-लोकेन्द्र सिंह
भारतीय राजनीति के 'अनथक यात्री' लखीराम अग्रवाल पर किसी पुस्तक का आना
सुखद घटना है। सुखद इसलिए है, क्योंकि लखीरामजी जैसे राजपुरुषों की
प्रेरक कथाएं ही आज हमें राजनीति के निर्लज्ज विमर्श से उबार सकती हैं। दलबंदी के
गहराते दलदल में फंसकर इधर-उधर हाथ-पैर मार रहे राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं
को सीख देने के लिए लखीरामजी जैसे नेताओं के चरित्र को सामने लाना बेहद जरूरी है।
विचार के लिए किस स्तर का समर्पण चाहिए और विपरीत परिस्थितियों में भी राजनीतिक
शुचिता कैसे बनाए रखी जाती है, यह सब सिखाने के लिए लखीरामजी सरीखे
व्यक्तित्वों को अतीत से खींचकर वर्तमान में लाना ही चाहिए।
लखीराम
अग्रवाल सच्चे अर्थों में राजपुरुष थे। उन्होंने राजनीति का यथेष्ठ उपयोग समाजसेवा
के लिए किया। शुचिता की राजनीति की नई लकीर खींच दी। शिखर पर पहुंचकर भी साधारण
बने रहे। खुद को महत्वपूर्ण मानकर असामान्य व्यवहार कभी नहीं किया। वे अंत तक खुद
को सच्चे अर्थों में जनप्रतिनिधि साबित करते रहे। ऐसे व्यक्तित्व की कहानियां बयां
करती है-'लक्ष्यनिष्ठ लखीराम'। श्री लखीराम अग्रवाल स्मृति ग्रंथ 'लक्ष्यनिष्ठ लखीराम'
का संपादन
राजनीतिक विचारक संजय द्विवेदी ने किया है। श्री द्विवेदी ने अपना महत्वपूर्ण समय
छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता को दिया है। उन्होंने स्वदेश, दैनिक भास्कर, हरिभूमि और जी-24 घंटे संपादक रहते हुए छत्तीसगढ़ में
राजनीतिक हलचलों को बेहद करीब से देखा है। लखीरामजी के प्रयासों से जब छत्तीसगढ़
में भारतीय जनता पार्टी की जड़ें मजबूत हो रही थीं, तब इस पुस्तक के संपादक श्री द्विवेदी
वहीं थे। इस संदर्भ में पुस्तक में शामिल उनके लेख 'भाजपा की जड़ें जमाने वाला नायक'
और 'विचारधारा की राजनीति का सिपाही'
को देख लेना
उचित होगा। उन्होंने लखीरामजी के मिशन-विजन को नजदीक से देखा-समझा है। इसलिए यह
पुस्तक अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि, इसमें उन सब बातों,
घटनाओं और
विचारों का समावेश निश्चिततौर पर है, जिनसे लखीरामजी की वास्तविक तस्वीर
उभरकर सबके सामने आएगी।
मौटे
तौर पर पुस्तक में लखीरामजी से संबंधित सामग्री को तीन स्तरों में रखा गया है।
परिचय और छवियों में लखीरामजी सहित इस स्मृतिग्रंथ के पांच भाग हो जाते हैं। पहला
है मूल्यांकन, जिसमें पत्रकारों, संपादकों, शिक्षाविदों और लेखकों के अनुभव शामिल
हैं। पुस्तक के सलाहकार संपादक बेनी प्रसाद गुप्ता लिखते हैं कि लखीरामजी की
सूझ-बूझ के कारण बिना किसी हिंसक आंदोलन, धरना-प्रदर्शन या शोर-शराबे के
छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हो गया। वरना हम देखते हैं कि राज्यों के निर्माण में
कितना संघर्ष होता है। लखीरामजी जैसी राजनीतिक दूरदर्शिता कम ही देखने को मिलती
है। सबको भरोसे में लेकर काम करना उनका विशेष गुण था। इसी खण्ड में वरिष्ठ पत्रकार
रमेश नैयर लखीरामजी के समाचार-पत्र प्रकाशन और प्रबंध के कौशल का जिक्र करते हैं।
श्री नैयर अग्रवाल परिवार के दैनिक समाचार पत्र 'लोकस्वर' के संस्थापक संपादक रहे हैं। वे एक
घटना के माध्यम से बताते हैं कि कभी भी लखीरामजी ने पत्रकारिता को अपने स्वार्थ के
लिए उपयोग नहीं किया। न कभी संपादक पर दबाव डाला। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने भी सहृदय संगठक के
पत्रकारीय विशेषता को रेखांकित किया है। यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि लखीरामजी
ने नागपुर टाइम्स और युगधर्म जैसे समाचार-पत्रों में संवाददाता के रूप में काम
किया था। लखीरामजी सिर्फ एक राजनेता नहीं थे बल्कि वे 'राजनीति के ओल्ड स्कूल के नेता'
