानियों को जगह देना था। लेख में भारत के चुनाव आयोग को एक “निष्क्रिय दर्शक” भी कहा गया है और किसी तरह यह स्थापित करने के लिए अज्ञात स्रोतों का हवाला दिया गया है कि चुनाव आयोग “एक पार्टी” के प्रति पक्षपाती है। देश के चुनाव आयोग के खिलाफ चुनावों के बीच में बिना किसी सबूत के और अज्ञात स्रोतों द्वारा दिए गए सामान्यीकृत बयानों के आधार पर आकस्मिक आरोप लगाना क्या वाकई में पत्रकारिता है। हालाँकि, ऐसा लगता है कि यह मतदाताओं को प्रभावित करने और भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का एक बहुत ही सूक्ष्म प्रयास है।

नैरेटिव के अनुकूल खबरें

इसी तरह 'सीएनएन' भी मोदीफोबिया के रथ पर सवार होकर यह लेख लिखता है कि "भारत का चुनाव अभियान नकारात्मक हो गया है क्योंकि मोदी और सत्तारूढ़ पार्टी इस्लामोफोबिया की बयानबाजी को अपना रहे हैं"। लेकिन, इनमें से एक भी मीडिया आउटलेट महिलाओं के खिलाफ भयानक संदेशखली हिंसा, या टीएमसी के लोगों द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या, या भाजपा की नूपुर शर्मा की टिप्पणियों का समर्थन करने के लिए कन्हैया कुमार की बेरहमी से हत्या जैसे मुद्दों पर बात नहीं करता। 'द गार्जियन', 'डॉयचे वेले', 'सीएनएन' आदि जैसे मीडिया आउटलेट इन मुद्दों को कवर नहीं करते, क्योंकि ये उनके नैरेटिव के अनुकूल नहीं हैं, लेकिन कुछ मुद्दों पर पक्षपातपूर्ण कवरेज करके भारत विरोधी प्रचार जरूर करते हैं।

इसी कड़ी में फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, ‘लोकतंत्र की जननी की हालत अच्छी नहीं है।’ न्यूयॉर्क टाइम्स ने तो ‘मोदी का झूठ का मंदिर’ बताया, जबकि फ्रांस के प्रमुख अखबार ले मॉन्द ने लिखा, ‘भारत में केवल नाम का लोकतंत्र है।’ अमेरिकी न्यूज चैनल 'फॉक्स' ने 20 मई को लिखा, ‘अयोध्या में अल्पसंख्यकों को लगातार डराया जा रहा है।‘ 'सीएनबीसी' ने चुनाव को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है, वहीं 'सीबीएस' टेलीविजन नेटवर्क ने मोदी के चुनाव प्रचार को अल्पसंख्यक विरोधी बताया है।

भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास

जब लगभग सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन भारत की आलोचना कर रहे थे, तो नई दिल्ली स्थित विदेशी संवाददाता भी उसमें शामिल हो गए। आस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख अवनी डायस ने यह दावा करते हुए भारत छोड़ दिया कि उन्हें वीजा नहीं मिला और चुनाव कवरेज का मौका नहीं दिया गया। हालांकि ऐसा नहीं था, उनकी वीजा अवधि 18 अप्रैल, 2024 को समाप्त हो गई थी। वीजा बढ़ाने के लिए उन्होंने न तो फीस भरी थी और न अन्य औपचारिकताएं ही पूरी की थीं। बावजूद इसके अवनी ने भ्रामक बयान दिया। इसके बाद वह वापस लौटी तो 'द आस्ट्रेलिया टुडे' ने एक रिपोर्ट में लिखा कि अवनी ने अपनी नई नौकरी और शादी के लिए भारत छोड़ा था।

जाहिर है अवनी झूठ बोल रही थी। उनका मकसद रिर्पोटिंग करना नहीं, बल्कि सरकार की छवि को बिगाड़ना था। इस घटना के तत्काल बाद 30 विदेशी पत्रकारों ने संयुक्त बयान जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि, ‘‘भारत में विदेशी पत्रकार, विदेशी नागरिक का दर्जा रखने वाले वीजा और पत्रकारिता परमिट पर बढ़ते प्रतिबंधों से जूझ रहे हैं।’’ दरअसल पश्चिमी मीडिया की ज्यादातर कोशिश यही रहती है कि वह भारत के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप पर फर्जी खबरें तैयार भारत की छवि को धूमिल कर सकें।

