शनिवार, 11 मार्च 2017

भारतीय राजनीति का ‘मोदी समय’

चुनावों का संदेशः अपनी रणनीति पर विचार करे विपक्ष
-संजय द्विवेदी


    सही मायनों में यह भारतीय राजनीति का मोदी समय है। नरेंद्र मोदी हमारे समय की ऐसी परिघटना बन गए हैं, जिनसे निपटने के हथियार हाल-फिलहाल विपक्ष के पास नहीं हैं। अपनी सारी कलाबाजियों के बावजूद उत्तर प्रदेश में यादव परिवार और बसपा को समेट कर जो ऐतिहासिक जीत भाजपा ने दर्ज की है, वह अटल-आडवानी-कल्याण युग पर भारी है।
  उत्तर प्रदेश के राजनीतिक तौर पर बेहद जागरूक मतदाता सही मायनों में वहां फैली अराजकता, विकास विरोधी व जातिवादी राजनीति से त्रस्त हैं, इसलिए वे पिछले तीन विधानसभा चुनावों से किसी भी दल को संपूर्ण शक्ति देते हैं और इस बार यह मौका भाजपा को मिला है। इसके पहले बसपा और सपा क्रमशः वहां पूर्ण बहुमत की सरकारें बना चुके हैं। यह बात बताती है कि उत्तर प्रदेश के लोगों में कैसी बेचैनी है और वे किस तरह अपने राज्य को बदलते हुए देखना चाहते हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में यह जनमत मोदी के पक्ष में आ चुका है, वह अभी भी अडिग है, और उनके साथ है। सही मायने में अब परीक्षा भाजपा की है कि वह इस जनमत पर खरे उतरने के लिए हर जतन करे।
भाजपा का स्वर्णयुगः
    राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए यह समय वास्तव में स्वर्णयुग है, जबकि पूर्वांचल के असम में सरकार बनाकर उसने एक कीर्तिमान रच दिया। हरियाणा भी इसकी एक मिसाल है, जहां पहली बार भाजपा की अकेले दम पर सरकार बनी है। मणिपुर जैसे राज्य में उसके विधायक चुने गए हैं। ऐसे कठिन राज्यों में जीत रही भाजपा सही मायनों में अपने भौगोलिक विस्तार के रोज नए क्षितिज छू रही है। भाजपा और संघ परिवार को ये अवसर यूं ही नहीं मिले हैं। इसके लिए अपने वैचारिक अधिष्ठान पर खड़े होकर उन्होंने लंबी तैयारी की है। उत्तर प्रदेश के चुनाव इस अर्थ में खास हैं, क्योंकि भाजपा ने यह चुनाव विकास और सुशासन के नाम पर लड़ा। सांप्रदायिकता के आरोप लगाने वालों के पास बस यही तर्क था कि भाजपा ने किसी मुस्लिम को मैदान में नहीं उतारा। जाहिर तौर पर लोग इस तरह की राजनीति से तंग आ चुके हैं।
जातिवादी राजनीति के बुरे दिनः
   जातिवादी-सांप्रदायिक राजनीति के दिन अब लद चुके हैं। उत्तराखंड से लेकर पंजाब तक का यही संदेश है। पंजाब की अकाली सरकार भी लंबे समय से सरकारविहीनता और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी थी। ऐसे में भाजपा के साथ के बाद भी वे हारे और यह अच्छे संकेत हैं। इसी तरह उत्तराखंड से हरीश रावत सरकार की विदाई भी ऐसे ही संकेत देती है। खुद हरीश रावत का मुख्यमंत्री होते हुए, दोनों सीटों से हारना जनता के गुस्से का ही प्रकटीकरण है। परिर्वतन की यह राजनीति सार्थक बदलाव की वाहक भी बने, इस पर सर्तक नजर रखनी होगी।
   नरेंद्र मोदी दरअसल इस विजय के असली नायक और योद्धा हैं, उन्होंने मैदान पर उतर एक सेनापति की भांति न सिर्फ नेतृत्व दिया बल्कि अपने बिखरे परिवार को एकजुटकर मैदान में झोंक दिया। यह साधारण था कि उन पर तमाम आरोप लगे कि वे प्रधानमंत्री पद की मर्यादा को लांघ रहे हैं, पर उन्होंने अपेक्षित परिणाम लाकर अपने विरोधियों को लंबे समय के लिए खामोश कर दिया है। अब विपक्ष को उनके विरोध के नए हथियार और नए नारे खोजने होंगे। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम न सिर्फ चौंकाने वाले हैं बल्कि इसका अहसास भाजपा के स्थानीय नेताओं को भी नहीं था। वे आपसी जंग में इतने मशगूल थे कि उन्हें जनता के बीच चल रही हलचलों का अहसास ही नहीं था।
बसपा करे अपनी राजनीतिक शैली पर  पुनर्विचारः
उत्तर प्रदेश के इस परिणाम के दो असर और हैं, जिन्हें रेखांकित किया जाना चाहिए। 2014 के चुनाव में एक भी लोकसभा सीट न जीत सकी बहुजन समाज पार्टी और उसकी नेता को अपनी राजनीतिक शैली पर पुनर्विचार करना होगा। वरना वह इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी। मायावती ने जिस तरह अपने दल में अपनी तानाशाही चलाई और नए नेतृत्व को उभरने से रोका इस कारण उसके पास नेतृत्व का खासा अभाव है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने जहां जमीनी संपर्क और अपनी अलग शैली से नए वोटरों को लुभाने का काम किया और नए नेतृत्व को पार्टी में एक बड़ी लड़ाई लड़कर भी सामने ला दिया है, वह करिश्मा भी मायावती नहीं कर सकीं । अखिलेश के साथ अभी एक लंबी आयु है और वे अपने पिता की छाया से बाहर आ चुके हैं। मायावती के पास यह अवसर भी सीमित हैं। ऐसे में बसपा को गंभीरतापूर्वक अपनी भावी राजनीति पर विचार करना होगा।
      उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल बन चुकी समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव एक चेतावनी भी हैं और सबक भी। उन्हें इसके संदेश पढ़कर सावधानी से अपने संगठन को बनाना और संवारना होगा। एक सार्थक प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वहन करते हुए भाजपा सरकार पर दबाव बनाए रखना होगा। अखिलेश यादव को यह मानना होगा कि उनकी अच्छी छवि, युवा चेहरे के बाद भी सपा के अराजक शासन, गुंडागर्दी से लोग तंग थे, जिसका परिणाम उनके दल को मिला है। ऐसे में अपनी पार्टी की शैली बदलने और कार्यकर्ताओं को अनुशासित करने के लिए उन्हें लंबे जतन करने होगें।
  सपनों को सच करने की जिम्मेदारीः