थे। इंडिया टुडे
के संपादक रहे श्री जगदीश उपासने लिखते हैं कि लखीरामजी उन नेताओं में थे जो
पार्टी-संगठन को प्रमुखता और उसके लिए समयानुकूल कार्यकर्ता तथा धन की व्यवस्था
करने की परम्परागत राजनीतिक शैली में ढले थे। संगठन के पद पर कार्यकर्ता का चयन
पार्टी को बढ़ाने की उसकी योग्यता के आधार पर तो होता ही था,
वे यह भी देखते
कि उस कार्यकर्ता की नियुक्ति से सांगठनिक संतुलन भी न बिगड़े। ऐसे में कई बार तो
वे विरोध पर भी उतर आते थे। लेकिन, लखीरामजी का कौशल ऐसा था कि नाराज
कार्यकर्ता उनके साथ एक बार लम्बी बातचीत के बाद फिर से पुराने उत्साह से काम पर
लग जाता था। हरेक कार्यकर्ता उनके लिए अपने परिवार के सदस्य की तरह था।
पुस्तक
के दूसरे हिस्से 'राजनेताओं की स्मृतियां' में अनेक रोचक प्रसंग हैं। इस खण्ड में
उन नेताओं के लेख शामिल हैं, जिन्होंने उनके राजनीतिक सहयात्री रहे।
उन नेताओं ने भी अपनी यादें साझा की हैं, जिन्होंने लखीरामजी के सान्निध्य में
रहकर पत्रकारिता का ककहरा सीखा है। एक सर्वप्रिय नेता के संबंध में छत्तीसगढ़ के
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, अविभाज्य मध्यप्रदेश प्रभावशाली नेता
कैलाश जोशी, मोतीलाल वोरा, स्व. विद्याचरण शुक्ल,
कैलाश नारायण
सारंग सहित अन्य नेताओं के विचारों का एक ही जगह संग्रह महत्वपूर्ण है। इस खण्ड
में कैलाश जोशी और लखीराम अग्रवाल का एक-दूसरे के खिलाफ संगठन का चुनाव लडऩे का
अविस्मरणीय और शिक्षाप्रद प्रसंग भी शामिल है। महज 21 वर्ष की युवावस्था में नगरपालिका में
पार्षद चुना जाना। खरसिया नगरपालिका का अध्यक्ष चुने जाने का प्रसंग। भाजपा में
विभिन्न दायित्व मिलने के किस्से और खरसिया के सबसे चर्चित उपचुनाव को समझने का
मौका यह पुस्तक उपलब्ध कराती है। खरसिया उपचुनाव में लखीरामजी ने मुख्यमंत्री अर्जुन
सिंह के खिलाफ दिलीप सिंह जूदेव को मैदान में उतारा था। चुनाव की ऐसी रणनीति
उन्होंने बनाई थी कि कद्दावर नेता अर्जुन सिंह को पसीना आ गया था। हालांकि श्री
जूदेव चुनाव हार गए। लेकिन, लखीरामजी के चुनावी प्रबंधन के कारण यह
चुनाव ऐतिहासिक बन गया।
बहरहाल,
पुस्तक के तीसरे
अध्याय में 'परिजनों की स्मृतियाँ' शामिल हैं। यह एक तरह से लखीरामजी के
प्रति उनके अपनों के श्रद्धासुमन हैं। इस अध्याय में लखीरामजी के अनुज रामचन्द्र
अग्रवाल, श्याम अग्रवाल, उनके बड़े बेटे बृजमोहन अग्रवाल,
लखीराम अग्रवाल,
सजन अग्रवाल और
पुत्रवधु शशि अग्रवाल ने अपनी स्मृतियों को सबके सामने प्रस्तुत किया है। लखीरामजी
का पारिवारिक जीवन भी कम प्रेरणास्पद नहीं है। उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया है
कि किस तरह पूरी ईमानदारी के साथ राजनीति और परिवार दोनों का संचालन किया जाता है।
उनके लम्बे सार्वजनिक जीवन में कोई राजनीतिक कलंक नहीं है। राजनीति में अपनी
पार्टी को और व्यक्तिगत जीवन में अपने परिवार को मजबूत करने के लिए लखीरामजी ने
अथक परिश्रम किया है। जैसा कि शुरुआत में ही लिखा है कि ऐसे धवल राजनेताओं का
चरित्र सबके सामने आना ही चाहिए। ताकि अपने मार्ग से भटक रही राजनीति इन्हें
देख-सुन और स्मरण कर शायद संभल सके। 275 पृष्ठों की पुस्तक के अंतिम पन्नों पर
ध्येयनिष्ठ राजनेता और समाजसेवी लखीराम अग्रवाल से संबंधित महत्वपूर्ण चित्रों का
संग्रह है। इन चित्रों से होकर गुजरना भी महत्वपूर्ण होगा।
पुस्तक : लक्ष्यनिष्ठ लखीराम
संपादक : संजय द्विवेदी
प्रकाशक : मीडिया विमर्श
47, शिवा रॉयल पार्क,
साज
री ढाणी (विलेज रिसोर्ट) के पास,
सलैया, आकृति इकोसिटी से आगे,
भोपाल
- 462042
फोन : 9893598888
मूल्य : 200 रुपये
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