शुक्रवार, 31 मई 2024

राजनीति में भी चमके मीडिया के सितारे

 

- प्रो. (डा.) संजय द्विवेदी

      इन दिनों देश में लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है। राजनीति का आकर्षण प्रबल है। सिने कलाकार, साहित्यकार, वकील, न्यायाधीश, खिलाड़ी, गायक, उद्योगपति सब क्षेत्रों के लोग राजनीति में हाथ आजमाना चाहते हैं। ऐसा ही हाल पत्रकारिता के सितारों का भी है। मीडिया और पत्रकारिता के अनेक चमकीले नाम राजनीति के मैदान में उतरे और सफल हुए।

     आजादी के आंदोलन में तो मीडिया को एक तंत्र की तरह इस्तेमाल करने के लिए प्रायः सभी वरिष्ठ राजनेता पत्रकारिता से जुड़े और उजली परंपराएं खड़ी कीं। बालगंगाधर तिलक, महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चन्द्र बोस, महामना पं.मदनमोहन मालवीय, पंडित नेहरू सभी पत्रकार थे। आजादी के बाद बदलते दौर में पत्रकारिता और राजनीति की राहें अलग-अलग हो गईं, लेकिन सत्ता का आकर्षण बढ़ गया। जनपक्ष, राष्ट्र सेवा की पत्रकारिता अब आजाद भारत में राष्ट्र निर्माण का भाव भरने में लगी थी। सेवा राजनीति के माध्यम से भी की जा सकती है, यह भाव भी प्रबल हुआ।



मूल्यों पर अटलरहने वाले वाजपेयी’-

     राजनीतिक दलों से संबंधित समाचार पत्रों, पत्रिकाओं के अलावा मुख्यधारा की पत्रकारिता से भी लोग राजनीति में आए, जिसमें सबसे खास नाम श्री अटल बिहारी वाजपेयी का है।वे  'वीर अर्जुन' जैसे दैनिक अखबार के संपादक थे। इसके साथ ही वे 'स्वदेश', 'पांचजन्य' और 'राष्ट्रधर्म' के भी संपादक भी थे। वे जहां संसदीय राजनीति के लंबे अनुभव के साथ प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री भी रहे, तो वहीं भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष भी थे। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी 'हिंदुस्तान समाचार' और 'ऑर्गनाइजर' से संबद्ध थे, फिर राजनीति में आए।

  कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे पं.कमलापति त्रिपाठी जाने-माने पत्रकार थे। आज(वाराणसी) के संपादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की। बाद में वे लोकसभा के सदस्य चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र ने दैनिक 'लोकमत', साप्ताहिक 'सारथी' और 'श्री शारदा' के संपादक के रूप में ख्याति अर्जित की।तत्कालीन विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ल बाद में बने मध्यप्रदेश में मंत्री और सांसद रहे। 'विशाल भारत' के संपादक रहे बनारसी दास चतुर्वेदी दो बार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। गणेश शंकर विद्यार्थी के शिष्य बालकृष्ण शर्मा नवीन 'प्रताप' के संपादक थे और कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे। महाराष्ट्र का दर्डा परिवार राजनीति में अग्रणी स्थान रखता है । 'लोकमत' समाचार के संस्थापक जवाहरलाल दर्डा, राजेन्द्र दर्डा और विजय दर्डा सांसद, विधायक और मंत्री रहे। 'विजया कर्नाटक' और 'कन्नड़ प्रभा' अखबार से जुड़े रहे प्रताप सिम्हा भाजपा से दो बार लोकसभा पहुंचे। उनका नाम चर्चा में तब आया, जब उनके द्वारा अनुमोदित विजिटर पास से दो युवकों ने नई संसद में पहुंच कर हंगामा किया। अंग्रेजी के नामवर पत्रकार खुशवंत सिंह राज्यसभा के लिए मनोनीत सदस्य के रूप राष्ट्रपति द्वारा नामित किए गए। सपा ने दैनिक जागरण के मालिकों में एक महेंद्र मोहन गुप्त को उप्र से राज्यसभा भेजा।

मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ तक सितारों की जगमगाहट-



     मूलतः पत्रकारिता से सार्वजनिक जीवन में आए मोतीलाल वोरा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और लंबे समय तक कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल ने रायपुर से 'दैनिक महाकौशल' अखबार निकाला। भाजपा के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद बने लखीराम अग्रवाल ने बिलासपुर से 'लोकस्वर' अखबार निकाला। बिलासपुर के पत्रकार बीआर यादव मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री और चार बार विधायक चुने गए। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी नवभारत, नागपुर के संपादक थे और बाद में सांसद बने। नवीन दुनिया, जबलपुर के संपादक मुंदर शर्मा विधायक और सांसद दोनों पदों पर चुने गए। जबलपुर से प्रहरी (साप्ताहिक) के संपादक रहे उसी शहर से मेयर और 2 बार राज्यसभा के सदस्य थे।

     बिलासपुर के रहने वाले कवि, पत्रकार श्रीकांत वर्मा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा के सदस्य बने। वे 'दिनमान' के संपादक मंडल में रहने के बाद राजनीति में आए थे । छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के रहने वाले चंदूलाल चंद्राकर दैनिक 'हिन्दुस्तान' के संपादक बने। बाद में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। चंद्राकर, राजीव गांधी की सरकार में मंत्री भी बने किंतु एक विवाद में नाम आने पर उनका इस्तीफा ले लिया गया। नवभारत से जुड़े रहे राजनांदगांव के पत्रकार लीलाराम भोजवानी छत्तीसगढ़ सरकार में श्रम मंत्री थे। 'देशबन्धु' में पत्रकारिता का पाठ पढ़ने वाले चंद्रशेखर साहू छत्तीसगढ़ से सांसद, मंत्री और विधायक बने। मध्यप्रदेश में सीहोर के पत्रकार शंकर लाल साहू विधायक थे। दमोह के आनंद श्रीवास्तव भी पत्रकार थे, बाद में विधायक बने। त्रिभुवन यादव पिपरिया से विधायक बने। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे और दो बार विधायक चुने गए विष्णु राजोरिया मूलतः पत्रकार ही हैं, बाद में उन्होंने 'शिखर वार्ता' पत्रिका भी निकाली। मप्र में ही केएन प्रधान सांसद, विधायक और मंत्री भी थे। नागपुर के अंग्रेजी अखबार 'हितवाद' के प्रकाशन करने वाले बनवारी लाल पुरोहित कांग्रेस और भाजपा दोनों से लोकसभा पहुंचे। संप्रति वे पंजाब के राज्यपाल हैं।

भाजपा हो या कांग्रेस, सबने दिये मौके-



कांग्रेस ने अंग्रेजी के दिग्गज पत्रकार कुलदीप नैयर, एचके दुआ (हिंदुस्तान टाइम्स), हिंदी के राजीव शुक्ला, प्रफुल्ल कुमार माहेश्वरी, मराठी के कुमार केतकर आदि को राज्यसभा से नवाजा। राजीव शुक्ला मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। शिवसेना से अंग्रेजी के पत्रकार और फिल्ममेकर प्रतीश नंदी राज्यसभा पहुंचे। पांचवा स्तंभ नामक मासिक पत्रिका निकालने वाली मृदुला सिन्हा गोवा की राज्यपाल बनीं। चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय भी जनता दल से फरूखाबाद से लोकसभा पहुंचे। वरिष्ठ पत्रकार संजय निरुपम भी लोकसभा पहुंचे, वे मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 'सामना' के संपादक संजय राऊत अपने धारदार बयानों के लिए लोकप्रिय हैं, वे भी उद्धव ठाकरे की शिवसेना से राज्यसभा सदस्य हैं। जनता दल (यू) ने प्रभात खबर के संपादक रहे हरिवंश नारायण सिंह को दो बार राज्यसभा भेजा, वे इन दिनों राज्यसभा के उपसभापति भी हैं। 'ऑर्गनाइजर' के संपादक रहे श्री के.आर.मलकानी बाद में राज्यसभा पहुंचे। भारतीय जनता पार्टी ने अरूण शौरी, चंदन मित्रा, स्वप्नदास गुप्ता, दीनानाथ मिश्र, बलबीर पुंज, राजनाथ सिंह सूर्य, नरेन्द्र मोहन, प्रभात झा, तरुण विजय को राज्यसभा भेजा। शौरी वाजपेयी सरकार में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री थे। उनके पास विनिवेश मंत्री का कार्यभार भी था। इनमें चंदन मित्रा बाद में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए, जबकि पुंज और झा पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी मनोनीत हुए। प्रभात झा मध्यप्रदेश भाजपा के चर्चित अध्यक्ष भी थे। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में रह चुके वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर किशनगंज से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। बाद में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा और विदेश राज्यमंत्री बनाया। मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर चुके रमेश पोखरियाल निशंक का पत्रकारिता से गहरा नाता रहा है। वे दैनिक जागरण से जुड़े थे, साथ ही स्वयं का सीमांत वार्ता नाम का अखबार भी प्रकाशित किया।हिमाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मुकेश कौशिक भी मूलतः पत्रकार हैं। वह दिल्ली और शिमला में पत्रकारिता की लंबी पारी के बाद राजनीति में आए। हरियाणा के अंबाला लोकसभा क्षेत्र से 2014 में भाजपा सांसद चुने गए अश्विनी कुमार अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन 'पंजाब केसरी' के माध्यम से की गई उनकी धारदार पत्रकारिता लोगों के जेहन में है। 'इकोनॉमिक टाइम्स' में रहे देवेश कुमार बिहार में भाजपा से विधान परिषद में है और प्रदेश महामंत्री भी हैं। हरियाणा सरकार में वित्त मंत्री बने कैप्टन अभिमन्यु भी दैनिक 'हरिभूमि' के संपादक, प्रकाशक थे।

