-संजय द्विवेदी
उन्हें पता है कि उनको मिली जिम्मेदारी साधारण नहीं है। वे एक ऐसे परिवार के मुखिया बनाए गए हैं जिसकी परंपरा में कुशाभाऊ ठाकरे जैसा असाधारण नायक है। मध्यप्रदेश भाजपा का संगठन साधारण नहीं है। उसकी संगठनात्मक परंपरा में ठाकरे और उनके बाद एक लंबी परंपरा है। प्यारेलाल खंडेलवाल, गोविंद सारंग, नारायण प्रसाद गुप्ता, कैलाश जोशी, वीरेंद्र कुमार सकलेचा, सुंदरलाल पटवा, लखीराम अग्रवाल, कैलाश नारायण सारंग सरीखे अनेक नाम हैं। बात मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष प्रभात झा की हो रही है, जिन्हें इस महत्वपूर्ण प्रदेश के संगठन की कमान संभाले 8 मई,2011 को एक साल पूरे हो गए हैं। उनके बंगले और प्रदेश कार्यालय में दिन भर कार्यकर्ताओं का तांता लगा है। फूल, बुके, मालाएं और मिठाईयां, नारे और जयकारों के बीच भी उनकी नजर मछली की आंख पर है। वे कार्यकर्ताओं से घिरे हैं, उनकी शुभकामनाएं ले रहे हैं, उन्हें मिठाईयां खिला रहे हैं पर मंडीदीप नगरपालिका (भोपाल के पास का एक कस्बा) के चुनाव के लिए लगातार वहां के स्थानीय कार्यकर्ताओं से फोन पर बात कर रहे हैं। एक कार्यकर्ता हार पहनाने के लिए बढ़ते हैं तो प्रभात जी जुमला फेंकते हैं- “हार में नहीं जीत में भरोसा है मेरा।”
सोनकच्छ और कुक्षी के दो विधानसभा उपचुनावों की जीत ने ही उनमें यह आत्मविश्वास भरा है। सो अब, प्रभात झा यही भाव अपने संगठन के सामान्य कार्यकर्ताओं में भी भरना चाहते हैं। उनकी कोशिशें कितनी रंग लाएंगी यह तो समय बताएगा, किंतु उनकी मेहनत देखिए वे अपने एक साल के कार्यकाल में पार्टी संगठन के लगभग तीन सौ मंडलों का दौरा कर चुके हैं। शायद इसीलिए इस परिश्रमी अध्यक्ष का सम्मान करने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आवास पर उनके सम्मान समारोह का आयोजन किया। इस आयोजन के लिए मुख्यमंत्री की ओर से वितरित किए गए कार्ड की भाषा देखिए-“... इस एक वर्ष में उन्होंने अनथक परिश्रम किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मूल मंत्र ‘चैरेवेति-चैरेवेति’ को वे साकार कर रहे हैं।” जाहिर तौर पर प्रभात झा ने संगठन मंत्र पढ़ लिया है। करीब साल भर पहले जब वे राज्य भाजपा के अध्यक्ष बनाकर भेजे गए थे, तो उनके विरोध में काफी सुर थे। कुछ यह भी आशंकाएं कि झा अपने ऊंचे संपर्कों के सहारे मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पाल सकते हैं। साथ ही बिहार में जन्मे होने के कारण भी उनकी स्वीकार्यता सहज नहीं लग रही थी। जबकि ग्वालियर से प्रारंभ अपने पत्रकारीय कैरियर से उन्होंने जिस तरह खुद को मध्यप्रदेश की माटी को समर्पित किया वह अपने आप में एक उदाहरण है। स्व.कुशाभाऊ ठाकरे की प्रेरणा से जब से वे संगठन के लिए जुटे तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। भोपाल और दिल्ली के साधारण कमरों और साधारण स्थितियों में उनकी साधना जिन्होंने देखी है वे मानेंगें कि इस 53 वर्षीय कार्यकर्ता को सब कुछ यूं हीं नहीं मिला है। इन पंक्तियों के लेखक का उनका करीब दो दशक का साथ है। एक पत्रकार के नाते मैं चाहे छिंदवाड़ा के उपचुनाव में कवरेज करने गया या छत्तीसगढ़-मप्र के तमाम चुनावी मैदानों में, झा हमेशा नजर आए। अपनी वही भुवनमोहिनी मुस्कान और संगठन के लिए सारी ताकत और सारे संपर्कों को झोंक देना का हौसला लिए हुए। आप उनके दल के साधारण कार्यकर्ता हों, पत्रकार या बुद्धिजीवी सबका इस्तेमाल अपने विचार परिवार के लिए करना उन्हें आता है। इसलिए देश भर में युवाओं का एक समूचा तंत्र उनके पास है, जिसकी आस्था लिखने-पढ़ने में है। वे संगठन और विचार की राजनीति को समझते हैं। इसलिए कुछ थोपने की कोशिश नहीं करते। एक सजग पत्रकार हमेशा उनके मन में सांस लेता है। इसलिए वे मीडिया मैनेजमेंट नहीं मीडिया से रिश्तों की बात करते हैं। जमीन से आने के नाते, जमीनी कार्यकर्ता की भावनाओं को पढ़ना उन्हें आता है। वे खुद कहते हैं- “नींद खोई, दोस्त खोए, पर पाया है कार्यकर्ताओं का प्यार। क्योंकि अपनी सामाजिक ग्राह्यता के लिए कड़े परिश्रम के अलावा मेरे पास न कोई रास्ता था न ही साधन।”
