सोमवार, 13 अगस्त 2012

हम सुनते कम और बोलते ज्यादा हैः के.जी. सुरेश





एमसीयू में पत्रकारिता की वस्तुनिष्टता विषय पर व्याख्यान
भोपाल,13 अगस्त।  देश के जाने माने पत्रकार एवं स्तंभ लेखक के.जी.सुरेश का कहना है कि हम पढ़ते कम और लिखते ज्यादा हैं तथा सुनते कम व बोलते ज्यादा हैं। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पत्रकारिता की वस्तुनिष्टता विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि वस्तुनिष्ठता के मायने हैं कि अपेक्षित तटस्थता और सभी पक्षों को समान अवसर देना। किंतु कोई भी पत्रकारिता राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित मीडिया को प्रभावित करते हैं, अमरीकी मीडिया इसका उदाहरण है। इसलिए वस्तुनिष्ठता और तटस्थता के मायने अलग-अलग संदर्भों में भिन्न हो जाते है। क्योंकि अगर राष्ट्र नहीं बचेगा तो न प्रेस बचेगा न उसकी आजादी।
     उन्होंने कहा कि सबके अपने-अपने सच हैं और हम अपने तरीके से घटनाओं की व्याख्या करते हैं। इसमें स्थानीयता दृष्टिकोण सबसे अहम है। श्री सुरेश ने कहा कि विभिन्न समाजों उसकी संस्कृति व परंपराओं की समझ न होने के कारण हम गड़बड़ करते हैं। यह ठीक नहीं है। जैसे उत्तर-पूर्व के राज्यों के बारे में हमारी नासमझी के चलते कई तरह से संकट खड़े हो जाते हैं। उनका कहना था कि देश की विविधता का ख्याल रखे बिना, उसे सम्मान दिए बिना हम राष्ट्र को एकजुट नहीं रख सकते। संकट यह है कि हम अपने परिवेश, परिवार से मिले मूल्यों और अपने दृष्टिकोण से चीजों को विश्लेषित करते हैं जबकि दूसरा नजरिया भी हो सकता है, हम इसका विचार नहीं करते। यह नासमझी हमारे लेखन से लेकर दैनंदिन व्यवहार में भी दिखती है। उनका कहना था कि पत्रकारिता जनता का मत निर्माण का काम करती है, वह जनता की रूचि के हिसाब से नहीं चल सकती। उसे सच और तथ्य बताने हैं न कि जनता की पसंद- नापसंद के आधार पर उसे चलना है। हम राजनेता नहीं हैं कि जनता को खुश रखने के उपाय सोचें। उन्होंने कहा कि देश की जमीन से ही नहीं, लोगों से भी प्यार करना होगा तभी वास्तविक सवाल सामने आ सकेंगें।
     श्री सुरेश ने कहा कि यह विडंबना ही है कि तीन प्रतिशत लोग शेयर मार्केट में निवेश करते हैं किंतु शेयरों के भाव गिरते हैं तो वह हेडलाइंस बनती है किंतु किसानों की आत्महत्या के सवाल बड़ी जगह नहीं पाते। उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे स्वयं की पृष्ठभूमि, जाति, धर्म को अपनी रिर्पोटिंग में न आने दें। न ही भावुकता में बहकर तथ्यों से छेड़छाड़ करें। राष्ट्रीयता का प्रखर बोध ही पत्रकारिता का मार्गदर्शक बन सकता है। कार्यक्रम का संचालन डा.संजीव गुप्ता ने किया तथा आभार प्रदर्शन डा. राखी तिवारी ने किया। कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी, जगमोहन राठौर, अजीत कुमार, हिमगिरी सिरोही, रेनू वर्मा, उमा सिंह यादव, शालिनी सिंह बघेल, बृजेंद्र शुक्ला सहित अनेक अध्यापक और जनसंचार विभाग के छात्र मौजूद रहे।

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