पश्चिमी मीडिया का मोदीफोबिया अंतहीन है। वह लगातार भारत के खिलाफ नकारात्मक एजेंडा चलाता रहता है। दरअसल पश्चिम की यह लॉबी अभी भी भारत की आर्थिक प्रगति को स्वीकार नहीं कर पा रही है। इसलिए हर स्तर पर देश को अस्थिर करने के प्रयास किए जाते हैं। इस बार के चुनावों में भी योजनाबद्ध तरीके से ऐसा ही किया गया, लेकिन देश के लोगों ने भाजपा और राजग पर भरोसा दिखाया और इस साजिश को सफल नहीं होने दिया।

'सरस्वती प्रज्ञा सम्मान' से अलंकृत किए गए प्रो.संजय द्विवेदी



भोपाल। प्रख्यात मीडिया शिक्षक और लेखक प्रो.संजय द्विवेदी को 'सरस्वती प्रज्ञा सम्मान -2024' से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह सम्मान भोपाल स्थित गांधी भवन में निर्दलीय प्रकाशन,जन संगठन दृष्टि की ओर से आयोजित समारोह में पद्मश्री से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार श्री विजयदत्त श्रीधर ने प्रदान किया। इस अवसर पर नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के प्रो.विजय कुमार कर्ण, गांधी भवन न्यास के सचिव दयाराम नामदेव, पत्रकार कैलाश आदमी, गांधीवादी विचारक आर के पालीवाल, प्रिंस अभिषेक अज्ञानी विशेष रूप से उपस्थित थे।

  प्रो.संजय द्विवेदी भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक हैं। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रभारी कुलपति भी रह चुके हैं। उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में संपादक के रूप में काम किया है। मीडिया और राजनीतिक संदर्भों पर उनकी 35 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सक्रिय पत्रकार,लेखक और संपादक के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है।

  इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रो.द्विवेदी ने कहा हमारा मीडिया पश्चिमी मानकों पर खड़ा है, उसे भारतीय मूल्यों पर आधारित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि समाज के सब क्षेत्रों की तरह मीडिया भी औपनिवेशिक विचारों से मुक्त नहीं हो सका है। हमें संचार, संवाद की भारतीय अवधारणा पर काम करते हुए लोक-मंगल को केंद्र में रखना होगा और संचार के भारतीय माडल बनाने होंगे। इसके लिए समाधानपरक पत्रकारिता का विचार प्रासंगिक हो सकता है। कार्यक्रम का संचालन विमल भंडारी ने किया।

जिम्मेदारियों को बढ़ाता है सम्मान : प्रो. संजय द्विवेदी


 -खुशी फॉउण्डेशन एवं दिशा एजुकेशनल सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में सेवा शिखर सम्मान समारोह आयोजित

- विभिन्न क्षेत्रों की महान विभूतियों को सम्मान से नवाजा गया 



लखनऊ 27 जुलाई  - खुशी फॉउण्डेशन और दिशा एजुकेशनल सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को बौद्ध शोध संस्थान, गोमतीनगर के सभागार में सेवा शिखर सम्मान समारोह-2024 आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता  भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक प्रो(डॉ ) संजय द्विवेदी ने की। 

प्रो. संजय द्विवेदी ने  कहा कि प्रतिभाओं के सम्मान से समाज में सकारात्मक चेतना पैदा होती है और लोग अच्छे कामों को करने हेतु प्रेरित होते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय परिवारों की शक्ति उनकी मूल्यनिष्ठा ही है। संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की रक्षा से ही भारत श्रेष्ठ बनेगा। खुशी समय जैसी संस्थाएं देश को जीवंत बनाए रखने में सहयोगी हैं। प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि सेवा के बदले में मिलने वाले सम्मान की ख़ुशी ही कुछ अलग होती है। यह सम्मान समाज के अन्य लोगों में सेवा भाव को जगाने का पुनीत कार्य करता है। प्रो. द्विवेदी ने इस भव्य आयोजन के लिए ख़ुशी फाउंडेशन और दिशा एजुकेशनल सोसायटी के प्रतिनिधियों का आभार जताया। इसके साथ ही समाज के कमजोर वर्ग के हित में किये जा रहे उनके कार्यों को सराहा। 