क्षेत्रीय दलों ने भी दिए अवसर-



तृणमूल कांग्रेस ने हाल में ही अंग्रेजी की पत्रकार सागरिका घोष को राज्यसभा भेजा है। इसके पूर्व उर्दू  पत्रकारिता से जुड़े रहे नदीमुल हक भी तृणमूल से राज्यसभा पहुंचे। हिंदी अखबार 'सन्मार्ग' के मालिक विवेक गुप्ता तृणमूल से सांसद भी रहे, अब विधानसभा में हैं। कुणाल घोष भी इसी दल से राज्यसभा पहुंचे।   उर्दू के पत्रकार शाहिद सिद्दीकी (उर्दू नई दुनिया) सपा से, तो मीम अफजल (अखबार-ए-नौ) कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे। शाहिद सपा, कांग्रेस, आरएलडी की परिक्रमा करके फिर सपा में हैं। आंध्र प्रदेश से छपने वाले तेलुगु अखबार 'वार्ता' के संपादक गिरीश सांघी कांग्रेस से राज्यसभा हो आए। पत्रकारिता से जुड़े रहे तेलंगाना के के. केशवराव कांग्रेस और टीआरएस दोनों दलों से राज्यसभा जा चुके हैं। कोलकाता के पत्रकार अहमद सईद मलीहाबादी भी राज्यसभा पहुंचे। जनता दल (यूनाइटेड) से एजाज अली भी राज्यसभा (2008 से 2010) में रहे। टीवी पत्रकार मनीष सिसोदिया आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं में हैं और दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। संप्रति वे शराब घोटाले के आरोप में तिहाड़ जेल में हैं।

      कुछ पत्रकार लोकसभा चुनाव लड़कर भी संसद नहीं पहुंच पाए। जैसे वरिष्ठ पत्रकार उदयन शर्मा, सुप्रिया श्रीनेत (कांग्रेस), साजिया इल्मी, आशीष खेतान, आशुतोष (आप), और सीमा मुस्तफा जनता दल के टिकट पर लोकसभा नहीं पहुंच सके। साजिया अब बीजेपी में आ चुकी हैं।

कुछ ने नेपथ्य में तलाशी संभावनाएं-



   अनेक दिग्गज पत्रकार चुनावी समर में उतरने के बजाए नेपथ्य में ताकतवर रहे और अपने समय की राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करते रहे। श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ मीडिया सलाहकार एच.वाई. शारदा प्रसाद ने इंडियन एक्सप्रेस से अपना कैरियर प्रारंभ किया था। बाद में वे इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मासकम्युनिकेशन और नेशनल डिजाइन इंस्टीट्यूट की स्थापना में सहयोगी थे। उन्हें पद्मविभूषण से भी अलंकृत किया गया। इंडिया टुडे के पत्रकार सुमन दुबे भी राजीव गांधी के मीडिया सलाहकार थे। अब वे राजीव गांधी फाउंडेशन का काम देख रहे हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय में पदस्थ रहे अशोक टंडन, सुधीन्द्र कुलकर्णी,हरीश खरे, पंकज पचौरी, संजय बारू के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें टंडन और कुलकर्णी अटल जी के साथ और खरे,पचौरी, तथा बारू मनमोहन सिंह के साथ थे। बारू बाद में अपनी किताब द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर लिखकर विवादों में भी आए।

       राजनीति के मंच पर ऐसे अनेक सितारे चमके और अपनी जगह बनाई। तमाम ऐसे भी थे, जो पार्टी के प्रवक्ता या बौद्धिक कामों से संबद्ध थे। तमाम अज्ञात ही रह गये। राजनीति वैसे भी कठिन खेल है, संभावनाओं से भरा भी। किंतु सबको इसका फल मिले यह जरूरी नहीं। बावजूद इसके इसका आकर्षण कम नहीं हो रहा। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी कहते थे, "पत्रकार की पोलिटिकल लाइन तो ठीक है, पर पार्टी लाइन नहीं होनी चाहिए।" किंतु यह लक्ष्मण रेखा भी टूट रही है। क्यों, इस पर सोचिए जरूर।

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

                        'एक एशिया' के विचार को साकार करना हम सबकी जिम्‍मेदारी : प्रो. द्विवेदी

'सार्क जर्नलिस्‍ट फोरमके प्रतिनिधिमंडल ने किया आईआईएमसी का दौरा



नई दिल्‍ली12 जनवरी। सार्क देशों के पत्रकार संगठन सार्क जर्नलिस्‍ट फोरम (एसजेएफ) के प्रति‍निधिमंडल ने गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्‍थान का दौरा किया। आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने नेपालभूटानश्रीलंका और बांग्‍लादेश से आए तीस से अधिक प्रति‍निधियों का अंगवस्‍त्र और स्‍मृति चिन्‍ह देकर अभिनंदन किया। इस अवसर पर संस्थान के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंहडीन छात्र (कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमारडॉ. मीता उज्‍जैनडॉ. पवन कौंडल, डॉ. प्रतिभा शर्मा एवं सहायक कुलसचिव ऋतेश पाठक भी उपस्थित रहे।

आईआईएमसी के महानिदेशक ने स्‍वामी विवेकानंद की जयंती पर उनका स्‍मरण करते हुए कहा कि वे पहले ऐसे विचारक थेजिन्‍होंने एक एशिया की अवधारणा प्रस्‍तुत की। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि जब एक एशिया’ बनेगातभी इस क्षेत्र की शांतिअखंडताविकास और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। उन्‍होंने कहा कि हम सबका एक ही इतिहास है और आज भी हम सब एक जैसी संस्‍कृतिखानपानरहन-सहन साझा करते हैं। यही हमारी ताकत है। सांस्‍कृतिक रूप से एक होकर ही हम पाश्‍चात्‍य संस्‍कृति के अतिक्रमण को रोक सकते हैं।

प्रो. द्विवेदी के अनुसार स्‍वामी विवेकानंद ने एक सदी  पहले ही पश्चिमी देशों को कह दिया था कि 20वीं सदी आपकी होगीलेकिन 21वीं सदी भारत की होगी। अब 21वीं सदी में हैं और उनकी बातें सच होती नजर आ रही हैं। उन्होंने 'सार्क जर्नलिस्‍ट फोरमका आह्वान करते हुए कहा कि पत्रकार होने के नाते 'एक एशियाके विचार को साकार करना हम सबकी जिम्‍मेदारी है।

इस अवसर पर एसजेएफ के अध्‍यक्ष राजू लामा ने कहा कि आईआईएमसी में आकर वे बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि मुझे भारत के बहुत सारे राजनेताओं और स्‍वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी थीलेकिन यह पहली बार हैजब उन्‍हें भारत के पहले हिंदी समाचार पत्र उदंत मार्तंड’ के संस्‍थापक संपादक पंडित युगल किशोर शुक्‍ल के योगदान के बारे में पता चला। लामा ने कहा कि एसजेएफशुक्‍ल जी के पत्रकारिता में अविस्‍मरणीय योगदान के लिए उन्‍हें अपनी आदरांजलि अर्पित करता है।

अपनी यात्रा के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने आईआईएमसी के विभिन्‍न विभागोंपुस्तकालय और संस्थान द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो 'अपना रेडियो 96.9 एफएमका भी दौरा किया।



गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

विश्व शांति के लिए जरूरी है हिन्दुत्व : सुनील आंबेकर

डॉ. इन्दु‍शेखर तत्पुरुष की पुस्तक 'हिन्दुत्व: एक विमर्श' का विमोचन


नई दिल्ली, 26 दिसंबर। प्रख्यात कवि, आलोचक एवं संपादक डॉ. इन्दु‍शेखर तत्पुरुष की पुस्तक 'हिन्दुत्व: एक विमर्श' का विमोचन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने कहा कि विश्व शांति के लिए हिन्दुत्व बेहद जरूरी है। आधुनिक समय में हिन्दुत्व के नियमों को भूलने का परिणाम हम जीवन के हर क्षेत्र में महसूस करते हैं। इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी एवं पांचजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने की। संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय में वरिष्ठ आचार्या प्रो. कुमुद शर्मा ने किया।

श्री आंबेकर ने कहा कि हिन्दुत्व का मूल तत्व एकत्व की अनुभूति है। वेदों में जिस एकत्व की बात कही गई है, उसे समाज जीवन में महसूस किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसी एकत्व भाव के कारण हम एक रहे और आगे बढ़ते रहे। अब हमें अपने लिए नए मार्ग तलाशने हैं और हिन्दुत्व के नियम इस दिशा में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं।

श्री आंबेकर के अनुसार हिन्दुत्व के नियमों के अनुसार एक दूसरे की चिंता करना जरूरी है। हमारे बीच प्रतिस्पर्धा हो, लेकिन एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिस्पर्धा हो। उन्होंने कहा कि देश के सामान्यजनों तक हिन्दुत्व की समझ को पहुंचाना राष्ट्रीय कार्य है और हम सभी को मिलकर यह कार्य करना होगा।

भारतबोध का पर्याय है 'हिन्दुत्व: एक विमर्श' : प्रो. द्विवेदी

कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि डॉ. इन्दु‍शेखर तत्पुरुष की पुस्तक 'हिन्दुत्व: एक विमर्श' भारतबोध का पर्याय है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से हिन्दुत्व को उजाला मिलेगा। डॉ. तत्पुरुष पुस्तक के माध्यम से एक सार्थक विमर्श हमारे सामने लेकर आए हैं, जिस पर चर्चा करना बेहद जरूरी है।

हिन्दुत्व के बिना दार्शनिक व्याख्या संभव नहीं : हितेश शंकर

पांचजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर ने कहा कि संसार की दार्शनिक व्याख्या हिन्दुत्व के बिना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में पहले हिन्दुत्व, फिर भारत, भारतबोध और अंत में संस्कृति और स्वाधीनता की बात की गई है, जो आजादी के अमृतकाल में हम सभी के लिए मार्गदर्शक होगी। श्री शंकर ने पुस्तक को साहित्य से अकादमिक जगत की तरफ ले जाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। 

एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में  डॉ. इन्दु‍शेखर तत्पुरुष को पुस्तक के प्रकाशन के लिए बधाई दी। 

पुस्तक के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. तत्पुरुष ने कहा कि पराधीन मानसिकता के कारण लोगों द्वारा हिन्दु‍त्व की मनमानी व्याख्या कर जो भ्रामक निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं, इस पुस्तक के माध्यम से उस भ्रम को दूर करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर दो मत हो सकते हैं कि हिन्दुत्व भारतीयता का पर्याय है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिन्दुत्व इसी देश और इसी मिट्टी की उपज है।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पत्रकारों, लेखकों एवं साहित्यकारों ने हिस्सा लिया।




विचारों की घर वापसी है भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति : प्रो. संजय द्विवेदी

 

'राष्ट्र का एकत्व है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का लक्ष्य'

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, ब्रज प्रांत के 63वें प्रांत अधिवेशन का आयोजन


कासगंज, 28 दिसंबर। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, ब्रज प्रांत के 63वें प्रांत अधिवेशन को संबोधित करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति विचारों की घर वापसी है। बीते 24 महीनों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिसाब से कई परिवर्तनों की आधारशिला रखी गई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में शिक्षा नीति सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इस अवसर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. भूपेंद्र सिंह, प्रांत अध्यक्ष डॉ. अमित अग्रवाल, प्रांत मंत्री सुश्री गौरी दुबे, क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री मनोज नीखरा एवं प्रांत संगठन मंत्री श्री मनीष राय सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।

अधिवेशन के मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि शिक्षा परिसर से लेकर देश की सीमाओं तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कार्य कर रहा है। एबीवीपी अकेला ऐसा संगठन है, जो समाज के संकटों और राष्ट्र की चुनौतियों को अपना मानता है और उसका डटकर मुकाबला करता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र का एकत्व ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का लक्ष्य है। विद्यार्थियों को शिक्षा, संस्कार और स्वावलंबन प्रदान करने में एबीवीपी की महत्वपूर्ण भूमिका है।

आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार आजादी के अमृतकाल में हमें अगले 25 वर्षों को स्वर्णिम काल में बदलना है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है, जो अपनी जड़ों पर खड़ा हो और जिसकी सोच और अप्रोच नई हो। इस कार्य में विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि ये सपने देखने का नहीं, बल्कि संकल्प पूरे करने का अमृतकाल है। इस महत्वपूर्ण समय में हमें भारत का भारत से परिचय कराने की जरुरत है।

प्रो. द्विवेदी के अनुसार आज ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ देश का मूल मंत्र बन रहा है। आज हम एक ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं, जिसमें भेदभाव की कोई जगह न हो, एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जो समानता और सामाजिक न्याय की बुनियाद पर मजबूती से खड़ा हो और हम एक ऐसे भारत को उभरते देख रहे हैं, जिसके निर्णय प्रगतिशील हैं। उन्होंने कहा कि 26 हजार नए स्टार्टअप का खुलना दुनिया के किसी भी देश का सपना हो सकता है। ये सपना आज भारत में सच हुआ है, जिसके पीछे भारत के नौजवानों की शक्ति और उनके सपने हैं।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. भूपेंद्र सिंह ने कहा आजादी के 75 वर्षों के साथ विद्यार्थी परिषद के भी 75 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पास भारत माता की सेवा करने का सबसे पुराना अनुभव है। विश्व में कोई ऐसा संगठन नहीं है, जिसके पास युवाओं की इतनी बड़ी टीम हो। हमें अपनी इस शक्ति को नए भारत के निर्माण में लगाना है।   

प्रांत अध्यक्ष डॉ. अमित अग्रवाल ने कहा भारतीय संस्कृति, सभ्यता और मर्यादा की रक्षा करने की जिम्मेदारी युवाओं पर है। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद टुकड़े-टुकड़े गैंग को भारतवर्ष से बाहर करके रहेगा। इसके लिए संगठन को मजबूत करना और सदस्यता को बढ़ाना होगा, तभी ये कार्य संभव हो सकता है।

कार्यक्रम में स्वागत भाषण डॉ. सुरेंद्र गुप्ता ने एवं धन्यवाद ज्ञापन श्री सुनील वार्ष्णेय ने दिया।



शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

भारतीय संस्कृति, धर्म और नीति की शिक्षा के पक्षधर थे मालवीय : मुरली मनोहर जोशी


राष्ट्र निर्माण था अटल बिहारी वाजपेयी की पत्रकारिता का लक्ष्य : अशोक टंडन

भारतीय जन संचार संस्थान में 'शुक्रवार संवादकार्यक्रम का आयोजन



नई दिल्ली23 दिसंबर। भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के उपलक्ष्य में भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित 'शुक्रवार संवाद' को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय भारतीय संस्कृतिधर्म और नीति की शिक्षा के पक्षधर थे। महामना के शिक्षा दर्शन के मूल में विद्यार्थियों के शारीरिकमानसिकबौद्धिक और आध्यात्मिक विकास की अवधारणा थी। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के तत्कालीन मीडिया सलाहाकार श्री अशोक टंडनआईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदीअपर महानिदेशक श्री आशीष गोयलडीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह एवं डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार सहित आईआईएमसी के सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

'मदन मोहन मालवीय की शिक्षा दृष्टि' विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि मालवीय जी स्वतंत्रता सेनानीराजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् ही नहींबल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे। देश से जातिगत बेड़ियों को तोड़ने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। उनका कहना था कि जो शिक्षा लोगों में भेदभाव करेगीवो हमें स्वीकार नहीं है।

डॉ. जोशी ने कहा कि मालवीय जी की दूरदृष्टि कहां तक जाती थीइस पर समग्र रूप से विचार करने के लिए उनके जीवन के विविध पहलुओं का अध्ययन आवश्यक है। मालवीय जी भारतीय समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिए ऐसे लोगों का सृजन करना चाहते थेजो समग्र रूप से विकसित होंआधुनिक ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में दक्ष हों और भारतीय संस्कृति में निहित मूल्यों पर चलने वाले हों।

