रविवार, 16 सितंबर 2012

व्यंग्यः लड़ते हुए जाना है


-संजय द्विवेदी
   हमारे देश के राजा ने मान लिया है कि वे जा रहे हैं और इसलिए वे लड़ते हुए जाना चाहते हैं। सवाल यह है कि अगर जाना ही है, तो आराम से रहो। जैसे पिछले आठ साल रहे, ये लड़ाई-वड़ाई अच्छी बात नहीं हैं। किंतु वे जोश में हैं। मालिक(अमरीका) का हुकुम है, जाओ भले पर मेरा काम करके जाना।
   हम भारतीय तो वफादार नौकर हैं, मालिक का सारा पाप अपने सर लेते हैं। मालिक एक्सीडेंट करता है, नौकर जेल जाता है। मालिक खून करता है- नौकर कहता है- मैंने किया और जेल जाता है। ऐसे में सरकार रहे या जाए हम तो अपने मालिक का काम करके ही जाएंगें। जिंदगी में कभी नहीं लड़े, किसी बात के लिए नहीं लड़े पर आज लड़ेंगें। हमें ऐसा- वैसा न समझो हम तो सच्चे सेवक हैं। आठ साल की सरकार में मालिक के दो काम थे, दोनों करके जा रहे हैं। परमाणु करार के लिए सरकार दांव पर लगा दी थी। अब फिर एफडीआई के लिए दांव पर लगायी है। प्राण जाए पर वचन न जाई। यही रघुकुल रीति है। इसे ममता बनर्जी और मुलायम सिंह नहीं समझ सकते जिनकी जीभ चमड़े की है, आज कुछ कहते हैं कल कुछ और। एक हम ही हैं कि जो कल थे वो आज भी हैं। हमारे मालिक चुनाव में हैं। वोट मांग रहे हैं। कह रहे हैं इंडिया में एफडीआई हो जाएगा तो अमरीका संभल जाएगा। उनकी जनता को कष्ट नहीं होना।
    हम तो भारतीय हैं दुख सहने के आदी। दूसरों को दुख न हो, हमें हो तो हो। परपीड़ा हमारा संस्कार नहीं है। हम तो लोकोपकार करने वाले जीव हैं। गरीबी में भी हम अपना स्वाभिमान कायम रखने वाले लोग हैं। नासमझ लोग ही मेरे विरोध में हैं। उन्हें नहीं पता की वसुधैव कुटुम्बकम् के मायने क्या हैं। पूरा विश्व एक परिवार है- हम सब भाई बंधु हैं सो अमरीका के संकट के दूर करने में हमारा थोड़ा सेक्रीफाइस जरूरी है। मालिक चुनाव में हैं और मैं घर में बैठा रहूं ऐसा नहीं हूं मैं। उनकी दुआ से कुर्सी है। बीच में जरा अहसानफरामोशी की तो देखा, दुनिया के सारे अखबार मुझे अंडरअचीवर कहने लगे। अब स्वामिभक्ति का एक काम किया तो सबके सुर बदल गए। इसे कहते हैं फटा पोस्टर निकला हीरो। जो हारकर जीत जाए उसे बाजीगर कहते हैं।
  बस ओबामा साहब ये चुनाव जीत जाएं, हमारी पार्टी भारत में डूब जाए तो भी चलेगा। क्योंकि मेरे तो दस साल पूरे हो रहे हैं। अब जिन्हें पार्टी और सरकार चलानी हो वे जानें। मैं चला, मैं चला । पर ध्यान रखना जब भी इतिहास लिखा जाएगा वफादारों में मेरा नाम होगा। मैंने गद्दारी नहीं की। मालिकों की सेवा की। इसलिए मैं असरदार हूं। साइलेंट मोड में रहता हूं। वक्त पर ऐसा झटका देता हूं कि लोग देखते रह जाते हैं। बावजूद देखो मेरी ईमानदारी की हनक कायम है। बाबा रामदेव से लेकर अन्ना हजारे सभी मुझे ईमानदार कहते हैं। घोटाले हो रहे हैं तो उसके लिए मेरे मंत्री जिम्मेदार हैं।मैं तो पाक-साफ हूं। हां कोयले में कुछ काला हुआ पर उससे क्या होता है। राजनीति तो कालिख की कोठरी है। कुछ चिपक गया तो छुड़ा लेंगें। मैं वोटों का लोभी नहीं हूं इसलिए चुनाव भी नहीं लड़ता, कुछ मांगना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं तो बिन मांगे बहुत कुछ दे देता हूं। जैसे भ्रष्टाचार और महंगाई जनता नहीं मांग रही थी मैंने दी। अब देखिए जनता को खुदरा में एफडीआई भी नहीं चाहिए मैंने दी। फिर भी हमें अंडरअचीवर कैसे कहा जा सकता है। बिना मांगे तो भगवान भी कुछ नहीं देते, मैं बिना मांगें सब दे रहा हूं। लोग याद करेगें कि हमारे देश में एक ऐसा भी राजा था जिसने सब कुछ हमें बिना मांगे दिया। मैं तो युवराज को भी बिन मांगे मंत्री पद देना चाहता हूं पर शायद उन्हें खुद पर भरोसा नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री के अलावा किसी पद पर बैठना नहीं चाहते हैं। मुझे देखकर शायद उन्हें लगता हो कि कुछ न करने वाले के लिए यही पद ठीक है। पर ऐसा नही है कि मैं कुछ नहीं कर रहा हूं। कुछ न करना भी आखिर कुछ करना है। आखिर देश में कुछ करता तो दस साल राजा कैसे रहता। इसलिए मैने वही किया और कहा जो मेरे मालिकों की इच्छा है।
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