शनिवार, 7 अगस्त 2010

मीडिया विमर्श के वार्षिकांक में एक बड़ी बहस क्या रोमन में लिखी जाए हिंदी ?


इस बार की आवरण कथा हैः हा! हा!! HINDI दुर्दशा देखि न जाई!!!
रायपुर।
मीडिया विमर्श का सितंबर, 2010 का अंक 15 अगस्त तक बाजार में आ जाएगा। इस अंक में एक बड़ी बहस है कि क्या रोमन में लिखी जाए हिंदी। सितंबर के महीने की 14 तारीख को पूरा देश हिंदी दिवस मनाता है। इस वार्षिक कर्मकांड को जाने दें तो भी हम अपने आसपास रोजाना हिंदी की दैनिक दुर्दशा का आलम देखते हैं। ऐसे में हिंदी की ताकत, वह आम जनता ही है जो इसमें जीती, बोलती और सांस लेती है। बाजार भी इस जनता के दिल को जीतना चाहता है इसलिए वह उसकी भाषा में बात करता है। यह हिंदी की ताकत ही है कि वह श्रीमती सोनिया गांधी से लेकर कैटरीना कैफ सबसे हिंदी बुलवा लेती है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या हिंदी सिर्फ वोट मांगने और मनोरंजन की भाषा रह गयी है। इन मिले-जुले दृश्यों से लगता है कि हिंदी कहीं से हार से रही है और अपनों से ही पराजित हो रही है।
इन हालात के बीच हिंदी के विख्यात लेखक एवं उपन्यासकार श्री असगर वजाहत ने हिंदी को देवनागरी के बजाए रोमन में लिखे जाने की वकालत कर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। श्री वजाहत ने देश के प्रमुख हिंदी दैनिक जनसत्ता में 16 और 17 मार्च,2010 को एक लेख लिखकर अपने तर्क दिए हैं कि रोमन में हिंदी को लिखे जाने से उसे क्या फायदे हो सकते हैं। जाहिर तौर पर हिंदी का देवनागरी लिपि के साथ सिर्फ भावनात्मक ही नहीं, कार्यकारी रिश्ता भी है। श्री वजाहत की राय पर मीडिया विमर्श ने अपने इस अंक में देश के कुछ प्रमुख पत्रकारों, संपादकों, बुद्धिजीवियों, प्राध्यापकों से यह जानने की कोशिश की कि आखिर असगर की बात मान लेने में हर्ज क्या है। हिंदी दिवस के प्रसंग को ध्यान में रखते हुए यह बहस एक महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु है जिससे हम अपनी भाषा और लिपि को लेकर एक नए सिरे से विचार कर सकते हैं। इस बहस को ही हम इस अंक की आवरण कथा के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आवरण कथा की शुरूआत में श्री असगर वजाहत का लेख जनसत्ता से साभार लिया गया है, इसके साथ इस विमर्श में शामिल हैं- वरिष्ठ पत्रकार एवं छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक रमेश नैयर, हिंदी के चर्चित कवि अष्टभुजा शुक्ल, दैनिक भास्कर-नागपुर के संपादक प्रकाश दुबे, देशबंधु के पूर्व संपादक बसंत कुमार तिवारी, नवभारत- इंदौर के पूर्व संपादक प्रो. कमल दीक्षित, प्रख्यात कवि-कथाकार प्रभु जोशी, हिंदी की प्राध्यापक डा. सुभद्रा राठौर
इसके अलावा नक्सलवाद को बौद्धिक समर्थन पर प्रख्यात लेखिका अरूंधती राय के अलावा कनक तिवारी, संजय द्विवेदी, साजिद रशीद के लेख प्रकाशित किए गए हैं।जिसमें लेखकों ने पक्ष विपक्ष में अपनी राय दी है। इसके अलावा अन्य कुछ लेख भी इस अंक का आकर्षण होंगें। पत्रिका के इस अंक की प्रति प्राप्त करने के लिए 25 रूपए का डाक टिकट भेज सकते हैं। साथ ही वार्षिक सदस्यता के रूप में 100 रूपए मनीआर्डर या बैंक ड्राफ्ट भेज कर सदस्यता ली जा सकती है। पत्रिका प्राप्ति के संपर्क है-
संपादकः मीडिया विमर्श, 328, रोहित नगर,
फेज-1, ई-8 एक्सटेंशन, भोपाल- 39 (मप्र)

4 टिप्‍पणियां:

  1. असगर, हुसैन की परम्परा के जिहादी हैं। उनकी बात को ज्यादा भाव देना ठीक नहीं। वैसे भी जब उनका लेख आया था तो तर्कों से लोगों ने निरुत्तर कर दिया था।

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  2. हिन्दी इस दि मोस्ट साइंटिफिक लेंग्वेज आफ दि वर्ल्ड. इट इस अलसो प्रूव्ड बाय अ साइंटिफिक रिसर्च डन इन नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर. सो इफ समवन रियली क्लेम्स टु बी दि आर्ग्युमेंटिव आर लाजिकल आन दिस इश्यु देन ही आर शी शुड स्टार्ट राइटिंग इंग्लिश इन देवनागरी. इट विल बी मोर बेटर फार बोथ आफ दि लेंग्वेजेस.

    व्हाट डु यु थिंक मि. फज़ीहत आर वज़ाहत (व्हाट एवर यु आर) ? एंड संजयजी यु हेव डेडिकेटेड दि मेगजीन आन दिस रुटन थाट, इट्स टू मच. इट वास रियली नाट एक्स्पेक्टेड फ्राम यु.

    सुबोध खंडेलवाल, इन्दौर

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  3. हिन्दी इस दि मोस्ट साइंटिफिक लेंग्वेज आफ दि वर्ल्ड. इट इस अलसो प्रूव्ड बाय अ साइंटिफिक रिसर्च डन इन नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर. सो इफ समवन रियली क्लेम्स टु बी दि आर्ग्युमेंटिव आर लाजिकल आन दिस इश्यु देन ही आर शी शुड स्टार्ट राइटिंग इंग्लिश इन देवनागरी. इट विल बी मोर बेटर फार बोथ आफ दि लेंग्वेजेस.

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    सुबोध खंडेलवाल, इन्दौर

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  4. असगर को हिन्दी का हितैषी मानकर देवनागरी के लिये रोमन का व्यवहार करना ऐसे ही है जैसे कश्मीर पर गिलानी की सलाह मानकर काश्मीर को विवादास्पद क्षेत्र घोषित करना।

    पंचतंत्र की वह कथा याद कीजिये जिसमें कंधे पर बकरा लादे जा रहे पथिक को तीन धूर्तों ने 'ये कुत्ता कहाँ ले जा रहे हो' कहकर ठग लिया था।

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