इस अवसर पर 'अटल बिहारी वाजपेयी और पत्रकारिता के मूल्य' विषय पर विचार व्यक्त करते हुए श्री अशोक टंडन ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते थे और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते थे। श्री टंडन ने कहा कि अटल जी ने कठिन परिस्थितियों में पत्रकारिता की शुरुआत की और वह अखबार में खबर लिखनेसंपादन करने और प्रिंटिंग के साथ साथ समाचार पत्र वितरण का कार्य भी स्वयं करते थे।

श्री टंडन के अनुसार अटल जी ने मूल्यों की पत्रकारिता की और इसी वजह से आज भी पत्रकार अटल जी को अपना रोल मॉडल मानते हैं। उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता बनने से पहले एक पत्रकार थे। वह देश और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा से पत्रकारिता में आए थे। उनके जीवन का लक्ष्य पत्रकारिता के माध्यम से पैसे कमाना नहींबल्कि राष्ट्र निर्माण था। उनकी कविताएं नौजवानों में उत्साह जगाने वाली थीं। अटल जी का मानना था कि समाचार पत्रों के ऊपर एक बड़ा राष्ट्रीय दायित्व है। भले ही हम समाचार पत्रों की गणना उद्योग में करेंलेकिन समाचार पत्र केवल उद्योग नहीं हैंउससे भी कुछ अधिक हैं।

कार्यक्रम का संचालन डिजिटल मीडिया विभाग की प्रमुख डॉ. रचना शर्मा ने किया।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

स्किल डेवलपमेंट से होगा आत्मनिर्भर भारत का निर्माण : प्रो. संजय द्विवेदी

आईआईएमसी के महानिदेशक ने दिया समाधानमूलक पत्रकारिता पर जोर

जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में व्याख्यानमाला का आयोजन



जोधपुर, 13 दिसंबर। "स्किल डेवलपमेंट से समाज आत्मनिर्भर बनता है। भारत की कौशल के क्षेत्र में गौरवमयी परंपरा रही है। यहां के लोगों ने अपनी संस्कृति एवं हुनर से विश्व को चमत्कृत किया है।" यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित  करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के. एल. श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार श्री पदम मेहता एवं पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. एस. के. मीना सहित समस्त संकाय सदस्य, शोधार्थी और विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।

    'मीडिया के सामाजिक और राजनीतिक सरोकार' विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि किसी भी सभ्य समाज के निर्माण के लिए अच्छे सामाजिक मूल्यों की स्थापना जरूरी है। एक अच्छा मनुष्य ही अच्छा पत्रकार बन सकता है। उन्होंने कहा कि मीडिया के माध्यम से अधिकार बोध के साथ कर्तव्य बोध को भी जागृत करने की आवश्यकता है। वर्तमान युग में समस्या के बजाय समाधानमूलक पत्रकारिता की आवश्यकता है। मीडिया का सामाजिक सरोकार इसी प्रकार के संवाद को बल देने का है।

   आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार आधुनिक शिक्षा में नैतिक शिक्षा, पर्यावरण जागरूकता एवं कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले मनुष्य ने प्रकृति के साथ समझौता किया। उसका वहां के जंगल, नदियों, पर्वतों से रिश्ता था। आज उसी पर्यावरण प्रेम की आवश्यकता है।

मीडिया साक्षरता की आवश्यकता : प्रो. द्विवेदी

 अपने जोधपुर प्रवास के दौरान प्रो. संजय द्विवेदी ने समाचार पत्र 'दैनिक जलते दीप' के संस्थापक संपादक स्व. माणक मेहता की 48वीं पुण्यतिथि पर आयोजित संगोष्ठी को भी संबोधित किया। 'डिजिटल समय में प्रिंट मीडिया' विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इसे रोका नहीं जा सकता, ऐसे में परिवर्तन के साथ ही चलना होगा। उन्होंने कहा कि आज विश्व की 51 प्रतिशत से अधिक की आबादी सोशल मीडिया पर है, ऐसे में आमजन तक मीडिया की आसान पहुंच हो गई है। मीडिया को एक छत के नीचे लाने का कार्य डिजिटल मीडिया ने किया है, जहां खबरे पढ़ने के अलावा देखी और सुनी जा सकती हैं। 

 भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक ने कहा कि मीडिया खत्म नहीं हो रहा है, बल्कि उसका स्वरूप बदल रहा है। उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया के उपयोग से अलग तरह के सामाजिक संकट भी पैदा हो रहे हैं। ऐसे में मीडिया साक्षरता की आवश्यकता है। गांधीजी के 'बुरा ना देखें, बुरा ना सुने और बुरा ना बोलें' की तर्ज पर उन्होंने कहा कि अब 'बुरा ना शेयर करें, बुरा ना टाइप करें और बुरा ना लाइक करें'। 

  संगोष्ठी की अध्यक्षता राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जस्टिस एनएन माथुर ने की। इस अवसर पर जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के कुलपति प्रो. के. एल. श्रीवास्तव, सूरसागर विधायक श्रीमती सूर्यकांता व्यास, वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. कल्याण सिंह शेखावत, वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र बोडा एवं 'दैनिक जलते दीप' के समाचार संपादक गुरूदत्त अवस्थी भी मौजूद रहे।

बुधवार, 30 नवंबर 2022

जिंदगी के रंगों को दिखाती हैं राजीव मिश्रा की पेंटिंग्स : प्रो. द्विवेदी

 जिंदगी के रंगों को दिखाती हैं राजीव मिश्रा की पेंटिंग्स : प्रो. द्विवेदी

'पावर ऑफ सेल्फ रिफ्लेक्शन' पेंटिंग प्रदर्शनी का शुभारंभ करते हुए बोले आईआईएमसी के महानिदेशक


दिल्ली के रवींद्र भवन में 30 नवंबर से 6 दिसंबर तक होगा प्रदर्शनी का आयोजन

नई दिल्ली, 30 नवंबर। प्रख्यात चित्रकार राजीव मिश्रा की समकालीन कलाकृतियों पर आधारित पेंटिंग प्रदर्शनी 'पावर ऑफ सेल्फ रिफ्लेक्शन' का शुभारंभ करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि कलाकार की खासियत होती है कि उसे दर्शकों को पेंटिंग के बारे में कुछ भी बताने की जरुरत नहीं पड़ती। बिना बोले ही दर्शक पेंटिंग को समझ जाते हैं। कलाकार की कल्पना शक्ति समाज की हर बारीकियों को समझती है और उसी कल्पना शक्ति को वह कैनवास पर उतारता है। कलाकार की तारीफ तभी हो जाती है, जब दर्शक बोलें कि हर पेटिंग कुछ कहती है। राजीव मिश्रा की कलाकृतियों की यही खासियत है। अपनी कलाकृतियों के माध्यम से राजीव मिश्रा दर्शकों को जीवन की अनूठी यात्रा पर ले जाते हैं। प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली के रवींद्र भवन में 30 नवंबर से 6 दिसंबर, 2022 को किया जा रहा है।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि पेंटिंग से कलाकार के व्यक्तित्व का पता चलता है। उसकी सोच, कल्पना शक्ति कैसी है, इस बात की जानकारी होती है। राजीव मिश्रा की पेंटिंग्स में रंगों के साथ संस्कार भी समाहित हैं। उन्होंने कहा कि राजीव मिश्रा की कलाकृतियों को देखने के बाद यह तय करना मुश्किल लगता है कि किसे सर्वश्रेष्ठ कहा जाए, क्योंकि सभी कलाकृतियां असाधारण हैं।

आईआईएमसी के महानिदेशक ने राजीव मिश्रा की 'गौशाला' परिकल्पना को असाधारण बताते हुए कहा कि कोई भी घर पेंटिंग के बिना पूरा नहीं हो सकता। जिस घर में पेंटिंग है, वही घर पूर्ण है। खुद का खुद से परिचय कराती ये कलाकृतियां आपको पूर्णता का अनुभव कराती हैं।

'पावर ऑफ सेल्फ रिफ्लेक्शन' एक अनोखी प्रदर्शनी है, जिसमें राजीव मिश्रा की 75 कलाकृतियों को प्रस्तुत किया गया है। इस प्रदर्शनी के माध्यम से आत्म प्रतिबिंब की शक्ति को राजीव मिश्रा ने अपने कैनवास पर उकेरा है। इस अवसर पर राजीव मिश्रा ने कहा कि वैसे तो सभी पेंटिंग्स उनके दिल के बेहद करीब हैं, लेकिन 'गौशाला' पर बनी पेंटिंग्स कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि लोग इन पेटिंग्स को देखने का नहीं, बल्कि समझने का प्रयास करें।  