निश्चय ही प्रभात झा ने यह साबित कर दिया है उनको राज्य में भेजने का फैसला कितना जायज था। अपने स्वागत और होर्डिंग लगाने की मनाही करके उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से ही सही राजनीति को एक नया पाठ पढ़ाने की कोशिश की। यह सही है कि वे अपने इस फरमान को पूरा लागू नहीं करा पाए पर उनकी कोशिशें रंग ला रही हैं। उन्हें मुख्यमंत्री से लड़ाने की सारी कोशिशें तब विफल होती दिखीं, जब उन्होंने कार्यकर्ता गौरव दिवस कार्यक्रम का भोपाल में आयोजन किया। इस बहाने केंद्र के नेताओं और राष्ट्रीय मीडिया को उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि वे किसी भी तरह से शिवराज सिंह का विकल्प नहीं हैं, वरन वे तीसरी बार भी शिवराज जी के नेतृत्व में सरकार बनाने के अभियान में जुटे हैं। प्रभात झा कहते हैं- “मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अच्छा काम कर रहे हैं। मैं उन्हें और मजबूत करने का काम कर रहा हूं। लोग उभरते हुए नायक को खलनायक बनाने की कोशिश करते हैं, मैं नायक को जननायक बनाने की दौड़ में लगा हूं।”
मूलतः एक पत्रकार होने के नाते प्रभात झा सच कहने और कई बार कड़वा सच बोलने से नहीं चूकते। इसके चलते उन्हें बड़बोला साबित करने के भी प्रयास हुए। उनके भाषणों की अलग-अलग व्याख्याएं कर यह साबित करने का प्रयास किया गया कि उनसे नाराजगी बढ़ रही है। झा इस बात को समझने लगे हैं। अब वे वाणी संयम का सहारा ले रहे हैं। खुद झा कहते हैं कि-“ मैं पत्रकार रहा हूं तो लगता था कि हर सवाल का जवाब देना जरूरी है। समय के साथ यह समझ विकसित हुयी है हर बात का जवाब देना जरूरी नहीं है। मेरे दोस्तों और साथियों की सलाह के बाद मैने कुछ मामलों पर चुप रहना सीख लिया है। ”
जाहिर तौर पर राजनीति के सफर में एक साल का सफर बहुत बड़ा नहीं होता। किंतु झा को जानने के लिए सिर्फ उन्हें इस एक साल से मत पढिए। वे दल के लिए अपनी जिंदगी के तीन दशक दे चुके हैं। अपने दल को एक वैचारिक आधार दिलाने के लिए उनकी कोशिशों को याद कीजिए। पार्टी के मुखपत्र कमल संदेश से लेकर अनेक राज्यों से प्रारंभ हुए प्रकाशनों में उनकी भूमिका को भी याद कीजिए। संगठन का विचार से एक रिश्ता बने, बुद्धिजीवियों से उनके दल का एक संवाद बने,यह उनकी एक बड़ी कोशिश रही है। अपने लेखन से समाज को झकझोरने वाले प्रभात आज मध्यप्रदेश भाजपा के शिखर पर हैं, तो इसके भी खास मायने हैं, एक तो यह कि भाजपा में साधारण काम करते हुए आप असाधारण बन सकते हैं, दूसरा यह कि सामान्य कार्यकर्ता कितनी ऊंचाई हासिल कर सकता है वे इसके भी उदाहरण है। मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का पद बहुत कठिन उत्तराधिकार है, इसे वे समझते हैं। प्रभात झा ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है किंतु 2013 में वे अपनी पार्टी को फिर से सत्ता में लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस सवाल पर उनका जवाब बहुत मौजूं है, वे कहते हैं-“ जिसने शादी नहीं की है, क्या उसे बारात में भी जाने का हक नहीं है।” निश्चय ही 2013 की बारात में लोग शामिल होंगें या नहीं होंगें यह कहना कठिन है पर आज तो शिवराज सिंह-प्रभात झा की बारात में हर कोई शामिल दिख रहा है।
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