शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

समाचार संपादन ( NEWS EDITING) कैसे करें

-संजय द्विवेदी
समाचार पत्रों के बिना सुबह अधूरी सी लगती है। पत्रों के विकास के साथ-साथ अब तो दोपहर और शाम के अखबार भी निकलने लगे हैं। समाचार संपादन का साफ मतलब कापी को समाचार पत्र में छपने योग्य बनाना और उसकी प्रस्तुति से है। किसी खबर को आप किस नजर से देखते हैं और किस तरह से प्रस्तुत करते हैं- संपादन का आशय यही है। जब आप किसी समाचार का संपादन करते हैं तो तीन ही बातें महत्व की हैं समाचार का महत्व, स्थान और समय। किसी भी मीडिया हाउस में खबरों का प्रवाह निरंतर बना रहता है। अतः संपादन की बडी चुनौती होती है समाचार का चयन।
   समाचार का चयन किन आधारों पर हो सकता है-
1.ख्यातिनाम व्यक्ति या न्यूजमेकर्स
2.असाधारण बातें, जो प्रायः देखी सुनी नहीं जाती
3.संस्थाएं वो चाहे जिस स्तर की हों- राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय या अंतर्राष्ट्रीय
4.बजट या पैसे का जहां आवक जावक हो
5.अन्यायपूर्ण घटनाएं जिससे रोष उत्पन्न हो
6.भावनाप्रधान खबरें
7.अपराध
8.लोगों के हित से जुड़े समाचार
9.ज्ञान-विज्ञान या खोज से जुड़े समाचार
10.मनोरंजन या सर्वरूचि के समाचार- खेल, क्रिकेट, फिल्म
   कुल मिलाकर पाठकों की पसंद, जरूरत ही खबरों के चयन का आधार होना चाहिए। इसके अलावा समाचार चयन को संपादक की निजी सोच भी प्रभावित ही करती है। किंतु संपादक से अपेक्षा की जाती है कि खबरों का चयन अपने पाठकवर्ग और समाचार पत्र की रीति नीति के अनुसार करे।
  समाचार चयन के लिए समाचार पत्र में उपलब्ध स्थान, सामयिक परिस्थितियां, विज्ञापनों का दबाव काफी हद तक जिम्मेदार होता है। इन दबावों के बीच भी बेहतर प्रदर्शन ही किसी संपादक की पहचान बनाते हैं।
  समाचार चयन के बाद बड़ी जिम्मेदारी होती है उचित संपादन की। सही संपादन ही एक बेहतर कापी बना सकती है। एक सामान्य कापी को विशिष्ट बना सकती है। खबर के विकासक्रम को पहचान कर उसे सही स्थान दिला सकती है। प्रेस कापी या संवाददाता के द्वारा दी गयी खबर की पहचान कर उसे सही स्थान दिलाना ही संपादन का उद्देश्य होता है। ईमानदारी से संपादन न करने के कारण ही यह होता है एक बेहतर मर जाती है और सामान्य खबर अतिरंजित कर प्रस्तुत कर दी जाती है। संपादन का मतलब सिर्फ यही है- परिशुद्धता, परिशुद्धता और परिशुद्धता। इसके बाद बात आती है संक्षिप्तता और तथ्यों की।
प्रवीण दीक्षित अपनी किताब समाचार संपादन में कहते है समाचार संपादन का उद्देश्य है- समाचार को पाठकों की दृष्टि से सार्थक बनाना।
   इसके मायने साफ हैं आप अपनी खबर को पाठकों की जरूरत की मद्देनजर उपयोगी और सार्थक बनाएं। यानि तथ्य और कथ्य दोनों मानकों पर खबर सही उतर सके। विज्ञापनों की भीड़ में उपसंपादक की एक चुनौती यह भी है कि वह खबरों का अनावश्यक विस्तार रोके और कम शब्दों में अपनी बात को कहने का अभ्यास विकसित करे। इसके साथ ही आज भाषा का सवाल बहुत गहरा हो गया है। बेहतर भाषा का आशय आज हिंग्लिश मिक्स भाषा से लगाया जा रहा है। हिंदी के अखबारों को चाहिए कि वे उन्हीं शब्दों का अंग्रेजी शब्द लें जो हिंदी भाषियों में लोकप्रिय हों तथा उनके प्रयोग से भाषा में कोई अतिरिक्त बोझ न पैदा हो। साथ ही आमफहम भाषा का आग्रह तो है ही। हिंदी की सरलता का आशय यह कतई नहीं कि हम भाषा का बहुत सामान्यीकरण कर दें। क्योंकि संभव है कि यह भाषा किसी के प्रशिक्षण का कारण भी बने। बहुत से लोग अखबार से हिंदी भी सीखते हैं हम उनके इस अभ्यास में मददगार ही हों।