प्रदर्शनी का आयोजन सोमवार से शनिवार प्रात: 11 बजे से सायं 7 बजे तक ललित कला अकादमी, रवींद्र भवन, नई दिल्ली में किया जा रहा है। प्रदर्शनी के संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए मोबाइल नंबर 8009448870 एवं 9935873681 पर संपर्क किया जा सकता है।




सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

प्रेम से ही देश है और साहित्य प्रेम का पर्याय हैः प्रो. द्विवेदी

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा आयोजित संगोष्ठी में बोले आईआईएमसी के महानिदेशक



नई दिल्ली, 10 अक्टूबर। "प्रेम हमारी आवश्यकता है। हम सब उसे पाना चाहते हैं, लेकिन उससे पहले हमें प्रेम देना सीखना होगा, क्योंकि प्रकृति का नियम है जो देता है उसे ही मिलता है। हिंदुस्तान में जो देता है, उसे देवता कहते हैं। इसलिए जो हम देंगे, वही लौटकर आएगा। यदि हम साहित्य में प्रेम और सद्भावना देंगे, तो पाठकों के मन में भी वैसी ही भावना विकसित होगी।" यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा गाजियाबाद में 'भारतीय भाषा साहित्य में प्रेम और सद्भावना के प्रसंग' विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

   संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि साहित्य शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है। 'सः' और 'हितः', यानी एक ऐसा तरीका, जिसमें किसी एक वर्ग, जाति या धर्म की जगह, समस्त विश्व और समाज के कल्याण की भावना निहित हो। उन्होंने कहा कि साहित्य ही एक रास्ता है, जहां हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए और बचाए रख सकते हैं।

  इस अवसर पर चंडीगढ़ से आए डॉ. अमरसिंह वधान ने कहा कि यदि वैश्विक परिदृश्य पर ध्यान दिया जाए, तो सृष्टि का हर आदमी प्रेम और सद्भावना का भूखा है। प्रेम मनुष्य के लिए ऑक्सीजन है, तो सद्भावना मानव सांसों की बहती नदी है। उन्होंने कहा कि हमारे दो ध्रुव हैं- हृदय और मस्तिष्क, लेकिन हृदय मस्तिष्क से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हमें हृदय से काम लेना चाहिए, क्योंकि भाषा साहित्य की रचना भी हृदय से ही होती है, जिसके माध्यम से समाज के लोग अपना मार्ग तय करते हैं। 

   गिरिडीह से आईं हिंदी और बांग्ला की विदुषी डॉ. ममता बनर्जी ने कहा कि भारत की साहित्यिक पहचान में बांग्ला साहित्य का विशेष योगदान है। उन्होंने चैतन्य  महाप्रभु की रचनाओं में प्रेम प्रसंग से लेकर बंगाली साहित्य के दिग्गजों की रचनाओं में भी प्रेम व सद्भावना के प्रसंगों के उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य-सृजन में प्रकृति प्रेम, नारी प्रेम, देश प्रेम के महत्व पर प्रकाश डाला। 

  संगोष्ठी के दौरान पूर्वोत्तर हिंदी परिषद  के प्रमुख डॉ. अकेला भाई ने हिंदी और उर्दू भाषा की रचनाओं में प्रेम और सद्भावना के प्रसंगों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और बिना प्रेम और सद्भावना के हम सामाजिक नहीं बन सकते। प्रेम और सद्भावना को घर-घर तक पहुंचाने का कर्तव्य हर रचनाकार निभाता है। 

  इस अवसर पर एचएसएससी इंडिया के राजभाषा अधिकारी प्रमोद कुमार ने हिंदी को सरकारी कामकाज में ज्यादा से ज्यादा उपयोग में लाने पर जोर दिया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने किया। संगोष्ठी में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग के पूर्व निदेशक एवं पद्मश्री से अलंकृत डाॅ. श्याम सिंह शशि, गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग में कार्यरत रघुवीर शर्मा एवं यू.एस.एम. पत्रिका के संपादक उमाशंकर मिश्र ने भी हिस्सा लिया।

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

पत्रकार और प‍त्रकारिता से जुड़े सवालों के उत्तरों की तलाश

 पुस्तक समीक्षा- अजय बोकील

 पुस्तक : जो कहूंगा सच कहूंगा - प्रो. संजय द्विवेदी से संवाद

 संपादक : डॉ. सौरभ मालवीय, लोकेंद्र सिंह

  मूल्य : 500 रुपये

  प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस, 4754/23, अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली-110002



   पुस्तक ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली (आईआईएमसी) के महानिदेशक, पत्रकार, शिक्षाविद प्रो. (डाॅ.) संजय द्विवेदी के साक्षात्कारों का ऐसा संकलन है, जो उनकी ‘मन की बात’ का परत दर परत खुलासा करता है। यह मीडिया का एक मीडिया विशेषज्ञ के साथ सार्थक संवाद है। पुस्तक में शामिल ज्यादातर इंटरव्यू उनके आईआईएमसी महानिदेशक बनने पर लिए गए हैं। लेकिन प्रकारांतर से यह द्विवेदीजी की प्रोफेशनल यात्रा का दस्तावेज है। 

   संजयजी ने शिक्षा क्षेत्र में आने से पहले बाकायदा प्रोफेशनल पत्रकार के रूप में कई दैनिक अखबारों और कुछ टीवी चैनलों में काम किया। इस मायने में उनकी यह यात्रा व्यावहारिक पत्रकारिता से सैद्धांतिक पत्रकारिता की ओर है तथा यही इस यात्रा की प्रामाणिकता को सिद्ध करती है, क्योंकि अक्सर प‍त्रकारिता का अध्यापन करने वाले पर यह आरोप लगता है कि उन्हें व्यावहारिक पत्रकारिता का ज्यादा ज्ञान नहीं होता। जबकि पत्रकारिता एक व्यावहारिक अनुशासन ही है। 

   एक साक्षात्कार में स्वयं संजय जी इसका खुलासा करते हैं- 'मेरे पास यात्राएं हैं, कर्म हैं और उससे उपजी सफलताएं हैं। मैं खुद को आज भी मीडिया का विद्यार्थी ही मानता हूं। 'दैनिक भास्कर', 'स्वदेश', 'नवभारत', 'हरिभूमि' जैसे अखबारों से शुरू कर के 'जी 24 छत्तीसगढ़' चैनल, फिर कुशाभाऊ ठाकरे प‍त्रकारिता विवि, रायपुर में प‍त्रकारिता विभाग का संस्थापक अध्यक्ष, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि में दस साल प्रोफेसर, कुलपति व कुलसचिव जैसे दायित्वों का निर्वहन। बचपन में ‘बाल सुमन’ पत्रिका निकाली।'

      खास बात यह है कि संजय द्विवेदी का यह यात्रा अनुभव सिद्ध होने के साथ निरंतर सक्रियता का संदेश भी देता है। इस पुस्तक में डाॅ. संजय द्विवेदी द्वारा विभिन्न माध्यमों को दिए गए 25 साक्षात्कार संकलित हैं और इनके‍ ‍शीर्षक अपने भीतर के कंटेट और उद्देश्य को स्वत: बयान करते हैं। मसलन 'हर पत्रकार हरिश्चंद्र नहीं होता', 'सोशल मीडिया हैंडलिंग सीखने की जरूरत', 'मीडिया को मूल्यों की और लौटना होगा', 'जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट का अंतर समझिए'। इसी प्रकार ‘आईआईएमसी से निकलेंगे कम्युनिकेशन की दुनिया के ग्लोबल लीडर', 'एकता के सूत्रों को तलाश करने की जरूरत’ या फिर 'सरस्वती के मंदिर में राजनीति के जूते उतार कर आइए' तथा 'बहती हुई नदी है हिंदी' आदि। इस पुस्तक का संपादन पं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय संचार विवि के प्राध्यापकों डाॅ. सौरभ मालवीय और लोकेन्द्र सिंह ने किया है। 

    बात जब साक्षात्कार की होती है, तो उसकी कसौटी होती है साक्षात्कार देने वाले की मुक्त मन से और खरी-खरी बात। एक सार्थक इंटरव्यू संबंधित व्यक्ति के समूचे व्यक्तित्व और उसकी सोच को खोल कर रख देता है। इस अर्थ में पुस्तक में शामिल सभी इंटरव्यू समकालीन पत्रकारिता से जुड़े तमाम सवालों और चुनौतियों का उत्तर तलाशने में मददगार लगते हैं। साथ ही संजय द्विवेदी की सोच, समझ, संकल्प और प्रतिबद्धता को भी प्रकट करते हैं। बकौल उनके-आज की पत्रकारिता दो आधारों पर खड़ी है, एक भाषा, दूसरा तकनीकी ज्ञान। तकनीक माध्यमों के अनुसार लगातार बदलती रहती है। लेकिन एक अच्छी भाषा में सही तरीके से कही गई बात का कोई विकल्प नहीं है।

