बुधवार, 22 सितंबर 2010

खबर की कोई विचारधारा नहीं होतीः प्रभात झा


संजय द्विवेदी की पुस्तक का लोकार्पण समारोह
भोपाल। पत्रकारिता सदैव मिशन है, यह कभी प्रोफेशन नही बन सकती। रोटी कभी राष्ट्र से बड़ी नहीं हो सकती। मीडिया के हर दौर में लोकतंत्र की पहरेदारी का कार्य अनवरत जारी रहा है। उक्त आशय के वक्तव्य वरिष्ठ पत्रकार एवं सांसद प्रभात झा ने व्यक्त किए। वे संजय द्विवेदी की पुस्तक ‘मीडिया: नया दौर नई चुनौतियां’ के लोकार्पण के अवसर पर मुख्यअतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। समारोह में श्री झा ने कहा कि खबर की कभी मौत नहीं हो सकती। खबर की कोई विचारधारा नहीं होती। न्यूज में व्यूज नहीं होना चाहिए। इन्फॉरमेशन केवल सोर्स है, न्यूज नहीं। इन्फॉरमेशन का कन्फरमेशन ही न्यूज है। पत्रकारिता में अपग्रेड होने के लिए अपडेट होना आवश्यक है। संवेदनात्मक विषय पर सनसनी फैलाना गलत है। शब्द आराधना है, ब्रह्म है, ओम् है, उपासना है। जो शब्दों से मजाक करते हैं, उनकी पत्रकारिता बहुत कम समय तक रहती है।
श्री झा ने कहा कि पत्रकारिता में अवसर है, चुनौती है, खतरे भी हैं। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के कारण मिथक तोड़ना सिद्धांतो के खिलाफ है। जीवटता व जीवन-मूल्य को पत्रकारिता में धारण करना पड़ेगा। यह किसी पुस्तक में नहीं मिलेगा। विज्ञापन कभी खबर नहीं बन सकता और खबर कभी विज्ञापन नहीं हो सकती। पत्रकार को यह समझना चाहिए कि कहाँ फायर करना है और कहाँ मिसफायर करना है। उन्होंने कहा कि नए दौर में सबसे बड़ी बात पारदर्शिता है। आज के दौर में आप कुछ भी करिए, मीडिया उसे जान ही लेगा। मीडिया का जितना महत्व बढ़ता जा रहा है, उसकी जिम्मेदारी उतनी ही बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में मालिक को पत्रकार मत बनने दीजिए। लोकाधिकार का दुरुपयोग करने से मीडिया अविश्वसनीय हो जाएगा।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और इंडिया टीवी के कार्यकारी संपादक रविकांत मित्तल ने कहा कि पुस्तक के लेखक संजय द्विवेदी के लेख शोधपरक होते हैं। यह किताब मीडिया की वर्तमान स्थिति पर गंभीर प्रकाश डालती है। संजय एक ऐसे लेखक हैं जिनके लेखन में उत्तेजना नहीं, संयम है। वे एक जिम्मेदार मीडिया विश्वेषक हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के कुलपति प्रो. बी.के.कुठियाला ने कहा कि पत्रकारिता का ध्येय सत्यम शिवम सुंदरम् होना चाहिए। कल्याणकारी सत्य ही प्रकाशित और प्रसारित होना चाहिए। उन्होंने श्री द्विवेदी के लेखन की मौलिकता की प्रशंसा की। समारोह का उद्घाटन अतिथियों ने माँ सरस्वती और माखनलाल जी के चित्र के सामने दीप-प्रज्वलन कर किया। इस अवसर पर अतिथियों का सम्मान भी शाल-श्रीफल देकर किया गया। कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने देशभक्ति गीत गाकर वातावरण को सरस बना दिया। संचालन एनी अंकिता और गौरव मिश्रा ने किया तथा आभार प्रदर्शन हेमंत पाणिग्रही ने किया। समारोह में सर्वश्री दीपक तिवारी, शिव अनुराग पटैरया, बृजेश राजपूत, नरेंद्र जैन, रमेश शर्मा, डॉ मंजुला शर्मा, भारत शास्त्री, मनोज शर्मा, विजय मनोहर तिवारी, जी. के. छिब्बर, डॉ हितेश वाजपेय़ी, रामभुवन सिंह कुशवाह, विजय बोंद्रिया, अरुण तिवारी सौरभ मालवीय, ओमप्रकाश गौड़, हितेश शुक्ल, दीपक शर्मा, डा. श्रीकांत सिहं, डा. पवित्र श्रीवास्तव, डा. अविनाश वाजपेयी, पुष्पेंद्रपाल सिंह, रजिस्ट्रार सुधीर त्रिवेदी, हर्ष सुहालका, सरमन नगेले, विनय त्रिपाठी, दीपेंद्र सिहं बधेल, राजेश पाठक, मीता उज्जैन, डा. मोनिका वर्मा, डा. रंजन सिंह, डा. राखी तिवारी, साधना सिंह, नीलिमा भार्गव, आकृति श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में विद्वान पत्रकार, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित बडी संख्या में पत्रकारिता के विद्यार्थी उपस्थित थे।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई संजय भाई ,बहुत-बहुत बधाइयाँ । -आशुतोष मिश्र , रायपुर । क्या आपने देखी है "खबरों की दुनियाँ" ?

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  2. यूँ तो पुस्तकों का विमोचन एक सामान्य प्रक्रिया या औपचारिकता मात्र ही हुआ करता है. लेकिन संजय जी के इस कार्यक्रम की खास बात यह रही की धडों-गुटों में बट गए गुरुजनों का एक मंच पर वापसी इस आयोजन के माध्यम से संभव हुआ है. वास्तव में पिछले दिनों जिस तरह से संस्थान का माहौल खराब हुआ था, जिस तरह विश्वविद्यालय की साख पर चोट पहुची थी ऐसे में यह आयोजन एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करने में सफल रहा है. हम जैसे पूर्व छात्र जो संस्थान के विवाद से चिंतित थे उन्हें भी समाधान मिला.
    ज़ाहिर है यह विश्वविद्यालय प्रदेश सरकार का एक उपक्रम है, तो ऐसे में सत्ताधारी दल के मुखिया द्वारा मुख्य आथित्य स्वीकार करना भी रेखांकित किये जाने लायक है. प्रभात जी का सारगर्भित उद्बोधन, बीज वाक्य की तरह रहा. सब अपने-अपने अनुसार इसका आशय निकाल उचित सन्देश ग्रहण कर सकते हैं. संजय जी को बधाई.

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