इस मौके पर बौद्ध शोध संश्तान के अध्यक्ष हरगोविंद बौद्ध ने कहा कि सम्मान से नवाजी गयीं विभिन्न क्षेत्रों की महान विभूतियों के चेहरों पर ख़ुशी की झलक साफ़ देखी जा सकती थी। संस्था द्वारा सम्मानित लोगों की जिम्मेदारी अब और बढ़ जाती है कि वह और मनोयोग से अपने-अपने क्षेत्र में कार्य कर दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें। कार्यक्रम को पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुकेश कुमार शर्मा ने सम्बोधित किया और कार्यक्रम की भरपूर सराहना की ।  धन्यवाद ज्ञापन दिशा एजुकेशनल एवं वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष प्रभात पांडेय ने किया। 

इनको मिला सम्मान : संतोष गुप्ता (सीइओ - इंडियन सोशल रेस्पोंसबिल्टी नेटवर्क), श्री बलबीर सिंह मान(सचिव - उम्मीद), श्री महेंद्र दीक्षित(प्रबंध निदेशक - सिग्मा ट्रेड विंग्स) , सचिन गुप्ता - निदेशक -ओलिवहेल्थ, डॉ आर पी सिंह (निदेशक - खेल, उत्तर प्रदेश), श्रीमती सुमोना एस पांडेय(आकाशवाणी) , मेदांता, लखनऊ,  दीपेश सिंह( ऑर्गॅनिक्स4यू), श्री नरेंद्र कुमार मौर्या (मैनेजिंग डायरेक्टर- रोहित ग्रुप), अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान , श्रीमती ममता शर्मा, श्रीमती रश्मि मिश्रा के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वालों को सेवा गौरव सम्मान से नवाजा गया।  

बच्चों की भाव भंगिमाओं ने लोगों के मन को मोहा : सम्मान समारोह की शुरुआत में पीहू द्विवेदी द्वारा गणेश वंदना एवं सरस्वती के साथ की गयी।  इसके बाद लखनऊ कनेक्शन वर्ल्ड वाइड द्वारा गीत गायन प्रस्तुत किया गया। गार्गी द्विवेदी द्वारा सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा दीपा अवस्थी एवं निखिल कसुधान द्वारा भी शिव जी को समर्पित नृत्य प्रस्तुत किया गया। वहीं विद्याभूषण सोनी के भी मोहक नृत्य प्रस्तुति ने भी खूब तालियाँ बटोरी ।  प्रतुत और गार्गी द्विवेदी के नृत्य ने लोगों को नृत्यांगना डांस इंस्टीट्युट इंदिरानगर की डायरेक्टर और कोरियोग्राफर अनुपमा श्रीवास्तव की देखरेख में भानवी श्रीवास्तव ने गणेश वंदना प्रस्तुत कर लोगों को मन्त्रमुग्ध कर दिया।



प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत

                                                                     -प्रो.संजय द्विवेदी 


   यह नवें दशक के बेहद चमकीले दिन थे। उदारीकरण और भूमंडलीकरण जिंदगी में प्रवेश कर रहे थे। दुनिया और राजनीति तेजी से बदल रहे थी। उन्हीं दिनों मैं छात्र आंदोलनों से होते हुए दुनिया बदलने की तलब से भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आया था। एक दिन श्री प्रभात झा जी अचानक सामने थे, बताया गया कि वे पत्रकार रहे हैं और भाजपा का मीडिया देखते हैं। इस तरह एक शानदार इंसान, दोस्तबाज,तेज हंसी हंसने वाले, बेहद खुले दिलवाले झा साहब हमारी जिंदगी में आ गए। मेरे जैसे नये-नवेले पत्रकार के लिए यह बड़ी बात थी कि जब उन्होंने कहा कि" तुम स्वदेश में हो, मैं भी स्वदेश में रह चुका हूं।" सच एक पत्रकार और संवाददाता के रूप में ग्वालियर में उन्होंने जो पारी खेली वह आज भी लोगों के जेहन में हैं। एक संवाददाता कैसे जनप्रिय हो सकता है, वे इसके उदाहरण हैं। रचना,सृजन, संघर्ष और लोकसंग्रह से उन्होंने जो महापरिवार बनाया मैं भी उसका एक सदस्य था।

