शनिवार, 18 अगस्त 2018

भारतीय राष्ट्रवाद के प्रखर प्रवक्ता अटल जी


भारतीय प्रतिपक्ष के सबसे चमकदार नेता, जिसने कभी अपनी प्रासंगिकता नहीं खोयी
-प्रो.संजय द्विवेदी



         अटलजी नहीं रहे। पिछले दस वर्षों से सार्वजनिक जीवन में उनकी अनुपस्थिति के बाद भी मन को यही सूचना भरोसा देती थी कि वे हैं और हमारे बीच हैं। उनका मौन भी इतना मुखर था कि उनकी अनुपस्थिति कभी खली ही नहीं। वे हम सब भारतीयों के मन में ऐसे रचे-बसे थे कि लगता था कि जब हमें जरूरत होगी वे जरूर बोल पड़ेगें। पिछले छः दशकों से उनकी समूची सार्वजनिक जीवन की यात्रा में भारत और देश-देशांतर को नापती हुयी उनकी अनेक छवियां हैं। पूरे भारत को उन्होंने मथ डाला था। सार्वजनिक जीवन में उपस्थित वे एक ऐसे यायावर थे जिनमें निरंतर संवाद करने की शक्ति थी। वे ही थे जो भाषणों से, लेखों से, कविताओं से और देहभाषा से देश को संबोधित करते और चमत्कृत करते आ रहे थे। हर व्यक्ति का समय होता है। जब वह शिखर पर होता है। लेकिन अटल जी का कोई समय ऐसा नहीं था, जब वे घोर नेपथ्य में रहें हों। वे भारतीय प्रतिपक्ष के सबसे चमकदार नेता थे, जिसने कभी अपनी प्रासंगिकता नहीं खोयी। पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु से लेकर डा. मनमोहन सिंह को सत्ता सौंपने तक वे जीवंत, प्राणवान, स्फूर्त और प्रासंगिक बने रहे।  
       अटलजी भारतीय राष्ट्रवाद की सबसे प्रखर और मुखर प्रवक्ता थे। उन्होंने अपनी युवावस्था में जिस विचार को स्वीकार किया, उसका जीवन भर साथ निभाया। सही मायनों में वे विचारधारा के प्रति अविचल प्रतिबद्धता के भी उदाहरण हैं। एक विचार के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देने की भावना से वे ताजिंदगी लैस रहे। उन्होंने जो कहा उसे जिया और अपने जैसै हजारों लोग खड़े किए। एक पत्रकार, संपादक, लेखक, कवि, राष्ट्रनेता, संगठनकर्ता, संसदविद्, हिंदीसेवी, प्रखर वक्ता, प्रशासक जैसी उनकी अनेक छवियां हैं और वे हर छवि में पूर्ण हैं। इस सबके बीच उनकी सबसे बड़ी पहचान यही है कि वे भारतीय राष्ट्रवाद के हमारे समय के सबसे लोकप्रिय नायक हैं। वे अपने हिंदुत्व पर गौरव करते हुए भारतीयता की समावेशी भावना के ही प्रवक्ता हैं। शायद इसीलिए वे लिख पाते हैं-
होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम। 
गोपालराम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिंदू करने घरघर में नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी
भूभाग नहीं, शतशत मानव के हृदय जीतने का निश्चय। 
हिंदू तनमन, हिंदू जीवन, रगरग हिंदू मेरा परिचय!
