शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

अस्मिताओं के सम्मान से ही एकात्मताः सहस्त्रबुद्धे





भोपाल, 7 अक्टूबर। विचारक एवं चिंतक विनय सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि छोटी-छोटी अस्मिताओं का सम्मान करते हुए ही हम एक देश की एकात्मता को मजबूत कर सकते हैं। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा आयोजित व्याख्यान मीडिया में विविधता एवं बहुलताः समाज का प्रतिबिंबन विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अस्मिता का सवाल अतार्किक नहीं है, इसे समझने और सम्मान देने की जरूरत है। बहुलता का मतलब ही है विविधता का सम्मान, स्वीकार्यता और आदर है।

उन्होंने कहा कि इसके लिए संवाद बहुत जरूरी है और मीडिया इस संवाद को बहाल करने और प्रखर बनाने में एक खास भूमिका निभा सकता है। ऐसा हो पाया तो मणिपुर का दर्द पूरे देश का दर्द बनेगा। पूर्वोत्तर के राज्य मीडिया से गायब नहीं दिखेंगें। बहुलता के लिए विधिवत संवाद के अवसरों की बहाली जरूरी है। ताकि लोग सम्मान और संवाद की अहमियत को समझकर एक वृहत्तर अस्मिता से खुद को जोड़ सकें। आध्यात्मिक लोकतंत्र इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। इससे समान चिंतन, समान भाव, समान स्वीकार्यता पैदा होती है। समाज के सब वर्गों को एकजुट होकर आगे जाने की बात मीडिया आसानी से कर सकता है। किंतु इसके लिए उसे ज्यादा मात्रा में बहुलता को अपनाना होगा। उपेक्षितों को आवाज देनी पड़ेगी। अगर ऐसा हो पाया तो विविधता एक त्यौहार बन जाएगी, वह जोड़ने का सूत्र बन सकती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि दूसरों को सम्मान देते हुए ही समाज आगे बढ़ सकता है। मैं को विलीन करके ही समाज का रास्ता सुगम बनता है। मीडिया संगठनों की रचना ही बहुलता में बाधक है। साथ ही समाचार संकलन पर घटता खर्च मीडिया की बहुलता को नियंत्रत कर रहा है। विविध विचारों को मिलाने से ही विचार परिशुद्ध होते हैं। वरना एक खास किस्म की जड़ता विचारों के क्षेत्र को भी आक्रांत करती है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने कहा कि समाज में मीडिया के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर यह जरूरी है कि समाज की बहुलताओं और विभिन्नताओं का अक्स मीडिया कवरेज में भी दिखे। इससे मीडिया ज्यादा सरोकारी, ज्यादा जवाबदेह, ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा संतुलित और ज्यादा प्रभावी बनेगा। इसकी अभिव्यक्ति में शामिल व्यापक भावनाएं इसे प्रभावी बना सकेंगी। उन्होंने कहा कि विभिन्नताओं में सकात्मकता की तलाश जरूरी है क्योंकि सकारात्मकता से ही विकास संभव है जबकि नकारात्मकता से विनाश या विवाद ही पैदा होते हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर रेक्टर सीपी अग्रवाल, डा. श्रीकांत सिंह ने अतिथियों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया।

1 टिप्पणी:

  1. मैं को विलीन करके ही समाज का रास्ता सुगम बनता है.. bahut sundar baat hai aur achchi jankaari ke liye abhaar..

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