      उत्साह, ऊर्जा और युवा पत्रकारों को प्रोत्साहित कर दुनिया के सामने ला खड़े करने वाला प्रभात जी का स्वभाव उन्हें खास बनाता था। अब उनका पर्याय नहीं है। वे अपने ढंग के अकेले राजनेता थे,जिनका पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों से लेकर पार्टी के साधारण कार्यकर्ताओं तक आत्मीय संपर्क था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। फिर उसकी विचारधारा से जुड़े अखबार में रहे और बाद में भाजपा को समर्पित हो गये। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक उनकी यात्रा उनका एकांगी परिचय है। वे विलक्षण संगठनकर्ता, अप्रतिम वक्ता और इन सबसे बढ़कर बेहद उदार व्यक्ति थे। उनके जीवन में कहीं जड़ता और कट्टरता नहीं थी। वे समावेशी उदार हिंदू मन का ही प्रतीक थे। उनका न होना मेरी व्यक्तिगत क्षति है। वे मेरे संरक्षक, मार्गदर्शक और सलाहकार बने रहे। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन ने मेरे जैसे न जाने कितने युवाओं को प्रेरित किया।

  उनके निधन से समाज जीवन में जो रिक्तता बनी है, उसे भर पाना कठिन है। छात्र जीवन से ही उनका मेरे कंधे पर जो हाथ था,वह कभी हटा नहीं। भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई मेरी पत्रकारीय यात्रा के पड़ाव रहे,प्रभात जी हर जगह मेरे साथ रहे। वे आते और उससे पहले उनका फोन आता। उनमें दुर्लभ गुरूत्वाकर्षण था। उनके पास बैठना और उन्हें सुनने का सुख भी विरल था। किस्सों की वे खान थे। भाजपा की राजनीति और उसकी भावधारा को मैं जितना समझ पाया उसमें श्री प्रभात झा और स्व.लखीराम अग्रवाल का बड़ा योगदान है। भाजपा की अंर्तकथाएं सुनाते फिर हिदायत भी देते, ये छापने के लिए नहीं, तुम्हारी जानकारी और समझ के लिए है।

   मुझे नहीं पता कि प्रभात जी पत्रकारिता में ही रहते तो क्या होते। किंतु भाजपा में रहकर उन्होंने 'विचार' के लिए जगह बनाकर प्रकाशन, लेखन और मीडिया के पक्ष को बहुत मजबूत किया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन पर भाजपा के विचार को मीडिया और बौद्धिक वर्ग में उन्होंने लोकस्वीकृति दिलाई। वे 'कमल संदेश' जैसे भाजपा के राष्ट्रीय मुखपत्र के वर्षों संपादक रहे। राज्यों में भाजपा की पत्रिकाएं और प्रकाशन ठीक निकलें , ये उनकी चिंता के मुख्य विषय थे। आमतौर पर राजनेता जिन बौद्धिक विषयों को अलक्षित रखते थे, प्रभात जी उन विषयों पर सजग रहते। वे उन कुछ लोगों में थे जिनका हर दल और विचारधारा से जुड़े लोगों से संवाद था। एक बार उन्होंने मुझसे कहा था "अपने कार्यक्रमों में सभी को बुलाएं, तभी आनंद आता है। एक ही विचार के वक्ताओं के बीच एकालाप ही होता है, संवाद संभव नहीं।" उन्होंने मेरी किताब 'मीडिया नया दौर नयी चुनौतियां' का लोकार्पण एक भव्य समारोह में किया। जिसमें माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो.बीके कुठियाला, टीवी पत्रकार और संपादक रविकांत मित्तल भी उपस्थित थे। दिल्ली के अनेक मंचों पर मुझे उनका सान्निध्य मिला। उनका साथ एक ऐसी छाया रहा, जिससे वंचित होकर उसका अहसास अब बहुत गहरा हो गया है। वे हमारे जैसे तमाम युवाओं की जिंदगी में सपने जगाने वाले नायक थे। हम छोटे शहरों, गांवों से आए लोगों को वे बड़ा आसमान दिखाकर उड़ान के लिए छोड़ देते थे। 