     भारतीय जन संचार संस्थान के स्थापना दिवस के उपलक्ष में दिए एक इंटरव्यू में समकालीन पत्रकारिता के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में द्विवेदी कहते हैं- ‘हमे सवाल खड़े करने वाला ही नहीं बनना है, इस देश के संकटों को हल करने वाला पत्रकार भी बनना है। मीडिया का उद्देश्य अंतत: लोकमंगल की है। यही साहित्य व अन्य प्रदर्शनकारी कलाओं का उद्देश्य भी है। इसके साथ देश की समझ आवश्यक तत्व है। देश के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, परंपरा, आर्थिक सामाजिक चिंताओं, संविधान की मूलभूत चिंताओं की गहरी समझ हमारी प‍त्रकारिता को प्रामाणिक बनाती है। समाजार्थिक न्याय  से युक्त, न्यायपूर्ण समरस समाज हम सबका साझा स्वप्न है। पत्रकारिता अपने इस कठिन दायित्वबोध से अलग नहीं हो सकती। इसमें शक नहीं कि आज मीडिया एजेंडा केन्द्रित पत्रकारिता और वस्तुनिष्ठ और निरपेक्ष पत्रकारिता के बीच बंट गया है। यह स्थिति स्वयं मीडिया की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाती है।' 

       वैचारिक आग्रह कुछ भी हों, लेकिन एक प्रोफेशनल और प्रामाणिक पत्रकार की बुनियादी प्रतिबद्धता तथ्य और सत्य के पक्ष में होती है तथा होनी भी चाहिए। संजय द्विवेदी एक इंटरव्यू में  इसी बात को बहुत साफगोई के साथ कहते हैं- ‘पत्रकार का तथ्यपरक होना जरूरी है। सत्य का साथ पत्रकार नहीं देगा तो कौन देगा। समस्या यह है कि आज जर्नलिस्ट के साथ तमाम एक्टिविस्ट भी पत्रकारिता में चले आए हैं। जर्नलिज्म और एक्टिविज्म दो अलग अलग चीजे हैं। जर्नलिज्म का रिश्ता फैक्ट फाइंडिंग से हैं। एक्टिविस्ट का काम किसी विचार या विचारधारा के लिए लोगों को मोबिलाइज करना और सरकार पर दबाव बनाना है। जर्नलिस्ट का यह काम नहीं है। उसका काम है तथ्य और सत्य के आधार पर चीजों  का विश्लेषण करान।सोशल मीडिया के आने से अराजकता पैदा हो रही है और तथ्‍यों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। पत्रकारिता को ऑब्जेक्टिव होने की जरूरत है।' 

   आज पत्रकारिता की साख पहले जैसी नहीं रह गई है, उसका मुख्य कारण है खबरों में ‍मिलावट। संजय द्विवेदी इसके खिलाफ बहुत साफ तौर पर बात करते हैं। वो कहते हैं- ‘आज सबसे बड़ी चुनौती खबरों में मिलावट की है। खबरे परिशुद्धता के साथ कैसे प्रस्तुत हों, कैसे लिखी जाएं, बिना झुकाव, बिना आग्रह कैसे वो सत्य को अपने पाठकों तक सम्प्रेषित करें। प्रभाष जोशी कहते थे कि ‍पत्रकार की पाॅलिटिकल लाइन तो हो, लेकिन पार्टी लाइन न हो।'

    एक शिक्षाविद होने के नाते डाॅ. संजय द्विवेदी नई शिक्षा नीति की खूबियों और चुनौतियों को व्याख्यायित करते हैं। कुछ लोगों के मन में नई शिक्षा नीति को लेकर सवाल भी हैं, लेकिन संजय द्विवेदी एक साक्षात्कार में कहते हैं- ‘नई शिक्षा नीति बहुत सुविचारित और सुचिंतित तरीके से प्रकाश में आई है। इसे जमीन पर उतारना कठिन काम है, इसलिए शि‍क्षाविदों, शिक्षा से जुड़े अधिकारियो और संचारकों की भूमिका बहुत बढ़ गई है। लेकिन इस कठिन दायित्व बोध ने हम सबमें ऊर्जा का संचार भी किया है।' 

    पत्रकारिता के बदले परिदृश्य और भावी चुनौतियों को लेकर डाॅ. संजय द्विवेदी का नजरिया बहुत साफ है। आज मल्टीमीडिया का जमाना है। इसलिए पत्रकार को अपनी बात भी कई माध्यमों से कहना जरूरी हो गया है, क्योंकि पाठक या श्रोता के भी अब कई स्तर और प्रकार हो गए हैं। संजयजी इसे कन्वर्जेंस का समय मानते हैं। अपने एक साक्षात्कार में वो कहते हैं- ‘अब जो समय है कन्वर्जेंस का है। एक माध्यम पर रहने से काम नहीं चलेगा। अलग अलग माध्यमों को एक साथ साधने का समय आ गया है। जो व्यक्ति प्रिंट पर है, उसे वेब पर भी होना है। मोबाइल एप पर भी होना है। टेलीविजन पर भी होना है। आज वही मीडिया संस्थान ठीक से काम कर रहे हैं, जो एक साथ अनेक माध्यमों पर काम कर रहे है।'

   अध्यापन के साथ साथ संजयजी विभिन्न और सोद्देश्य पत्रिकाओं का नियमित संपादन भी करते हैं। यह उनकी अखूट ऊर्जा और सक्रियता का परिचायक है। ऐसा ही एक प्रकाशन है ‘मीडिया विमर्श।' यह त्रैमासिक प‍त्रिका अपने आप में अनूठी है। संजय द्विवेदी कहते हैं- जहां तक ‘मीडिया‍ विमर्श’ की बात है, मेरे मन में यह था कि मीडिया पर हम लोग बहुत बातचीत करते हैं, पर कोई ऐसी पत्रिका नहीं है, जो मीडिया और उसके सवालों के बारे में बातचीत करे, तो मीडिया विमर्श नाम की एक पत्रिका का प्रकाशन हमने 14 साल पहले रायपुर से शुरू किया। यह त्रैमासिक पत्रिका है और एक विषय पर पूरा संवाद रहता है। भाषाई पत्रकारिता पर हमने कई अंक निकाले। उर्दू, गुजराती, तेलुगू, मलयालम आदि।' 

    संजय द्विवेदी मूलत: उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से हैं। उनके पिता भी हिंदी के प्राध्यापक थे और घर में शुरू से ही साहित्यिक माहौल था। लिहाजा हिंदी से उनका प्रेम स्वाभाविक है। आईआईएमसी जैसे संस्थान में भी वो हिंदी का झंडा बुलंद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। एक साक्षात्कार में वो कहते हैं- ‘हिंदी का पाठ्यक्रम मूल हिंदी में ही तैयार होगा। आजकल नई हिंदी आई है। बोलचाल की हिंदी। भाषा को जीवन के साथ रहने दीजिए, उसे पुस्तकालयों में मत ले जाइये। हिंदी जैसी उदार भाषा कोई नहीं है। हिंदी को शास्त्रीय बनाने के प्रयासों से हमे बचना चाहिए। हिंदी एक बहती हुई नदी है। इसका जितना प्रवाह होगा, वह उतनी ही बहती जाएगी।'                                                                                                                                                                                     

  संजय द्विवेदी अब तक दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं या उन्हें संपादित कर चुके हैं। इनमें राजनीतिक विश्लेषण भी हैं। आपने अपराध पत्रकारिता पर भी डाॅ. वर्तिका नंदा के साथ मिलकर एक पुस्तक का संपादन किया है। पत्रकार और पत्रकारिता शिक्षक के रूप में उनकी यह यात्रा अनवरत है। दरअसल पत्रकार होना अपने समय से भिड़ना भी है। यह भिड़ंत साहित्य की तुलना में ज्यादा जोखिम भरी भी है। इसीलिए पत्रकारिता का असर बहुत व्यापक पैमाने पर देखने को मिलता है। महान लेखक ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था- ‘अमेरिका में एक राष्ट्रपति तो चार साल साल के लिए ही शासन करता है, लेकिन पत्रकारिता तो हमेशा-हमेशा के लिए शासन करती है।' प्रस्तुत ‍पुस्तक ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’ की प्रासंगिकता इसी में है कि यह पत्रकार और पत्रकारिता से जुड़ी शंकाओं और सवालों का जवाब देने की पूरी कोशिश करती है।    


(लेखक मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एवंं भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्र ‘सुबह सवेरे’ में वरिष्ठ संपादक हैं।)

