बुधवार, 20 अगस्त 2014

जब मोदी कुछ कहते हैं


                      


                       -संजय द्विवेदी
  स्वतंत्रता दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा उसने समूचे देश को झकझोरकर रख दिया। लालकिले से अरसे के बाद कोई आवाज सुनाई पड़ी जो देश के जन-मन को अपनी सी लगी। वे मनों को छू रहे थे और उन प्रश्नों पर बात कर रहे थे जिन पर सत्ताधीश कुछ कहने से बचते हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में विकास और सुशासन के अलावा चार बातें खासतौर कहीं जिनमें स्त्री सम्मान व सुरक्षा, किसानों की आत्महत्या और सांप्रदायिक हिंसा के साथ माओवादी आतंकवाद का उल्लेख था।
   जाहिर तौर पर किसी भी प्रधानमंत्री और शासक के लिए ये चुनौती भी है और चुभने वाले सवाल भी हैं। स्त्रियों की सुरक्षा का मामला कभी इतनी बड़ी चुनौती के रूप में नहीं देखा गया किंतु ताजा समय में हो रहे सामूहिक बलात्कारों की घटनाओं ने पूरे समाज की नैतिकता और समझदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं, मोदी ने इसीलिए लोगों से पूछा कि वे अपने लड़कों से भी सवाल करें कि आखिर वे कहां से आ रहे हैं या कहां जा रहे हैं। प्रश्नांकित की जा रही लड़कियों और स्वच्छंद युवकों के प्रश्न उन्होंने पालकों के सामने रखे। जाहिर तौर पर हमारी सामाजिक रचना में ये प्रश्न आज फिर से प्रासंगिक हो उठे हैं। बिगड़ता लिंगानुपात प्रधानमंत्री की चिंताओं में था, वे भूणहत्या पर भी सवाल उठाते नजर आए। यह बात बताती है कि मोदी जमाने की हलचलों और उसकी चिंताओं से वाकिफ हैं। वे जानते हैं जनता के असल दर्द क्या हैं। इसीलिए वे किसानों की आत्महत्या के सवाल को लालकिले इतने पुरजोर तरीके से उठाते हैं। देश की इस विकराल समस्या पर मीडिया भी निगाहें उस तरह नहीं जाती जिस तरह जानी चाहिए। किंतु प्रधानमंत्री ने अपने भाषण को इस विषय को शामिल कर यह बता दिया है कि वे समस्याओं पर परदा डालने के अभ्यासी नहीं हैं वरन् समस्याओं से मुठभेड़ कर उनके हल निकालना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी यहीं लोगों को अपना मुरीद बना लेते हैं। वे माओवादियों का भी आह्वान कर रहे हैं कि बंदूकें छोड़ दें और विकास की धारा में साथ आएं। उन्हें गांव की गरीबी और योजना आयोग की सीमाओं का भान है। वे गरीबों के लिए बैंक में खाता खोलने से लेकर उनके बीमा की बात करते हैं। एक शासक की संवेदना का इससे पता चलता है। उनके विरोधी यह कह सकते हैं कि उनके भाषण में कोई नई बात नहीं हैं। किंतु उनके भाषण में एक आत्मविश्वास, आत्मगौरव और देश के नेता होने का भाव है जो अरसे तक प्रधानमंत्री रहे लोगों में नहीं देखा गया।
   वे खुद को प्रधानमंत्री के बजाए जब प्रधानसेवक कहते हैं और सरकारी तंत्र को झकझोरते हुए जाब और सर्विस के अंतर को बताते हैं तो उनका अभिभावकत्व और भी बड़ा हो जाता है। नरेंद्र मोदी सही मायने में भारत के आमजन के आत्मविश्वास, उसकी रचनाशीलता, उसकी उद्यमिता और कर्मठता के प्रतीक हैं। वे अभिजनों के चुनौती हैं जो भारतीय जनमानस को निकम्मा, काहिल, कामचोर और जाहिल मानने की अंग्रेजी मानसिकता से ग्रस्त हैं। वे आम भारतीयों में श्रमदेव और श्रमदेवियों के दर्शन करने वाले प्रधानमंत्री हैं। वे आम भारतीयों में मन से अवसाद की परतें झाड़कर एक आत्मविश्वास भरना चाहते हैं। इसलिए वे भारतीय युवाओं और लघु उद्यमियों को भरोसे से देखते हैं। वे चाहते हैं कि भारत तमाम उन चीजों का स्वयं निर्माण करे जिनका वह आयात करता है। उद्यमिता को बढ़ाने और भारतीय युवाओं की प्रतिभा का सही और सार्थक इस्तेमाल की प्रेरणा भी वे देते हैं। ऐसे में नरेंद्र मोदी एक शासक की तरह नहीं एक मोटीवेटर, प्रेरक वक्ता और बेहतर कम्युनिकेटर की तरह दिखते हैं जो स्वतंत्रता दिवस के मंच का इस्तेमाल एक औपचारिक भाषण के लिए नहीं करता, बल्कि वह एक अलग दृष्टि पेश करता है और रचनाशीलता का आह्वान करता है। सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ उनकी चिंता आज के एक बड़े चिंताजनक सवाल पर हमारी चिंता से साझा करती है। वे भारत को एक होते और अखंड होते देखना चाहते हैं। उन्हें देश की चुनौतियों का पता है। उन्हें पता है उनसे जनता की उम्मीदें विशाल हैं। वे जानते हैं कि उन्हें किसी परिवार से होने के नाते विशेष सुविधा प्राप्त नहीं है। वे जो कुछ हैं तब तक हैं जब तक जनता के प्रिय हैं। नरेंद्र मोदी सही मायने में किसी की कृपा और चयन के नाते दिल्ली में पहुंचे दिल्लीपति नहीं हैं। वे वास्तव में पहले जनता के दिलों में उतरे, फिर पार्टी ने स्वीकारा और फिर दिल्ली पहुंचे हैं।
   वे सही मायने में लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति के प्रतीक हैं। जिसने उन्हें न सिर्फ उन्हें इतना ताकतवर बनाया बल्कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को सबसे खराब दिनों में ला दिया। नरेंद्र मोदी इस कठिन उत्तराधिकार को स्वीकारते हुए इसीलिए साहस से भरे हैं। यह उनका अतिविश्वास ही है कि वे लालकिले से बुलेटप्रूफ शीशों के भीतर से खड़े होकर बोलने की लंबी परंपरा को भी तोड़ देते हैं। सुबह उठकर आए बच्चों से उनकी भीड़ में मिलने चले जाते हैं। उनका यह आत्मविश्वास एक आम हिंदुस्तानी  का आत्मविश्वास है। यह भरोसा उन्होंने लोगों के बीच लगातार काम करके हासिल किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका यह देसीपना बना रहेगा। जब तक यह कायम रहेगा, उनमें माटी की खूशबू और महक बनी रहेगी। जनता भी उनके साथ खड़ी रहेगी तब तक जब तक वे बोलते रहेंगें डायरेक्ट दिल से। क्योंकि जनता बड़ी नहीं सरल और साधारण बाते सुनना चाहती है उनके मुंह से जो, जो जो कह रहे हों उन पर अमल भी कर रहे हों। नरेंद्र मोदी कृति और जीवन से एक लगते हैं इसलिए उनपर भरोसा करने का मन करता है। उम्मीद कीजिए कि यह भरोसा बना रहे।

( लेखक राजनीतिक विश्वेषक हैं)

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