आईआईएमसी के 56 वें स्थापना दिवस(17 अगस्त) पर विशेष
-प्रो. संजय द्विवेदी
भारतीय जनसंचार
संस्थान(आईआईएमसी) ने अपने गौरवशाली इतिहास के 56 वर्ष पूरे कर लिए हैं। किसी भी
संस्था के लिए यह गर्व का क्षण भी है और विहंगावलोकन का भी। ऐसे में अपने अतीत को
देखना और भविष्य के लिए लक्ष्य तय करना बहुत महत्वपूर्ण है। 17 अगस्त,1965 को देश
की तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस संस्थान का
शुभारंभ किया और तब से लेकर आजतक इस परिसर ने प्रगति और विकास के अनेक चरण देखे
हैं।
प्रारंभ में आईआईएमसी का आकार
बहुत छोटा था, उन दिनों यूनेस्को के दो सलाहकारों के साथ मुख्यतः केंद्रीय सूचना
सेवा के अधिकारियों के लिए पाठ्यक्रम आयोजित किए गए। साथ ही छोटे स्तर पर कुछ शोध
कार्यों की शुरुआत भी हुई। यह एक आगाज था, किंतु यह यात्रा यहीं नहीं रुकी। 1969
में अफ्रीकी-एशियाई देशों के मध्यम स्तर के पत्रकारों लिए विकासशील देशों के लिए
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम का एक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण
कार्यक्रम प्रारंभ किया गया, जिसे अपार सफलता मिली और संस्थान को अपनी वैश्विक
उपस्थिति जताने का मौका भी मिला। इसके साथ ही आईआईएमसी की एक खास उपलब्धि केंद्र
और राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के जनसंपर्क, संचार कर्मियों
के प्रशिक्षण की व्यवस्था भी रही। इन पाठ्यक्रमों के माध्यम से देश के तमाम
संगठनों के संचार प्रोफेशनल्स की प्रशिक्षण संबंधी जरुरतों का पूर्ति भी हुई और
कुशल मानवसंसाधन के विकास में योगदान रहा।
बाद के दिनों में आईआईएमसी ने
स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की शुरुआत की। जिसमें आज दिल्ली परिसर सहित उसके अन्य पांच परिसरों कई पाठ्यक्रम चलाए जा
रहे हैं। दिल्ली परिसर में जहां रेडियो और टीवी पत्रकारिता,अंग्रेजी पत्रकारिता,
हिंदी पत्रकारिता, उर्दू पत्रकारिता, विज्ञापन और जनसंपर्क के पांच पाठ्यक्रम चलाए
जाते हैं। वहीं उड़ीसा स्थित ढेंकानाल परिसर में उड़िया पत्रकारिता और अंग्रेजी
पत्रकारिता के दो पाठ्यक्रम हैं। आइजोल(मिजोरम) परिसर अंग्रेजी पत्रकारिता में एक
डिप्लोमा पाठ्यक्रम का संचालन करता है। अमरावती(महाराष्ट्र)
परिसर में अंग्रेजी और मराठी पत्रकारिता में पाठ्यक्रम चलते हैं। जम्मू (जम्मू एवं
कश्मीर)परिसर में अंग्रेजी पत्रकारिता और कोयट्टम(केरल) परिसर में अंग्रेजी और
मलयालम पत्रकारिता के पाठ्यक्रम संचालित किए
जाते हैं। इस तरह देश के विविध हिस्सों में अपनी उपस्थिति से आईआईएमसी भाषाई
पत्रकारिता के विकास में एक खास योगदान दिया
है। हिंदी, मलयालम, उर्दू, उड़िया और मराठी पत्रकारिता के पाठ्यक्रम इसके
उदाहरण हैं। भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रमों के साथ उस भाषा में
पाठ्य सामग्री की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण होगी।
विजन है खासः
भारतीय जनसंचार संस्थान के विजन(दृष्टि) को देखें तो वह बहुत महत्वाकांक्षी
है। ज्ञान आधारित सूचना समाज के निर्माण, मानव विकास , सशक्तिकरण एवं सहभागिता
आधारित जनतंत्र में योगदान देने की बातें कही गयी हैं। इसमें साफ कहा गया है कि इन
आदर्शों में अनेकत्व, सार्वभौमिक मूल्य और नैतिकता होगी। इन लक्ष्यों की प्राप्ति
के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए मीडिया शिक्षा शोध, विस्तार एवं प्रशिक्षण
के कार्यक्रम चलाए जाएंगें। इस दृष्टि को