 इस समूचे परिदृश्य में उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत ने उसके लिए चुनौतियां बहुत बढ़ा दी हैं। अब केंद्र और राज्य में सरकार होने के कारण उन्हें उत्तर प्रदेश में कुछ सार्थक काम करके दिखाना होगा। प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में जिस तरह अपनी प्रतिष्ठा लगाई है, उसके नाते उनकी जिम्मेदारी बहुत बढ़ गयी है। उत्तर प्रदेश की जनता ने अरसे बाद भाजपा को राज्य की सत्ता सौंपी है। भाजपा को इस भरोसे को बचाए और बनाए रखना होगा। यह वोट सही मायने में विकास, सुशासन और गरीबों के हितवर्धन के लिए है। उत्तर प्रदेश ने सबको मौका दिया है, उसे सबने निराश किया है। पिछले तीन बार से बसपा, सपा से होता हुआ यह अवसर खुद भाजपा के पास आया है। यह मौका उत्तर प्रदेश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासन पर दिया है। ऐसे में भाजपा और उसके नए शासकों का कर्त्तव्य है कि वे उत्तर प्रदेश के विकास के हर पल का उपयोग करें। अरसे बाद उत्तर प्रदेश फिर ड्राइविंग सीट पर है। ऐसे में उसकी किस्मत कितनी बदलती है, इसे देखना रोचक होगा।

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