वक्त के साथ बदलते मीडिया से साक्षात्कार

पुस्तक समीक्षा- डा. विनीत उत्पल

पुस्तक : जो कहूंगा सच कहूंगा - प्रो. संजय द्विवेदी से संवाद

संपादक : डॉ. सौरभ मालवीय, लोकेंद्र सिंह

मूल्य : 500 रुपये

प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस, 4754/23, अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली-110002



वक्त बदल रहा है, मीडिया बदल रहा है, मीडिया तकनीक बदल रही है, मीडिया के पाठक और दर्शक की रुचि, स्थिति और परिस्थिति भी बदल रही है। ऐसे में मीडिया अध्ययन, अध्यापन और कार्य करने वालों को खुद में बदलाव लाना आवश्यक है। इसके लिए मीडिया के मिजाज को समझना और समझाना आवश्यक है। “जो कहूंगा, सच कहूंगा” नामक पुस्तक इस दिशा में कार्य करने में सक्षम है।

   भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी की बातचीत मीडिया विद्यार्थियों को एक नव दिशा देने का कार्य करती है। मीडिया में आने वाले विद्यार्थी पत्रकार तो बन जाते हैं, लेकिन मीडिया की बारीकियों को समझने में उन्हें समय लगता है, क्योंकि मीडिया वक्त के साथ परिवर्तनकारी होता है। यही कारण है कि डॉ. ऋतेश चौधरी के साथ साक्षात्कार में संजय द्विवेदी कहते हैं, “वक्त का काम है बदलना, वह बदलेगा। समय आगे ही जायेगा, यही उसकी नैसर्गिक वृत्ति है।” लेकिन मीडिया की दशा और दिशा को देखकर वे कहते हैं, “मीडिया की मजबूरी है कि वह समाज निरपेक्ष नहीं हो सकता। उसे प्रथमतः और अंततः जनता के दुख-दर्द के साथ होना होगा।”

   संजय द्विवेदी पत्रकारों को सामान्य व्यक्ति नहीं मानते। एसडी वीरेंद्र से बातचीत में वे कहते हैं, “सामान्य व्यक्ति पत्रकारिता नहीं कर सकता। जब तक समाज के प्रति संवेदन नहीं होगी, अपने समाज के प्रति प्रेम नहीं होगा, कुछ देने की ललक नहीं होगी, तो मीडिया में आकर आप क्या करेंगे? मीडिया में आते ही ऐसे लोग हैं, जो उत्साही होते हैं, समाज के प्रति संवेदना से भरे होते हैं और बदलाव की जिसके अंदर इच्छा होती है।” समाज में पत्रकार की भूमिका को लेकर जो आमतौर पर चिंता जताई जाती है, या फिर मीडिया की परिधि में समाचार, विचार और मनोरंजन के आ जाने से आलोचना की जाती है, उसे लेकर उनका मंतव्य स्पष्ट है कि “सामाजिक सरोकार छोड़कर कोई पत्रकारिता नहीं हो सकती। न्यूज़ मीडिया अलग है और मनोरंजन का मीडिया अलग है। दोनों को मिलाइये मत। दोनों चलेंगे। एक आपको आनंद देता है, दूसरा खबरें और विचार देता है। दोनों अपना-अपना काम कर रहे हैं।”

   संजय द्विवेदी मानते हैं कि मीडिया का काम जिमेदारी भरा है। लोगों की आकांक्षा मीडिया से जुड़ी होती है। यही कारण है कि वे कहते हैं, “मीडिया को अपनी जिम्मेदारी स्वीकारनी होगी, अन्यथा लोग आपको नकार देंगे। अगर आप अपेक्षित तटस्थता के साथ, सत्य के साथ खड़े नहीं हुए, तो मीडिया की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े हो जायेंगे। इसलिए मीडिया को अपनी विश्वसनीयता को बचाये रखने की जरुरत है। यह तभी होगा, अगर हम तथ्यों के साथ खिलवाड़ न करें और एजेंडा पत्रकारिता से दूर रहें।” कुमार श्रीकांत से बातचीत में वे कहते भी हैं, “पत्रकारिता से सब मूल्यों का ह्रास हो गया है, यह कहना ठीक नहीं है। 90 प्रतिशत से अधिक पत्रकार ईमानदारी के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं। यह कह देना कि सभी पत्रकार इस तरीके के हो गए हैं, यह ठीक नहीं है।”

    संजय द्विवेदी मीडिया को सिर्फ और सिर्फ सवाल खड़ा करने वाला नहीं मानते। वे मानते हैं कि सवाल के जवाब को ढूंढने का काम भी मीडिया का है। मीडिया यदि इस काम में आगे आए, तो समाज की कई समस्याओं को समाधान स्वतः हो जाएगा। वे कहते हैं, “सवाल उठाना मीडिया का काम है ही, लेकिन सवालों के जवाब खोजना भी मीडिया का ही काम है। यह उत्तर खोजने का काम आप सरकार के आगे नहीं छोड़ सकते।”

    अजीत द्विवेदी से बातचीत में वे गहरे तौर पर कहते हैं, “पत्रकार का तथ्यपरक होना बेहद जरूरी है। सत्य का साथ पत्रकार नहीं देगा, तो और कौन देगा?” वे किसी साक्षात्कार में आने वाले मीडिया विद्यार्थियों को सलाह भी देते हैं कि “परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। अगर आपके अंदर क्रिएटिविटी नहीं है, आइडियाज नहीं है, भाषा की समझ नहीं है, समाज की समझ नहीं है और सबसे महत्वपूर्ण समाज की समस्याओं की समझ नहीं है, तो आपको पत्रकारिता के क्षेत्र में नहीं आना चाहिए।”

     मीडिया में हो रहे बदलाव को लेकर संजय द्विवेदी सोचते हैं कि “न्यूज सलेक्शन का अधिकार अब रीडर को दिया जा रहा है। पहले एडिटर तय कर देता था कि आपको क्या पढ़ना है। आज वह समय धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। आज आप तय करते हैं कि आपको कौन-सी न्यूज चाहिए। धीरे-धीरे यह समय ऐसा आएगा, जिसमें पाठक तय करेगा कि किस मीडिया में जाना है।” आरजे ज्योति से कहते हैं, “मीडिया बहुत विकसित हो गया है। आज उसके दो हथियार हैं। पहला है भाषा, जिससे आप कम्युनिकेट करते हैं। जिस भाषा में आपको काम करना है, उस भाषा पर आपकी बहुत अच्छी कमांड होनी चाहिए। दूसरी चीज है टेक्नोलॉजी। जिस व्यवस्था में आपको बढ़ना है, उसमे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है। एक अच्छे जर्नलिस्ट के दो ही आधार होते हैं कि वह अच्छी भाषा सीख जाए और उससे तकनीक का इस्तेमाल करना आ जाए।”

   संजय द्विवेदी सकारात्मक सोच के व्यक्ति हैं और वे टीवी मीडिया को लेकर अलग नजरिया रखते हैं। वे कहते हैं कि “टीवी से आप बहुत ज्यादा उम्मीद रख रहे हैं। टीवी ड्रामे का माध्यम है, वहां दृश्य रचने होते हैं।” “दर्शकों और पाठकों को भी मीडिया साक्षर बनाने का सोचिये। सारा ठीकरा मीडिया पर मत फोड़िये। हमें पाठक और दर्शक की सुरुचि का विकास भी करना होगा।” हालांकि एक बातचीत में वे कहते नजर आते हैं, “1991 के बाद मीडिया का ध्यान धीरे-धीरे डिजिटल की तरफ बढ़ने लगा। मीडिया कन्वर्जेंस का टाइम हमें दिख रहा है। यानी एक साथआपको अनेक माध्यमों पर सक्रिय होना पड़ता है। अगर आप प्रिंट मीडिया के हाउस हैं, तो आपको प्रिंट के साथ-साथ टीवी, रेडियो और डिजिटल पर भी रहना पड़ेगा और इसके अलावा ऑन ग्राउंड इवेंट्स भी करने होंगे। यानी आप एक साथ पांच विधाओं को साधते हैं।”

   संजय द्विवेदी इस पुस्तक में एक जगह कहते हैं कि, “हमारी जो सोचने की क्षमता है, हमारा जो मौलिक चिंतन है, वह सोशल मीडिया से नष्ट हो रहा है। धीरे-धीरे सोशल मीडिया के बारे में जानकारी के साथ-साथ हमें उसके उपयोग की विधि सीखनी होगी। हमें उसका उपयोग सीखना होगा। हमें सोशल मीडिया हैंडलिंग सीखनी पड़ेगी, वरना हमारे सामने दूसरी तरह के संकट पैदा होंगे।”