     भारतीय राजनीति में होते हुए भी अटल जी राजनीति की तंग सीमाओं से नहीं घिरे। वे व्यापक हैं, विस्तृत हैं और अपने विचारों में भारतीय जीवन मूल्यों का अवगाहन करते हैं। उनकी सोच पूरी सृष्टि के लिए है, वे भारत की आत्मा में रचे-बसे हैं। इसीलिए वे हमें अपने जीवन से भी सिखाते हैं और वाणी से भी। उनकी वाणी, जीवन और कृति हमें भारतीयता का ही पाठ देते हैं। वे अपनी भाव-भंगिमा, सरलता और व्यवहार से भी सिखाते हैं। भारत उनकी वाणी में, उनकी सांसों में पलता है। भारतीयता को वे अपने तरीके से पारिभाषित करते रहे हैं। उनमें हिंदुत्व का आग्रह था पर वे जड़वादी या कट्टर कहीं से भी नहीं हैं। वे हिंदुत्व को उसके सही संदर्भों में समझते और व्याख्यायित करते हैं। अपनी कविता में वे लिखते हैं-
मैं अखिल विश्व का गुरु महान, देता विद्या का अमरदान। 
मैंने दिखलाया मुक्तिमार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान। 
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर। 
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर
   अटलजी भारतप्रेमी हैं। वे भारतीयता और हिंदुत्व को अलग-अलग नहीं मानते। उनके लिए भारत एक जीता जागता राष्ट्रपुरूष है। वे अपनी कविताओं में प्रखर राष्ट्रवादी स्वर व्यक्त करते हैं। उनकी राजनीति भी इसी भाव से प्रेरित है। इसलिए उनका दल यह कह पाया- दल से बड़ा देश। राष्ट्र के लिए सर्वस्व अर्पित कर देने की भावना वे बार-बार व्यक्त करते हैं। भारत का सांस्कृतिक एकता और उसके यशस्वी भूगोल को वे एक कविता के माध्यम से व्यक्त करते हैं।  वे लिखते हैं -
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,/ जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।…..
इसका कंकर-कंकर शंकर है,/ इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये,/ मरेंगे तो इसके लिये।
     अटलजी मूलतः कवि और पत्रकार हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में थे और उन्हें पं. दीनदयाल उपाध्याय राजनीति में ले आए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वे प्रतिबद्ध स्वयंसेवक रहे। ताजिंदगी राष्ट्र प्रथम उनका जीवन मंत्र रहा। राजनीति की काली कोठरी में भी वे निष्पाप और निष्कलंक रहे। अपने समावेशी भारतीय चरित्र की छाप उन्होंने राजनीति पर भी छोड़ी। गठबंधन सरकारों को चलाने का अनुपम प्रयोग किया। 1967 में संविद सरकारें बनीं, 1977 में जनता प्रयोग, नवें दशक में वीपी सिंह की जनता दल सरकार और बाद में वे खुद इस प्रयोग के सर्वोच्च नायक बने। वे पांच साल सरकार चलाने वाले पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। उनके व्यक्तित्व ने ही यह संभव किया था कि विविध विरोधी विचारों को साथ लेकर वे चल सके। लंबे समय तक प्रतिपक्ष के नेता के नाते उनकी भाषणकला, कविता का कौशल उनकी पूरी राजनीति पर इस तरह भारी है कि उनके राजनायिक कौशल, कूटनीतिक विशेषताओं और सुशासन की पहल करने वाले प्रशासक की उनकी अन्य महती भूमिकाओं पर नजर ही नहीं जाती। जबकि एक विदेशमंत्री और प्रधानमंत्री के नाते की गयी उनकी सेवाओं का तटस्थ मूल्यांकन और विश्लेषण जरूर किया जाना चाहिए। उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए हमें उनकी कई विशेषताओं का पता लगता है।  अब समय आ गया है कि उनकी इन विशिष्टताओं का मूल्यांकन जरूर करना चाहिए।
     संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को गुंजायमान करने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। विदेश मंत्री के रूप में दुनिया के तमाम देशों के साथ उन्होंने जिस तरह से रिश्ते बनाए वे उन्हें एक वैश्विक राजनेता के तौर पर स्थापित करते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में सड़कों का संजाल बिछाने और संचार क्रांति खासकर मोबाइल क्रांति के जनक के रूप में उन्हें याद किया जाना चाहिए। विकास और सुशासन उनके शासन के दो मंत्र रहे। यहां यह बात भी खास है कि उन्होंने भारतीय राजनीति को धर्म-जाति और क्षेत्रवाद की गलियों से निकाल कर विकास  और सुशासन के दो मंत्रों के आधार खड़ा करने की कोशिश की। एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व किस तरह राष्ट्र के बड़े सवालों को केंद्र में लाकर सामान्य मुद्दों को किनारे करता है वे इसके उदाहरण हैं। समन्वयवादी राजनीति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पुष्टि करते हुए जिस तरह वे बिना विवाद के तीन राज्यों (उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़) का गठन करते हैं, वह भी उनके नेतृत्व कौशल का ही कमाल था। पोखरण में परमाणु विस्फोट उनकी राजनीतिक दृढृता का उदाहरण ही था। इसी के साथ प्रख्यात वैज्ञानिक  डा.एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाकर उन्होंने यह साबित किया कि भारतीयता के नायकों को सम्मान  देना जानते हैं और कहीं से संकुचित और कट्टर नहीं हैं। भारतीय राजनीति को उन्होंने यह भी संदेश दिया कि हमारे मुस्लिम समाज से हमें कैसे नायकों का चयन करना चाहिए?  आप कल्पना करें कि अटल जी जैसा प्रधानमंत्री और डा. कलाम जैसा राष्ट्रपति हो तो विश्वमंच पर देश कैसा दिखता रहा होगा। इसे अटल जी ने संभव किया। यह एक गहरी राजनीति थी और इसके राष्ट्रीय अर्थ भी थे। किंतु यह थी राष्ट्रीय और राष्ट्रवादी राजनीति।
     काश्मीर के सवाल पर बहुत दृढ़ता से उन्होंने जम्हूरियत, काश्मीरियत और इंसानियत का नारा दिया। पाकिस्तान से बार-बार छल के बाद भी वे बस से इस्लामाबाद गए और बाद में कारगिल में उसे मुंहतोड़ जवाब भी दिया। लेकिन संवाद नहीं छोड़ा क्योंकि वे संवाद नायक थे। किसी भी स्थिति में संवाद की कड़ी न टूटे, वे इस पर विश्वास करते थे। संवाद के माध्यम से हर समस्या हल हो सकती है, वे इस मंत्र पर भरोसा करते थे। उनकी बातें आज भी इसलिए कानों में गूंजती हैं। वे संकटों से मुंह फेरने वालों में नायकों में न थे। वे संवाद से संकटों का हल खोजने में भरोसा रखते थे। इसीलिए पिछले दस सालों का उनका मौन भी एक संवाद था। उनकी छः दशकों की तपस्या मुखर थी। भारत के लगभग हर शहर और तमाम गांवों तक फैली उनकी यादें, संवाद और भाषण लोगों की स्मृतियों में हैं। वे नहीं हैं, पर हैं। दिल्ली ही नहीं, देश का हर नागरिक अगर उनकी अंतिम यात्रा में खुद को शामिल करना चाहता था तो यह भी अकारण नहीं था। पांच लाख लोग दिल्ली की सड़कों पर थे। देश के ताकतवर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अटलजी के तमाम अनुयायी राजपुरुष अगर पांच किलोमीटर पैदल चलकर उन्हें विदा देते हैं तो यह सामान्य बात नहीं है।  उनके प्रति भावनाओं का ज्वार सिर्फ दिल्ली नहीं समूचे देश में था, जहां लोग टीवी चैनलों, मोबाइल की स्क्रीनों पर चिपके अपने प्रिय नेता की अंतिम यात्रा को देख रहे थे। यह भी साधारण नहीं था कि पिछले चौदह सालों से नेपथ्य में जा चुके एक नेता के लिए यह दीवानगी युवाओं में भी देखी गयी। ऐसे युवा जो अभी 18-20 के हैं, जिन्होंने अटलजी को न देखा है, न सुना है। उनके प्रधानमंत्री पद पर रहते ये युवा चार या पांच साल के रहे होगें। किंतु यह संभव हुआ और लोग खुद को उनसे जोड़ पाए। भारतरत्न अटल जी इस योग्य थे, इसलिए लोग उनसे खुद को संबद्ध(कनेक्ट) पाए। संवाद के अधिपति को खामोश देखकर, देश मुखर हो गया। देश की आंखें गीली थीं। प्रकृति ने उनकी अंतिम यात्रा के समय नम आँखों से विदाई दी। बारिश की बूंदें दिल्ली के दर्द में यूं ही शामिल नहीं हुयीं। राष्ट्रवादी नायक की विदाई पर समूचे राष्ट्र की पनीली थीं। अटल जी ने खुद का परिवार नहीं बसाया, किंतु उनकी अंतिम यात्रा ने साबित किया कि वे एक महापरिवार के महानायक थे। यह परिवार है- एक सौ पचीस करोड़ भारतीयों का परिवार।