    कापी के पूर्ण संपादन के बाद सबसे महत्व का काम होता है खबरों के महत्वक्रम का निर्धारण। यह एक ऐसा काम है जो अनुभव भी मांगता है। किस समाचार को कितना स्पेश-स्थान देना है। इसका विचार संपादन करने की एक कसौटी है। जाहिर तौर पर अपनी  निर्णयात्मक क्षमता के आधार पर ही हम इसका समाधान करते हैं। इस अवसर पर संपादक की सोच ही सबसे महत्व की होती है।
प्रेस कापी का संपादन ( EDITING OF PRESS COPY)
समाचारों के चयन और महत्व निर्धारण के साथ ही समाचार की कापी तैयार करना एक तकनीकी किंतु भाषायी दक्षता का काम है। संभव है कि संवाददाता की बेहद सामान्य कापी के चलते आपको उसे फिर से लिखना पड़ जाए। पुर्नलेखन के अलावा कई बेहतर कापी में छोटे वाक्यों के अभाव के चलते दुरूहता बनी रहती है। सो छोटे-छोटे वाक्यों से प्रभाव बढ़ता है, ऐसे में समाचार ज्यादा पठनीय बनता है। समाचार को अनुच्छेदों में लिखने का अभ्यास जरूरी है क्योंकि इससे ही पाठकों को समाचार के पढ़ने और समझने में आसानी होती है। कहा जाता है कि समाचारों के साथ विचार न दिए जाएं। पत्ररकार सीपी स्काट की एक प्रसिद्द उक्ति है तथ्य पवित्र हैं और विचार स्वतंत्र । किंतु यदि समाचार विश्लेषणात्मक है तो जाहिर तौर पर उसमें संवाददाता के विचार आएंगें ही। लेकिन सामान्य खबरों में इससे बचने की बात कही जाती है।
   खबरें प्रस्तुत करते समय समाचार के श्रोतों का साफ तौर पर जिक्र किया जाना बेहतर होता है। इससे पाठकों के बीच समाचार पत्र की विश्वसनीयता बनी रहती है। कुल मिलाकर यह काम ज्यादा सावधानी के साथ ज्यादा रचनात्मक भी है। खबरों के विकासक्रम, महत्व और प्रभाव का आकलन कर सकनेवाले संपादक इस अवसर का लाभ उठाकर अपने पत्र को बेहद प्रभावी बना देते हैं। क्योंकि आप देखें तो ज्यादातर खबरें, तथ्य और फोटोग्राफ सभी अखबारों के पास होते हैं किंतु चयन, प्रस्तुति और उपलब्ध स्थान के सही इस्तेमाल से चीजें बेहतर हो जाती हैं। जबकि दूसरा अखबार अपनी लचर प्रस्तुति, ठंडे शीर्षकों और खराब संपादन का शिकार होकर अलोकप्रिय हो जाता है।
समाचार चयन और प्रस्तुति से बेहतर बनता अखबार
   समाचार चयन एक बड़ी जिम्मेदारी का काम है। अखबार के पहले पन्ने से लेकर आखिरी पन्ने की खबरों का चयन, उसकी प्रस्तुति का निर्धारण कोई सामान्य काम नहीं है। अखबारों के रंगीन होने के साथ यह चुनौती और गहरी हो गयी है। अखबार को अब सिर्फ पठनीय नहीं, दर्शनीय भी होना है। रंग-संयोजन, चित्रों का सही चयन, प्रियरंजन प्रस्तुति एक जरूरी काम हो गए हैं। संपादन के सामने रंगीन अखबारों ने रूप विन्यास, साज सज्जा और ले-आउट को लेकर एक नई तरह की चुनौती उपस्थित की है। इसने पूरी पत्रकारिता का सौन्दर्य शास्त्र ही बदल दिया है। शायद इसीलिए अखबारों के कटेंट में भी तेजी से बदलाव दिखने लगा है। अब किसी अखबार की सुस्त प्रस्तुति उसे जनता के बीच लोकप्रिय नहीं बना सकती। शब्दों के साथ उसकी मोहक प्रस्तुति जिसमें चित्र, फांट, नए तरीके से प्रस्तुत की गयी खबर जिससे पाठक सीधा रिश्ता कायम कर सके ही कामयाब होती है।