उन्होंने तमाम ऐसी प्रतिभाओं को खोजा, उन्हें संगठन में प्रवक्ता, संपादक , मंत्री, सांसद, विधायक और तमाम सांगठनिक पदों तक पहुंचने में मदद की। एक समय भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के नाते वे बहुत ताकतवर थे। अध्यक्ष राजनाथ सिंह (अब रक्षा मंत्री) उन पर बहुत भरोसा करते थे। प्रभात जी ने इस समय का उपयोग युवाओं को जोड़ने में किया। मैं नाम गिनाकर न लेख को बोझिल बनाना चाहता हूं, न उन व्यक्तियों को धर्म संकट में डालना चाहता हूं, जो आज बहुत बड़े हो चुके हैं। भाजपा का आज स्वर्ण युग है, संसाधन, कार्यकर्ता आधार बहुत विस्तृत हो गया है। किंतु प्रभात जी बीजेपी के 'ओल्ड स्कूल' में ही बने रहे। जहां पार्टी परिवार की तरह चलती थी और व्यक्ति से व्यक्तिगत संपर्क को महत्व दिया जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अनेक राज्यों के कार्यकर्ता, पत्रकार,समाज के विविध क्षेत्रों में सक्रिय लोग उनसे बेहिचक मिलते थे। इस सबके बीच उन्होंने अपने स्वास्थ्य का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा। मैंने उन्हें दीनदयाल परिसर के एक छोटे कक्ष में रहते देखा है। परिवार ग्वालियर में ,खुद भोपाल में एकाकी जीवन जीते हुए। यहां भी दरवाजे सबके लिए हर समय खुले थे, जब अध्यक्ष बने तब भी। दिनचर्या पर उनका नियंत्रण नहीं था, क्योंकि पत्रकारिता में भी कोई दिनचर्या नहीं होती। मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने जिस तरह तूफानी प्रवास किया, उसने कार्यकर्ताओं को भले खुश किया। राजपुत्रों को उनकी सक्रियता अच्छी नहीं लगी। वे षड्यंत्र के शिकार तो हुए ही, अपना स्वास्थ्य और बिगाड़ बैठे। उनका पिंड 'पत्रकार' का था, किंतु वे 'जननेता' दिखना चाहते थे। इससे उन्होंने खुद का तो नुकसान किया ही, दल में भी विरोधी खड़े किये। बावजूद इसके वे मैदान छोड़कर भागने वालों में नहीं थे। डटे रहे और अखबारों में अपनी टिप्पणियों से रौशनी बिखेरते रहे। आज जब परिवार जैसी पार्टी को कंपनी की तरह चलाने की कोशिशें हो रही हैं, तब प्रभात झा जैसे व्यक्ति की याद बहुत स्वाभाविक और मार्मिक हो उठती है।

 उनकी पावन स्मृति को शत्-शत् नमन। भावभीनी श्रद्धांजलि।



गुरुवार, 4 जुलाई 2024

नफरतों, कड़वाहटों और संवादहीनता का समय!


-सार्थक संवाद की दृष्टि से निराशाजनक रहा लोकसभा का पहला सत्र 

-प्रो.संजय द्विवेदी 



   भारतीय संसद अपनी गौरवशाली परंपराओं, विमर्शों और संवाद के लिए जानी जाती है। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतांत्रिक बहसों को प्रोत्साहित किया और अपने प्रतिपक्ष के नेताओं डा.राममनोहर लोहिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी,अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर पीलू मोदी तक को मुग्ध भाव से सुना। राष्ट्र प्रेम ऐसा कि चीन युद्ध के बाद गणतंत्र दिवस की परेड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को आमंत्रित कर उनकी राष्ट्रभक्ति को सराहा। किंतु लोकसभा के प्रथम सत्र में जो कुछ हुआ,वह संवाद की धारा को रोकने वाला है। इससे संसद विमर्श और संवाद का केंद्र नहीं अखाड़ा बन गयी। 

  राष्ट्रपति के भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में जब नेता सदन और प्रधानमंत्री बोल रहे थे, उनके लगभग दो घंटे के भाषण में विपक्षी सदस्यों ने आसमान सिर पर उठा रखा था। लगातार नारेबाजी से उनका भाषण सुनना मुश्किल था। इसके विपरीत जब पहले दिन नेता प्रतिपक्ष बोल रहे थे,तो उनके भाषण में सत्तारूढ़ दल के प्रधानमंत्री सहित तीन मंत्रियों ने हस्तक्षेप किया। नेता प्रतिपक्ष को बताया गया कि वे सदन के पटल पर गलत तथ्य न रखें। यह दोनों स्थितियां भारतीय राजनीति में बढ़ते अतिवाद को स्पष्ट करती हैं, जहां संवाद संभव नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष पर नेता प्रतिपक्ष द्वारा की गई अनावश्यक टीका-टिप्पणी को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