अपने पाठ्यक्रमों, प्रशिक्षण, शोध और संविमर्शों में शामिल करते हुए
आईआईएमसी ने एक लंबी यात्रा तय की है। अपने प्रकाशनों के माध्यम से जनसंचार की
विविध विधाओं पर विशेषज्ञतापूर्ण सामग्री तैयार की है। कम्युनिकेटर(अंग्रेजी) और
संचार माध्यम(हिंदी) दो शोध पत्रिकाओं के
माध्यम से शोध और अनुसंधान का वातावरण बनाने का काम भी संस्थान ने किया है। आज जबकि
सूचना एक शक्ति के रुप में उभर रही है। ज्ञान आधारित समाज बनाने में ऐसे उपक्रम और
संविमर्श सहायक हो सकते हैं। जनसंचार को एक ज्ञान-विज्ञान के अनुशासन के रूप में
स्थापित करने और उसमें बेहतर मानवसंसाधन के विकास के लिए तमाम यत्न किए जाने की
जरुरत है।इन चुनौतियों के बीच भारतीय जनसंचार संस्थान शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के
क्षेत्र में एक बड़ी जगह बनाई है। संस्थान की विशेषता है कि इसका संचालन और प्रबंध
एक स्वशासी निकाय भारतीय जनसंचार संस्थान समिति करती है। इसके अध्यक्ष सूचना और
प्रसारण मंत्रालय के सचिव श्री अमित खरे
हैं। इस सोसायटी में देश भर के सूचना,संचार वृत्तिज्ञों(प्रोफेशनल्स) के अलावा देश
के शिक्षा, संस्कृति और कला क्षेत्र के गणमान्य लोग भी शामिल होते हैं। मीडिया
क्षेत्र की जरुरतों के मद्देनजर पाठ्यक्रमों को निरंतर अपडेट किया जाता है और संचार
विशेषज्ञों के सुझाव इसमें शामिल किए जाते हैं। इसके अलावा कार्यकारी परिषद प्रबंध
के कार्य देखती है।
नेतृत्वकारी भूमिका में हैं पूर्व छात्र-
आईआईएमसी के पूर्व छात्र आज देश के ही
नहीं, विदेशों के भी तमाम मीडिया, सूचना और संचार संगठनों में नेतृत्वकारी भूमिका
में हैं। उनकी उपलब्धियां असाधारण हैं और हमें गौरवान्वित करती हैं। आईआईएमसी के
पूर्व छात्रों का संगठन इतना प्रभावशाली और सरोकारी है, वह सबको जोड़कर सौजन्य व
सहभाग के तमाम कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। पूर्व विद्यार्थियों का सामाजिक सरोकार
और आयोजनों के माध्यम से उनकी सक्रियता रेखांकित करने योग्य है। कोई भी संस्थान
अपने ऐसे प्रतिभावान,संवेदनशील पूर्व छात्रों पर गर्व का अनुभव करेगा।
आईआईएमसी का परिसर अपने प्राकृतिक
सौंदर्य और स्वच्छता के लिए भी जाना जाता है। इस मनोरम परिसर में प्रकृति के साथ
हमारा साहचर्य और संवाद संभव है। परिसर में विद्यार्थियों के लिए छात्रावास,
समृद्ध पुस्तकालय, अपना रेडियो नाम से एक सामुदायिक रेडियो भी संचालित है। इसके अलावा भारतीय सूचना सेवा के
अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए विशेष सुविधाएं और उनके लिए आफीसर्स हास्टल भी
संचालित है। अपने दूरदर्शी पूर्व अध्यक्षों, महानिदेशकों, निदेशकों,
अधिकारियों, सम्मानित प्राध्यापकों और विद्यार्थियों के कारण यह परिसर स्वयं अपने
इतिहास पर गौरवान्वित अनुभव करता है। आने वाले समय की चुनौतियों के मद्देनजर अभी
और आगे जाना है। अपने सपनों में रंग भरना है। उम्मीद की
जानी चाहिए कि संस्थान अपने अतीत से प्रेरणा लेकर बेहतर भविष्य के लिए कुछ बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करेगा,
साथ ही जनसंचार शिक्षा में वैश्विक स्तर पर स्वयं को स्थापित करने में सफल रहेगा।
(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली के महानिदेशक हैं।)
शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही संतुलित एवं सारगर्भित आलेख सर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। आपके नेतृत्व में संस्थान जरूर ऊंचाइयां छुएगा।
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