लीड (LEAD) समाचार का निर्धारणः
किसी भी अखबार में लीड यानी सर्वप्रमुख समाचार का निर्धारण एक सोच के तहत होता है। कुछ घटनाएं इतनी वीभत्स या भीषण होती हैं कि वे खुद ही कहती हैं कि मैं आज की लीड हूं। किंतु कुछ दिन ऐसे भी होते हैं जब कोई बहुत प्रभावकारी घटना नहीं होती तब ही संपादक की असली परीक्षा होती है कि किस समाचार को लीड बनाया जाए। आज किस खबर को पहले पन्ने पर जगह दी जाए। यह विवेक ही संपादन का विवेक है। आमतौर पर लीड के निर्धारण मे भीषणता, अतिव्यापक प्रभाव, राजनीतिक महत्व, परिवर्तन की पराकाष्ठा को आधार माना जाता है। किंतु जिस दिन इस स्तर की कोई घटना न हो तो समाचारों में अलग-अलग खबरें लीड बनती हैं जो संपादक के विवेक का ही परिचय देती हैं। उसमें कौन अपनी खबर को बेच पाता है यह महत्वपूर्ण होता है। टीवी चैनलों में यह होड़ साफ दिखती है वे अपनी खबरें क्रियेट करने का भी प्रयास करते हैं औऱ कोशिश होती है कि वे अलग दिखें। अखबार भी अब होड़ में उतर पड़े हैं। बावजूद इसके संपादक का विवेक सबसे बड़ी चीज है।
इंट्रो (INTRO)लिखें कैसे-
    एक अच्छा इंट्रो खबर को पढ़ने के लिए विवश कर देता है और एक खराब इंट्रो खबर में आपकी रूचि समाप्त कर सकता है। अगर हम शीर्षक खबर का विज्ञापन मान सकते हैं तो इंट्रो भी उस विज्ञापन का थीम ही है। वही पूरे खबर का प्रभाव जमा सकता है तो बिगाड़ भी सकता है। सही मायने में यह खबर का पहला पैरा है, यानि पहला अनुच्छेद। इसमें आप अपनी खबर का जैसा प्रभाव दे पाते हैं वही आपको आगे की खबर पढ़ने के प्रेरित करता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इंट्रो अगर कुछ कहता नहीं है तो बेकार है। उसे कुछ जरूर कहना होगा। यानी उसे अर्थ देते हुए होना चाहिए। उसे उलझाव पैदा करने के बजाए अपने पाठक को तुरंत अपनी बात बताना चाहिए। सही अभिव्यक्ति के जादू से ही कोई इंट्रो प्रभावी बनता है। इंट्रो के नंबर आता है बाडी का। खबर का शेष हिस्सा। सामान्य तौर पर खबर लिखने का तरीका यही है कि आप इंट्रो में खबर का सार-संक्षेप या परिचय दे देते हैं फिर घटते क्रम में बात कहते चले जाते हैं। यानि सबसे कम महत्व की बात सबसे नीचे जाएगी। इसे खबर लिखने की इनवर्टेड पिरामिड शैली कहते हैं। इसके अलावा खबरें लिखने के अन्य शिल्प भी हैं जिसका प्रयोग आज अखबार कर रहे हैं।
समाचारों के श्रोतः  आमतौर पर अखबारों को इन श्रोतों से खबरें मिलती हैं-
1.समाचार का निजी नेटवर्क- उसके संवाददाता, अंशकालिक संवाददाता
2.समाचार एजेंसियां
3.सरकारी जनसंपर्क विभाग, निजी संस्थाओं के जनसंपर्क विभाग
4.समाचार पत्र कार्यालय में आने वाली विज्ञप्तियां
5.टीवी चैनल, रेडियो, वेबसाइट्स
बेहतर समाचार पत्रः
किसी भी अखबार की सफलता की गारंटी तमाम मार्केटिंग गतिविधियों के अलावा उसकी विश्वसनीयता और प्रामणिकता पर निर्भर करती है। कोई भी अखबार अपनी विश्वसनीयता के बल पर ही लोकप्रिय हो सकता है। क्योंकि आज भी लोगों का छपे हुए शब्दों पर भरोसा कायम है। इसलिए इस भरोसे को कायम रखना आज की आ रही पत्रकार पीढ़ी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इसके साथ ही सभी विषयों के समान महत्व देना भी जरूरी है ताकि पाठक का सर्वांगीण विकास हो सके।
                          


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