   अनिल निगम के साथ बातचीत में कहते हैं, “सोशल मीडिया अभी मैच्योर पोजीशन में नहीं है और लोगों के हाथों में इसे दे दिया गया है। इसका इस्तेमाल करने वाले लोग प्रशिक्षित पत्रकार नहीं हैं। वे ट्रेंड नहीं हैं। उनको बहुत भाषा का ज्ञान भी नहीं है। वे कानून पढ़कर भी नहीं आये हैं।  वे लिखते हैं और इसके बाद जेल भी जाते हैं।”

    मीडिया के बदलते रुतबे और कार्यप्रणाली को लेकर द्विवेदी सजग हैं और कहते हैं, “मीडिया का आकार-प्रकार बहुत बढ़ गया है। अखबारों के पेज बढ़े हैं, संस्करण बढे हैं। जिले-जिले के पेज बनते हैं। आज अखबार लाखों में छपते और बिकते हैं। चीन, जापान और भारत आज भी प्रिंट के बड़े बाजार हैं। यहां ग्रोथ निरंतर हैं। ऐसे में अपना प्रसार बढ़ाने के लिए स्पर्धा में स्कीम आदि के कार्य होते हैं।” वहीं, कॉर्पोरट के द्वारा मीडिया इंडस्ट्री के संचालन में किसी भी तरह का नयापन या आश्चर्य उन्हें नहीं दिखता है, उलटे वे सवाल करते हैं कि “इतने भारी-भरकम और खर्चीले मीडिया को कॉर्पोरेट के अलावा कौन चला सकता है? सरकार चलाएगी तो उस पर कोई भरोसा नहीं करेगा। समाज या पाठक को मुफ्त का अखबार चाहिए। आप अगर सस्ता अखबार और पत्रिकाएं चाहते हैं, तो उसकी निर्भरता तो विज्ञापनों पर रहेगी। अगर मीडिया को आजाद होना है तो उसकी विज्ञापनों पर निर्भरता कम होनी चाहिए। ऐसे में पाठक और दर्शक उसका खर्च उठाएं। अगर आप अच्छी, सच्ची, शोधपरक खबरें पढ़ना चाहते हैं तो खर्च कीजिये।”

  नीरज कुमार दुबे से बातचीत में संजय द्विवेदी कहते हैं, “मैं सभी शिक्षकों से यही आग्रह करता हूं कि वे अपने विद्यार्थियों से वही काम कराएं, जो वे अपने बच्चों से कराना चाहेंगे। यह ठीक नहीं है कि आपका बच्चा तो अमेरिका के सपने देखे और आप अपने विद्यार्थी को ‘पार्टी का कॉडर’ बनायें। यह धोखा है।” उनका कहना है कि हमारे पास “दो शब्द हैं, ‘एक्टिविज्म’ और दूसरा है ‘जर्नलिज्म’। वे कहते हैं कि कहीं-न-कहीं पत्रकारों को एक्टिविज्म छोड़ना होगा और जर्नलिज्म की तरफ आना होगा। जर्नलिज्म के मूल्य हैं खबर देना। हमें अपने मूल्यों की ओर लौटना होगा, अगर हम एजेंडा पत्रकारिता करेंगे, एक्टिविज्म का जर्नलिज्म करेंगे या पत्रकारिता की आड़ में कुछ एजेंडा चलने की कोशिश करेंगे, तो हम अपनी विश्वसनीयता खो बैठेंगे और हमें इससे बचना चाहिए।”

   एक साक्षात्कार में संजय द्विवेदी कहते हैं, “हमें यह देखना होगा कि दुनिया के अंदर मीडिया शिक्षा में किस तरह के प्रयोग हुए हैं। उन प्रयोगों को भारत की भूमि में यहां की जड़ों से जोड़कर कैसे दोहराया जा सकता है। पत्रकारिता एक प्रोफेशनल कोर्स है। यह एक सैद्धांतिक दुनिया भर नहीं है…हमें मीडिया में नेतृत्व करने वाले लोग खड़े करने पड़ेंगे और यह जिम्मेदारी मीडिया में जाने के बाद नहीं शुरू होती। हमें मीडिया शिक्षण संस्थाओं से ही लीडर खड़े करने पड़ेंगे। जब लीडर खड़े होंगे, तभी मीडिया का भविष्य ज्यादा बेहतर होगा। मीडिया एजुकेशन देने वाले संस्थानों की यह जिम्मेदारी है कि इन संस्थानों से लीडर खड़े किए जाएं और वे प्रबंधन की भूमिका में भी जाएं।”

    संजय द्विवेदी का मानना है कि  “जैसा हमारा समाज होता है, वैसे ही हमारे समाज के सभी वर्गों के लोग होते हैं। उसी तरह का मीडिया भी है। तो हमें समाज के शुद्धिकरण का प्रयास करना चाहिए। मीडिया बहुत छोटी चीज है और समाज बहुत बड़ी चीज है। मीडिया समाज का एक छोटा-सा हिस्सा है। मीडिया ताकतवर हो सकता है, लेकिन समाज से ताकतवर नहीं हो सकता…याद रखिये कि मीडिया अच्छा हो जाएगा और समाज बुरा रहेगा, ऐसा नहीं हो सकता। समाज अच्छा होगा, तो समाज जीवन के सभी क्षेत्र अच्छे होंगे।”

    पुस्तक ‘जो कहूंगा, सच कहूंगा’ के संपादकीय में सम्पादक द्वय डॉ. सौरभ मालवीय और लोकेंद्र सिंह लिखते हैं, “संजय द्विवेदी अपने समय के साथ संवाद करते हैं। अपने समय से साथ संवाद करना उनकी प्रकृति है। इसलिए संवाद के जो भी साधन जिस समय में उपलब्ध रहे, उसका उपयोग संजय जी ने किया। जो विषय उन्हें अच्छे लगे या जिन मुद्दों पर उन्हें लगा कि इन पर समाज के साथ संवाद करना आवश्यक है, उन्होंने परंपरागत और डिजिटल मीडिया का उपयोग किया।” इस बात को संजय द्विवेदी भी एक जगह कहते हैं, “समय के साथ रहना, समय के साथ चलना और अपने समय से संवाद करना मेरी प्रकृति रही है। मैं पत्रकारिता का एक विद्यार्थी मानता हूं और अपने समय से संवाद करता हूं।”

    वहीं, रिजवान अहमद सिद्दीकी से बातचीत में संजय द्विवेदी एक आदर्श व्यक्तित्व प्रस्तुत करते हैं और वे कहते है, “जो काम मुझे मिला, ईमानदारी से, प्रामाणिकता से और अपना सब कुछ समर्पित कर उसे पूरा किया। कभी भी ये नहीं सोचा कि ये काम अच्छा है, बुरा है, छोटा है या बड़ा है। और कभी भी किसी काम की किसी दूसरे काम से तुलना भी नहीं की। किसी भी काम में हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। यही मेरा मंत्र है।” साथ ही, दूसरों से उम्मीद करते हुए कहते हैं, “अपने काम में ईमानदारी और प्रमाणिकता रखने के साथ परिश्रम करना चाहिए, क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है। सामान्य परिवार से आने वाले बच्चों के पास दो ही शक्ति होती है, उनकी क्रिएटिविटी और उनके आइडियाज, अगर परिश्रम के साथ काम करते हैं तो अपार संभावनाएं हैं।” इतना ही नहीं, वे कार्य को देशहित से भी जोड़ते हैं। पुस्तक में एक स्थान पर वे कहते हैं, “हर व्यक्ति जो किसी भी क्षेत्र में अपना काम ईमानदारी से कर रहा है, वह देशहित में ही कर रहा है।”

    इस संपादित पुस्तक में कुल जमा 25 साक्षात्कार हैं, जो विभिन्न समय पर लिए गए हैं। ये साक्षात्कार डॉ. ऋतेश चौधरी, सौरभ कुमार, विकास सिंह, एसडी वीरेंद्र, रिजवान अहमद सिद्दीकी, डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी, अजीत द्विवेदी, कुमार श्रीकांत, विकास सक्सेना, नीरज कुमार दुबे, डॉ. अनिल निगम, डॉ. विष्णुप्रिय पांडेय, आनंद पराशर, प्रगति मिश्रा, राहुल चौधरी, आरजे ज्योति, आशीष जैन, सौम्या तारे, गौरव चौहान, माया खंडेलवाल, शबीना अंजुम, डॉ. रुद्रेश नारायण मिश्रा एवं शिवेंदु राय द्वारा लिए गए हैं। कुल 256 पेज की यह पुस्तक कई मायनों में अलग है, जिसे मीडिया में विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और मीडियाकर्मियों को पढ़नी और गढ़नी चाहिए।


(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, जम्मू में सहायक प्राध्यापक हैं।)