  नेता प्रतिपक्ष की गलत बयानी के लिए बाद में सत्तारूढ़ दल के वक्ता अपने भाषणों में उनके भाषण की चीरफाड़ कर सकते थे। किंतु शीर्ष स्तर से लगातार हस्तक्षेप ने नेता प्रतिपक्ष का मनोबल बढ़ा दिया। वे सत्ता पक्ष को उत्तेजित करने में सफल रहे और पहले दिन के मीडिया विमर्श में उन्हें 'सक्रिय नेता प्रतिपक्ष' घोषित कर दिया गया। सेकुलर मीडिया के सेनानियों ने उन्हें 'मैन आफ द मैच' घोषित कर दिया। ज़ाहिर है लंबे समय से गंभीर राजनेता की छवि बनाने के लिए आतुर राहुल गांधी के लिए यह अप्रतिम समय था। किंतु पहले दिन की वाहवाही अगले दिन ही धराशाई हो गई जब प्रधानमंत्री के भाषण में दो घंटे तक नारेबाजी चलती रही। देश की जनता दोनों तरह की अतियों के विरुद्ध है। सदन की गरिमा को बचाने के लिए राजनीतिक दलों को कुछ ज्यादा उदार होना चाहिए। 

  लोकसभा के प्रथम सत्र से निकली छवियां बता रही हैं कि आगे भी सब कुछ सामान्य नहीं रहने वाला है। किंतु संसद को अखाड़ा, चौराहे की चर्चा के स्तर पर ले जाने के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? यह ठीक बात है कि सदन चलाना सरकार की जिम्मेदारी है, किंतु सदन में सार्थक और प्रभावी विमर्श खड़ा करना विपक्षी दलों की भी जिम्मेदारी है। अब जबकि विपक्ष अपनी बढ़ी संख्या पर मुग्ध है तो क्या उसे संसदीय मर्यादाओं को छोड़कर अराजकता का आचरण करना चाहिए? सच तो यह है कि सदन के इस तरह चलने से सत्तारूढ़ दल का ही लाभ है।  बिना बहस और चर्चा के कानून इसीलिए पास होते हैं क्योंकि संसद का ज्यादातर समय हम विवादों में खर्च कर देते हैं। संसदीय परंपरा रही है कि हर नयी सरकार को प्रतिपक्ष कम से कम छः माह का समय देता है। उसके कार्यक्रम और योजनाएं का मूल्यांकन करता है। पहले दिन से ही सदन को अराजकता की ओर ढकेलना उचित नहीं कहा जा सकता। अपनी लंबी संसदीय प्रणाली में भारत ने अनेक संकटों का समाधान किया है। हमारे संसदीय परंपरा का मूलमंत्र है संवाद से संकटों और समस्याओं का समाधान खोजना। संसद इसी का सर्वोच्च मंच है। यह प्रक्रिया नीचे पंचायत तक जाती है। इससे सहभागिता सुनिश्चित होती है, सुशासन का मार्ग प्रशस्त होता है। संसद से नीचे के सदनों विधानसभा सभाओं,विधान परिषदों, नगरपालिका, नगर निगमों और पंचायतों को भी सांसदों का आचरण ही रास्ता दिखाता है। लोकसभा के पहले सत्र का लाइव प्रसारण देखते हुए हर संवेदनशील भारतीय जन को ये दृश्य अच्छे नहीं लगे हैं। संसदीय मर्यादाओं और परंपराओं की रक्षा हमारे सांसद गण नहीं करेंगे तो कौन करेगा? संसदीय राजनीति के शिखर पर बैठे दायित्ववान सांसदों की यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अपने आचरण से इस महान संस्था का गौरव बढ़ाने में सहयोगी बनें। नफरतों, कड़वाहटों और संवादहीनता से 'राजनीति' तो संभव है पर 'राष्ट्रनीति' हम न कर पाएंगे।